Chapter 4 धातु-रूप प्रकरण (व्याकरण) धातु-रूप प्रकरण जिस शब्द के द्वारा किसी काम के करने या होने का बोध होता है, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे-‘राम: पुस्तकं पठति।’ इस वाक्य में ‘पठति से पढ़ने के काम का बोध होता है; अतः ‘पठति क्रिया है। क्रिया के मूल रूप को संस्कृत में ‘धातु’ कहते हैं; जैसे—राम: पुस्तकं
पठति। इस वाक्य में ‘पठति’ क्रिया का मूल ‘पद्’ है; अतः ‘पद्’ धातु है। धातुओं में प्रत्यय जोड़ने से ही क्रिया के विभिन्न रूप बनते हैं। क्रियाएँ ‘तिङ’ प्रत्यय जोड़कर बनायी जाती हैं; अतः तिङन्त कहलाती हैं। संस्कृत में क्रिया का ही प्रयोग होता है, धातु का नहीं। क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं-(1) सकर्मक क्रिया तथा (2) अकर्मक क्रिया।। (1) सकर्मक क्रिया- ये वे क्रियाएँ हैं, जिनका अपना कर्म होता है। समर्कक क्रिया के व्यापार को फल कर्ता को छोड़कर किसी और (कर्म) पर पड़ता
है; जैसे-राम: पुस्तकं पठति। इस वाक्य में ‘पठति’ क्रिया के व्यापार का फल ‘राम:’ कर्ता को छोड़कर ‘पुस्तकम्’ (कर्म) पर पड़ता है; अतः ‘पठति’ क्रिया सकर्मक है।। क्रिया के पूर्व ‘क्या’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न करने पर मिलने वाला उत्तर कर्म होता है। ऊपर के वाक्य में ‘क्या’ पढ़ता है; प्रश्न करने पर उत्तर में ‘पुस्तकम्’ आता है; अतः ‘पुस्तकम् कर्म है और ‘पठति’ क्रिया, सकर्मक है। (2) अकर्मक क्रिया- अकर्मक क्रिया के व्यापार का फल केवल कर्ता तक ही सीमित होता है। अकर्मक
क्रियाओं का अपना कोई कर्म नहीं होता है; जैसे-रामः हसति। इस वाक्य में हसति’ (हँसना) क्रिया के व्यापार का फल केवल ‘राम:’ कर्ता पर ही पड़ता है; अतः ‘हसति’ क्रिया अकर्मक है।। अकर्मक क्रिया के पूर्व ‘क्या’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न करने से उत्तर में कुछ नहीं आता है। लकार या काल प्रयोग की दृष्टि से क्रियाओं की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं, संस्कृत में उन्हें लकारों द्वारा प्रकट किया जाता है। संस्कृत में प्राय: सभी कालों के प्रारम्भ में ‘ल’ वर्ण आता है, अत: इन्हें लकार कहते हैं।
ये 10 होते हैं
उम्रर्युक्त लकारों में लट्, लोट्, लङ, विधिलिङ ये चार लकार सार्वधातुक और शेष
छ: लकार आर्धधातुक कहलाते हैं।नवीं कक्षा के छात्रों को केवल निम्नलिखित पाँच लकारों के रूप जानना आवश्यक है क्रिया क पद क्रिया के तीन पद होते हैं—
(1) परस्मैपद- क्रिया के व्यापार का परिणाम जब कर्ता को प्राप्त न होकर किसी अन्य को प्राप्त होता है तब वहाँ क्रिया के परस्मैपदी रूप का प्रयोग होता है; जैसे-पठति। (2) आत्मनेपद- जब क्रिया के व्यापार का परिणाम कर्ता तक ही सीमित रहता है, वहाँ क्रिया का आत्मनेपदी रूप प्रयुक्त होता है; जैसे-लभते। (3) उभयपद- जिन धातुओं के ‘परस्मैपदी’ तथा ‘आत्मनेपदी’ दोनों रूप प्रसंगानुसार प्रयुक्त होते हैं, वे उभयपदी धातुएँ कहलाती हैं; जैसे—कृ—करोति, कुरुते; नी-नयति, नयते; जि- जयति, जयते। पुरुष संज्ञा और सर्वनामों की तरह क्रियाओं के भी तीन पुरुष होते हैं—
वचन वन संज्ञा और सर्वनामों की तरह क्रियाओं के भी तीन वचन होते हैं—
लिंग लिग संस्कृत में लिंग के कारण क्रियाओं में कोई अन्तर नहीं आता। धातुगण उन अनेक धातुओं के समूह को गण कहते हैं, जिनमें एक विकरण प्रत्यय होता है। संस्कृत में विकरण प्रत्ययों के आधार पर समस्त धातुओं को दस गणों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक गण का नाम उसकी प्रथम धातु के आधार पर रखा गया है; जैसे-भ्वादिगण की प्रथम धातु ‘भू’ (भू + आदि गण) है। दस गणों में कुल धातुओं की संख्या 1970 है। इन गणों के नाम इस प्रकार हैं
घातुओं के प्राथय विशेष— नवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में ‘पद्, गम्, अस्, शक्, प्रच्छ’ परस्मैपदी धातुओं; ‘लभ्’ आत्मनेपदी धातु तथा ‘याच्, ग्रह, कथ्’ उभयपदी धातुओं के रूप निर्धारित हैं। विद्यार्थियों के ज्ञान एवं. अनुवादोपयोगी होने के कारण कुछ अन्य प्रमुख धातु-रूपों को भी यहाँ दिया जा रहा है। वस्तनिष्ठ प्रश्नोत्तर अधोलिखित
प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए- 2. लङ् लकार किस काल को प्रदर्शित करता है? | 3. विधिलिङ् लकार का प्रयोग किस प्रकार के वाक्यों में होता है? 4. आज्ञा अर्थ में कौन-सा लकार प्रयुक्त होता है? 5. लकार कुल कितने प्रकार के होते हैं? 6.
संस्कृत में कुल कितने गण माने जाते हैं? । 7. गण का नाम किस आधार पर रखा गया है? 8. संस्कृत में किस कारण से क्रिया में कोई परिवर्तन नहीं होता? 9. निम्नलिखित में से कौन क्रिया को पद नहीं है? 10. ‘युवां ग्रन्थम् अपठतम्’ में रेखांकित पद के स्थान पर क्रिया का क्या रूप होगा, जिससे वाक्य विधिलिङ्का बन जाए? 11. ‘गच्छानि’ किस लकार, पुरुष और वचन का रूप है? 12. ‘अगच्छम्’ किस काल का रूप है? 13. ‘लभ्’ धातु के लट् लकार, प्रथम पुरुष एकवचन ( आत्मनेपदी) का रूप होगा 15. परस्मैपद में ‘याचेत्’ किस लकार का रूप होगा? 16. “याचे’ आत्मनेपद में किस काल का रूप होगा? 18. ‘शक्ष्याव:’ में मूल धातु और लकार कौन-से हैं? 19. ‘शिष्यः प्रश्नं प्रक्ष्यति।’ में रेखांकित पद के स्थान पर वाक्य को लोट् लकार में बदलने के | लिए क्या पद प्रयुक्त करेंगे? । 20. ‘ग्रह्’ धातु ( आत्मनेपदं) में लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन का रूप होगा 21. ‘अगृह्णन्’ में लकार, पुरुष, वचन और पद होगा 22. ‘कथ्’ धातु (परस्मैपदी) लोट् लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन का रूप है 23. निम्नलिखित में कौन-सी धातु उभयपदी है?
24. ‘पृच्छाम’ रूप किस लकार, पुरुष तथा वचन का है? 25. ‘अस्’ धातु किस गण के अन्तर्गत आती है? संस्कृत भाषा में कितने लकार होते है?लकार संस्कृत में लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् – ये दस लकार होते हैं।
संस्कृत में पांच लकार कौन कौन से होते हैं?संस्कृत की 10 लकारों का परिचय. लट् लकार (वर्तमान काल). लिट् लकार (परोक्ष भूत काल). लुट् लकार (अनद्यतन भविष्यत काल). लृट् लकार (सामान्य भविष्यत काल). विधिलिङ्ग् लकार (चाहिए के अर्थ में). लोट् लकार (आज्ञार्थक). लङ्ग् लकार (अनद्यतन भूत काल). आशीर्लिन्ग लकार (आशीर्वादात्मक). धातु के कितने लकार होते हैं?परस्मैपद के 9 रूप आत्मेनपद के 9 रूप मिलाकर प्रत्येक लकार में 18 रूप होते हैं। कुल 10 लकारें होती है। इस प्रकार कुल एक धातु की (10 *18) 180 विभक्तियाँ(धातु रूप) होती हैं।
संस्कृत व्याकरण का जनक कौन है?पाणिनि को संस्कृत के जनक कहते है, जिन्होंने संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में अपना अतुलनीय योगदान दिया है. इनके द्वारा लिखे गए व्याकरण का नाम “अष्टाध्यायी” है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं. पाणिनि कि इसी अतुलनीय योगदान के कारण उन्हें “संस्कृत के पिता” के रूप में जानते हैं.
|