शरीर और आत्मा में क्या अंतर है? - shareer aur aatma mein kya antar hai?

शरीर और आत्मा में क्या अंतर है? - shareer aur aatma mein kya antar hai?

क्या है आत्मा और शरीर में अंतर?  |  तस्वीर साभार: YouTube

नई दिल्ली: आत्मा एक सूक्ष्म और चैतन्य सत्ता है जो आंखों से नहीं दिखती । इसे अनुभव किया जा सकता है। जबकि शरीर अस्थि-मांस और हड्डियों का ढांचा मात्र है। आत्मा का कभी नाश नहीं होता है जबकि शरीर एक नाशवान सत्ता है। इस बात को समझने की जरूरत है कि शरीर में जीवन सिर्फ आत्मा से आता है। बगैर आत्मा के शरीर कुछ भी नहीं है। जब एक व्यक्ति की मृत्यु होती है तब शरीर से आत्मा निकल जाती है। शरीर से सूक्ष्म सत्ता यानी आत्मा का निकलना ही मृत्यु कहलाता है।

आत्मा शरीर का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है, आत्मा के बिना शरीर महत्त्वहीन है । लेकिन फिर भी लोग आत्मा की चिन्ता नहीं करके जीवन की शारीरिक आवश्यकताओं को अधिक महत्त्व देते हैं । आत्मा को समझने के लिए श्रीमदभगवदगीता में इस श्लोक से बेहतर कुछ भी नहीं है।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥

यानी आत्मा एक चैत्नय सत्ता है जिसे काटना, जलाना ,गलाना या फिर सुखाना मुमकिन नहीं है। इस श्लोक का भावार्थ यही है कि आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु यानी पवन नहीं सुखा सकता। यानी आत्मा अजर-अमर है। सनातन धर्म में शास्त्र यह कहते है कि आत्मा एक शरीर को धारण करती है। फिर जन्म और मृत्यु का चक्र अनवरत चलता रहता है।

गीता के मुताबिक आत्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण करती है। एक शरीर की मृत्यु अवश्यंभावी है और जब शरीर की मृत्यु होती है तब आत्मा उस शरीर से निकलकर दूसरा शरीर धारण करती है। इस प्रकार आत्मा का यह जीवन चक्र उस समय तक चलता रहता है जब तक कि वह मुक्त नहीं हो जाती या आनी उसे मोक्ष नहीं मिलता। मोक्ष यानी सदगति वह अवस्था है जब आत्मा जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है और उसे शरीर धारण करने से मुक्ति मिल जाती है। 

जनमत मरत दुसह दु:ख होई। एहि स्वल्पउ नहिं ब्यापिहि सोई।
कवनेउँ जन्म मिटिहि नहिं ग्याना। सुनहि सूद्र मम बचन प्रवाना।

गोस्वामी तुलसीदास की ये पंक्तियां बताती है कि व्यक्ति को जन्म और मृत्यु के दौरान काफी दुख और कष्ट का अनुभव होता है। इसको वह दुःख जरा भी न व्यापेगा और किसी भी जन्म में इसका ज्ञान नहीं मिटेगा। मत्यु के बाद जन्म और जन्म के बाद मृत्यु, यह दुनिया का एक अटल सत्य है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जो पुनर्जन्म की बात पर भरोसा नहीं करते उनके लिए यह बात माननी मुश्किल है कि वाकई आत्मा अमर है और शरीर छोड़ने के बाद वह नया शरीर धारण करती है। मृत्यु शरीर की होती है और आत्मा चैतन्य है, अजर अमर है।

शरीर से आत्मा का अलग होना यही अवस्था मृत्यु कहलाती है। यह बात साफ है कि शारीरिक सत्ता से जब आत्मा अलग होती है तो यह मृत्यु की अवस्था होती है। शरीर की मृत्यु कई कारणों से हो सकती है । या तो शरीर जर्जर, बूढ़ा हो गया हो या फिर शरीर किसी भयानक बीमारी से ग्रसित हो या फिर कोई हिंसात्मक कारण। कोई भीषण दुर्घटना भी शरीर की मृत्यु का कारण बन सकती है। शरीर जबतक स्वस्थ होता है तब तक आत्मा उसमें वास करती है। लेकिन शरीर जब अपनी सक्षमता खो देता है तब आत्मा शरीर छोड़कर निकल जाती है। अगर व्यक्ति के शरीर में कोई गंभीर कष्ट हो गया हो, गंभीर बीमारी हो गई है, दुर्घटना से व्यक्ति के शरीर को काफी चोट पहुंचा है तो ऐसे में शरीर से आत्मा का जाना तय होता है। शरीर की चेतना तभी तक है जब तक उसमें आत्मा है। जब आत्मा नहीं रहती तो शरीर में चेतना नहीं होती और यही स्थिति मृत्यु की होती है। इसलिए सनातन धर्म में देहावसान शब्द का इस्तेमाल होता है। यानी देह का अवसान अर्थात समाप्ति। देहावसान यानी देह का मृत होना क्योंकि आत्मा तो अजर अमर है। हम जिस आत्मा के मरने की सोच रहे होते हैं वह एक निर्धारित अवधि के बाद दूसरा शरीर धारण करती है। पुनर्जन्म की इसी अवधारणा की श्रीमदभगवदगीता में व्याख्या की गई है।  

धर्म व अन्‍य विषयों की Hindi News के लिए आएं Times Now Hindi पर। हर अपडेट के लिए जुड़ें हमारे FACEBOOK पेज के साथ।

शरीर और आत्मा में क्या अंतर है स्पष्ट कीजिए?

आत्मा तो आनंदस्वरूप है। वह परमात्मा का अंश है, अत: प्रत्येक जीव ब्रह्म है।

बॉडी में से आत्मा कैसे निकलती है?

जब व्यक्ति के शरीर से आत्मा निकलती है उसे कुछ समय तक पता ही नहीं होता है कि वह शरीर से अलग है। वह उसी प्रकार व्यवहार करती है जैसे शरीर में रहते हुए उसका व्यहार था।

शरीर में आत्मा कहाँ निवास करती है?

लेकिन शास्त्रों की मानें तो आत्मा मूलत: मस्तिष्क में निवास करती है। योग की भाषा में उस केंद्र को सहस्रार चक्र या ब्रह्मरंध्र कहते हैं। अह विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करने लगा हैं। उसके अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा या चेतना शरीर के उस भाग से निकल कर बाहरी जगत में फैल जाती है।

क्या मनुष्य के शरीर में आत्मा होती है?

आत्मा एक शरीर धारण कर जन्म और मृत्यु के बीच नए जीवन का उपभोग करता है और पुन: शरीर के जीर्ण होने पर शरीर छोड़कर चली जाती है। आत्मा का यह जीवन चक्र तब तक चलता रहता है जब तक कि वह मुक्त नहीं हो जाती या उसे मोक्ष नहीं मिलता। प्रत्येक व्यक्ति, पशु, पक्षी, जीव, जंतु आदि सभी आत्मा हैं।