शैक्षिक अवसरों की असमानता को दूर करने के लिए भारतीय संविधान की क्या भूमिका है? - shaikshik avasaron kee asamaanata ko door karane ke lie bhaarateey sanvidhaan kee kya bhoomika hai?

शैक्षिक अवसरों की असमानता को दूर करने के लिए भारतीय संविधान की क्या भूमिका है? - shaikshik avasaron kee asamaanata ko door karane ke lie bhaarateey sanvidhaan kee kya bhoomika hai?

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हैलो दोस्तों आपका बहुत बहुत स्वागत है, इस लेख शैक्षिक अवसरों की समानता महत्त्व और प्रयास (Equality of Educational Opportunities Importance and Efforts) में।दोस्तों इस लेख में आप शैक्षिक अवसरों की समानता, शैक्षिक अवसरों की समानता महत्त्व, शैक्षिक अवसरों की असमानता के कारण जानेंगेतो दोस्तों शुरू करते है, यह लेख और जानते है शैक्षिक अवसरों की समानता महत्त्व और प्रयास के बारे में सम्पूर्ण जानकारी:-

शैक्षिक अवसरों की समानता Equality of educational opportunities

भारतीय गणतंत्र मूलतः लोकतंत्र (Democracy) सामाजिक (Social) तथा धर्मनिरपेक्षता (secularism) के सिद्धांतों पर आधारित है। जिसकी समानता (Equality) एक महत्वपूर्ण आधारशिला है।

भारतीय संविधान (Constitution) की प्रस्तावना में निम्नलिखित संकल्प लिया गया है, हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने के लिए तथा

उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक (Social) आर्थिक (Economical) तथा राजनीतिक, (Political) न्याय, विचार, अभिव्यक्ति विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता एवं अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा

इन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में

आज दिनांक 26 नवंबर 1949 ईस्वी को इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित तथा आत्मार्पित करते हैं।जिससे स्पष्ट होता है कि

संविधान एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करता है, जिसमें सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय प्राप्त होते हैं।

संविधान के द्वारा सभी व्यक्तियों की प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता प्रदान होती है। जिसके लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान रखे गए हैं:-

  1. सभी वयस्कों को मताधिकार प्रदान किया जाएगा विधि के समक्ष समता अनुच्छेद 14 (Article 14) के द्वारा प्रदान की जाएगी।
  2. सार्वजनिक नौकरियों के संबंध में अवसर की समानता अनुच्छेद 16 (Article 16) के तहत दी जाएगी।
  3. अस्पृश्यता (Untouchability) मतलब की छुआछूत की समाप्ति अनुच्छेद 17 (Article 17) के द्वारा कर दी गई है।
  4. किसी भी हाल में किसी भी व्यक्ति से लिंग, जन्म, स्थान, आदि के आधार पर भेदभाव को समाप्त अनुच्छेद 15 (Article 15) के अंतर्गत कर दिया है।
  5. बधुंआ मजदूरी तथा शोषण (forced labor and exploitation) अनुच्छेद 23 (Article 15) के अंतर्गत समाप्त कर दिया गया है।

यह सभी बाते नागरिकों को मौलिक अधिकारों के रूप में प्रदान की गई हैं। उनकी अवहेलना होने पर नागरिक न्यायालय की शरण ले सकता है।

इस प्रकार मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) राज्य के लिए कुछ निषेधात्मक हैं। परंतु संविधान के चौथे भाग में अनुच्छेद 36 से लेकर 51 तक कुछ सिद्धांतों का उल्लेख किया है।

वह सिद्धांत जिन पर भारत की भावी आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक नीति निर्धारित होती है। संविधान के इस भाग में दिए गए नियमों को किसी भी न्यायालय द्वारा बाध्यता नहीं दी जा सकती।

फिर भी कानून निर्माण इन सिद्धांतों का प्रयोग राज्य का कर्तव्य होगा जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न प्रकार से हैं:-

अनुच्छेद 43 के तहत राज्य का कर्तव्य होगा कि व श्रमिकों को कार्य निर्वाह योग्य मजदूरी जीवन स्तर की सामग्री अवकाश के पूर्व उपयोग के सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवसर प्रदान करने का प्रयास करे।

अनुच्छेद 42 के अंतर्गत राज्य काम करने की न्याय पूर्ण दशाओं का समुचित प्रबंध करेगा राज्य स्त्रियों को प्रसूति अवस्था में सहायता भी प्रदान करेगा।

अनुच्छेद 45 के द्वारा राज्य संविधान के लागू होने से 10 वर्ष की अवधि के भीतर 6 वर्ष से 14 वर्ष के सभी बालक और बालिकाओं के लिए निशुल्क और अनिवार्य (Free and compulsory) शिक्षा का प्रबंध करेगा।

अनुच्छेद 46 (Article 46) के अंतर्गत राज्य विशेष रूप से कमजोर वर्ग के मुख्यत: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए

शैक्षिक और आर्थिक हितों का ध्यान रखेगा उनकी सभी प्रकार के सामाजिक अन्याय तथा शोषण से रक्षा करेगा।

अनुच्छेद 47 के द्वारा राज्य लोगों के आहार जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य के सुधार में प्राथमिकता देगा।

मोंटेशरी विधि क्या है।

शैक्षिक अवसरों की समानता का अर्थ Meaning of Equality of educational opportunities 

शैक्षिक अवसरों की समानता का अर्थ है, हमें समानता के अर्थ को जानने के लिए बाध्य करना समानता का तात्पर्य यह नहीं है, कि सभी हर प्रकार से समान हो ऐसा असंभव है।

समानता का तात्पर्य अवसर की समानता से है। राज्य की ओर से सबको समान समझा जाए जाति, रंग, नस्ल, धर्म आदि के कारण किसी के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव (discrimination) ना किया जाए।

किसी वर्ग या समुदाय या संप्रदाय को विशेष अधिकार नहीं दिए जाए। अन्यथा समानता का तात्पर्य ऐसी परिस्थितियों के अस्तित्व से है,

जिनके कारण सभी व्यक्तियों को विकास के समान अवसर प्राप्त हो सके और सामाजिक भेदभाव का अंत हो सके। साथ ही सामाजिक न्याय की स्थापना हो सके।

प्रो चोस्की (Pro chosky) ने अपने शब्दों में कहा है, कि समानता का अर्थ यह नहीं है, कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए अथवा सभी को समान वेतन दिया जाए।

यदि पत्थर ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ या वैज्ञानिक के समान कर दिया जाए तो इससे समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा।

इसलिए समानता का अर्थ है, कि कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग ना रहें और उन्नति के अवसर सम्मान रहे।

शैक्षिक अवसरों की समानता की अवधारणा को शिक्षा नामक वस्तु के वितरण के रूप में समझा जा सकता है।

प्रारंभिक स्तर पर इस विवरण के सिद्धांत का अर्थ है, कि बिना किसी भेदभाव के एक निश्चित अवधि तक निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए

माध्यमिक शिक्षा स्तर पर इसका अभिप्राय है, कि विभिन्न पाठ्यक्रम की व्यवस्था हो जिससे व्यक्तियों की आवश्यकता तथा स्थितियों को संतुष्ट कर सके

और शिक्षा इसका अभिप्राय उन समस्त लोगों के लिए शैक्षिक अवसरों की व्यवस्था की जाए। जो लाभ उठाने की क्षमता रखते हो और उनके बदले में समाज उनको योगदान देने में असमर्थ हो।

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948-49

शैक्षिक अवसरों की समानता का महत्व importence of Equality of educational opportunities 

शिक्षा एक महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्य है, अवसर की समानता प्रदान करना जिससे पिछडे तथा दलित वर्गों के लोग शिक्षा द्वारा अपनी स्थिति में सुधार ला सकते हैं।

जो भी समाज सामाजिक न्याय को अपना आदर्श मानता है और आम आदमी की हालत सुधारने तथा समस्त शिक्षा पाने वाले व्यक्तियों को शिक्षा देने को उत्सुक है,

उसे यह व्यवस्था करनी होगी कि जनता के सभी वर्गों को अवसर की आधिकारिक समानता प्राप्त हो जाए।

एक समतामूलक तथा मानवतामूलक समाज जिसमे कमजोर का शोषण कम से कम हो बनाने का यही एक सुनिश्चित साधन शिक्षा ही है।

शिक्षा का अधिकार एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है। इस दृष्टि से शिक्षा एक मौलिक अधिकार भी है और व्यक्ति को इस अधिकार से

जाति, रंग, धर्म, प्रजाति आदि के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता। दूसरे व्यक्ति को सामाजिक आर्थिक उन्नति के लिए अधिक से अधिक व्यक्तियों को अधिक तथा उत्तम शिक्षा की आवश्यकता है।

शिक्षा ही वह सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर व्यक्ति अपने आर्थिक एवं सामाजिक स्तर को उच्च बना सकता है, तो ऊँचा उठा सकता है।

साथ ही शिक्षा मानव अधिकारों की प्राप्ति का भी एक महत्वपूर्ण साधन है। समाज की शक्ति का आधार भी शिक्षा है। क्योंकि शैक्षिक अवसरों की समानता आर्थिक विकास से जुड़ी हुई है।

केवल शैक्षिक अवसरों को बढ़ा देने से काम नहीं चलता उनके समान वितरण से ही वास्तविकता या सामाजिक न्याय को प्राप्त किया जा सकता है।

राष्ट्रीय विकास के मार्ग में असमानता या विषमता एवं भेदभाव महत्वपूर्ण अवरोधक हैं अतः विकसित देशों में आर्थिक उन्नति के लिए शैक्षिक अवसरों की समता एक वास्तविक शर्त है

शैक्षिक अवसरों की असमानता के कारण Due to inequality of educational opportunities 

शिक्षा के अवसरों की असमानता के कारण विभिन्न प्रकार से उत्पन्न हो जाते हैं, जबकि भारत में शैक्षिक अवसरों की विभिन्न संस्थाओं के विभिन्न कारण हैं इसमें से कुछ निम्न प्रकार से बताए गए हैं:- 

  1. जिन स्थानों पर प्राथमिक, माध्यमिक या कॉलेज की शिक्षा देने वाली संस्थाएं ही नहीं है। वहाँ के बच्चों को शिक्षा का वैसा अवसर नहीं मिल पाता है, जैसा उन बच्चों को प्राप्त होना चाहिए। उनके क्षेत्रों में संस्थाएं स्थापित हों इस विषमता को दूर किया जाना आवश्यक है तभी हम शिक्षा के अवसरों की समानता स्थापित कर सकेंगे।
  2. इस समय देश के विभिन्न भागों में शैक्षिक विकास में भारी असंतुलन मौजूद है। एक राज्य और दूसरे राज्य के शैक्षिक विकास में बड़ा अंतर दिखाई देता है, और एक जिले तथा दूसरे जिले के विकास में अभी बड़ा फर्क नजर आता है। उदाहरण के लिए केवल राज्य में 1971 की जनगणना के अनुसार 62.5 % व्यक्ति साक्षर थे। जबकि उत्तर प्रदेश में 12.5 % साक्षरता (Literacy) थी। इन विषमताओं को दूर करके ही सामाजिक न्याय प्रदान किया जा सकता है। सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए शैक्षिक अवसरों की समता स्थापित करना बहुत जरूरी है।
  3. हमारे देश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग गरीब है, और थोड़ा भाग धनी है। इसी कारण बच्चे अच्छी संस्था में शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। गरीब परिवारों के बच्चों को भी अवसर मिलना चाहिए जैसा धनी परिवारों के बच्चों को मिल पाता है।
  4. घरेलू वातावरण के भिन्न-भिन्न होने के कारण भी शैक्षिक अवसरों की विषमतायें अधिकतर उत्पन्न हो रही हैं। देहात के घरों या शहर की गंदी बस्तियों में रहने वाले अनपढ़ माता-पिता की संतान को शिक्षा पाने का अवसर नहीं मिल पाता जो पढ़े लिखें माता-पिता और उनकी संतानों को प्राप्त होता है।
  5. शिक्षा के सभी स्तरों पर और क्षेत्रों में लड़कों की और लड़कियों की शिक्षा में भारी विषमता देखी गई है। यहाँ पर कई क्षेत्रों में लड़कों को शिक्षा प्रदान करने के अवसर होते हैं, तो कहीं लड़कियों को अवसर प्रदान नहीं होते।
  6. उन्नत वर्गों और पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों जनजातियों आदिम जातियों के बीच शैक्षिक विकास का बहुत अंतर देखने को मिलता है, यह भी शैक्षिक अवसर में एक विषमता ही है।

दोस्तों इस लेख में आपने शैक्षिक अवसरों की समानता (Equality of Educational Opportunities) के साथ अन्य जानकारी के बारे में पढ़ा, आशा करता हुँ, आपको यह लेख पसंद आया होगा।

इसे भी पढ़े:-

  1. समावेशी शिक्षा किसे कहते है, सिद्धांत
  2. Pwd एक्ट 2016
  3. Pwd एक्ट 1995

शैक्षिक अवसरों की समानता को दूर करने के लिए भारतीय संविधान की क्या भूमिका है?

अनुच्छेद 45 के द्वारा राज्य संविधान के लागू होने से 10 वर्ष की अवधि के भीतर 6 वर्ष से 14 वर्ष के सभी बालक और बालिकाओं के लिए निशुल्क और अनिवार्य (Free and compulsory) शिक्षा का प्रबंध करेगा। शैक्षिक और आर्थिक हितों का ध्यान रखेगा उनकी सभी प्रकार के सामाजिक अन्याय तथा शोषण से रक्षा करेगा।

भारत में शैक्षिक समानता के अवसर बढ़ाने हेतु कौन से उपाय अपनाये जा सकते है?

शैक्षिक अवसरों की समानता के उपाय निर्धन छात्रों को छात्रवृतियाँ अधिक संख्या में दी जानी चाहिए। शैक्षिक विकास की स्पष्ट व समान नीति तैयार की जानी चाहिए। शिक्षण शुल्क पूर्ण रूपेण समाप्त कर देना चाहिए। पुस्तकें, गणवेश, स्टेषनरी तथा स्कूल अल्पाहार निःषुल्क एवं पर्याप्त दिया जाना चाहिए।

शिक्षा के अवसरों की समानता का क्या अर्थ है शैक्षिक अवसरों के महत्व को प्रतिपादित कीजिए?

शैक्षिक अवसरों की समानता का तात्पर्य सभी के लिए एक समान शिक्षा नहीं है, बल्कि प्रत्येक बालक को शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक नैतिक परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षा प्रदान करना है। इसका तात्पर्य राज्य द्वारा व्यक्तियों की शिक्षा के सन्दर्भ में जाति, रूप, रंग प्रान्तीयता व भाषा, धर्म आदि के मध्य भेदभाव न करने से भी है।

असमानता को दूर करने का प्रमुख उपाय क्या है?

आर्थिक असमानता कम करने के लिए जातीय आधार पर आरक्षण खत्म करके आरक्षण का आधार आर्थिक किया जाना चाहिए। अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग में भी ओबीसी की तरह क्रीमीलेयर का प्रावधान किया जाना चाहिए। रोजगारपरक कौशल विकास, ऋण की सहज उपलब्धता और शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की गारंटी कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जो भारत सरकार कर सकती है।