विषयसूची साहसपूर्ण आनंद की उमंग का क्या नाम है?इसे सुनेंरोकेंउत्तर: साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम ‘उत्साह’ है। 4. ‘युद्ध-वीर’ और ‘दान-वीर’ से आप क्या समझते हैं? उत्तर: युद्धवीर और दानवीर दोनों में उत्साह पाई जाती है। उत्साह रामचंद्र शुक्ल के कौनसे निबंध संग्रहण में से लिया गया है? इसे सुनेंरोकेंऔर अधिकरामचंद्र शुक्ल दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, आनंद वर्ग में वही स्थान उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के निश्चय से विशेष रूप में दुखी और कभी-कभी स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान् भी होते हैं। उत्साह कहानी के लेखक कौन है?इसे सुनेंरोकेंइसके लेखक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ हैं। उत्साह कविता में कवि बादल को गरजने के लिए क्यों कहता है बादल से कवि की अन्य अपेक्षाएँ क्या हैं? इसे सुनेंरोकेंबादल से कवि की अन्य अपेक्षाएँ क्या हैं? उत्तर- ‘उत्साह’ कविता में कवि बादल को गरजने के लिए इसलिए कहता है क्योंकि वह लोगों में उत्साह और क्रांति लाना चाहता है। उससे कवि अपेक्षा करता है कि गरमी से व्याकुल, पीड़ित और वेचैन लोगों को छुटकारा दिलाए। बादलों के लिए बरसने के स्थान पर गरजने का प्रयोग करने से कवि का क्या तात्पर्य है?इसे सुनेंरोकेंउत्तर: कवि ने बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहता बल्कि ‘गरजने’ के लिए कहा है; क्योंकि ‘गरजना’ विद्रोह का प्रतीक है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान किया है। उत्साह गद्य की कौन सी विद्या है? इसे सुनेंरोकेंउत्साह / साहित्य शास्त्र / रामचन्द्र शुक्ल – Gadya Kosh – हिन्दी कहानियाँ, लेख, लघुकथाएँ, निबन्ध, नाटक, कहानी, गद्य, आलोचना, उपन्यास, बाल कथाएँ, प्रेरक कथाएँ, गद्य कोश फलासक्ति का क्या प्रभाव पड़ता है?इसे सुनेंरोकेंफलासक्ति का क्या प्रभाव पड़ता है? उत्तर: फलासक्ति से कर्म के लाघव की वासना उत्पन्न होती है। चित्त में यह आता है कि कर्म बहुत सरल करना पड़े और फल बहुत-सा मिल जाए। कवि ने बादलों को आह्वान करते हुए उनसे क्या करने का आग्रह किया है *? We have provided उत्साह और अट नहीं रही Class 10 Hindi Kshitij MCQs Questions with Answers to help students understand the concept very well….Primary Sidebar.
बादलों को नवजीवन वाला कहा गया है क्योंकि?इसे सुनेंरोकेंकवि ने बादलों को नवजीवन वाला इसलिए कहा है क्योंकि बादल हमें जल प्रदान करते हैं, और जल ही जीवन है। Lesson-4 (उत्साह) 1. 'उत्साह' किस प्रकार का निबंध है? उत्तर: उत्साह 'चिंतामणि' से लिया गया एक मनोविकारात्मक निबंध है। 2. 'उत्साह' किसे कहते हैं? उत्तर: साहसपूर्ण आनंद की उमंग को उत्साह कहते हैं। अर्थात कष्ट या हानि सहने की दृढ़ता के साथ-साथ कर्म में प्रवृत्ति होने पर जो आनंद का योग होता है वही उत्साह कहलाता है। 3. साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम क्या है? उत्तर: साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम 'उत्साह' है। 4. 'युद्ध-वीर' और 'दान-वीर' से आप क्या समझते हैं? उत्तर: युद्धवीर और दानवीर दोनों में उत्साह पाई जाती है। पर दोनों का स्वरूप अलग-अलग है। जिस उत्साह में आनंदपूर्ण तत्परता के साथ लोग कष्ट-पीड़ा या मृत्यु तक की परवाह न करते हुए पूरी वीरता और पराक्रम के साथ कर्म करते हैं तो वह युद्धवीर कहलाएगा। दूसरी ओर जिस उत्साह में अर्थ-त्याग का साहस अर्थात उसके कारण होने वाले कष्ट या कठिनाता को सहने की क्षमता अंतर्निहित रहती हो वह दानवीर कहलाएगा। 5. क्या उत्साह की गिनती अच्छे गुणों या बुरे गुणों में होती है? उत्तर: हांँ, उत्साह की गिनती अच्छे और बुरे दोनों गुणों में होती है। 6. श्रीकृष्ण का कर्म-मार्ग कैसा था? उत्तर: श्रीकृष्णा का कर्म-मार्ग फलाफल पर केंद्रित न होकर कर्मों को आनंदपूर्वक तरीके से करते जाना था। अर्थात वे फल या परिणाम की चाह नहीं रखते थे। 7. सच्चे उत्साही बनने के लिए किन-किन गुणों की आवश्यकता है? उत्तर: सच्चे उत्साही बनने के लिए कर्म के प्रति लगाव, फल प्राप्ति से दूर, दान-वीर, बुद्धि-वीर, कष्ट एवं हानि को आनंद के साथ स्वीकारना आदि गुणों की आवश्यकता है। 8. व्याख्या कीजिए- (क) 'कर्म भावना ही उत्साह उत्पन्न करती है, वस्तु या व्यक्ति की भावना नहीं।' उत्तर: संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत रामचंद्र शुक्ल जी द्वारा रचित निबंध 'उत्साह' से लिया गया है। प्रसंग- इस पंक्ति में मनुष्य के कर्म भावना किस प्रकार मनुष्य के हृदय में उत्साह उत्पन्न कराती है उसका वर्णन किया गया है। व्याख्या- शुक्ल जी का कहना हैं कि किसी व्यक्ति या वस्तु के साथ उत्साह का सीधा लगाव नहीं होता। उनके अनुसार व्यक्ति या वस्तु के प्रति किए गए कर्म भावना ही उत्साह को जन्म देती है। जिस प्रकार समुद्र लगने के लिए जिस उत्साह के साथ हनुमान उठे थे उसका कारण समुद्र नहीं समुद्र लाँघने का विकट कर्म था। अर्थात सच्चे वीर हमेशा कर्म को प्रधानता देता है। न कि किसी व्यक्ति या वस्तु को। (ख)'उत्साह वास्तव में कर्म और फल की मिली-जुली अनुभूति है जिसकी प्रेरणा से तत्परता आती है।' उत्तर: संदर्भ- प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य संकलन के अंतर्गत रामचंद्र शुक्ल जी द्वारा रचित निबंध 'उत्साह' से लिया गया है। प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में बताया गया है कि उत्साह के लिए कर्म और फल दोनों का होना जरूरी है। अगर दोनों में से एक की भी कमी होती है तो वह उत्साह नहीं कहलाएगा। व्याख्या- अगर किसी कार्य को करते वक्त उसका फल ही न दिखाई दे, तो मनुष्य उस उमंग या तत्परता के साथ उस कार्य को नहीं कर पाएगा। बल्कि उस कार्य के लिए उसके हाथ पैर भी नहीं उठेंगे। यदि हमें कर्म का फल ही नहीं दिखाई देगा तो उसमें न तो उत्साह होगा और न ही उसके प्रति चाह। अगर हमें यह निश्चय हो जाए कि अमुक स्थान पर जाने से हमें किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति का दर्शन होगा तो उस निश्चय के प्रभाव से हमारी यात्रा भी अत्यंत प्रिय हो जाएगी। इसलिए जिस कर्म के साथ फल प्राप्ति की संभावना होगी वहांँ उत्साह के साथ-साथ तत्परता भी अपने आप आ जाएगी। चाहे वह कितनी भी कठिन से कठिन कार्य क्यों न हो। 9. साहस कब उत्साह का रूप ले लेता है? उत्तर: किसी भी चुनौती भरे कार्यों को कष्ट या पीड़ा के साथ सहना पड़े तो वह साहसी कार्य कहलायेगा। अगर उसी चुनौती भरे कार्यों को आनंदपूर्वक तरीके से कष्ट को सहते हुए करा जाए, तो वह साहस भरा कार्य उत्साह का रूप ले लेगा। सहसपुर आनंद की उमंग का क्या नाम है?साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम उत्साह है। कर्म-सौंदर्य के उपासक ही सच्चे उत्साही कहलाते हैं। जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कंठापूर्ण आनंद उत्साह के अंतर्गत लिया जाता है।
साहस पूर्णानंद की उमंग का क्या नाम है?इसे सुनेंरोकेंउत्तर: साहसपूर्ण आनंद की उमंग का नाम 'उत्साह' है।
साहित्य मीमांसकों ने उत्साह के कितने भेद बताए हैं?साहित्य मीमांसकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किये हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं।
कर्म भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव कौन करते हैं?कर्म में आनंद अनुभव करनेवालों ही का नाम कर्मण्य है। धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही एक ऐसा दिव्य आनंद भरा रहता है कि कर्तव्या को वे कर्म ही फलस्वरूप लगते हैं।
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