राजनीति क्या है इसके विभिन्न तत्वों का वर्णन कीजिए - raajaneeti kya hai isake vibhinn tatvon ka varnan keejie

राजनीति
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राजनीति क्या है इसके विभिन्न तत्वों का वर्णन कीजिए - raajaneeti kya hai isake vibhinn tatvon ka varnan keejie

प्रमुख विषय

  • सूची
  • रूपरेखा
  • देशानुसार राजनीति
  • उपखंड-अनुसार राजनीति
  • राजनीतिक अर्थशास्त्र
  • राजनीतिक इतिहास
  • विश्व का राजनैतिक इतिहास
  • दर्शन

प्रणालियाँ

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  • धर्मतंत्र

अकादमिक विषय

  • राजनीति विज्ञान
    (राजनीति वैज्ञानिक)

  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध
    (सिद्धांत)

  • तुलनात्मक राजनीति

लोक प्रशासन

  • नौकरशाही(मोहल्ला-स्तरीय)
  • तदर्थशाही

नीति

  • लोकनीति (सिद्धांत)
  • गृह-नीति और विदेश नीति
नागरिक समाज
  • सार्वजनिक हित

सरकार के अंग

  • शक्तियों का पृथक्करण
  • विधानपालिका
  • कार्यपालक
  • न्यायतंत्र
  • चुनाव आयोग

संबंधित विषय

  • संप्रभुता
  • राजनीतिक व्यवहार के सिद्धांत
  • राजनीतिक मनोविज्ञान
  • जीवविज्ञान और राजनीतिक अभिविन्यास
  • राजनीतिक संगठन
  • विदेशी चुनावी हस्तक्षेप

विचारधाराएँ

  • साम्यवाद
  • मार्क्सवाद
  • समाजवाद
  • उदारवाद
  • रूढ़िवाद
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  • फ़ासीवाद
  • आंबेडकरवाद
  • अराजकतावाद
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उप-श्रंखलाएँ

  • निर्वाचन प्रणालियाँ
  • चुनाव( मतदान)
  • संघवाद
  • सरकार के रूप में
  • विचारधारा
  • राजनीतिक प्रचार
  • राजनीतिक दल

राजनीति प्रवेशद्वार

  • दे
  • वा
  • सं

राजनीति दो शब्दों का एक समूह है राज+नीति। (राज मतलब शासन और नीति मतलब उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला) अर्थात् नीति विशेष के द्वारा शासन करना या विशेष उद्देश्य को प्राप्त करना राजनीति कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जनता के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर (सार्वजनिक जीवन स्तर)को ऊँचा करना राजनीति है । नागरिक स्तर पर या व्यक्तिगत स्तर पर कोई विशेष प्रकार का सिद्धान्त एवं व्यवहार राजनीति (पॉलिटिक्स) कहलाती है। अधिक संकीर्ण रूप से कहें तो शासन में पद प्राप्त करना तथा सरकारी पद का उपयोग करना राजनीति है।

राजनीति में बहुत से रास्ते अपनाये जाते हैं जैसे- राजनीतिक विचारों को आगे बढ़ाना,विधि बनाना, विरोधियों के विरुद्ध युद्ध आदि शक्तियों का प्रयोग करना। राजनीति बहुत से स्तरों पर हो सकती है- गाँव की परम्परागत राजनीति से लेकर, स्थानीय सरकार, सम्प्रभुत्वपूर्ण राज्य या अन्तराष्ट्रीय स्तर पर।

राजनीति का इतिहास अति प्राचीन है जिसका विवरण विश्व के सबसे प्राचीन सनातन धर्म ग्रन्थों में देखनें को मिलता है । राजनीति कि शुरुआत रामायण काल से भी अति प्राचीन है। महाभारत महाकाव्य में इसका सर्वाधिक विवरण देखने को मिलता है । चाहे वह चक्रव्यूह रचना हो या चौसर खेल में पाण्डवों को हराने कि राजनीति । अरस्तु को राजनीति का जनक कहा जाता है। आम तौर पर देखा गया है कि लोग राजनीति के विषय में नकारात्मक विचार रखते हैं , यह दुर्भाग्यपूर्ण है ,हमें समझने की आवश्यकता है कि राजनीति किसी भी समाज का अविभाज्य अंग है ।महात्मा गांधी ने एक बार टिप्पणी की थी कि राजनीति ने हमें सांप की कुंडली की तरह जकड़ रखा है और इससे जूझने के सिवाय कोई अन्य रास्ता नहीं है ।राजनीतिक संगठन और सामूहिक निर्णय के किसी ढांचे के बिना कोई भी समाज जीवित नहीं रह सकता ।

राजनेता[संपादित करें]

राजनेता (अंग्रेजी: Statesman) उस व्यक्ति को कहते हैं जो मूलत: राजनीतिक दर्शन के आधार पर राजनीति के क्षेत्र में कभी भी नीतिगत सिद्धान्तों से समझौता नहीं करता। उदाहरण के लिए लाल बहादुर शास्त्री (कांग्रेस), अटल बिहारी वाजपेयी (भाजपा), राममनोहर लोहिया (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी) और वर्तमान में नरेन्द्र मोदी।

राजनीतिशास्त्र की परम्परा[संपादित करें]

भारतीय साहित्य में राजनीति-विषयक ग्रन्थों के निर्माण की परम्परा बहुत प्राचीन है। कल्पसूत्र उसके आदि स्रोत हैं, जिनका निर्माण लगभग ७०० ई० पूर्व में हो चुका था। धर्म और अर्थ के साथ राजनीति की विस्तृत चर्चाएँ धर्मसूत्रों, विशेषरूप से बौधायन धर्मसूत्र में देखने को मिलती हैं। इस दृष्टि से बौद्ध जातकों के सन्दर्भ भी महत्त्वपूर्ण हैं, जिनकी रचना तथागत से पहले लगभग ६००ई० पूर्व में मानी जाती है। जातकों में अर्थ के अन्तर्गत ही राजनीति का समन्वय किया गया है और उसे प्रमुख विज्ञान के रूप में माना गया है।

राजनीति-विषयक बातों की विस्तृत चर्चा 'महाभारत' ( ५०० ई० पूर्व) में देखने को मिलती है । 'महाभारत' के शान्तिपर्व ( अध्याय ५८, ५९ ) में इस परम्परा के प्राचीन आचार्यों का उल्लेख हुआ है। उनमें प्रजापति के 'राजशास्त्र' का भी उल्लेख हुआ है। इससे ज्ञात होता है कि राजनीति को एक प्रमुख विषय के रूप में माना जाने लगा था। कौटिल्य का 'अर्थशास्त्र' ( ३०० ई० पूर्व) इस विषय का प्रौढ़ ग्रन्थ है। उसके अध्ययन से ज्ञात होता है कि राजनीति को एक स्वतन्त्र शास्त्र के रूप में मान्यता प्राप्त हो गई थी। राजनीति पर लिखा गया आचार्य उशनस् का 'दण्डनीतिशास्त्र' सम्भवतः इस परम्परा का ग्रन्थ था, जिसका उल्लेख विशाखदत्त के 'मुद्राराक्षस' (१७ ) में देखने को मिलता है। उसके बाद लगभग चौथी शती ई० तक धर्म और अर्थ विषय पर लिखे गये ग्रन्थों में राजनीति की विस्तृत चर्चाएं देखने को मिलती हैं। धर्म और अर्थ का प्रमुख अङ्ग होने के कारण राजनीति का महत्त्व सभी धर्मवक्ताओं एवं अर्थशास्त्रियों ने स्वीकार किया।

राजनीति पर एक सर्वाङ्गीण बृहद् ग्रन्थ की रचना आचार्य शुक्र ने की थी, जिसको कि 'शुक्रनीतिसार' के नाम से कहा जाता है। इस ग्रन्थ का उल्लेख मध्ययुगीन स्मृतिकारों ने किया है। अनेक ग्रन्थों में उसके उदाहरण भी देखने को मिलते हैं। 'राजनीति-रत्नाकर' में भी उसके अंश उद्धृत हैं। आचार्य शुक्र के राजनीति-विषयक ग्रन्थ के आधार पर ४०० ई० के लगभग आचार्य कामन्दक ने 'नीतिसार' के नाम से एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की। विद्वानों का अभिमत है कि कामन्दकीय 'नीतिसार' भी अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। सम्प्रति उसका जो रूप उपलब्ध है, वह १७ वीं श० ई० का पुनः संस्करण है।

राजनीति-विषयक चर्चाओं की दृष्टि से पुराणों का विशेष महत्त्व है। 'अग्निपुराण' और 'मत्स्यपुराण' इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। इन दोनों पुराणों के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि वे अपने पूर्ववर्ती राजनीति-विषयक ग्रन्थों की प्रौढ़ परम्परा के सूचक हैं। इन पुराणों की रचना ५वीं से ७वीं श० ई. के बीच मानी जाती है।

इस परम्परा में आचार्य बृहस्पति के 'अर्थशास्त्र' और सोमदेव के 'नीतिवाक्यामृत' का नाम विशेषरूप से उल्लेखनीय है। बृहस्पति का 'अर्थशास्त्र' अपने मूल रूप में बहुत प्राचीन है, किन्तु जिस रूप में आज वह उपलब्ध है उसे ९वीं-१०वीं श० ई० का पुनः संस्करण बताया जाता है। 'नीतिवाक्यामृत' को भी इसी समय की रचना माना जाता है। उसके रचनाकार सोमदेव 'कथासरित्सागर' के रचयिता से भिन्न थे।

ऐसा प्रतीत होता है कि १०वीं श० ई. के बाद विद्वानों का ध्यान राजनीति विषय की ओर विशेष रूप से केन्द्रित हुआ। इस सन्दर्भ में जैनाचार्य हेमचन्द्र ( १२ वीं श०) का 'लघ्वर्हनीति' और धारानरेश भोज (१२ वीं श०) का 'युक्तिकल्पतरु' का नाम विशेषरूप से उल्लेखनीय है। १४वीं से १८वीं श० ई० के बीच इस विषय पर जिन महत्त्वपूर्ण कृतियों का निर्माण हुआ उनमें 'राजनीति रत्नाकर', 'राजनीति कल्पतरु', 'राजनीति कामधेनु', 'वीरमित्रोदय' और 'राजनीति मयूख' का नाम उल्लेखनीय है। प्रथम तीन ग्रन्थों के निर्माता चण्डेश्वर या चन्द्रशेखर और अन्त के दोनों ग्रन्थों के निर्माता क्रमशः मित्रमिश्र और नीलकण्ठ हैं।[1]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. राजनीतिशास्त्र और उसकी परम्परा

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • राजनीतिक दल
  • राजनीति विज्ञान
  • राजनीतिक सिद्धान्त
  • राजनीतिक दर्शन

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • A glossary of the political terms of ancient India up to 7th century A D
शृंखला का एक भाग
राजनीति
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प्राथमिक विषयों

राजनीति लेख के सूचकांक
देश से राजनीति
उपखंड द्वारा राजनीति
राज्यार्थ व्यवस्था
राजनीतिक इतिहास
विश्व के राजनीतिक इतिहास
राजनीतिक दर्शन

राजनीतिक प्रणाली

अराजकता • पूंजीवाद

सिटी स्टेट • साम्यवाद

लोकतंत्र • सामंतवाद

Feudalism • Mixed economy

तानाशाही • Directorialism

Meritocracy • राजतन्त्र

संसदीय • अध्यक्षीय

अर्ध राष्ट्रपति • धर्मतंत्र

शैक्षणिक विषय

राजनीति विज्ञान (राजनीतिक वैज्ञानिक)

अंतर्राष्ट्रीय संबंध (सिद्धांत)

तुलनात्मक राजनीति

लोक प्रशासन

अफसरशाही (गली-स्तर)

Adhocracy

नीति

लोक नीति (वाद)

सार्वजनिक हित विदेश नीति

सरकार के अंग

शक्तियों का पृथक्करण

विधायिका कार्यकारिणी

न्यायपालिका चुनाव शाखा

सम्बंधित विषय

सार्वभौम राष्ट्र

राजनीतिक व्यवहार का सिद्धांत

राजनीतिक मनोविज्ञान

जीवविज्ञान और राजनीतिक उन्मुखीकरण

राजनीतिक संगठन

उपश्रेणियाँ

चुनाव प्रणाली

चुनाव।मतदान

संघवाद

सरकार का पर्चा।विचारधारा

राजनीतिक चुनाव प्रचार।राजनीतिक पार्टी

प्रवेशद्वार राजनीति

  • दे
  • वा
  • सं

राजनीति क्या है इसके विभिन्न तत्वों का वर्णन?

राजनीति दो शब्दों का एक समूह है राज+नीति। (राज मतलब शासन और नीति मतलब उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला) अर्थात् नीति विशेष के द्वारा शासन करना या विशेष उद्देश्य को प्राप्त करना राजनीति कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जनता के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर (सार्वजनिक जीवन स्तर)को ऊँचा करना राजनीति है ।

राजनीतिक सिद्धांत क्या है वर्णन करें?

(२) राजनीतिक सिद्धान्त सामान्यतः मानव जाति, उसके द्वारा संगठित समाजों और इतिहास तथा ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न करता है। वह विभेदों को मिटाने के तरीके भी सुझाता है और कभी-कभी क्रांतियों की हिमायत करता है। बहुधा भविष्य के बारे में पूर्वानुमान भी दिए जाते हैं।

राजनीति क्या है Class 11?

राजनीतिक सिद्धांत का मुख्य विषय राज्य व सरकार है । यह स्वतंत्रता , समानता , न्याय व लोकतंत्र जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है । नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नों के बारे में तर्क संगत ढंग से सोचने और सामाजिक राजनीतिक घटनाओं को सही तरीके से आंकने का प्रशिक्षण देना है ।

भारत की राजनीति क्या है?

संविधान के अनुसार, भारत एक प्रधान, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक राज्य है, जहां पर विधायिका जनता के द्वारा चुनी जाती है। अमेरिका की तरह, भारत में भी संयुक्त सरकार होती है, लेकिन भारत में केन्द्र सरकार राज्य सरकारों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है, जो कि ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली पर आधारित है।