इस लेख में हम आपको बताएंगे कि गया में ही क्यों श्राद्ध किया जाता है और इसका हिंदू धर्म के अनुसार क्या महत्व है। Show
भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिनों को ही पितृपक्ष कहा जाता है। आपको बता दें कि इस बार हिंदू पंचांग के अनुसार 10 सितंबर से श्राद्ध पक्ष शुरू होगा और 25 सितंबर को खत्म होगा। ऐसा माना जाता है कि इस समय में हमारे पूर्वज धरती पर एक शक्ति के रूप में धरती पर आगमन करते हैं। पितृपक्ष के दिनों में लोग अपने पूर्वजों को याद करके उनके नाम पर श्राद्ध को विधि पूर्वक संपन्न करते हैं। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष पर श्राद्ध को विधि पूर्वक संपन्न करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और पिंडदान भी पितरों तक पहुंचता है। पितृपक्ष पर लोग बिहार के गया तीर्थ में जाकर श्राद्ध का काम विधि- विधान के साथ करते हैं। इस कार्य को बिहार के गया में करने का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है। इस लेख में हम आपको इसके महत्व के बारे में बताएंगे। 1) गया में पूर्वजों को मिलता है मोक्षआपको बता दें कि बिहार के गया को मोक्ष की भूमि यानी मोक्ष स्थली भी कहा जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार गया में पिंडदान व श्राद्ध का कार्य करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। यहां पर पिंडदान करने से कई कुलों और पीढ़ियों का उद्धार भी होता है। इस जगह पर पितृपक्ष मेला भी लगता है जिसमें कई लोग शामिल होते हैं। हर साल पितृपक्ष मेला में लाखों लोग श्राद्ध का कार्य करने आते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि गया में श्राद्ध को विधि पूर्वक करने से व्यक्ति पितृ के कर्ज से मुक्त हो जाता है। इसे भी पढ़ें -Pitru Paksha 2022: कब से शुरू हो रहा है पितृ पक्ष, तर्पण की तिथियां और महत्व जानें 2)बौद्ध धर्म के लिए भी पवित्र स्थल हैयह स्थान हिंदुओं के लिए पवित्र स्थल तो है ही साथ में बौद्ध धर्म के लोगों का भी पवित्र स्थल है। आपको बता दें कि बौद्ध धर्म के लोगों ने यहां पर कई मंदिरों का निर्माण करवाया है। बोधगया को भगवान बुद्ध की भूमि भी कहा जाता है। इसे भी पढ़ें -Pitru Paksha 2022: मृत्यु के बाद आखिर क्यों किया जाता है पिंडदान, जानें इसका महत्व 3) कई पौराणिक कथाओं में है इस जगह का वर्णनआपको बता दें कि महाभारत के समय कौरवों ने भी इसी स्थान पर श्राद्ध कर्म किया था। यही नहीं भगवान विष्णु भी खुद पितृदेव के रूप में इस पवित्र स्थल पर निवास करते हैं। अगर बात करें रामायण की तो गया में फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और सीता माता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए भी यहां पर श्राद्ध का कार्य विधि पूर्वक किया था। इसके बारे में वायु पुराण में भी बताया गया है। इस वजह से फल्गु नदी को भी एक महत्वपूर्ण और धार्मिक नदी माना जाता है। इन सभी कारणों की वजह से गया में श्राद्ध किया जाता है। यदि आपको पितृपक्ष से जुड़ी हुई कोई अन्य जानकारी प्राप्त करनी है तो हमें कमेंट करें। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ। Image credit- freepik/pixabay क्या आपको ये आर्टिकल पसंद आया ?बेहतर अनुभव करने के लिए HerZindagi मोबाइल ऐप डाउनलोड करें Disclaimer आपकी स्किन और शरीर आपकी ही तरह अलग है। आप तक अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी लाना हमारा प्रयास है, लेकिन फिर भी किसी भी होम रेमेडी, हैक या फिटनेस टिप को ट्राई करने से पहले आप अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें। किसी भी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, पर हमसे संपर्क करें। Pitru Paksha 2022 : कौए को श्राद्ध का अन्न क्यों खिलाया जाता है, गरुड़ पुराण में छुपा है यह रहस्यAuthored by Ayushi Tyagi| नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: Sep 7, 2022, 4:01 PM 2022 Pitru Paksha Shraddha Dates: पितृपक्ष में श्राद्ध के भोजन को कौए को खिलाने का काफी महत्व होता है। 15 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष में श्राद्ध का भोजन कौएं, ब्राह्मण गाय को खिलाने की परंपरा है। तो आइए जानते हैं पितृपक्ष में कौए को क्यों दिया जाता है अन्न और जल। क्या है इसका महत्व।2022 Pitru Paksha Shraddha Datesअपना यह राशिफल हर दिन ईमेल पर पाने के लिए क्लिक करें - सब्सक्राइब करेंक्लिक करे इसको लेकर एक और मान्यता प्रचलित है कहा जाता है कि एक बार कौवे ने माता सीता के पैरों में चोंच मार दी थी। इसे देखकर श्री राम ने अपने बाण से उसकी आंखों पर वार कर दिया और कौए की आंख फूट गई। कौवे को जब इसका पछतावा हुआ तो उसने श्रीराम से क्षमा मांगी
तब भगवान राम ने आशीर्वाद स्वरुप कहा कि तुमको खिलाया गया भोजन पितरों को तृप्त करेगा। भगवान राम के पास जो कौवा के रूप धारण करके पहुंचा था वह देवराज इंद्र के पुत्र जयंती थे। तभी से कौवे को भोजन खिलाने का विशेष महत्व है। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें पितृपक्ष क्यों मनाया जाता है?शास्त्रों के अनुसार आश्विन मास की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पितृ पक्ष मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों पितृ, पितृलोक से मृत्यु लोक पर अपने वंशजों से सूक्ष्म रूप में मिलने के लिए आते हैं। इस अवसर पर हम उनके सम्मान में अपनी सामर्थ्यानुसार उनका स्वागत व मान-सम्मान करते हैं।
पितृ पक्ष का मतलब क्या होता है?पितृ पक्ष या पितरपख, १६ दिन की वह अवधि (पक्ष/पख) है जिसमें हिन्दू लोग अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं। इसे 'सोलह श्राद्ध', 'महालय पक्ष', 'अपर पक्ष' आदि नामों से भी जाना जाता है।
श्राद्ध की शुरुआत कैसे हुई?भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था. दरअसल, अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर, निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आह्वान करना शुरू कर दिया था. इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा, "निमि, आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है.
पितृ पक्ष में जन्म लेने वाले बच्चे कैसे होते हैं?यह बच्चे बेहद रचनात्मक होते हैं और अपनी कला के जरिए खूब मान-सम्मान कमाते हैं. श्राद्ध पक्ष में जन्मे बच्चों पर पितरों का विशेष आशीर्वाद रहता है और वो अपने जीवन में खूब तरक्की करते हैं. ये बच्चे अपने परिवार में खूब सारी खुशियां और समृद्धि लेकर आते हैं. माना जाता है कि इन बच्चों के भाग्य से परिवार के अच्छे दिन आते हैं.
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