शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूज्यनीय रहा है। कोई उसे गुरू कहता है, कोई शिक्षक कहता है, कोई आचार्य कहता है, तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है। ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं जो सभी को ज्ञान देता है और सिखाता है। Show किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य के निर्माण में एक शिक्षक का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। शिक्षक ज्ञान, समृद्धि और प्रकाश का एक बड़ा स्रोत होता है जिससे कोई भी जीवनभर के लिए लाभ प्राप्त कर सकता है। बालक के सर्वांगीण विकास में शिक्षक को बड़ा ही महत्वपूर्ण कार्य करना पड़ता है। शिक्षक ही वास्तव में बालक का समुचित शारीरिक, मानसिक बौद्धिक, सामाजिक एवं संवेगात्मक विकास कर सकता है। विद्यालय प्रांगण में भी शिक्षक को अति महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है। शिक्षक का महत्वविद्यालय-जीवन में शिक्षक को अतिमहत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शिक्षक को विद्यालय जीवन में ही क्यों, सम्पूर्ण समाज में अतिमहत्वपूर्ण एवं सम्मानप्रद स्थान प्राप्त है। शिक्षक का महत्व इस प्रकार है।
वास्तव में बालकों के शारीरिक मानसिक तथा सामाजिक एवं नैतिक विकास में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। वह अपने सदप्रयासों से बालकों का सफल मार्गदर्शन कर उसके व्यक्तित्व का सन्तुलित विकास कर उसे सफल नागरिक बनाता है। इस रूप में वह न केवल बालक का ही कल्याण करता है वरन् समुचे समाज तथा राष्ट्र की भलार्इ करता है। इसलिए तो भारतीय दर्शन में उसे बाह्म का रूप दिया गया है। यह ब्रह्म स्वरूप शिक्षक ही सृजनात्मक तथा विध्वंसात्मक शक्तियों का प्रदाता तथा स्रोत है। इसी की प्रदत शिक्षा के आधार पर हम कल्याणकारी तथा विनाशकारी शक्तियों का निर्माण करते है। इसलिये कहा जाता है कि यदि विनाश पर आ जाये तो शिक्षक एक चिकित्सक भवन निर्माता तथा पुजारी से भी अधिक विनाश कर सकता है। एक शिक्षक के प्रभाव का कहां अन्त होगा, कहा नहीं जा सकता क्योंकि वह अपने छात्रों पर अपने प्रभावों की अमिट छाप छोड़ देता है। इस प्रकार से अध्यापक का चरित्र और व्यवहार समाज के लिए महत्वपूर्ण होता है। शिक्षक के उत्तरदायित्वअध्यापक को परिस्थितियों के अनुसार अनेक कार्य करने पड़ते है। उनको वह लगन से कर सकता है अथवा उपेक्षा की दृष्टि से। किन्तु शिक्षक से आशा की जाती है कि निम्न कार्यों को पूरा करने हेतु प्रयास करेगा-
आदर्श शिक्षक के गुणएक आदर्श शिक्षक के अनेक विशेष गुणों का होना आवश्यक है। इन समस्त गुणों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं।
शिक्षक के वैयक्तिक गुण
शिक्षक के व्यावसायिक गुण
उपर्युक्त गुणों के अलावा कुछ अन्य गुण भी आदर्श शिक्षक को लाभ पहुंचाते है, जैसे- प्रयोग एवं अनुसंधान में रूचि सहायक सामग्री के निर्माण तथा प्रयोग में रूचि तथा योग्यता, प्रश्न कला शिक्षण पद्धतियों का ज्ञान। शिक्षक को एक आदर्श पुरुष (रोल माॅडल) की भाँति बच्चों के मन में ईमानदारी, अनुशासन, राष्ट्र भक्ति, सच्चरित्रता, स्वावलम्बन आदि के प्रति उत्साह भी भरना पड़ता है तो कभी एक समाज निर्माता के रूप में न केवल अपने विद्यार्थियों में बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों, जातियों व समुदायों के नागरिकों में परिवार, समाज, राष्ट्र और मानवता के प्रति उनके अधिकार, कर्तव्य एवं दायित्वों से संबंधित चेतना जगाकर उनका मार्गदर्शन भी करना पड़ता है । इनके अतिरिक्त शिक्षक को अपने विद्यालय एवं उसके शासकीय कार्यों से भी संबंधित विविध प्रकार के दायित्वों, यथा-प्रधानाध्यापक, वर्ग शिक्षक, विज्ञान शिक्षक, कला शिक्षक, एन सी सी या एन एस एस शिक्षक, संगीत शिक्षक, परीक्षा नियंत्रक, निरीक्षक, परीक्षक इत्यादि के दायित्वों का भी पालन करना पड़ता है । शिक्षक का दायित्व विविधतापूर्ण, अनंत एवं असीमित है । वस्तुतः एक सुयोग्य, कर्मठ एवं जिम्मेवार शिक्षक मात्र पठन-पाठन क्रिया को सम्पन्न करने भर के दायित्व तक ही अपने आपको सीमित नहीं रख सकता है। क्योंकि उसका प्रमुख दायित्व होता है बच्चों ;विद्यार्थियोंद्ध को सर्वगुण सम्पन्न बनाना। शिक्षक के कार्य एवं उत्तरदायित्वों का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है- (i) शिक्षा देना: अध्यापक हर दशा में अध्यापक ही होता है। उसका मुख्य कार्य पढ़ाई करवाना ही होता है। उसको ऐसा विषय पढ़ाना चाहिये जिसमें उसको विशेष निपुणता प्राप्त हो। यह उसका उत्तरदायित्व है कि वह विषय का अध्ययन करे, नये-नये शिक्षा ढंगों की खोज करे, शिक्षा संबंधी सहायक वस्तुयें (Teaching Aids) एकत्रित करे, घर के काम की योजना बनाये और बच्चों को सीखने के लिये प्रेरित करे। (ii) संगठन करना: शिक्षक को पाठ्यक्रम तथा सहगामी क्रियाओं (Co-curricular Activities) का संगठन करना और बच्चों के लिए निर्देशन और पुस्तकालय के काम का प्रबंध करना चाहिये। उसको उत्सवों का प्रबंध करना, शिक्षा की स्थितियों, परीक्षाओं तथा अन्य महत्त्वपूर्ण क्रियाओं का ध्यान रखना चाहिये। उसको स्कूल के बहुत-से साधारण कार्यों में से एक का इन्चार्ज होना चाहिये। (i) स्कूल के अहाते (Campus) का संगठन (ii) फर्नीचर टिकाना (iii) सामान की खरीद (iv) विद्यार्थियों के बैठने का प्रबंध (v) फर्नीचर का वितरण (vi) टाईम-टेबल की तैयारी (vii) स्कूल कैलेण्डर की तैयारी (viii) स्कूल संबंधी धन का बजट बनाना (ix) खेल-कूद की व्यवस्था करना (iii) निरीक्षण करना: अध्यापक को कई बातों का निरीक्षण करना चाहिये µ (i) विद्यार्थियों की प्रतिदिन उपस्थिति तथा समय पर पहुँचने की जाँच करना। (ii) श्रेणी का दैनिक काम जैसे विद्यार्थियों के लिखित कार्य तथा पढ़ने के कार्य का निरीक्षण करना। (iii) घर का काम देखना। (iv) प्रयोगशला, वर्कशाॅप या फार्म (Farm) में किया हुआ हस्त-कार्य को देखना। (v) खेलों का निरीक्षण करना। (vi) सहगामी-क्रियायें। (vii) छात्रावास का काम देखना। (viii) स्कूल में अनुशासन पैदा करना। (iv) मूल्यांकन तथा अभिलेख रखना: मूल्यांकन का अर्थ होता है जाँच करना अर्थात् शिक्षक अपने विद्यार्थियों के सारे व्यक्तित्व का अनुमान लगाने के लिए तथा उसके विकास की निश्चित सीमाओं को जानने के लिए जो माध्यम अपनाकर उसका जाँच करता है, उसी को मूल्यांकन कहते हैं। वर्तमान में परीक्षा प्रणाली ही मूल्यांकन का आधार है लेकिन नवीन शोध से यह तथ्य उभर कर सामने आया है कि हमें परीक्षा पद्धति के साथ-साथ मूल्यांकन के लिए भिन्न-भिन्न तरीके को भी अपनाना चाहिए और उसके परिणामों का पूरा अभिलेख रखना चाहिये, जिससे की हम विद्यार्थियों के बारे में उनकी रूचियों, भावनाओं और सफलताओं के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सके तथा उसमें और भी विकास के लिए आवश्यक दिशा निर्देशन दे सके। अध्यापक को स्कूल के कई और अभिलेख भी रखने चाहिये जैसे- (1) उपस्थिति का रजिस्टर (2) प्रवेश तथा स्कूल छोड़ने का रजिस्टर (3) मूल्यांकन का रजिस्टर (4) क्रियाओं संबंधी रजिस्टर (5) कार्यालय के अन्य रजिस्टर (6) प्रत्येक विद्यार्थी का प्रगति रिर्पोट (v) मार्गदर्शन: यह कार्य थोड़ी देर से ही सम्मिलित किया गया है। अध्यापक को बच्चे की आय, योग्यता, बुद्धिमत्ता तथा रुचि के अनुसार विषय चुनने के लिये सहायता करनी चाहिये। उसको विद्यार्थियों के भविष्य के लिये भी मार्गदर्शन करना चाहिये। कम दिमाग वाले तथा कमजोर विद्यार्थियों के लिये भी मनोवैज्ञानिक ढंग के आधार पर मार्गदर्शन करना चाहिये। वह विद्यार्थियों का पाठ्यक्रम में मार्गदर्शन कर सकता है। (vi) आयोजन: (i) अध्यापक को पाठ्यक्रम की ठीक ढंग से व्यवस्था करनी चाहिये। उसे पाठ्यक्रम को महीनों तथा हफ्रतों में बाँटकर पढ़ाना चाहिये। (ii) उसे श्रव्य-दृश्य साधनों और अध्यापन-विधियों के प्रयोग करने की व्यवस्था करनी चाहिये, ताकि वह पढ़ाते समय उनको ठीक ढंग से प्रयोग में ला सके। (iii) उसकी पाठ्य-क्रियाओं को संगठन करने की व्यवस्था सारे वर्ष के लिये करनी चाहिये। शिक्षक के उत्तरदायित्व क्या है?छात्रों का शैक्षिक एवं चारित्रिक विकास करना। कक्षा का प्रबन्ध एवं समुचित शिक्षण देना। छात्रों के कार्यों का मूल्यांकन करना।
एक अच्छे शिक्षक का सबसे महत्वपूर्ण गुण क्या है?शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया की गुणवत्ता को बढ़ाने में। शिक्षार्थियों के लिए अधिगम को अधिक सटीक और वास्तविक बनाने में।. निष्ठावान और समर्पित।. जिम्मेदार और देखभाल करने वाले।. सभी बच्चों के प्रति निष्पक्ष।. अच्छा सम्प्रेषण कौशल।. एक अच्छा वक्ता और श्रोता।. विद्यार्थियों के हित का ध्यान रखना।. शिक्षक का क्या कर्तव्य है?शिक्षक को एक आदर्श पुरुष (रोल माॅडल) की भाँति बच्चों के मन में ईमानदारी, अनुशासन, राष्ट्र भक्ति, सच्चरित्रता, स्वावलम्बन आदि के प्रति उत्साह भी भरना पड़ता है तो कभी एक समाज निर्माता के रूप में न केवल अपने विद्यार्थियों में बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों, जातियों व समुदायों के नागरिकों में परिवार, समाज, राष्ट्र और मानवता ...
शिक्षक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या है?शिक्षक का अति महत्वपूर्ण कार्य क्या है?. छात्रों के विकास का मार्गदर्शन करना. जब भी आवश्यक हो उपचारात्मक सहायता प्रदान करना. प्रभावी शिक्षण प्रदान करना. कक्षा में व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखना. |