विषयसूची स्थानांतरित कृषि की क्या हानियां है?इसे सुनेंरोकेंस्थानांतरित कृषि की निम्नलिखित हानियां हैं – (i) स्थानांतरित कृषि में किसान एक स्थान पर टिक कर नहीं रह सकता। (ii) कृषि बड़े पैमाने पर नहीं की जा सकती। केवल अपने निर्वाह के लिए ही फ़सलें उगाई जाती हैं। (iii) इसमें मशीनों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। स्थानांतरित कृषि के कितने चरण होते हैं? इसे सुनेंरोकेंकुछ वर्षों (प्रायः दो या तीन वर्ष) तक जब तक मृदा में उर्वरता बनी रहती है, इस भूमि पर खेती की जाती है। इसके पश्चात् इस भूमि को छोड़ दिया जाता है, जिस पर पुनः पेड़-पौधे उग आते हैं। अब अन्यत्र वन भूमि को साफ करके कृषि के लिये नई भूमि प्राप्त की जाती है और उस पर भी कुछ ही वर्ष तक खेती की जाती है। उद्यान कृषि का क्या अर्थ है?इसे सुनेंरोकेंगेहूं उगना आदिम कृषि फलों व सब्जियों को उगाना झुम की खेती कैसे की जाती है? इसे सुनेंरोकेंझूम कृषि (slash and burn farming) एक आदिम प्रकार की कृषि है जिसमें पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है और साफ की गई भूमि को पुराने उपकरणों (लकड़ी के हलों आदि) से जुताई करके बीज बो दिये जाते हैं। फसल पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर होती है और उत्पादन बहुत कम हो पाता है। स्थानांतरित कृषि पर रोक क्यों लगाई गई?इसे सुनेंरोकेंखाद्य सुरक्षा स्थानांतरित कृषि प्रणाली अपनाने वाले समुदायों की आकांक्षाओं में वृद्धि हुई है। जबकि स्थानांतरित कृषि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है, यह परिवारों को पर्याप्त नकदी प्रदान नहीं करती है और इस प्रकार वे नियमित कृषि, विशेष रूप से बागवानी की ओर रूख कर रहे हैं। स्थानांतरित कृषि क्या है इससे जुड़ी प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए? इसे सुनेंरोकेंस्थानान्तरी कृषि अथवा स्थानान्तरणीय कृषि (अंग्रेज़ी: Shifting cultivation) कृषि का एक प्रकार है जिसमें कोई भूमि का टुकड़ा कुछ समय तक फसल लेने के लिये चुना जाता है और उपजाऊपन कम होने के बाद इसका परित्याग कर दूसरे टुकड़े को ऐसी ही कृषि के लिये चुन लिया जाता है। स्थानबद्ध कृषि क्या है?इसे सुनेंरोकेंस्थानबद्ध कृषि कृषि की इस पद्धति के तहत किसी एक स्थायी और निश्चित निवास स्थान पर रहने वाला किसान और उसका परिवार मिल-जुलकर कृषि-कार्य करता है। इस प्रकार की कृषि में किसान फसलों में परिवर्तन करता है और वह भूमि तथा फसलों की अपेक्षाकृत अधिक देखरेख करता है। झूम खेती को मध्यप्रदेश में क्या कहते हैं? इसे सुनेंरोकेंझूम भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में शिफ्टिंग कृषि का नाम है। पश्चिमी घाट में कुमारी। मध्य प्रदेश के बस्तर जिले में पेंदा, बेवर या दहिया और देपा या कुमारी। हाल ही में, भारत में किसानो द्वारा कई जगह विरोध दर्ज किया गया तथा कई जगह इसने आन्दोलन का रूप ले लिया.इन घटनाओं ने भारत में कृषि संबंधी समस्याओं को ले के एक नयी बहस शुरू की. हमने यहाँ भारतीय कृषि से जुड़ी लगभग सभी समस्याओं का विश्लेषण किया है. भारत ने गांधी जी के चंपारण विरोध की 100 वीं वर्षगांठ मनाई थी, जो बिहार के चंपारण जिले के नील की खेती करने वाले किसानों के लिए किया गया था.दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद यह गाँधी जी का पहला सामूहिक राजनीतिक विरोध था. पचास वर्ष पहले 1960 में पश्चिम बंगाल में नक्सलबारी के किसानों ने जमींदारों के खिलाफ हिंसक विद्रोह शुरू किया था. गलत आर्थिक नीतियों के कारण हुए कई किसान आन्दोलनों (विद्रोह) का वर्णन आधुनिक भारतीय इतिहास में किया गया है. पिछले तीन दशकों से भारत में कृषि व्यवस्था सबसे अधिक संकट ग्रस्त स्थिति से गुजर रही है. लगातार 1 986-87 और 1987-88 के सूखे के दौरान कम बारिश के कारण भारत को इस तरह का संकट झेलना पड़ा एवं 2014 में भारत को खराब मानसून का सामना करना पड़ा जिसने कृषि के संकट को और भी बढ़ा दिया था. भारत में लगभग 65 % कृषि बारिश पर निर्भर करती है और आधे से अधिक क्षेत्र में अत्यधिक बारिश या अत्यल्प बारिश हमेशा परेशानी का कारण बनती है. हाल के महीनों में आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब जैसे विभिन्न राज्यों के किसानों के नेतृत्व में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं. अतः ऐसी परिस्थिति में उन महत्वपूर्ण कारकों को जानना आवश्यक हो जाता है जिसके कारण भारतीय कृषि में गंभीर समस्याएं पैदा होती रहती हैं. 1. ग्रामीण-शहरी विभाजन- भारत में अधिकांश खेती देश के ग्रामीण हिस्सों में की जाती है. हालांकि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार
हुआ है लेकिन भारत के ग्रामीण और शहरी अंतर के पुल को कम करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है.ग्रामीण मासिक प्रति व्यक्ति व्यय 1993-94 और 2004-05 के बीच 0.8% की एक अप्रत्यक्ष वार्षिक दर से बढ़ी, लेकिन 2004-05 और 2011-12 के बीच इसमें 3.3% की तीव्र गति से वृद्धि हुई (निरंतर 1987-88 कीमतों पर). 2. कृषि में निवेश का अभाव कृषि क्षेत्रों में नए निवेश में कमी हुई है. कई अर्थशास्त्रियों ने इसके लिए कई कारण बताए हैं और कई लोग मानते हैं कि कृषि में अस्थिरता का मूल कारण भूमि
असमानता है. यह तर्क दिया जाता है कि खेती की व्यवस्था के तहत मकान मालिक-किरायेदार आदि द्वार बाद के सभी उत्पादन खर्चों को वहन किया जाता है और किरायेदारों में निवेश योग्य संसाधनों की कमी होती है जो कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं. 3. प्रभावी नीतियों का अभाव भारत में कृषि से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए सरकारों द्वारा किए गए कई प्रयासों के बावजूद भारत में कोई सुसंगत कृषि नीति नहीं है.भारतीय कृषि में स्थिरता और उत्पादकता में वृद्धि के मुद्दे को लेकर एक सुसंगत कृषि नीति पर एक व्यापक समझौता की आवश्यकता है. 4. प्राकृतिक संसाधनों के सही उपयोग का अभाव जब खेती की बात आती है तो इस क्षेत्र के लिए भारत ने अपने प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित और विकसित नहीं किया है. मुख्य रूप से सिंचाई से संबंधित संसाधनों को संरक्षित करने के लिए बहुत कम प्रयास किया गया है. महाराष्ट्र और अन्य जगहों में प्रवास की कहानियों और गंभीर जल संकट से स्थिति की गंभीरता स्वतः स्पष्ट हो जाती है. 5. विमुद्रीकरण का प्रभाव कृषि में तनाव की घटनाओं का दिखाई देने का मुख्य कारण विमुद्रीकरण है. इस वित्तीय वर्ष में कृषि उत्पादों में कमी आई थी. नकद कृषि क्षेत्र में लेनदेन का प्राथमिक तरीका है जो भारत के कुल उत्पादन में 15% योगदान देता है. इनपुट-आउटपुट चैनलों के साथ-साथ मूल्य और आउटपुट फीडबैक प्रभावों से कृषि प्रभावित होती है. बिक्री, परिवहन, विपणन और थोक केंद्रों या मंडियों के लिए तैयार
माल का वितरण मुख्य रूप से नकद लेन देन पर ही आधारित है. 6. कीमतों पर अत्यधिक हस्तक्षेप भारत में मूल्य नियंत्रण पर कई प्रतिबंध हैं. उन प्रतिबंधों से भारतीय कृषि को मुक्त किया जाना चाहिए. 7. सिंचाई सुविधाएं भारत के कुल शुद्ध सिंचाई क्षेत्र में सरकारी आंकड़े में शायद ही कभी कोई वृद्धि दिखाई गयी हो. कुल सिंचित क्षेत्र लगभग 63 मिलियन हेक्टेयर है और देश
में बोया हुआ कुल क्षेत्रफल का केवल 45 प्रतिशत ही है. 8. सुस्त उर्वरक उद्योग पिछले 15 वर्षों में भारत में उर्वरक क्षेत्र के अंतर्गत कोई निवेश नहीं हुआ है. कुछ यूरिया निर्माता भी अपना शटर डाउन करने की गंभीरता से सोच रहे हैं. ऐसी स्थिति उस समय है जब दुनिया में उर्वरकों की मांग के अनुसार सबसे अधिक उत्पादन भारत में होता है.लेकिन आज कल निर्यात की बजाय आयात दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. उत्पादन काफी हद तक स्थिर बना हुआ है. 9. मानसून पर निर्भरता भारत में अधिकांश कृषि
क्षेत्र असिंचित होने के कारण कृषि क्षेत्र में समग्र विकास के लिए मानसून महत्वपूर्ण है. ऐसे मामले में मानसून पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की निर्भरता को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. 10. किसान उत्पादक संगठनों की अक्षमता भारत में किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को मजबूत किया जाना चाहिए. क्या छोटे और सीमान्त किसान एफपीओ से लाभान्वित हो रहे हैं या नहीं इस मुद्दे पर विशेष ध्यान देना चाहिए. एफपीओएस द्वारा दूध सहकारी समितियों से सबक सीखा जाना चाहिए.मूल्य श्रृंखलाओं के विकास के लिए कमोडिटी-विशिष्ट एफपीओ को प्रोत्साहन दिया जा सकता है. उदाहरण स्वरुप दालों के लिए एफपीओ बड़े पैमाने पर विकसित किए जा सकते हैं |