बड़े बांधों के लाभजल, धरती पर सभी के जीवन के सम्पोषण के लिए अनिवार्य है। यह समस्त संसार में समान रूप में वितरित नहीं होता है तथा इसकी उपलब्धता वर्ष के दौरान एक जैसे स्थानों पर एक समान भी नहीं होती। जबकि विश्व के एक हिस्से में पानी का अभाव है तथा वह सूखाग्रस्त है तो विश्व के दूसरे हिस्से में अधिक जल होने के कारण उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम प्रबन्ध करने में चुनौतीपूर्ण कार्यों का सामना करते हैं। नि:सन्देह नदियां प्रकृति का एक महान वरदान है तथा विभिन्न सभ्यताओं के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। फिर भी कई अवसरों पर नदियां, बाढ़ के समय लोगों के जीवन एवं सम्पत्ति के साथ विनाशकारी खेल खेलती हैं। अत: नदियों के जल का कुशल प्रबन्ध करना एक महत्वपूर्ण विचाराधीन मुद्दा हैं। नदी जल संसाधनों के कुशल प्रबन्धन के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न नदी किनारों (बेसिनों), जो गहन सर्वेक्षण करने के उपरान्त तकनीकी रूप से सम्भावन तथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य पाई गई हैं के लिए विशिष्ट योजनाएं बनाई जानी चाहिए। सभ्यता का विकास होने के बाद से मानव बरसाती अवधि के दौरान नदी के उपलब्ध अतिरिक्त जल को स्टोर करने तथा शुष्क अवधि के दौरान उसी जल का उपयोग करने के लिए बांधों तथा जलाशयों का निर्माण करता रहा हैं। बांध और जलाशय, त्वरित सामाजिक – आर्थिक विकास के लिए नदी जलों का सदुपयोग करना तथा सूखा एवं बाढ़ से प्रभावित विश्व की वृहत जनसंख्या के कष्टों को कम करने के लिए दोहरी भूमिका निभा रहे हैं। बांध और जलाशय निम्नलिखित मानवीय मूलभूल आवश्यकताओं की पूर्ति करने में उल्लेखनीय योगदान देते हैं : Show
पेयजल और औद्योगिक उपयोग हेतु जल:-
सिंचाई:-
बाढ़ नियन्त्रण::-
जल विद्युत उत्पादन::-
अन्तर्देशीय विमान-संचालन (इनलैंड नेवीगेशन):-व्यापक बेसिन योजना एवं विकास, उपयोगी बांधों, लॉक्स तथा जलाशयों के परिणामस्वरूप अन्तर्देशीय विमान संचालन में वृद्वि हुई, जो राष्ट्रीय महत्व के वृहत आर्थिक लाभों को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मनोरंजन:-
बांध मानवता के लिए योमेन सहायता उपलब्ध करवाते हैं। बांधों के निर्माण के निम्नलिखित पहलुओं पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना अपेक्षित हैं:-
यदि प्रबन्धन की अप्रोच यर्थाथ, गतिशील प्रगतिशील तथा अनुकूल है तो बांधों के निर्माण से संबंधित उपरोक्त समस्याओं का समाधान सफलतापूर्वक किया जाए, यही समय की मांग है। उत्पादन के लिए आवश्यक चार आवश्यकताएं क्या हैं?उत्पादन के लिए चार मूल आवश्यकताएँ होती हैं। 1- भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन जैसे जल, वन, खनिज। 2- श्रम। 3- भौतिक पूँजी अर्थात उत्पादन के प्रत्एक स्तर पर आई लागत।
उत्पादन के चार साधन कौन से हैं?उत्पादन, उत्पादन के चार साधनों, भूमि, श्रम, पूंजी और उद्यमशीलता के संयुक्त प्रयासों का प्रतिफल है। इन्हें आगत अथवा संसाधन भी कहा जाता है।
उत्पादन के तीन चरण क्या है?उत्पादन के मूलभूत कारक ये तीन हैं- भूमि, श्रम और पूँजी।
उत्पादन के तीन प्रमुख साधन कौन से हैं?इस तरह भूमि, श्रम, पूजी, प्रबन्ध एवं साहस उत्पादन के पाँच साधन होते हैं। (1) भूमि- अर्थशास्त्र में भूमि शब्द का बड़ा व्यापक अर्थ होता है।
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