संयुक्त राष्ट्र की बच्चे को कल्याण के लिए संस्था यूनीसेफ़ की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक आर्थिक संकट के कारण खाद्य पदार्थों और तेल के दाम बढ़े हैं जिसका असर दक्षिण एशिया पर बुरी तरह पड़ा है. रिपोर्ट के अनुसार दो साल पहले की तुलना में दक्षिण एशिया में अब क़रीब दस करोड़ अधिक लोग भूखे पेट सोने को मजबूर हैं. संगठन का कहना है कि दक्षिण एशिया की सरकारों को इस चुनौती से निपटने के लिए तत्काल क़दम उठाने चाहिए. यूनिसेफ़ ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि दक्षिण एशिया संकट के मुहाने पर खड़ा है बढ़ते आर्थिक संकट का असर ग़रीबों पर पड़ा है. Show संगठन के अनुमान के अनुसार दक्षिण एशिया की तीन चौथाई से अधिक आबादी प्रति दिन दो डॉलर से भी कम पर गुज़ारा करती है और महिलाओं और बच्चों की स्थिति सबसे ख़राब है. बढ़ते आर्थिक संकट से सबसे बुरी तरह प्रभावित दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान का नाम है लेकिन आर्थिक शक्ति के रुप में उभरा भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है जहां बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर कम हुए हैं. यूनीसेफ कहता है कि इन देशों की सरकारों को खाद्य पदार्थ, स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिक से अधिक खर्च करने की ज़रुरत है ताकि इस संकट से निपटा जा सके लेकिन आर्थिक मंदी के कारण सरकारों के पास भी पैसे की कमी मानी जा रही है. संगठन ने दो बड़े देशों - भारत और पाकिस्तान से अपने रक्षा बजट में कटौती करने की भी मांग की ताकि ये पैसा लोगों की भलाई के लिए लगाया जा सके. भारत ने दक्षिण एशिया में बढ़ाया निवेशभारत ने चीन की चाल को नाकाम करने के लिए दक्षिण एशियाई मित्र देशों में तेजी से निवेश बढ़ाया है। न सिर्फ श्रीलंका, बल्कि भारत ने मालदीव, मॉरीशस जैसे देशों में भी निवेश को बढ़ाया है। भारत ऋण और अनुदान के साथ शापूरजी पलोनजी समूह की संचालित एक परियोजना में 500 मिलियन डॉलर की लागत से बनने वाले ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट की फंडिंग कर रहा है। इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य मालदीव की राजधानी माले को आसपास के अन्य द्वीपों को सड़क मार्ग से जोड़ना है। मालदीव के अंदर पुलों के निर्माण को लेकर जारी यह लड़ाई चीन और भारत के बीच जियो इकनॉमिकल इंफ्लूएंस के लिए संघर्ष का सबसे स्पष्ट उदाहरणों में से एक है। भारत ने बांटे अरबों डॉलर के लोनचीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से जुड़ी परियोजनाएं दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में फैली हैं। यही कारण है कि चीनी परियोजना की काट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस क्षेत्र में भारत के बुनियादी ढांचे के निवेश को बढ़ाया है। इसके बावजूद भारत अब भी विदेशों को लोन देने के मामले में चीन से बहुत पीछे है। इसके बावजूद भारत ने बुद्धिमानी दिखाते हुए दक्षिण एशिया से चीन के बीआरआई का का पत्ता साफ करने के प्लान पर अमल करना शुरू कर दिया है। भारत ने श्रीलंका जेसा आर्थिक रूप से संकटग्रस्त देश को अरबों डॉलर का ऋण दिया है। भारतीय कंपनियों ने भी इस क्षेत्र में तेजी से विस्तार किया है, जो चीन की कॉमर्शियल गतिविधियों पर रोक लगाने में सहायता प्रदान कर रही हैं। आठ साल में भारत ने देशों को तीन गुना ज्यादा कर्ज दियाफाइनेंशियल टाइम्स से बात करते हुए दिल्ली में एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के एक वरिष्ठ साथी सी राजा मोहन ने कहा कि मोदी की सरकार ने इस भावना को विकसित करना शुरू कर दिया है कि भारत को कुछ करने की जरूरत है। यह चीन के साथ भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के लिए कहीं अधिक जीवंत है। ऐसे में कर्ज प्रदान करने वाले देश के रूप में भारत की भूमिका तेजी से बढ़ी है। भारत के डेवलपमेंट पार्टनरशिप एडमिनिस्ट्रेशन ने कई दक्षिण एशियाई देशों को कर्ज दिया है। भारत का यह एडमिनिस्ट्रेशन अन्य देशों को कर्ज की पेशकश करता है। भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, पिछले आठ साल की तुलना में भारत का विदेशी देशों को दिए गए कर्ज का मूल्य 32.5 बिलियन डॉलर हुआ है, जो करीब तीन गुना ज्यादा है। भारत की विकास सहायता 8 साल में 107 बिलियन डॉलर पहुंचीसरकार समर्थित आरआईएस थिंक-टैंक के अनुसार, 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से भारत की 'विकास सहायता' 2014 के बाद से 55 बिलियन डॉलर से 107 बिलियन डॉलर तक पहुंची है, जो लगभग दोगुनी है। यह गति पिछले नौ साल पहले शुरू किए गए चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए दिए जा रहे कर्ज की मात्रा से काफी नीचे है। इसके बावजूद भारत के विदेशी कर्ज बांटने की स्पीड काफी तेजी से बढ़ी है। अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट थिंक-टैंक का अनुमान है कि चीन ने सिर्फ बीआरआई के जरिए दुनियाभर के देशों को 838 बिलियन डॉलर तक का कर्ज दिया है। दुनियाभर के 600 परियोजनाओं को चला रहा भारत भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत ने दुनियाभर में लगभग 600 परियोजनाओं के लिए लिए 300 से अधिक लाइन ऑफ क्रेडिट का विस्तार किया है। इसमें जिबूती में एक सीमेंट कारखाने से लेकर मालदीव में पुल बनाने तक की परियोजना शामिल है। भारत ने प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों से लेकर मस्जिदों और मंदिरों जैसे विदेशी सांस्कृतिक स्थलों के जीर्णोद्धार तक सब कुछ वित्त पोषित किया है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत के पास बेल्ट एंड रोड की सीमा तक कर्ज बांटने की क्षमता नहीं है, लेकिन वह अपने दायरे में जो कुछ भी संभव है, उसे कर रहा है। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जो चीन की बीआरआई को चुनौती देने के लिए अपनी ताकत झोंक रहा है। दक्षिण एशिया में कुल कितने देश आते हैं?संदर्भ दक्षिण एशिया एशिया का दक्षिणी क्षेत्र है, जिसे भौगोलिक और जातीय-सांस्कृतिक दोनों संदर्भों में परिभाषित किया गया है। इस क्षेत्र में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।
दक्षिण एशियाई देश कौन कौन से है?दक्षिण एशिया के देशों का एक संगठन दक्षेस भी है जिसके सदस्य देश निम्नवत हैं:. पाकिस्तान. श्रीलंका. बांग्लादेश. मालदीव. एशिया महाद्वीप में कुल कितने देश हैं?एशिया को 48 देशों में विभाजित किया गया है, उनमें से तीन (रूस, कजाकिस्तान और तुर्की) का भाग यूरोप में भी है।
दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश कौन सा है?भौगोलिक क्षेत्र बुद्धिमान भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश है
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