वन्य जीवन और विकास
संदर्भहाल ही में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife-NBWL) ने उत्तराखंड राज्य में स्थित राजा जी नेशनल पार्क और ज़िम कॉर्बेट नेशनल पार्क को जोड़ने वाली लालडांग-चिल्लरखाल (laldhang-chillarkhal) सड़क के निर्माण की मंज़ूरी दे दी है। ध्यातव्य है कि जून 2019 में उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की जाँच के लिये गठित सेंट्रल इंपावर्ड कमिटी (Central Empowered Committee -CEC) की अर्जी के बाद इस सड़क के निर्माण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इस परियोजना पर पुनः कार्य शुरू करने से पहले परियोजना के लिये राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA) और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड से अनुमति लेने के निर्देश दिये थे। Show
प्रकृति और विकास:अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) के आँकड़ों के अनुसार, पृथ्वी पर पाए जाने वाले कुल जीव-जंतुओं में से लगभग 7-8% भारत में पाए जाते हैं। साथ ही भारत की जनसंख्या विश्व की कुल मानव आबादी का लगभग 17% है, जबकि भारत का क्षेत्रफल पृथ्वी के कुल भू-भाग का मात्र 2.4% ही है। ऐसे में देश के विकास के लिये योजनाओं के कार्यान्वयन के दौरान प्रकृति और मनुष्य के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न होना स्वाभाविक है। ऐसी परिस्थितियों से बचने और विकास कार्यों के दौरान के प्रकृति संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिये भारतीय संविधान में कई तरह के कानून बनाए गए हैं। साथ ही इस क्षेत्र में कार्य करने के लिये अनेक संवैधानिक, वैधानिक एवं स्वतंत्र निकायों की स्थापना भी की गई है। लालडांग-चिल्लरखाल सड़क:
पारिस्थितिक रूप से संवेदी क्षेत्रों में विकास कार्यों की शुरुआत हेतु आवश्यक प्रक्रिया -पारिस्थितिक रूप से संवेदी क्षेत्रों (Eco Sensitive Zone-ECZ) में किसी परियोजना को प्रारंभ करने के लिये भारत सरकार द्वारा एक प्रक्रिया निर्धारित की गई है। इसके अनुसार-
इसके साथ ही पर्यावरण और जैव-पारिस्थितिकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा कई अधिनियम बनाए गए हैं। इसके अंतर्गत सड़क, फैक्ट्री, बाँध या सार्वजनिक अथवा निजी क्षेत्र की किसी अन्य परियोजना के लिये सरकार अथवा संबंधित निकाय की अनुमति लेना आवश्यक है। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
यदि कोई भी परियोजना उपरोक्त नियमों की अनिवार्यताओं को पूरा करती है तो परियोजना के कार्यान्वयन के लिये आसानी से अनुमति प्राप्त हो जाती है। भारत में वन्यजीवों के संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत प्रमुख संस्थान:राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife-NBWL):
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण(National Tiger Conservation Authority-NTCA):
भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII):
चुनौतियाँ:अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आँकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में भारत दुनिया के सबसे तेज़ी से विकास कर रहे देशों में शामिल रहा है। वैश्विक बाज़ार में भारत की इस बढ़त ने देश के सुदूर हिस्सों में भी विकास कार्यों में तेज़ी प्रदान की है। परंतु कई बार विकास-कार्यों के दौरान प्रकृति के क्षरण को रोकने के लिये आवश्यक मापदंडों का पालन नहीं किया जाता, जो कि पर्यावरण के संरक्षण में एक बड़ी चुनौती है। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र की कुछ चुनौतियाँ और कारक निम्नलिखित हैं-
समाधान:विकास कार्यों में आर्थिक हितों के साथ-साथ पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने के लिये और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। पर्यावरण क्षेत्र के संस्थानों के सशक्तीकरण और परियोजनाओं के क्रियान्वन के दौरान वन्यजीवों के हितों को ध्यान में रखकर विकास और प्रकृति के संतुलन को बनाया रखा जा सकता है।
निष्कर्ष: बदलते वैश्विक परिवेश में किसी भी देश के विकास के लिये देश की आधारिक संरचना का मजबूत होना अति आवश्यक है, जिससे देश के दूरस्थ क्षेत्रों में रह रहे नागरिकों को भी मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ विकास के नए अवसर प्रदान किये जा सकें। परंतु विकास की इस प्रतिस्पर्द्धा में वन्यजीवों और पर्यावरण के हितों को भी ध्यान में रखना महत्त्वपूर्ण है। अतः सरकारों को विकास कार्यों के दौरान संविधान में सुझाए गए (पर्यावरण के प्रति) अपने कर्त्तव्यों (जैसे-अनुच्छेद-48a) को ध्यान में रखते हुए विकास और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने हेतु आवश्यक कदम उठाने चाहिये। अभ्यास प्रश्न: वन्यजीव संरक्षण और विकास परस्पर विरोधी अवधारणाएँ हैं। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? तर्क सहित समीक्षा कीजिये। |