प्रकृति पर्व सरहुल Show
प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासियों का वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला है एक प्रमुख पर्व है। पतझड़ के बाद पेड़-पौधे की टहनियों पर हरी-हरी पत्तियां जब निकलने लगती है, आम के मंजर तथा सखुआ और महुआ के फुल से जब पूरा वातावरण सुगंधित हो जाता है। तब मनाया जाता है आदिवासियों का प्रमुख “प्रकृति पर्व सरहुल“। यह पर्व प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होकर चैत्र पूर्णिमा के दिन संपन्न होता है। इस पर्व में “साल अर्थात सखुआ” के वृक्ष का विशेष महत्व है। आदिवासियों की परंपरा के अनुसार इस पर्व के बाद ही नई फसल (रबि) विशेषकर गेहूं की कटाई आरंभ की जाती है। इसी पर्व के साथ आदिवासियों का शुरू होता है “नव वर्ष”। विषय वस्तु • सरहुल का अर्थ सरहुल का अर्थसरहुल दो शब्दों से मिलकर बना है ‘सर’ और ‘हुल’ । यहां सर का अर्थ ‘सरई‘ अर्थात सखुआ (साल पेंड़) के “फूल/फल” से होता है। जबकि हुल का अर्थ ‘क्रांति’ से है। इस प्रकार सखुआ के फूलों की क्रांति को “सरहुल” के नाम से जाना जाता है। सरहुल पर्व कब मनाया जाता हैप्रकृति पर्व सरहुल वसंत ऋतु में मनाए जाने वाला आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है। वसंत ऋतु में जब पेड़ ‘पतझड़‘ में अपनी पुरानी पतियों को गिरा कर टहनियों पर नई-नई पत्तियां लाने लगती है, तब सरहुल का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होता है और चैत्र पूर्णिमा को समाप्त होता है। अंग्रेजी माह के अनुसार यह पर्व अप्रैल में मुख्य रूप से मनाया जाता है। कभी-कभी यह पर्व मार्च के अंतिम सप्ताह में भी आता है। सरहुल किस तिथि को है • 2021 में 15 अप्रैल, वृहस्पतिवार सरहुल पर्व कहां मनाया जाता हैसरहुल मुख्यतः आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रकृति पर्व है। यह त्यौहार ‘झारखंड‘ में प्रमुखता से मनाया जाता है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल में भी आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व में पूजा के अतिरिक्त नृत्य के साथ गायन का प्रचलन है। सरहुल पर्व मनाने की क्या है प्रक्रियावसंत ऋतु में मनाया जाने वाला त्योहार ‘सरहुल’ प्रकृति से संबंधित पर्व है। “मुख्यतः यह फूलों का त्यौहार है।” पतझड़ ऋतु के कारण इस मौसम में ‘पेंडों की टहनियों’ पर ‘नए-नए पत्ते’ एवं ‘फूल’ खिलते हैं। इस पर्व में ‘साल‘ के पेड़ों पर खिलने वाला ‘फूलों‘ का विशेष महत्व है। मुख्यत: यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। जिसकी शुरूआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया से होती है। सरहुल पूजा का कुछ दृश्यसरहुल पर्व के ‘पहले दिन‘ मछली के अभिषेक किए हुए जल को घर में छिड़का जाता है। ‘दूसरे दिन‘ उपवास रखा जाता है। तथा गांव का पुजारी जिसे “पाहन” के नाम से जाना जाता है। हर घर की छत पर ‘साल के फूल‘ को रखता है। तीसरे दिन पाहन द्वारा उपवास रखा जाता है तथा ‘सरना’ (पूजा स्थल) पर सरई के फूलों (सखुए के फूल का गुच्छा अर्थात कुंज) की पूजा की जाती है। साथ ही ‘मुर्गी की बलि’ दी जाती है तथा चावल और बलि की मुर्गी का मांस मिलाकर “सुंडी” नामक ‘खिचड़ी‘ बनाई जाती है। जिसे प्रसाद के रूप में गांव में वितरण किया जाता है। चौथे दिन ‘गिड़िवा’ नामक स्थान पर सरहुल फूल का विसर्जन किया जाता है। एक परंपरा के अनुसार इस पर्व के दौरान गांव का पुजारी जिसे पाहन के नाम से जानते हैं। मिट्टी के तीन पात्र लेता है और उसे ताजे पानी से भरता है। अगले दिन प्रातः पाहन मिट्टी के तीनों पात्रों को देखता है। यदि पात्रों से पानी का स्तर घट गया है तो वह ‘अकाल‘ की भविष्यवाणी करता है। और यदि पानी का स्तर सामान्य रहा तो उसे ‘उत्तम वर्षा‘ का संकेत माना जाता है। सरहुल पूजा के दौरान ग्रामीणों द्वारा सरना स्थल (पूजा स्थल) को घेरा जाता है। सरहुल में सफेद में लाल पड़ी वली साड़ी का महत्वसरहुल नृत्य का दृश्यसरहुल में एक वाक्य प्रचलन में है- “नाची से बांची” अर्थात जो नाचेगा वही बचेगा। ऐसी मान्यता है कि आदिवासियों का नृत्य ही संस्कृति है। इस पर्व में झारखंड और अन्य राज्यों में जहां यह पर्व मनाया जाता है जगह-जगह नृत्य किया जाता है। महिलाएं सफेद में लाल पाढ़ वाली साड़ी पहनती है और नृत्य करती है। सफेद पवित्रता और शालीनता का प्रतीक है। जबकि लाल संघर्ष का। सफेद ‘सिंगबोंगा’ तथा लाल ‘बुरूंबोंगा’ का प्रतीक माना जाता है इसलिए ‘सरना झंडा’ में सफेद और लाल रंग होता है। सरहुल में केकड़ा का महत्वसरहुल पूजा में केकड़ा का विशेष महत्व है। पुजारी जिसे पाहन के नाम से पुकारते हैं। उपवास रख केकड़ा पकड़ता है। केकड़े को पूजा घर में अरवा धागा से बांधकर टांग दिया जाता है। जब धान की बुआई की जाती है तब इसका चूर्ण बनाकर गोबर में मिलाकर धान के साथ बोआ जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिस तरह केकड़े के असंख्य बच्चे होते हैं, उसी तरह धान की बालियां भी असंख्य होगी। इसीलिए सरहुल पूजा में केकड़े का भी विशेष महत्व है। सरहुल के अन्य नामआदिवासियों आवास स्थलों के विभिन्न क्षेत्रों में सरहुल को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। सरहुल से जुड़ी प्राचीन कथासरहुल पर्व से जुड़ी कई किवदंती या प्रचलित है। उनमें से ‘महाभारत‘ से जुड़ी एक कथा है। इस कथा के अनुसार जब महाभारत का युद्ध चल रहा था, तब आदिवासियों ने युद्ध में ‘कौरवों’ का साथ दिया था। जिस कारण कई ‘मुंडा सरदार’ पांडवों के हाथों मारे गए थे। इसलिए उनके शवों को पहचानने के लिए उनके शरीर को ‘साल के वृक्षों के पत्तों और शाखाओं’ से ढका गया था। इस युद्ध में ऐसा देखा गया कि जो शव साल के पत्तों से ढका गया था। वे शव सड़ने से बच गए थे और ठीक थे। पर जो दूसरे पत्तों या अन्य चीजों से ढ़के गए थे वे शव सड़ गए थे। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद आदिवासियों का विश्वास साल के पेड़ों और पत्तों पर बढ़ गया होगा। जो सरहुल पर्व के रूप में जाना गया हो। परीक्षा के दृष्टिकोण से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नझारखंड में राज्य स्तर पर होने वाली परीक्षाओं में अब तक सरहुल से कई प्रश्न पूछे गए हैं। यहां पर उन्हीं में से कुछ प्रश्नों को दिया जा रहा है। जो आपके अगले एग्जाम के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। 1. निम्न में से किस पर्व को संथाल जनजाति द्वारा बा परब के नाम से भी जाना जाता है? 2. निम्नलिखित में से कौन एक झारखंड की जनजातियों का सबसे बड़ा पर्व है? 3. सरहुल
पर्व कब मनाया जाता है? 4. खद्दी, बा परब, तथा जकोर किस एक अन्य पर्व के ही अन्य नाम है? 5. निम्न में से किस पर्व में साल/सखुआ वृक्ष की
महत्वपूर्ण भूमिका होती है? 6. निम्नलिखित में से किस पर्व के अवसर आदिवासियों द्वारा चावल एवं मुर्गी का मांस मिलाकर ‘सुंड़ी’ नामक खिचड़ी बनाई जाती है? 7. झारखंड में आदिवासियों द्वारा मनाए जाने वाले किस पर्व में मिट्टी के हांडी में पानी देखकर वर्षा की भविष्यवाणी की जाती
है? 8. इनमें से कौन सा एक पर्व फूलों के त्योहार के नाम से जाना जाता है? 9. साल/सुखआ के वृक्षों पर जब नए फूल और फल लगते हैं तब मनाया जाने वाला आदिवासी पर्व इनमें से कौन सा है? 10.
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संथाली नृत्य, झारखंड स्थापना दिवस प्रस्तुतीकरण सरहुल पर्व का परिचय कैसे मनाया जाता है क्यों मनाया जाता है निष्कर्ष?बता दें कि सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है. इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है. आदिवासियों का मानना है कि इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग शुरू किया जा सकता है. चूंकि यह पर्व रबी (Rabi) की फसल कटने के साथ ही शुरू हो जाता है, इसलिए इसे नए वर्ष के आगमन के रूप में भी मनाया जाता है.
सरहुल कहां और कैसे मनाया जाता है?सरहुल आदिवासियों का प्रमुख पर्व है, जो झारखंड, उड़ीसा और बंगाल के आदिवासी द्वारा मनाया जाता है. यह उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है. इसमें वृक्षों की पूजा की जाती है. यह पर्व नये साल की शुरुआत का भी प्रतीक माना जाता है.
सरहुल त्योहार कौन बनाता है?सरहुल झारखंड क्षेत्र में विभिन्न जनजातियों द्वारा मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है। यह पर्व आदिवासी नववर्ष है और झारखंड के मुंडा, उरांव, हो आदि जनजातियों द्वारा मनाया जाता है।
झारखंड में सरहुल कितने दिनों तक मनाया जाता है?सरहुल पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। जिसकी शुरुवात चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया से होती है। अंग्रेजी माह के अनुसार यह पर्व मुख्य रूप से अप्रैल के माह में मनाया जाता है। कभी कभी यह अंतिम मार्च में भी मनाया जाता है।
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