Rajasthan Board RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Important Questions and Answers. RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यानवस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. सुमेलित प्रश्न प्रश्न 1.
उत्तर:
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प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न
17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1) प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6.
प्रश्न 7.
प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11.
प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17.
प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. (ii) नाना साहिब व रानी लक्ष्मीबाई से अनुचित व्यवहार-लॉर्ड डलहौजी ने दत्तक प्रथा पर रोक लगाकर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को शासक मानने से इन्कार कर दिया तथा झाँसी को हड़पने की नीति अपनाई जिससे झाँसी की रानी अंग्रेजों के विरुद्ध हो गयी। नाना साहिब पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे। अंग्रेजों ने उनकी पेंशन बन्द कर दी। (iii) अवध का अनुचित विलय-लॉर्ड डलहौजी ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन का आरोप लगाकर उन्हें हटा दिया तथा 1856 ई. में अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया। इस कारण नवाब के उत्तराधिकारियों एवं वहाँ की जनता ने विद्रोह में सक्रिय रूप से भाग लिया। (iv) डलहौजी की हड़प नीति–डलहौजी ने अपनी साम्राज्यवादी हड़प नीति के तहत अनेक रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जिसके फलस्वरूप उन रियासतों के शासक अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये। प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7.
प्रश्न 8.
अतः उपरोक्त कारणों से अंग्रेजों की अवध के अधिग्रहण में रुचि बढ़ी। प्रश्न
9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. बाहर खड़े सैनिकों ने उन्हें बताया कि वे मेरठ के सभी अंग्रेज पुरुषों को मारकर आए हैं क्योंकि वे हमें गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतूस दाँतों से खोलने के लिए मजबूर कर रहे थे जिससे हिन्दू और मुसलमान दोनों का धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। तब तक विद्रोही सैनिकों का एक और दल दिल्ली में प्रवेश कर चुका था तथा दिल्ली शहर की आम जनता भी उनके साथ जुड़ने लगी। अनेक अंग्रेज मारे गये। दिल्ली के अमीर लोगों पर भी हमले हुए और लूटपाट हुई। दिल्ली अंग्रेजों के नियन्त्रण से निकल चुकी थी। कुछ सैनिक लाल किले में प्रवेश प्राप्त करने के लिए दरबार के शिष्टाचार का पालन किये बिना ही किले में प्रवेश कर गये। उनकी माँग थी कि बादशाह बहादुरशाह उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान करें ताकि विद्रोह का प्रसार सम्पूर्ण देश में हो सके। विद्रोही सैनिकों से घिरे बहादुरशाह के पास उनकी बात मानने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं था। इस तरह विद्रोह ने एक नेतृत्व प्राप्त कर लिया क्योंकि अब उसे मुगल बादशाह बहादुरशाह के नाम पर चलाया जा सकता था। 12 व 13 मई, 1857 ई. को उत्तर भारत में शान्ति रही परन्तु जैसे ही यह खबर फैली कि दिल्ली पर विद्रोहियों का अधिकार हो चुका है तथा इस विद्रोह को मुगल बादशाह बहादुरशाह ने समर्थन दे दिया है, परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आया। गंगा घाटी एवं दिल्ली के पश्चिम की कुछ छावनियों में विद्रोह के स्वर तीव्र होने लगे। विद्रोह में आम जनता के सम्मिलित होने से हमलों में विस्तार आता गया। लखनऊ, कानपुर एवं बरेली जैसे बड़े शहरों में साहूकार एवं धनिक वर्ग के लोगों पर भी विद्रोहियों ने हमले प्रारम्भ कर दिये। किसान इन लोगों को न केवल अपना उत्पीड़क बल्कि अंग्रेजों का पिठू भी मानते थे। अधिकांश स्थानों पर धनिक वर्ग के घर-बार लूटकर ध्वस्त कर दिए गए। इन छिटपुट विद्रोहों ने शीघ्र ही चौतरफा विद्रोह का रूप धारण कर लिया तथा ब्रिटिश शासन की सत्ता की खुलेआम अवहेलना होने लगी। 1857 ई. के विद्रोह का विस्तार अवध (लखनऊ) में भी हुआ, जहाँ विद्रोह का सबसे भयंकर रूप देखने को मिला। अंग्रेजों विद्रोही और राज (1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान) =3831 ने यहाँ के नवाब वाजिद अली शाह को शासन से हटा दिया था जिससे विद्रोह का नेतृत्व नवाब के युवा पुत्र बिरजिस कद्र ने किया था। कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व नाना साहिब ने, झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई ने तथा बिहार के आरा में स्थानीय जमींदार कुंवर सिंह ने विद्रोह का नेतृत्व किया। . इस प्रकार 1857 ई. में जन विद्रोह का विस्तार होता चला गया। प्रश्न 2. (ii) आटे में हड्डियों का चूरा-1857 ई. की शुरुआत में यह अफवाह जोरों पर थी कि ब्रिटिश सरकार ने हिन्दुओं और मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट करने के लिए एक भयानक साजिश रची है। यह अफवाह फैलाने वालों का कहना था कि इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों ने बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिलवा दिया। इसलिए शहरों व छावनियों में सिपाहियों तथा आम लोगों ने आटे को छूने से भी इंकार कर दिया। चारों ओर यह भय सन्देह बना हुआ था कि अंग्रेज भारतीयों को ईसाई बनाना चाहते हैं। ब्रिटिश अफसरों ने लोगों को अपनी बात का यकीन दिलाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। इन्हीं बेचैनियों ने लोगों को अगला कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया। (iii) ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के समाप्त होने की भविष्यवाणी-किसी बड़ी कार्यवाही के आह्वान को इस भविष्यवाणी से और बल मिला कि प्लासी के युद्ध के सौ साल पूरे होते ही 23 जून, 1857 को अंग्रेजी राज खत्म हो जायेगा। इस भविष्यवाणी से भी विद्रोह को प्रेरणा मिली। । (iv) चपातियों का वितरण-उत्तर भारत के विभिन्न भागों से गाँव-गाँव में चपातियाँ बाँटने की खबरें आ रही थीं। बताते हैं कि रात को एक व्यक्ति गाँव के चौकीदार को एक चपाती देता था और उसे पाँच और चपातियाँ बनाकर अगले गाँव में पहुँचाने का निवेदन कर जाता था। चपातियाँ बाँटने का अर्थ और उद्देश्य न तो उस समय स्पष्ट था और न ही आज स्पष्ट है, लेकिन एक बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि इसे लोग किसी आने वाली उथल-पुथल का सूचक मान रहे थे। प्रश्न 3. (ii) सती प्रथा का निषेध-गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैटिंक ने 1829 ई. में सती प्रथा को समाप्त करने के लिए एक कानून का निर्माण किया जिसमें सती प्रथा को अवैध ठहराया गया तथा उसे एक दण्डनीय अपराध घोषित किया गया। इसके अतिरिक्त हिन्दू विधवा विवाह को वैधता प्रदान करने के लिए भी कानून बनाए गए। (iii) डलहौजी की हड़प नीति-लॉर्ड डलहौजी ने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को विस्तार प्रदान करने के लिए शासकीय कमजोरी एवं दत्तकता को अवैध घोषित कर देने के बहाने अवध, झाँसी व सतारा जैसी अनेक रियासतों को अपने नियन्त्रण में ले लिया था। जैसे ही कोई भारतीय रियासत अंग्रेजों के अधिकार में आती, वहाँ पर अंग्रेज अधिकारी अपने ढंग की शासन पद्धति, अपने कानून, भूमि विवाद निपटाने की पद्धति एवं भू-राजस्व वसूली की अपनी व्यवस्था लागू कर देते थे। उत्तर भारत के लोगों पर इन कार्यवाहियों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। लोगों का मानना था कि वे अब तक जिन वस्तुओं, रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं का आदर करते आ रहे थे अथवा जिन्हें वे पवित्र मानते थे उन सबको समाप्त करके एक ऐसी व्यवस्था लागू की जा रही थी जो अत्यधिक दमनकारी थी। (iv) ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के अंग्रेज अधिकारियों ने ईसाई धर्म का प्रसार करने हेतु ईसाई धर्म प्रचारकों को प्रोत्साहित किया। भारत के निर्धन वर्ग के लोग ईसाई धर्म को स्वीकार कर रहे थे क्योंकि उन्हें अंग्रेजों द्वारा अनेक सुविधाएँ प्राप्त हो रही थीं। इस प्रकार नवीन सुधारक नीतियों एवं ईसाई धर्म प्रचारकों की गतिविधियों से इस सोच को बल मिल रहा था कि अंग्रेजों द्वारा भारतीयों की सभ्यता व संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है, ऐसे अनिश्चित वातावरण में अफवाहें रातों रात फैलने लगती थीं। प्रश्न 4. इसके कुछ समय उपरान्त अर्थात् 1801 ई. में अवध पर सहायक संधि थोप दी गयी थी। इस सहायक सन्धि में शर्त यह थी कि नवाब अपनी सेना समाप्त कर देगा, रियासत में अंग्रेज रेजीडेण्टों की नियुक्ति की जायेगी तथा दरबार में एक ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखा जायेगा। इसके अतिरिक्त नवाब ब्रिटिश रेजीडेण्ट की सलाह पर अपने कार्य करेगा। विशेषकर अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों में रेजीडेण्ट की स्वीकृति लेनी अनिवार्य होगी। अपनी सैनिक शक्ति से वंचित हो जाने के उपरान्त नवाब अपनी रियासत में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये अंग्रेजों पर निर्भर होता जा रहा था। नवाब का अब विद्रोही मुखियाओं तथा ताल्लुकदारों पर कोई विशेष नियन्त्रण नहीं रहा। धीरे-धीरे अवध पर कब्जा करने में अंग्रेजों की रुचि बढ़ती जा रही थी। उन्हें लगता था कि वहाँ की जमीन नील तथा कपास की कृषि के लिये सर्वोत्तम है तथा इस क्षेत्र को एक बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता है। 1850 के दशक के आरम्भ तक अंग्रेज भारत के अधिकांश भागों पर कब्जा कर चुके थे। मराठा प्रदेश, दोआब, कर्नाटक, पंजाब, सिंध, बंगाल इत्यादि सभी अंग्रेजों के हाथों में आ चुके थे। इस समय मात्र अवध ही एक बड़ा प्रान्त था जहाँ ब्रिटिश शासन स्थापित नहीं हो सका था। अत: अंग्रेजों ने असंगत आरोप.लगाकर अवध को अपने कब्जे में ले लिया। प्रश्न 5. (2) दिल्ली पर नियन्त्रण हेतु दोतरफा आक्रमण ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये गये विशेष कानूनों एवं ब्रिटेन से मँगाई गई सैनिक टुकड़ियों से सुसज्जित ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने विद्रोह को दबाने का कार्य शुरू कर दिया। विद्रोहियों की तरह अंग्रेजों ने भी दिल्ली और पंजाब के महत्व को समझा। दिल्ली पर नियन्त्रण की मुहिम सितम्बर माह के आखिर में जाकर सम्पूर्ण हुई। उसका एक कारण था कि पूरे उत्तर भारत के विद्रोही राजधानी को बचाने के लिए दिल्ली में एकत्रित हो गये थे। (3) गंगा के मैदान में विद्रोह का दमन-गंगा के मैदान में अंग्रेजों की बढ़त का सिलसिला बहुत धीमा था क्योंकि उन्हें प्रत्येक गाँव को जीतना था, आम ग्रामीण जनता एवं आस-पास के लोग उनके खिलाफ थे। जैसे ही अंग्रेजों ने अपनी विरोधी कार्यवाही शुरू की, वैसे ही
उन्हें अहसास हो गया कि वे जिनसे जूझ रहे हैं उनके पीछे पर्याप्त जनसमर्थन उपलब्ध है। (4) विद्रोहियों में फूट डालने का प्रयास करना-1857 ई. के जन विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी शासन ने अपनी सैनिक ताकत के साथ-साथ फूट डालो और राज करो की नीति का व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया। अंग्रेजों ने उत्तर प्रदेश के भू-स्वामियों एवं किसानों के विरोध की तीव्रता को कम करने के लिए उनकी एकता को तोड़ने के प्रयास भी किए। इसके लिए उन्होंने बड़े-बड़े जमींदारों को यह आश्वासन दिया कि उनकी जागीरें लौटा दी जाएंगी। विद्रोह का रास्ता अपनाने वाले जागीरदारों की जागीरों को जब्त कर लिया गया तथा अंग्रेजों के वफादार जागीरदारों को पुरस्कृत किया गया। अनेक जमींदार या तो अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते मारे गये अथवा उन्होंने भागकर नेपाल में शरण ले ली, जहाँ उनकी बीमारी व भूख से मृत्यु हो गयी। (5) दहशत का प्रदर्शन-आम जनता में दहशत फैलाने के लिए ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने विद्रोहियों को निर्मम ढंग से मौत के घाट उतारा। उन्हें तोपों के मुँह पर बाँधकर उड़ा दिया गया अथवा खुलेआम फाँसी पर लटका दिया गया। दशहत को बढ़ाने के लिए इन सजाओं की तस्वीरों को आम पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से दूर-दूर तक पहुँचाया गया। मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. उत्तर: (A) कलकत्ता, (B) झाँसी तथा (C) ग्वालियर। स्रोत पर आधारित प्रश्न स्रोत-1 विद्रोह के महीनों में शहरों में क्या हुआ? उथल-पुथल के उन दिनों में लोग अपनी जिंदगी कैसे जी रहे थे? सामान्य जीवन किस
तरह प्रभावित हुआ? विभिन्न शहरों की रिपोर्टों से पता चलता है कि सामान्य गतिविधियाँ अस्त-व्यस्त हो गईं थीं। दिल्ली उर्दू अखबार, 14 जून 1857 की इन रिपोर्टों को पढ़िए: प्रश्न 1. स्रोत-2 विद्रोह और सैनिक अवज्ञा के सन्दर्भ में सीतापुर के देसी ईसाई पुलिस इंस्पेक्टर फ्रांस्वाँ सिस्टन का अनुभव हमें बहुत कुछ बताता है। वह मजिस्ट्रेट के पास शिष्टाचारवश मिलने सहारनपुर गया हुआ था। सिस्टन हिन्दुस्तानी कपड़े पहने था और आलथी-पालथी मारकर बैठा था। इसी बीच बिजनौर का एक मुस्लिम तहसीलदार कमरे में दाखिल हुआ। जब उसे पता चला कि सिस्टन अवध में तैनात है तो उसने पूछा, "क्या खबर है अवध की ? काम कैसा चल रहा है ?" सिस्टन ने कहा, "अगर हमें अवध में काम मिलता है तो जनाब-ए-आली को भी पता चल जाएगा।" इस पर तहसीलदार ने कहा, "भरोसा रखो, इस बार हम कामयाब होंगे। मामला काबिल हाथों में है।" बाद में पता चला कि तहसीलदार बिजनौर के विद्रोहियों का सबसे बड़ा नेता था। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. स्रोत-3 एक और गीत में
ऐसे शासक की दुद्रशा पर विलाप किया जा रहा है जिसे मजबूरन अपनी मातृभूमि छोड़नी पड़ी : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. स्रोत-4 ताल्लुकदारों के रवैये को रायबरेली के पास स्थित कालाकंकर के राजा हनवन्त सिंह ने सबसे अच्छी तरह व्यक्त किया था। विद्रोह के दौरान हनवन्त सिंह ने एक अंग्रेज अफसर को पनाह दी और उसे सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया था। उस अफसर से आखिरी मुलाकात में हनवन्त सिंह ने कहा कि साहिब, आपके मुल्क के लोग हमारे देश में आए और उन्होंने हमारे राजाओं को खदेड़ दिया। आप अफसरों को भेज कर जिले-जिले में जागीरों के मालिकाने की जाँच करवाते हैं। एक ही झटके में आपने मेरे पुरखों की जमीन मुझसे छीन ली। मैं चुप रहा। फिर अचानक आपका बुरा वक्त शुरू हो गया। यहाँ के लोग आपके खिलाफ उठ खड़े हुए। तब आप मेरे पास आए, जिसे आपने बर्बाद किया था। मैंने आप की जान बचाई है। लेकिन अब मैं अपने सिपाहियों को लेकर लखनऊ जा रहा हूँ ताकि आपको देश से खदेड़ सकूँ। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. स्रोत-5 विद्रोही क्या चाहते थे, इसके बारे में हमारी जानकारी का यह एक मुख्य स्रोत है: इसलिए जनता की जानकारी के लिए कई भागों का यह इश्तहार जारी किया जा रहा है। यह सबका दायित्व है कि इसको गौर से पढ़ें और इसका पालन करें। इस साझा उद्देश्य में जो लोग अपना योगदान देना चाहते हैं, लेकिन जिनके पास अपनी सेवाएं देने के साधन नहीं हैं, उन्हें मेरी तरफ से दैनिक भोजन दिया जाएगा और सबको मालूम हो कि हिंदू और मुस्लिम, दोनों तरह के प्राचीन ग्रंथों में, चमत्कार करने वालों के लेखन और भविष्यवक्ताओं में, पंडितों की गणनाओं में सबमें यह सहमति दिखायी देती कि अब भारत में या कहीं भी अंग्रेजों के पैर टिक नहीं पाएंगे। इसलिए यह सबका फ़र्ज है कि वे अंग्रेजों का वर्चस्व बने रहने की सारी उम्मीद छोड़ दें, मेरा साथ दें और साझे हित में काम करते हुए अपने व्यक्तिगत परिश्रम से बादशाही सम्मान के हकदार बनें और अपने-अपने लक्ष्य प्राप्त करें। अन्यथा, अगर यह स्वर्णिम अवसर हमारे हाथ से चला गया तो हमें अपनी इस मूर्खता पर पश्चाताप करना पड़ेगा भाग-1 भाग- 2 भाग- 3 भाग- 4 भाग- 5
सभी घोषणाओं में सभी वर्गों को यह समझाया जा रहा है कि ब्रिटिश शासन में उनका मात्र शोषण हो रहा है तथा उनका यहाँ कोई भविष्य नहीं है। यदि उन्हें अपना मान-सम्मान तथा उज्ज्वल भविष्य चाहिये तो विद्रोहियों का साथ दें तथा बादशाह की ताकत और बढ़ायें। स्रोत-6 विद्रोही सिपाहियों की एक अर्जी जो बच गई : नए कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है और गेहूँ के आटे में हड्डियों का चूरा मिलाकर खिलाया जा रहा है। ये चीजें पैदल-सेना, घुड़सवारों और गोलअंदाज फौज की हर रेजीमेंट में पहुँचा दी गई हैं उन्होंने ये कारतूस थर्ड लाइट केवेलरी के सवारों (घुड़सवार सैनिक) को दिए और उन्हें दाँतों से खींचने के लिए कहा। सिपाहियों ने इस हुक्म का विरोध किया और कहा कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगे क्योंकि अगर उन्होंने ऐसा किया तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। इस पर अंग्रेज अफसरों ने तीन रेजीमेंटों के जवानों की परेड करवा दी। 1400 अंग्रेज सिपाही, यूरोपीय सैनिकों की दूसरी बटालियनें और घुड़सवार, गोलअंदाज फौज को तैयार कर भारतीय सैनिकों को घेर लिया गया। हर पैदल रेजीमेंट के सामने छरों से भरी छह-छह तोपें तैनात कर दी गईं और 84 नए सिपाहियों को गिरफ्तार करके, बेड़ियाँ डालकर, जेल में बन्द कर दिया गया। छावनी के सवारों को इसलिए जेल में डाला गया ताकि हम डर कर नए कारतूसों को दाँतों से खींचने लगे। इसी कारण हम और हमारे सारे सहोदर इकट्ठा होकर अपनी आस्था की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़े। हमें दो साल तक युद्ध जारी रखने पर मजबूर किया गया। धर्म व आस्था के सवाल पर हमारे साथ खड़े राजा और मुखिया अभी भी हमारे साथ हैं और उन्होंने भी सारी मुसीबतें झेली हैं। हम दो साल तक इसलिए लड़े ताकि हमारा अकांयद (आस्था) और मजहब दूषित न हों। अगर एक हिन्दू या मुसलमान का धर्म ही नष्ट हो गया तो दुनिया में बचेगा क्या ? प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. स्रोत-7 ग्रामीण अवध
क्षेत्र से रिपोर्ट भेजने वाले एक अफसर ने लिखा- प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न
4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. |