संसाधन से आप क्या समझते हैं संसाधन? - sansaadhan se aap kya samajhate hain sansaadhan?

प्रश्न 2. संसाधन से क्या तात्पर्य है ? संसाधन के प्रमुख प्रकारों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।

उत्तर-संसाधन का आशय-कोई भी भौतिक वस्तु या पदार्थ जब मानव के लिए उपयोगी या मूल्यवान होता है, तो उसे संसाधन कहते हैं। संसाधन सामान्यत: तीन प्रकार के होते हैं

(1) प्राकृतिक संसाधन-इस प्रकार के संसाधन जो हमें प्रकृति ने प्रदान किए हैं एवं जिनके निर्माण में मानव की भूमिका बिल्कुल नहीं है, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। इस आधार पर संसाधनों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है

(i) नवीकरणीय संसाधन-वे संसाधन जिन्हें उपयोग के बाद पुन: उत्पादित किया जा सकता है या पुन: उपयोग में लाया जा सकता है, जैसे-कृषि उपजे, चारागाह, कृषि-भूमि, जल संसाधन एवं वायु संसाधन आदि।

(ii) अनवीकरणीय संसाधन-ये संसाधन सीमित होते हैं और कभी न कभी समाप्त हो सकते हैं। इनकी उपलब्धि सीमित होती है; जैसे-खनिज संसाधन, कोयला एवं पेट्रोलियम्।

(2) मानव संसाधन-मानव संसाधनों से आशय मानव शक्ति के उपयोग से है। किसी भी देश का सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन उसके निवासी होते हैं। यहाँ यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि केवल योग्य, शिक्षित, कार्यकुशल एवं तकनीकी में निपुण लोग ही देश के संसाधन हो सकते हैं। ऐसे ही लोग प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रयोग कर सकते हैं और उनको बहुमूल्य बना सकते हैं। मानव संसाधनों के बिना किसी देश के प्राकृतिक संसाधन महत्त्वहीन होते हैं।

(3) मानव निर्मित-मानव निर्मित संसाधन उत्पादन के वे साधन हैं, जिनका निर्माण मानव ने पर्यावरण के भौतिक पदार्थों का उपयोग करने के लिए किया है; जैसे-मशीनें, भवन, उपकरण आदि।

इसके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रमुख संसाधन निम्न प्रकार हैं

(i) भूमि संसाधन-भूमि एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, क्योंकि मानव भूमि पर ही रहता है और उसकी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति भी भूमि से ही होती है। भूमि का उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों, जैसे मकान, सड़क और रेलमार्ग, कृषि, पशुचारण, खनन, उद्योग आदि में किया जाता है। भूमि का उपयोग समय-समय और स्थान-स्थान पर अलग-अलग हो सकता है। एक ही प्रदेश में समय-समय पर इसका उपयोग बदल सकता है।

(ii) कृषि संसाधन-भूमि, मृदा एवं जल कृषि के आधारभूत साधन हैं। समद्र के तटीय मैदान तथा नदियों की घाटियों की जलोढ़ उपजाऊ मिट्टी में कृषि कार्य आसानी से किया जाता रहा है। उर्वरकों, कीटनाशकों, सिंचाई के विभिन्न साधनों तथा उन्नत बीजों और यन्त्रों की मदद से प्रति एकड़ उपज में वृद्धि हुई है।

(iii) जल संसाधन-धरातल पर जल वर्षा, नदियों, झीलों, तालाबों, हिमनदों, झरनों, नलकूपों आदि से प्राप्त होता है। जल का उपयोग सिंचाई, उद्योग, घरेलू जल आपूर्ति, मत्स्य पालन एवं जल परिवहन में होता है। सम्पूर्ण विश्व में सर्वाधिक जल का उपयोग कृषि कार्य हेतु किया जाता है।

(iv) मृदा संसाधन-इसमें कोई सन्देह नहीं है कि मृदा वास्तव में एक महत्त्वपूर्ण साधन है। मृदा पौधे को उगाने का एक प्राकृतिक माध्यम है। पौधे अपने विकास के लिए पोषक तत्व मृदा से ही ग्रहण करते हैं। इसके बदले में ये पशुओं के लिए पोषक आहार तथा मानव के लिए खाद्यान्न एवं रेशे प्रदान करते हैं। मृदा संसाधन से हमें भोजन, वस्त्र एवं बहुत अंश तक आवास के आधारभूत तत्त्व प्राप्त होते हैं, जो वास्तव में हमारी प्रमुख सम्पदा हैं, अत: मृदा हमारे जीवन का आधार है।

(v) वन संसाधन-वर्तमान में विश्व के कुल 30 प्रतिशत भाग पर ही वनों का वितरण पाया जाता है परन्तु पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से समस्त भूमि के 33 प्रतिशत भाग पर वनों का विस्तार होना चाहिए। पर्यावरण में वन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। वृक्ष वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं तथा ऑक्सीजन छोड़ते हैं। वन वर्षा करने में सहायक होते हैं। वन पक्षियों, वन्य जीवों एवं अन्य प्राणियों के सुरक्षित आवास हैं।


संसाधन क्या है? संसाधन का अर्थ (sansadhan kise kahate hain)

मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति अथवा उनकी किसी कठिनाई का निवारण करने वाले या निवारण मे योग देने वाले आश्रय या स्त्रोत को संसाधन कहते है।
दुसरे शब्दों मे, कोई वस्तु या तत्व तभी संसाधन कहलाता है जब उससे मनुष्य की किसी आवश्यकता की पूर्ति होती है, जैसे जल एक संसाधन है क्योंकि इससे मनुष्यों व अन्य जीवों की प्यास बुझती हैं, खेतो मे फसलों की सिंचाई होती है और यह स्वच्छता प्रदान करने, भोजन बानने और भी आदि मानव की बहुत सी  महत्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इसी प्रकार वे सभी प्रदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति मे सहायतक होते है उन्हें संसाधन कहा जाता है।

संसाधनो का महत्व (sansadhan ka Mahtva)

संसाधन मानव जीवन को सरल व सुखद बनाते हैं, संसाधनों के बिना हम जीवन की कल्पना भी नही कर सकते। आदिकाल मे मनुष्य पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर था। धीरे-धीरे मनुष्य ने अपनी बुद्धि-कौशल से प्रकृति के तत्वों का अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकाधिक उपयोग किया। आज संसार के वे देश अधिक उन्नत व सम्पन्न माने जाते है जिनके पास अधिक संसाधन है। आज संसाधन की उपलब्धता हमारी प्रगति का सूचक बन गया है। इसीलिए संसाधनों का हमारे जीवन मे बड़ा महत्व है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रकृति का कोई भी तत्व तभी संसाधन कहलाएगा जब वह किसी मानवीय आवश्यकता की पूर्ति मे सहायक हो। किसी वस्तु या पदार्थ को संसाधन बनाना मनुष्य के हाथ मे है। मनुष्य अपनी बुद्धि, कौशल तकनीकी ज्ञान से प्राकृतिक तत्वों को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोगी एवं मूल्यवान बना लेता है। इस प्रक्रिया से प्राकृतिक तत्व संसाधन बन जाते हैं। संक्षेप मे हम कह सकते है कि प्राकृतिक साधन संसाधन तब बनते है जब मनुष्य अपने बुद्धि, कौशल तथा तकनीकी ज्ञान से उन्हें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए रूपान्तरण कर और अधिक उपयोग एवं मूल्यवान बना लेता है। सामान्यतः संसाधन प्राकृतिक होते है। मेकनाल के अनुसार प्राकृतिक संसाधन वे है जो प्रकृति के द्वारा प्रदान किए जाते है तथा मानव के लिए उपयोगी है।

संसाधनो का वर्गीकरण या प्रकार (sansadhan ka vargikaran)

1. स्वामित्व के आधार पर संसाधन 

(अ) व्यक्तिगत संसाधन
किसी व्यक्ति की सम्पत्ति, स्वास्थ्य दक्षता आदि।
(ब) राष्ट्रीय संसाधन
राष्ट्रयी संसाधनों के अन्तर्गत राष्ट्र की सम्पदा, सैन्य शक्ति, नागरिकों की देशभक्ति आदि राष्ट्रीय संसाधन हैं।
(स) विश्व संसाधन
मानव मात्र की समृद्धि व कल्याण के लिए संसार की भौतिक और अभौतिक वस्तुएं।

2. पुन: पूर्ति के आधार पर संसाधन 

(अ) पुनः पूर्ति संसाधन
ऐसे संसाधन जिनका उपयोग होने पर भी उनके गुणों को बनाये रखा जा सके, जैसे-खाद के उपयोग द्वारा कृषि भूमि को कृषि योग्य बनायें रखना।
(ब) पुनः आपूर्तिहीन संसाधन
ऐसे संसाधन जिनका उपयोग एक बार ही किया जा सकता हैं, एक से अधिक बार उनका उपयोग नही किया जा सकता। जैसे, पेट्रोल, डिजल, कोयला आदि।
(स) बारम्बार प्रयोग वाले संसाधन
वे संसाधन जिनका उपयोग एक बार हो जाने के बाद भी उनमे संशोधन कर उनका उपयोग पुनः किया जा सके। जैसे धात्विक खनिज लोहा, तांबा आदि।
(द) सनातन प्राकृतिक संसाधन
ऐसे संसाधन जो उपयोग करने पर भी नष्ट नही होते। जैसे सौर ऊर्जा, जल इत्यादि।

3. वितरण के आधार पर संसाधन 

(अ) सर्व सुलभ संसाधन
ऐसे संसाधन जो सभी स्थानों पर उपलब्ध हो जैसे की वायु।
(ब) सामान्य सुलभ संसाधन
जो संसाधन अधिकरत स्थानों पर उपलब्ध है जैसे- मिट्टी, कृषि योग्य भूमि।
(स) विरल संसाधन
जो संसाधन सीमित स्थानों पर उपलब्ध है, जैसे कोयला, सोना, चूना , यूरेनियम आदि।
(द) एकल संसाधन
जो संसाधन संसार मे एक या दो स्थानों पर उपलब्ध है, जैसे क्रोमोलाइट धातु जो प्राकृतिक रूप से केवल ग्रीनलैंड मे मिलती है।

4. प्रयोग के आधार पर वर्गीकरण 

(अ) अप्रयुक्त संसाधन
संसाधनो का उपयोग जब तक नही किया जाता, तब तक उन्हें अप्रयुक्त संसाधन कहते है। जैसे कुछ खनिजों के भण्डारों का पता होने पर भी उनका दोहन और उनका कोई उपयोग भी नही हो पाता।
(ब) अप्रयोजनीय संसाधन
वर्तमान मे उपलब्ध तकनीक के बल पर जिन संसाधनों का उपयोग निकट भविष्य मे नही हो सकता, अप्रयोजनीय संसाधन कहलाते है।
(स) संभाव्य संसाधन
जिन संसाधनों का ज्ञान होने पर भी तकनीक या योजना के अभाव मे अभी उपयोग नही हो पा रहा है किन्तु भविष्य मे उपयोग की संभावना है, संभाव्य संसाधन कहलाते है। जैसे नदियों का बहता हुआ जल नहर बन जाने के बाद सिंचाई के काम आ सकता है। बांध बन जाने के बाद विद्युत उत्पादन हो सकता है।
(द) गुप्त संसाधन 
जब तक किसी पदार्थ के गुण और मानवीय हितों की पूर्ति हेतु आवश्यक प्रयोग ज्ञात न हो, तब तक वह पदार्थ गुप्त संसाधन कहलाता है, जैसे जब तक पेट्रोलियम पदार्थ के गुण व प्रयोग मनुष्य को ज्ञात न थे, तब तक गुप्त संसाधन की श्रेणी मे था।
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संसाधन से आप क्या समझते हैं उत्तर?

हमारे पर्यावरण में उपलब्ध हर वह वस्तु संसाधन कहलाती है जिसका इस्तेमाल हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कर सकते हैं, जिसे बनाने के लिये हमारे पास प्रौद्योगिकी है और जिसका इस्तेमाल सांस्कृतिक रूप से मान्य है। प्रकृति का कोई भी तत्व तभी संसाधन बनता है जब वह मानवीय सेवा करता है।

संसाधन से आप क्या समझते हैं उदाहरण दो?

Solution : हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, जो आर्थिक रूप से संभाव्य और सांस्कृतिक रूप से मान्य है, एक संसाधन है। कोयला, जल, वायु, खनिज आदि, संसाधनों के कुछ उदाहरण हैं।

संसाधन किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं?

संसाधन दो प्रकार के होते हैं- प्राकृतिक संसाधन और मानव निर्मित संसाधन

संसाधन क्या है संसाधन के प्रकार?

संसाधन के प्रकार:.
उत्पत्ति के आधार पर: जैव और अजैव संसाधन.
समाप्यता के आधार पर: नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य संसाधन.
स्वामित्व के आधार पर: व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संसाधन.
विकास के स्तर के आधार पर: संभावी, विकसित भंडार और संचित कोष.