पाठ्यचर्या तथा पाठ्यक्रम में क्या अन्तर है? - paathyacharya tatha paathyakram mein kya antar hai?

पाठ्यक्रम Curriculumऔर पाठ्यचर्या (सिलेबस) के अर्थ को अकसर एक ही रूप में देखा जाता रहा हैं परंतु असल मायने में यह एक दूसरे से भिन्न हैं। पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर जहाँ पाठ्यक्रम शिक्षण क्रिया का एक विस्तृत रूप हैं वही पाठ्यचर्या पाठ्यक्रम का संकुचित रूप हैं। जहाँ पाठ्यक्रम का निर्माण बड़ी मात्रा में होता हैं वही पाठ्यचर्या का निर्माण पाठ्यक्रम के आधार पर किया जाता हैं।

दोस्तों अकसर यह देखा जाता हैं कि अधिकतर लोग यह नही जानते कि पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में क्या अंतर हैं प्रायः सभी लोग इन दोनों को एक ही रूप में देखते हैं परंतु दोनों में कई भिन्नताएँ पायी जाती हैं और आज हम इस पोस्ट के माध्यम से यही जनिंगे कि पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में क्या अंतर हैं।

पाठ्यचर्या तथा पाठ्यक्रम में क्या अन्तर है? - paathyacharya tatha paathyakram mein kya antar hai?

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पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर/करिकुलम और सिलेबस में अंतर

पाठ्यक्रम (करिकुलम)के जरिए छात्रों का सर्वांगीण विकास किया जाता हैं। जबकि पाठ्यचर्या (सिलेबस) द्वारा छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता हैं। पाठ्यक्रम का क्षेत्र विस्तृत होता हैं अर्थात इसका विकास व्यापक रूप में होता हैं जबकि पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु का निर्माण संकुचित रूप में किया जाता हैं।

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पाठ्यक्रम का निर्माण और विकास व्यापक रूप में अर्थात समाज की आवश्यकताओं को और देश की उन्नति को देखकर इसका निर्माण किया जाता हैं। जबकि पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु का निर्माण करते समय छात्रों को महत्व दिया जाता हैं और छात्रों की रुचि, अभिक्षमता और उनके पूर्वज्ञान के अनुसार ही पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता हैं।

पाठ्यक्रम का निर्माण पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार होता हैं अर्थात पुरानी जन्मी नीतियों के अनुसार इसका निर्माण किया जाता हैं। इसमें वर्तमान परिस्तिथियों को ध्यान में नही रखा जाता। जबकि पाठ्यचर्या का निर्माण वर्तमान परिस्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता हैं और यह पाठ्यक्रम से ज्यादा व्यवहारिक होती हैं।

पाठ्यक्रम का निर्माण विद्यालय के प्रशासन एवं विद्यालय की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए किया जाता हैं। जबकि पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु का निर्माण सिर्फ शिक्षण क्रियाओं के लिए किया जाता हैं। इसके अंतर्गत विषयवस्तु को एवं शिक्षण विधियों व सहायक सामग्रियों को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण किया जाता हैं।

पाठ्यक्रम का उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन लाना एवं शिक्षा व्यवस्था में सुधार करना होता हैं और इसी के अनुसार इसके उद्देश्यों के चयन किया जाता हैं। जबकि पाठ्यचर्या के उद्देश्यों का निर्धारण छात्रों के स्तर, उनकी रुचियों एवं विद्यालय के प्रशासन के अनुसार किया जाता हैं।

पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या के उद्देश्यों में अंतर/करिकुलम और सिलेबस के उद्देश्यों में अंतर

  • पाठ्यक्रम के उद्देश्यों का निर्माण सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु किया जाता हैं। वही पाठ्यचर्या का निर्माण छात्रों की आवश्यकताओं एवं रुचि के अनुसार किया जाता हैं।
  • पाठ्यक्रम के द्वारा सामाजिक स्वार्थ को प्रथम स्थान दिया जाता हैं और पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु का उद्देश्य छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष का विकास करना होता हैं।
  • पाठ्यक्रम का क्षेत्र व्यापक हैं और पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु का क्षेत्र संकुचित।
  • पाठ्यवस्तु में विद्यालय में सम्पन्न होने वाले सभी कार्यो को शामिल किया जाता हैं और पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु में शिक्षण कार्यो की योजनाओं को ही सम्मिलित किया जाता हैं।
  • पाठ्यक्रम एक बॉडी हैं तो पाठ्यवस्तु उसका एक अंग।

निष्कर्ष

पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु, पाठ्यक्रम का एक भाग होता हैं एक अंग होता हैं। पाठ्यक्रम शब्द का प्रयोग व्यापक रूप में किया जाता हैं जबकि पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु शब्द का प्रयोग संकुचित रूप में किया जाता हैं। जहाँ पाठ्यक्रम का आधार समाज और विद्यालय प्रशासन होता हैं वही पाठ्यवस्तु या पाठ्यचर्या का आधार शिक्षण के दौरान पढ़ाई जाने वाली विषय-वस्तु होती हैं। तो दोस्तों आज आपने पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर को जाना। अगर आपको हमारी पोस्ट ज्ञानवर्धक लगी हो और आपको इससे लाभ हुआ हो तो इसे अपने मित्रों के साथ भी शेयर करें और अपने सुझाव हेतु हमे कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमें संदेश भेजें।

pathyacharya or pathyakram mein antar;कई बार विद्यार्थी कई बार अज्ञानतावश पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या इन दोनों को पर्यायवाची शब्द समझ लेते है परन्तु ऐसा मानना पूर्णतया सही नही है। हाँलाकि इन दोनों शब्दों के मध्य का अंतर काफी कम है लेकिन फिर भी इन्हे एक दूसरे का  पर्यायवाची नही माना जा सकता है। पाठ्यचर्या शब्द को जब तक सीमित अर्थों में संकीर्णता से लिए गया तब तक इन दोनों (पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम) से ही तात्पर्य उन विषयों से ही लगाया जाता रहा जो बालक को विद्यालय की समय सारणी के अनुसार अध्यापक द्वारा कुछ निश्चित शिक्षण-विधियों द्वारा सिखाई जाती थी परन्तु आजकल पठ्यचर्या की अवधारण अत्यन्त व्यापक हो चुकी है एवं यह मात्र विषयों तक सिमित न होकर विविध पाठ्येत्तर क्रियाओं एवं संपूर्ण जीवन मे प्राप्त किए जाने वाले अनुभवों का पर्याय बन चुकी है। इसके विपरीत पाठ्यक्रम मे किसी कक्षा विशेष में निर्धारित पाठ्य-विषयों से संबंधित क्रियाओं का ही समावेश होता है। अतः पाठ्यक्रम से तात्पर्य किसी वस्तु के विवरण से है, जो शिक्षक के लिए इस उद्देश्य के साथ तैयार हो जाता है कि वह अपने शिक्षार्थियों को भली-भाँति ज्ञान प्रदान कर सके। 

पाठ्यचर्या के विषय में प्रकाश डालते हुए केस बेल महोदय लिखते है कि," पाठ्यचर्या में वह सब कुछ सम्मिलित है जो बालकों, उनके माता-पिता तथा शिक्षकों के जीवन से गुजरता है। पाठ्यचर्या उस हर वस्तु से बनता है जो शिक्षार्थी को उसके संपूर्ण कार्यकाल मे घेरे रहती है। वास्तव में पाठ्यचर्या की व्याख्या गतिशील वातावरण के रूप में की गई है।" &lt;/p&gt;&lt;h2 style="text-align:center"&gt;पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में अंतर&amp;nbsp;&lt;/h2&gt;&lt;p&gt;पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में निम्न अंतर है--&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;1. पाठ्यक्रम वह मार्ग है जिस पर चलकर लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है, जबकि पाठ्यचर्या लक्ष्य पर पहुंचने का स्थान है।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;2. पाठ्यक्रम का अध्ययन क्षेत्र संकुचित होता है-- जिसमे मात्र इस बात का ज्ञान होता है कि विविध स्तरों पर बालकों को विभिन्न विषयों का लगभग कितना ज्ञान प्राप्त हुआ। जबकि पाठ्यचर्या का क्षेत्र पाठ्यक्रम की तुलना मे अत्यन्त व्यापक होता है जो छात्र के जीवन के लगभग सभी पक्षों से संबंधित होता है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;3. पाठ्यक्रम में पाठ्यवस्तु का व्यवस्थित स्वरूप है जो कई विद्वानों के सहयोग से निर्मित होता है, जबकि पाठ्यचर्या गन्तव्य स्थान तक पहुंचने तक की प्रक्रिया का विषय ज्ञान है।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;4. पाठ्यक्रम में रटने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करके परीक्षा में सफल होना ही मुख्य लक्ष्य माना जाता है। पाठ्यवस्तु में छात्रों की तात्कालिक क्रियाओं को महत्व दिया जाता है। पाठ्यचर्या तथ्यों को रटने की उपेक्षा करता है एवं बालक के सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता देता है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;5. पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम मे एक अंतर यह भी है कि पाठ्यक्रम की प्रकृति पाठ्यक्रम आधारित होती है। जबकि पाठ्यचर्या की प्रकृति परिस्थिति, आवश्यकताएं एवं समस्याओं पर आधारित है।&amp;nbsp;&lt;/p&gt;&lt;p&gt;6. पाठ्यक्रम का विकास एवं प्रबंधन, शिक्षक एवं उसकी योग्यता तथा छात्रों की आवश्यकताओं द्वारा होता है। पाठ्यचर्या का विकास सामाजिक एवं वातावरणजन्य, परिस्थितियाँ, शैक्षिक व्यवस्था, शैक्षिक प्रणाली, परिषदें, समितियों के सदस्य करते है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;7. पाठ्यक्रम के द्वारा तात्कालिक गुणों मे परिवर्तन की संभावना होती है। पाठ्यचर्या द्वारा सामाजिक परिवर्तन एवं स्थायी परिवर्तन होने की संभावना होती है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;8. पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को कक्षा में या सीमित क्षेत्रों मे रहकर प्राप्त किया जाता है। जबकि पाठ्यचर्या के उद्देश्यों को असीमित क्षेत्रों में जाकर प्राप्त किया जा सकता है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;9. पाठ्यक्रम के अनुसार केवल कक्षागत बदलाव भी सदैव जरूरी नही होते है। पाठ्यचर्या के अनुसार विद्यालय प्रबन्धन के अंतर्गत बदलाव किए जाते है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;10. पाठ्यक्रम मे शिक्षा के व्यावहारिक पक्ष पर अधिक विचार किया जाता है जिससे छात्रों को व्यावसारिक ज्ञान प्रदान किया जा सके। पाठ्यचर्या शिक्षा के सैद्धान्तिक पक्ष को महत्वपूर्ण मानता है क्योंकि वह ज्ञान प्रदान करने का आवश्यक आधार है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;11. पाठ्यक्रम का प्रारूप छात्रों की रूचियों एवं योग्यताओं पर आधारित होकर बनाया जाता है, जबकि पाठ्यचर्या का प्रारूप सामाजिक एवं तात्कालिक आवश्यकताओं, मूल्यों, राष्ट्रीय विकास, मानवीय गुणों पर आधारित होकर बनाया जाता है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;12. पाठ्यक्रम विस्तृत पाठ्यक्रम का एक आंशिक भाग होता है। पाठ्यचर्या अपने आप में विभिन्न तत्वों के संगठन से निर्मित होता है।&lt;/p&gt;&lt;p&gt;13. पाठ्यक्रम में उन सभी क्रियाओं, विषय वस्तु तथा जरूरी बातों का समावेश होता है जिसे एक स्तर पर अध्ययन-अध्यापन को क्रमबद्ध बनाने के लिए संगठित किया जाता है। यह शिक्षण के विषयों को व्यवस्थित रूप में प्रदर्शित करता है। जबकि कंनिधम के शब्दों मे," पाठ्यचर्या एक कलाकार (अध्यापक) के हाथों में यंत्र (साधन) है जिससे वह अपनी वस्तु (विद्यार्थी) को अपने कक्षा-कक्ष (स्कूल) में अपने आदर्शों (उद्देश्यो) के अनुसार बनाता है।"&lt;script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"&gt; <ins class="adsbygoogle" style="display:block;text-align:center" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-4853160624542199" data-ad-slot="5627619632"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

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पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम में क्या अंतर होता है?

पाठ्यक्रम (करिकुलम)के जरिए छात्रों का सर्वांगीण विकास किया जाता हैं। जबकि पाठ्यचर्या (सिलेबस) द्वारा छात्रों के ज्ञानात्मक पक्ष पर अधिक बल दिया जाता हैं। पाठ्यक्रम का क्षेत्र विस्तृत होता हैं अर्थात इसका विकास व्यापक रूप में होता हैं जबकि पाठ्यचर्या या पाठ्यवस्तु का निर्माण संकुचित रूप में किया जाता हैं।

पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम से क्या आशय है?

इस प्रकार पाठ्यचर्या का अर्थ हुआ पढ़ने योग्य (सीखने योग्य) अथवा पढ़ाने योग्य (सिखाने योग्य ) | विषय वस्तु और क्रियाओं का नियम पूर्वक अनुसरण । पाठ्यक्रम : संकुचित अर्थ में पाठ्यचर्या के लिए एक अन्य शब्द सिलेबस (syllabus) या पाठयक्रम शब्द भी प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ कोर्स ऑफ स्टडी या कोर्स ऑफ टीचिंग भी है ।

पाठ्यक्रम और अध्ययन क्रम में क्या अंतर है?

(2) यदि इसके क्षेत्र को देखा जाय तो पाठ्यक्रम का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है, शिक्षार्थी के जीवन के लगभग प्रत्येक पक्ष से यह सम्बन्धित होता है जबकि अध्ययनक्रम का क्षेत्र संकुचित होता है जिससे केवल इस बात का ज्ञान होता है कि विभिन्न स्तरों पर बालकों को विभिन्न विषयों का कितना ज्ञान प्राप्त हुआ है।

पाठ्यक्रम का अर्थ क्या है?

''किसी परीक्षा को उत्तीर्ण करने अथवा किसी व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश के लिए किसी शिक्षालय द्वारा छात्रों के लिए प्रस्तुत विषय-सामग्री की समग्र योजना को पाठ्यक्रम कहते है।'' ''व्यक्ति को समाज में समायोजित करने के उद्देश्य से विद्यालय के निर्देशन में निर्धारित शैक्षिक अनुभवों का समूह पाठ्यक्रम कहलाता है।