वर्तमान में विश्व में औसत जीवन प्रत्याशा घट रही है या बढ़ रही है - vartamaan mein vishv mein ausat jeevan pratyaasha ghat rahee hai ya badh rahee hai

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 1970-75 के दौरान भारत में जीवन प्रत्याशा जहां करीब 51 वर्ष थी वह 2015-19 में बढ़कर 69 वर्ष तक पहुंच गई। छह दशकों में बाल मृत्यु दर भी 81 फीसद कम हो गई है।

नई दिल्ली। अनुराग मिश्र/संदीप राजवाड़े। 75 साल पीछे मुड़कर देखें तो हम पाते हैं कि हमने कई बीमारियों पर विजय हासिल की है और कई के खिलाफ लड़ाई को मजबूत किया है। इसी का परिणाम है कि भारत में जीवन प्रत्याशा में काफी बढ़ोतरी हुई है, यानी उम्र लंबी हुई है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 1970-75 के दौरान भारत में जीवन प्रत्याशा जहां करीब 51 वर्ष थी, वह 2015-19 में बढ़कर 69 वर्ष तक पहुंच गई। छह दशकों में बाल मृत्यु दर भी 81 फीसद कम हो गई है। प्लेग, चेचक, पोलियो, टाइफाइड जैसी बीमारियों पर भी हमने जीत हासिल की है। कोरोना के दौर में हम उन चंद मुल्कों में थे जिन्होंने वैक्सीन का निर्माण किया। यानी अतीत उपलब्धियों की अशर्फियों से भरा रहा है।

छह दशकों में घट गई बाल मृत्यु दर, कम हुई 81 फीसदी

किसी भी देश का भविष्य उसकी युवा आबादी और नौनिहाल बचपन होता है। आजादी के बाद लंबे अर्से तक भारत इस समस्या से जूझता रहा कि बच्चा पैदा होने पर गूंजी किलकारी मातम में बदल जा रही थी। पर बीते कुछ सालों में इसमें काफी कमी आई है। विश्व बैंक के अनुसार अस्पतालों में प्रसव में वृद्धि, नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए सुविधाओं का विकास और टीकाकरण बेहतर होने से शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में कमी आई है।

रिपोर्ट के अनुसार 1960 में प्रति हजार बच्चों में 161 बच्चों की मौत हो जाती थी जबकि 2018 में यह आंकड़ा घटकर 30 रह गया। भारत ने 2012 से दक्षिण एशियाई देशों के बीच आईएमआर की सबसे बड़ी कमी (27 फीसदी) के साथ सबसे बड़ा सुधार दिखाया है। पांच साल की अवधि में भारत की आईएमआर में 27 फीसदी गिरावट हुई है। 2012 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 44 मौतों से 2017 में यह 32 पर आ गया। इसके बाद 26 फीसदी कमी के साथ अफगानिस्तान, 18 फीसदी के साथ बांग्लादेश, 17 फीसदी के साथ नेपाल और 11 फीसदी के साथ पाकिस्तान का स्थान है। श्रीलंका का आईएमआर 2012 के 8 फीसद की दर से अब तक नहीं बदला है। विश्व बैंक का कहना है कि बच्चों में दस्त और निमोनिया का उपचार, खसरा और टेटनस टीकाकरण और अस्पतालों में ज्यादा बच्चों के जम्न लेने से बाल मृत्यु की संख्या में कमी आई है।

क्रूड डेथ रेट में आई कमी

एम्स रायपुर के निदेशक प्रो. डा. नितिन एम. नागरकर कहते हैं कि आजादी के बाद से भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली। पूर्व में जहां महामारी के समय देश की स्थिति बेहाल हो जाती थी वहीं आजादी के बाद अब न सिर्फ हम किसी भी प्रकार की महामारी से मुकाबला कर पा रहे हैं बल्कि दुनिया को भी मदद दे रहे हैं। कोविड-19 में हमने इसी तथ्य को साबित किया। आजादी के समय दिल्ली एम्स पर स्वास्थ्य सेवाओं का सर्वाधिक बोझ था अब दस से अधिक नए एम्स मिलकर इस संघर्ष में साथ दे रहे हैं। देश अब दवाओं पर शोध और अनुसंधान के मामलों में दुनिया के विकसित देशों के साथ मुकाबला कर रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्तापूर्ण सुधार इसी तथ्य से साबित होता है कि भारत में वर्ष 1951 में क्रूड डेथ रेट (प्रति 1000 जनसंख्या पर) 25.1 था जो वर्ष 2018 में 6.2 रह गया। डिजीटल हेल्थ, प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, आयुष्मान योजना, राष्ट्रीय आरोग्य निधि, कुष्ठ रोग निवारण कार्यक्रम, टीबी उन्मूलन, पोलियो वेक्सीनेशन, कोविड वेक्सीनेशन आदि अनेक उदाहरण हैं जो भारत की आजादी के बाद अभूतपूर्व प्रगति को प्रदर्शित करते हैं। अब हम किसी अन्य देश पर मदद के लिए निर्भर नहीं रह गए हैं बल्कि दूसरों की मदद को तैयार हैं।

प्राइमरी हेल्थ सेंटर की संख्या 725 से बढ़कर तीस हजार पहुंची

ICMR के वरिष्ठ वैज्ञानिक और एम्स के सेंटर फॉर मेडिकल इनोवेशन एंड आंत्रप्रेन्योरशिप के चीफ कोऑर्डिनेटर प्रोफेसर अमित के मुताबिक आजादी के समय देश में प्राइमरी हेल्थ सेंटर की संख्या 725 थी। अब इनकी संख्या 30 हजार के ऊपर पहुंच चुकी है। केंद्र सरकार ने जो आयुष्मान भारत योजना और जन आरोग्य योजना शुरू की इससे देश के लोगों को बड़ा फायदा हुआ। सरकार ने नई दवाओं और हेल्थ टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर होने के लिए बायो फार्मा मिशन की शुरुआत की है। जल्द ही देश स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर होगा। वो दिन दूर नहीं जब भारत पूरी दुनिया में अपनी स्वास्थ्य सेवाओं और तकनीक के लिए जाना जाएगा। शारदा अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा. ए के गडपायले कहते हैं कि आजादी के बाद से भारत की हेल्थ केयर सेक्टर में कई उपलब्धियां रही है। भारत पोलियो मुक्त हुआ है। टीबी के इलाज और इससे मुक्त होने की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं। बाल मृत्यु दर में कमी आई है। कैंसर की पहचान और इसके ईलाज के तरीकों में कई अहम प्रयास किए गए हैं। इंफ्रास्ट्रक्टचर, मेडिसिन, डिवाइस आदि के मामले में देश ने काफी तरक्की की है।

वर्तमान में विश्व में औसत जीवन प्रत्याशा घट रही है या बढ़ रही है - vartamaan mein vishv mein ausat jeevan pratyaasha ghat rahee hai ya badh rahee hai

छह दशक में 18 साल बढ़ गई जीने की उम्र

भारत में पिछले कई दशकों के दौरान जीवन प्रत्याशा में काफी बढ़ोतरी हुई है। 1970-75 के दौरान भारत में जीवन प्रत्याशा जहां करीब 51 वर्ष थी, वहीं 2015-19 में यह बढ़कर 69 वर्ष तक पहुंच गई। औसत जीवन प्रत्याशा दर में वृद्धि सरकार द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार निवेश का परिणाम है।

विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि शुरुआती दशक (1960-70) में जीवन प्रत्याशा दर 41 से बढ़कर 50 हुई थी, जिसमें उत्तरोतर बढ़त जारी है। 1980 से 1990 में जीवन प्रत्याशा 4 साल बढ़ी। 1980 में जहां यह 54 साल थी, वह 1990 में बढ़कर 58 साल हो गई। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, जीवन प्रत्याशा दर का मतलब है कि कोई भी नौनिहाल तत्कालीन पैटर्न के अनुसार कितने साल तक जीता है।

मेडिकल जर्नल लैंसेंट में कुछ समय पहले प्रकाशित अध्ययन के सह लेखक और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डॉ. जीमोन पेन्नीयाम्मकल द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सभी आयु वर्ग में हृदय रोग, फेफड़े संबंधी रोग और लकवा आदि से 30 फीसद लोगों की मौत हुई है। डॉक्टर जीमोन ने अपने लेख में लिखा था कि बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण दिमागी संक्रमण (एंसेफेलोपैथी) रहा। इसकी वजह से पांच साल तक के 2.12 लाख बच्चों की जान गई। कुछ समय पहले आई नेशनल हेल्थ प्रोफाइल की रिपोर्ट की मानें तो भारतीयों की संभावित आयु में बढ़ोतरी तो हुई है, लेकिन डेंगू, चिकनगुनिया और वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आए हैं। सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेलिजेंस रिपोर्ट की मानें तो प्रदूषण को लेकर देश में हालात चिंताजनक बने हुए हैं। दिल्ली और हरियाणा और उससे सटे प्रदेशों की हालत खराब है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड में सांस की बीमारी से हुई मौतों की संख्या में तेजी से वृद्धि आई है। दिल्ली में वर्ष 2016 से 2018 के बीच इस संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, कुल मौतों में 68.47 फीसदी हिस्सा एयर पॉल्यूशन से होने वाली मौतों का है।

दवा-टीका के मामले में आत्मनिर्भर देश

एम्स, भोपाल के डायरेक्टर डॉ अजय सिंह कहते हैं कि हेल्थ पैरामीटर की बात करें तो मातृ मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर के साथ कुपोषण पर 75 सालों के दौरान बहुत काम हुआ है, इसमें काफी कमी आई है। शहरों तक सीमित स्वास्थ्य केंद्र व सुविधाओं का विस्तार हुआ है। अब गांव वालों को इलाज के लिए शहर की दौड़ नहीं लगानी पड़ती है। हेल्थ एक हद तक अंतिम छोर तक पहुंचा है। शासन की तरफ से गर्भवती महिलाओं की जांच, अस्पताल में डिलीवरी, परिवार नियोजन, बच्चों का टीकाकरण जैसी कई स्कीम से बहुत बड़ा सुधार आया है। मेडिकल एजुकेशन का प्रचार हुआ है। आज एमबीबीएस ही नहीं बल्कि विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या देश में लगातार बढ़ रही है। देश के अलग-अलग राज्यों में एम्स खुलने के साथ मेडिकल कॉलेजों की संख्या काफी बढ़ी है। हम दुनिया में दवा और टीका के मामले में आत्मनिर्भर हो गए हैं। चिकन पॉक्स-पोलियो जैसी बीमारी पर हमने फतेह हासिल कर लिया है। आज हेल्थ सर्विस देश और हर राज्य की मुख्य धारा की योजना है। इतना ही नहीं, टेलिमेडिसिन के जरिए बड़ी-बड़ी सर्जरी विदेश में बैठे विशेषज्ञ डॉक्टरों की मदद से की जा रही है। आज भारत दुनिया के लिए सबसे किफायती मेडिकल टूरिज्म हब बन गया।

भारत में 156 देशों से चार साल में 18 लाख विदेशी मरीज आए इलाज कराने, सस्ता और अच्छा इलाज

भारत में बड़ी बीमारियों के किफायती और बेहतर इलाज की सुविधा के कारण पिछले दशकों में विदेश से इलाज कराने वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है। आज भारत मेडिकल टूरिज्म में दुनिया में टॉप 10 में पहुंच गया है। राज्यसभा में 04 अगस्त को सरकार की तरफ से दी गई जानकारी में बताया गया कि पिछले चार सालों के दौरान (2018 से 2021 तक) 18,24,722 विदेशी मरीज भारत इलाज कराने आए। भारत के हेल्थ सर्विस की दुनियाभर में बढ़ती विश्वसनीयता और बहुत कम लागत में बड़ी बीमारियों के इलाज की सुविधा होने से हर साल मेडिकल टूरिज्म में आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। कोरोना के पहले 2018 में 6,40,798 और 2019 में 6,97,453 विदेशी मरीज मेडिकल टूरिज्म के लिए आए। कोरोना के दौरान भी 2020 में 1,82,945 और 2021 में 3,03,526 विदेशी मरीज इलाज के लिए भारत आए। भारत सरकार की तरफ से मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए 156 देशों के नागरिकों को ई-हेल्थ वीजा प्रदान करने की सुविधा दी जा रही है।

बांग्लादेश, इराक, मालदीव के सबसे ज्यादा मरीज, चीन और फ्रांस से भी पहुंचने लगे भारत

राज्यसभा में दिए गए आंकड़ों के अनुसार 50 देशों से मरीज ज्यादा नियमित रूप से आ रहे हैं। बांग्लादेश, इराक, मालदीव, अफगानिस्तान, ओमान, सूडान, केन्या, नाइजीरिया, तंजानिया से बड़ी संख्या में मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा बड़े व संपन्न देश इंग्लैंड, कनाडा, यूएई, टर्की, आस्ट्रेलिया, मलेशिया, मॉरीशस, फ्रांस, मिस्र, न्यूजीलैंड, चीन, नीदरलैंड, इटली, नार्वे, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, जापान, डेनमार्क जैसे देशों से भी अब बड़ी संख्या में मरीज भारत इलाज के लिए आ रहे हैं।

मेडिकल टूरिज्म इंडेक्स में भारत टॉप 10 में, मेजर सर्जरी यहां सबसे सस्ती

इंडियन ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (आईबीईएफ) की मेडिकल टूरिज्म- ए न्यू ग्रोथ फैक्टर फॉर इंडियॉज हेल्थकेयर सेक्टर रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनियाभर की मेडिकल टूरिज्म इंडेक्स में भारत 10वें नंबर पर आ गया है। 46 देशों की मेडिकल टूरिज्म एसोसिएशन में भारत लगातार बेहतर पोजीशन में आता जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक बड़े देशों में होने वाली मेजर सर्जरी की तुलना में भारत में खर्च सिर्फ 20 फीसदी होता है। भारत का मेडिकल टूरिज्म मार्केट 2020 में 2.89 बिलियन डॉलर था, जिसके 2026 तक चार गुना से ज्यादा 13.42 बिलियन डॉलर होने की संभावना है।

आठ साल में भारत से दवा निर्यात 103% बढ़ा

भारत की दवाओं की डिमांड दुनियाभर में है। एक मई 2022 को वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की तरफ से जारी रिपोर्ट में कहा गया कि भारत का दवा निर्यात 8 साल में 103% बढ़ गया है। भारत ने 2013-14 में 90,415 करोड़ रुपए का दवा निर्यात किया। 2021-22 में यह आंकड़ा 1,83,422 करोड़ तक पहुंच गया है। भारत दुनिया में 60 फीसदी टीके और 20 फीसदी जेनेरिक दवाओं का सप्लाई करता है। कम कीमत और अच्छी गुणवत्ता के कारण भारतीय दवाओं की डिमांड दुनियाभर के देशों से लगातार बढ़ रही है। भारत में दवा निर्माण उद्योग का बाजार वर्तमान में करीबन 50 बिलियन डॉलर हो गया है। दवा के फॉर्मूलेशन व बायोलॉजिकल्स निर्यात में हमारी 73.71 फीसदी हिस्सेदारी है। भारत से दवाओं का निर्यात मुख्य रूप से अमेरिका, ब्रिटेन, साउथ अफ्रीका, रूस और नाइजीरिया को होता है। कोरोना से जान बचाने के लिए भारत ने 97 से ज्यादा देशों को वैक्सीन की 11.5 करोड़ डोज उपलब्ध कराई।

India@2025 : 10 अरब डॉलर का होगा चिकित्सा उपकरणों का निर्यात

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय चिकित्सा उपकरणों का बाजार 11 बिलियन डॉलर का है, जिसके 2025 तक बढ़कर 50 बिलियन डॉलर का हो जाने की उम्मीद है। इसके अलावा भारत का चिकित्सा उपकरणों का निर्यात 2025 तक 10 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है। देश में जन औषधि स्टोर में लगभग 204 प्रकार के सर्जिकल उपकरण मिलते हैं, सरकार का लक्ष्य मार्च 2024 तक इसे बढ़ा कर 300 करना है। जन औषधि केंद्रों पर ज्यादा संख्या में सर्जिकल उत्पाद और दवाएं मिलने से आम लोगों के लिए उचित दाम पर दवा और सर्जिकल उपकरण खरीदना आसान होगा।

चुनौती और समाधान

महिलाओं का कम लिंगानुपात और जीवन प्रत्याशा

लिंगभेद की शुरुआत जन्म के पहले से हो जाती है जिसके चलते लिंगानुपात कम होता है। पितृसत्ता और परंपराओं के कारण बेटियों की भ्रूण हत्या होती है। हालांकि अब इसमें कमी आई है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 1000 पुरुषों पर 943 महिलाएं हैं। शहरों में प्रति 1000 पुरुषों पर 949 और गांवों में 929 महिलाएं हैं। 2001 में स्थिति और बदतर थी, तब 1000 पुरुषों पर 933 महिलाएं थीं। वर्ल्ड हेल्थ स्टैटिक्स 2021 के मुताबिक महिलाएं भारत में पुरुषों की तुलना में औसतन तीन साल ज्यादा जीवित रहती हैं। पर यह महिलाओं के सेहतमंद जीवन को नहीं दर्शाता है क्योंकि वैश्विक स्तर पर देखें तो महिलाएं पुरुषों की तुलना में करीब 5 साल ज्यादा जीवित रहती हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट हेल्थ केयर इन इंडिया विजन 2020 के मुताबिक खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते महिलाओं की उम्र 17.5 साल तक कम हो जाती है। स्पष्ट रूप से, इससे निपटने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण आवश्यक है।

भारत में बढ़े हार्ट फेल के मामले

यूरोपियन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित शोध के अनुसार हार्ट फेल के मामले 70 से 74 साल के पुरुषों में अधिक हैं। वहीं 75-79 साल की महिलाओं में हार्ट फेल के मामले ज्यादा हैं। प्रमुख बात यह है कि 70 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में पुरुषों की तुलना में हार्ट फेल के मामले अधिक हैं। रिपोर्ट में एक और बात यह है कि हार्ट फेल के मामले 1990-2017 के दौरान चीन और भारत में सबसे अधिक बढ़े हैं। चीन में इसमें 29.9 फीसद और भारत में 16 फीसद बढ़ी है। यानी सीधे तौर पर कहें तो यह एशिया में तेजी से बढ़ रहा है।

डायबिटीज के मरीज भी बढ़ रहे

इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार 20 से 79 साल की उम्र के 46.3 करोड़ लोग डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं। यह इस आयु वर्ग में दुनिया की 9.3 फीसद आबादी है। रिपोर्ट कहती है कि चीन, भारत और अमेरिका में सबसे अधिक डायबिटीज के वयस्क मरीज हैं।

लखनऊ के रीजेंसी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के डॉ यश जावेरी कहते हैं कि शरीर में इंसुलिन की कमी से डायबिटीज होता है। यह आनुवंशिक, उम्र बढ़ने पर और मोटापे के कारण होता है। भारत डायबिटीज कीराजधानी है। कोरोना के बाद भारत समेत पूरी दुनिया में डायबिटीज बढ़ा है। डायबिटीज में परहेज रखना पड़ता है। परहेज न रखने के परिणाम बुरे होते हैं। डायबिटीज का समय से इलाज जरूरी है। इसलिए हेल्थ चेकअप बेहद जरूरी है। समय-समय पर जांच जरूरी है। एक बार जब आपको डायबिटीज हो जाए तो आपको उसके दुष्परिणामों की जानकारी जरूरी है। जानकारी के साथ ही सतर्क भी रहना है कि कोई कॉम्प्लिकेशन तो नहीं हो रहा है। ऐसा होते ही डॉक्टर से संपर्क करें।

इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन की रिपोर्ट कहती है कि 2019 तक भारत में डायबिटीज के करीब 7.7 करोड़ मरीज थे। इनकी संख्या 2030 तक 10.1 करोड़ हो सकती है तो 2045 तक यह आंकड़ा 13.42 करोड़ को छू सकता है। 20-79 आयु वर्ग को होने वाली डायबिटीज के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है।

ये भी है बड़ी चुनौतियां और समाधान

गांव और शहर के बीच के हेल्थ सर्विस का अंतर अब भी काफी है, इसे कम करना होगा। आज भी नए डॉक्टर गांव में सेवा देने से बचना चाहते हैं, इसके लिए हमें वहां हेल्थ सर्विस की सुविधाओं के साथ उन्हें मूलभूत सुविधाएं देनी होंगी। एम्स, भोपाल के डायरेक्टर डॉ अजय सिंह कहते हैं, गांव में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने के लिए सबसे पहले एलोपैथी और आयुष चिकित्सा शिक्षा को साथ लाना होगा।

दूसरी सबसे बड़ी चुनौती भाषा की है। स्थानीय भाषा में चिकित्सा शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। इससे गांव में रहने वालों की बीमारी व इलाज को बेहतर करने व समझने में आसानी होगी। इसके अलावा मेडिकल कोर्स में विदेश में होने वाली बीमारियों से ज्यादा अपने देश की बीमारियों पर शोध-पढ़ाई पर फोकस किया जाना चाहिए। युवा डॉक्टरों को सॉफ्ट स्किल के बारे में बताया जाना चाहिए। उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि मरीजों से उनका व्यवहार ही बीमारी को पकड़ने व सुलझाने का सबसे बड़ा समाधान है। पहले किसी भी सरकार के लिए स्वास्थ्य सेवा प्राथमिकता नहीं थी लेकिन अब माहौल बदला है।

एम्स रायपुर के निदेशक डा. नितिन एम नागरकर कहते हैं कि दिल्ली एम्स में लगभग सभी गंभीर बीमारियों का अत्याधुनिक इलाज संभव है। समान सुविधाएं इसके बाद स्थापित एम्स में भी प्रदान करने की योजना है। जिस प्रकार देश की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है उसके अनुपात में स्वास्थ्य सेवाओं में भी प्रगति आवश्यक है। इसके लिए राज्यों की स्वास्थ्य सेवाओं को भी मजबूत किया जा सकता है। आने वाले समय में रसायनों और उर्वरकों के प्रयोग से कैंसर जैसी बीमारी के रोगी और अधिक आ सकते हैं। डायबिटीज भी महामारी के रूप में सामने आ रही है। इसके लिए हमें स्वयं को तैयार करना होगा। अब नई तकनीक जैसे रोबोटिक्स का भी मेडिकल साइंस में काफी प्रयोग हो रहा है। हमें भी इस दिशा में कार्य करना होगा। इसके साथ ही विभिन्न बीमारियों की पहचान और रोकथाम के लिए बीएसएल थ्री स्तर की लैबों की देशभर में स्थापना करने की जरूरत होगी।

शारदा अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा. ए के गडपायले का कहना है कि हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज होना चाहिए। 19 एम्स खुल चुके हैं, पांच खुलने वाले है। नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टॉफ को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। हेल्थ की जानकारी को यूनिवर्सल किए जाने की जरूरत है।

ईजमाई ट्रिप के सीटीओ नेमिष सिन्हा कहते हैं कि हेल्थ सेक्टर अगले स्तर तक पहुंच चुका है। लोगों के जीने की औसत उम्र बढ़ चुकी है। तकनीक ने हेल्थ सेक्टर में कई बदलाव लाए हैं। टेलीमेडिसिन, रोबोटिक्स ने हेल्थ सेक्टर की दुनिया को ही बदल कर रख दिया है। रोबोटिक्स हर उम्र के लोगों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगी। जीनोम सीक्वेंसिंग भी किसी रोग का पूर्ण तौर पर निदान करने में कारगर है। यही नहीं फिटनेस ट्रेकर, डायबिटीज की रियल टाइम टेस्टिंग, कार्डियोवास्कुर रोगों में तकनीक एक बेहतर रोल अदा कर रही है। वर्चुअल रियलिटी आने वाले समय में सर्जिकल ऑपरेशन में एक बेहतर टूल साबित होगी। ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेसिंग भी हेल्थ सेक्टर में एक नई सुविधा के तौर पर आ चुका है।

Edited By: Anurag Mishra

वर्तमान में विश्व में औसत जीवन प्रत्याशा क्या हो रही है?

यह देखना राहत की बात है कि 2015 से 2019 की अवधि में देश में जीवन प्रत्याशा (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) बढ़कर 69.7 वर्ष हो गई है। हालांकि अभी भी यह वैश्विक औसत (72.6 वर्ष) से कम है।

भारत की जीवन प्रत्याशा क्या है 2022?

पुरुषों के जीवन की प्रत्याशा जहां सिर्फ 69.5 फीसद है, वहीं महिलाओं की यह प्रत्याशा 72.2 है। इस प्रकार भारत की कुल जीवन प्रत्याशा 70.8 फीसद दर्ज की गई है।

विश्व में सर्वाधिक जीवन प्रत्याशा वाला देश कौन सा है?

कहां सबसे ज्यादा जीते हैं लोग.
जापान (83.7 वर्ष) तस्वीर: picture-alliance/dpa/Kyodo..
स्विट्जरलैंड (83.4 वर्ष) तस्वीर: Reuters/D. ... .
सिंगापुर (83.1 वर्ष) तस्वीर: picture-alliance/Sergi Reboredo..
स्पेन (82.8 वर्ष) ... .
ऑस्ट्रेलिया (82.8 वर्ष) ... .
इटली (83.7 वर्ष) ... .
आइसलैंड (82.7 वर्ष) ... .
इस्राएल (82.5 वर्ष).

औसत जीवन प्रत्याशा में कितनी वृद्धि हुई है?

जीवन प्रत्याशा एक दी गयी उम्र के बाद जीवन में शेष बचे वर्षों की औसत संख्या है। यह एक व्यक्ति के औसत जीवनकाल का अनुमान है। जीवन प्रत्याशा इसकी गणना के इस मानदंड कि किस समूह का चयन किया जाता है पर बहुत अधिक निर्भर करती है।