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विश्व हिन्दी सम्मेलन हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें विश्व भर से हिन्दी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी प्रेमी जुटते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के प्रति जागरुकता पैदा करने, समय-समय पर हिन्दी की विकास यात्रा का आकलन करने, लेखक व पाठक दोनों के स्तर पर हिन्दी साहित्य के प्रति सरोकारों को और दृढ़ करने, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने तथा हिन्दी के प्रति प्रवासी भारतीयों के भावुकतापूर्ण व महत्त्वपूर्ण रिश्तों को और अधिक गहराई व मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से १९७५ में विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शृंखला आरम्भ की गयी। इस बारे में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गान्धी ने पहल की थी। पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से नागपुर में सम्पन्न हुआ जिसमें प्रसिद्ध समाजसेवी एवं स्वतन्त्रता सेनानी विनोबा भावे ने अपना विशेष सन्देश भेजा। प्रारम्भ में इसका आयोजन हर चौथे वर्ष आयोजित किया जाता था लेकिन अब यह अन्तराल घटाकर ३ वर्ष कर दिया गया है। अब तक 11 विश्व हिन्दी सम्मेलन हो चुके हैं- मारीशस, नई दिल्ली, पुन: मारीशस, त्रिनिडाड व टोबेगो, लन्दन, सूरीनाम न्यूयार्क और जोहांसबर्ग में। दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन २०१५ में भोपाल में आयोजित हुआ। २०१८ में इसका आयोजन मॉरीशस में हुआ है।12 विश्व हिंदी सम्मेलन फरवरी 2023 में फिजी में प्रस्तावित है। इसकी जानकारी विदेश मंत्रालय के माध्यम से जयशंकर प्रसाद ने 28 अक्टूबर 2022 को साझा की। इतिहास[संपादित करें]विश्व हिन्दी सम्मेलन शृंखलाएँ
पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन १० जनवरी से १४ जनवरी १९७५ तक नागपुर में आयोजित किया गया। सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में हुआ। सम्मेलन से सम्बन्धित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष महामहिम उपराष्ट्रपति श्री बी डी जत्ती थे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अध्यक्ष श्री मधुकर राव चौधरी उस समय महाराष्ट्र के वित्त, नियोजन व अल्पबचत मन्त्री थे। पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन का बोधवाक्य था - वसुधैव कुटुम्बकम। सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे मॉरीशस के प्रधानमन्त्री श्री शिवसागर रामगुलाम, जिनकी अध्यक्षता में मॉरीशस से आये एक प्रतिनिधिमण्डल ने भी सम्मेलन में भाग लिया था। इस सम्मेलन में ३० देशों के कुल १२२ प्रतिनिधियों ने भाग लिया।[1] सम्मेलन में पारित किये गये मन्तव्य थे- दूसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन मॉरीशस की धरती पर हुआ। मॉरीसस की राजधानी पोर्ट लुई में २८ अगस्त से ३० अगस्त १९७६ तक चले विश्व इस सम्मेलन के आयोजक राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष, मॉरीशस के प्रधानमन्त्री डॉ॰ सर शिवसागर रामगुलाम थे। सम्मेलन में भारत से तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार नियोजन मन्त्री डॉ॰ कर्ण सिंह के नेतृत्व में २३ सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ने भाग लिया। भारत के अतिरिक्त सम्मेलन में १७ देशों के १८१ प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया।[2] तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में २८ अक्टूबर से ३० अक्टूबर १९८३ तक किया गया। सम्मेलन के लिये बनी राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ॰ बलराम जाखड़ थे। इसमें मॉरीशस से आये प्रतिनिधिमण्डल ने भी हिस्सा लिया जिसके नेता थे श्री हरीश बुधू। सम्मेलन के आयोजन में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा ने प्रमुख भूमिका निभायी। सम्मेलन में कुल ६,५६६ प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिनमें विदेशों से आये २६० प्रतिनिधि भी शामिल थे।[3] हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री सुश्री महादेवी वर्मा समापन समारोह की मुख्य अतिथि थीं। इस अवसर पर उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा था - "भारत के सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के कामकाज की स्थिति उस रथ जैसी है जिसमें घोड़े आगे की बजाय पीछे जोत दिये गये हों।" चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन २ दिसम्बर से ४ दिसम्बर १९९३ तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया। १७ साल बाद मॉरीशस में एक बार फिर विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा था। इस बार के आयोजन का उत्तरदायित्व मॉरीशस के कला, संस्कृति, अवकाश एवं सुधार संस्थान मन्त्री श्री मुक्तेश्वर चुनी ने सम्हाला था। उन्हें राष्ट्रीय आयोजन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसमें भारत से गये प्रतिनिधिमण्डल के नेता थे श्री मधुकर राव चौधरी। भारत के तत्कालीन गृह राज्यमन्त्री श्री रामलाल राही प्रतिनिधिम्ण्डल के उपनेता थे। सम्मेलन में मॉरीशस के अतिरिक्त लगभग २०० विदेशी प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।[4] पाँचवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में। तिथियाँ थीं - ४ अप्रैल से ८ अप्रैल १९९६ और आयोजक संस्था थी त्रिनीदाद की हिन्दी निधि। सम्मेलन के प्रमुख संयोजक थे हिन्दी निधि के अध्यक्ष श्री चंका सीताराम। भारत की ओर से इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधिमण्डल के नेता अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री माता प्रसाद थे। सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था- प्रवासी भारतीय और हिन्दी। जिन अन्य विषयों पर इसमें ध्यान केन्द्रित किया गया, वे थे - हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिन्दी की स्थिति एवं कप्यूटर युग में हिन्दी की उपादेयता। सम्मेलन में भारत से १७ सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ने हिस्सा लिया। अन्य देशों के २५७ प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए।[5] छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन लन्दन में १४ सितम्बर से १८ सितम्बर १९९९ तक आयोजित किया गया। यू०के० हिन्दी समिति, गीतांजलि बहुभाषी समुदाय और बर्मिंघम भारतीय भाषा संगम, यॉर्क ने मिलजुल कर इसके लिये राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष थे डॉ॰ कृष्ण कुमार और संयोजक डॉ॰ पद्मेश गुप्त। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था - हिन्दी और भावी पीढ़ी। सम्मेलन में विदेश राज्यमन्त्री श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल ने भाग लिया। प्रतिनिधिमण्डल के उपनेता थे प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ॰ विद्यानिवास मिश्र। इस सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्त्व इसलिए है क्योंकि यह हिन्दी को राजभाषा बनाये जाने के ५०वें वर्ष में आयोजित किया गया। यही वर्ष सन्त कबीर की छठी जन्मशती का भी था। सम्मेलन में २१ देशों के ७०० प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत से ३५० और ब्रिटेन से २५० प्रतिनिधि शामिल थे।[6] सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ सुदूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में। तिथियाँ थीं - ५ जून से ९ जून २००३। इक्कीसवीं सदी में आयोजित यह पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन था। सम्मेलन के आयोजक थे श्री जानकीप्रसाद सिंह और इसका केन्द्रीय विषय था - विश्व हिन्दी: नई शताब्दी की चुनौतियाँ। सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मन्त्री श्री दिग्विजय सिंह ने किया। सम्मेलन में भारत से २०० प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें १२ से अधिक देशों के हिन्दी विद्वान व अन्य हिन्दी सेवी सम्मिलित हुए। सम्मेलन का उद्घाटन ५ जून को हुआ था। यह भी एक संयोग ही था कि कुछ दशक पहले इसी दिन सूरीनामी नदी के तट पर भारतवंशियों ने पहला कदम रखा था।[7] आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन १३ जुलाई से १५ जुलाई २००७ तक संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी न्यू यॉर्क में हुआ। इस सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था - विश्व मंच पर हिन्दी। इसका आयोजन भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय द्वारा किया गया। न्यूयॉर्क में सम्मेलन के आयोजन से सम्बन्धित व्यवस्था अमेरिका की हिन्दी सेवी संस्थाओं के सहयोग से भारतीय विद्या भवन ने की थी। इसके लिए एक विशेष जालस्थल (वेवसाइट) का निर्माण भी किया गया। इसे प्रभासाक्षी.कॉम के समूह सम्पादक बालेन्दु शर्मा दाधीच के नेतृत्व वाले प्रकोष्ठ ने विकसित किया है। नौवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन इसी वर्ष २२ सितम्बर से २४ सितम्बर २०१२ तक, दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहांसबर्ग में सोमवार को खत्म हो गया। इस सम्मेलन में २२ देशों के ६०० से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें लगभग ३०० भारतीय शामिल हुए। सम्मेलन में तीन दिन चले मंथन के बाद कुल १२ प्रस्ताव पारित किए गए और विरोध के बाद एक संशोधन भी किया गया।[8] दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजन की घोषणा हो चुकी है। यह 10 से 12 सितंबर तक भोपाल में हुआ। दसवें सम्मेलन का मुख्य कथ्य (थीम) था - ' हिन्दी जगत : विस्तार एवं सम्भावनाएँ '। ११वाँ विश्व हिन्दी सम्मीलन मॉरिशस में आयोजित किया गया।[9] १२वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन २०२3 फिजी में होगा। विश्व हिन्दी सम्मेलनों में पारित प्रस्ताव[संपादित करें]प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]
द्वितीय विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]
तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]
चतुर्थ विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]
पांचवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]
छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]
सातवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]
आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]
नौवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]22 से 24 सितम्बर 2012 को दक्षिण अफ्रीका में आयोजित 9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन ने, जिसमें विश्वभर के हिन्दी विद्वानों, साहित्यकारों और हिन्दी प्रेमियों आदि ने भाग लिया, रेखांकित किया कि:
दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]भोपाल में १०वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन १० सितम्बर से १२ सितम्बर २०१५ तक भोपाल में हुआ। इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने किया। सम्मेलन का मुख्य विषय "हिन्दी जगत : विस्तार एवं संभावनाएं " था। ग्यारहवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन[संपादित करें]११वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन १८-२० अगस्त २०१८ तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया जा रहा है[10]। इस सम्मेलन का आयोजन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा मॉरीशस सरकार के सहयोग से होगा। इस सम्मेलन की योजना का निर्णय सितंबर २०१५ में भोपाल में आयोजित १०वें विश्व हिंदी सम्मेलन में लिया गया था।[11] सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
2021 में 12वें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन कहाँ किया जाएगा?दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन २०१५ में भोपाल में आयोजित हुआ। २०१८ में इसका आयोजन मॉरीशस में हुआ है। 12 विश्व हिंदी सम्मेलन फरवरी 2023 में फिजी में प्रस्तावित है। इसकी जानकारी विदेश मंत्रालय के माध्यम से जयशंकर प्रसाद ने 28 अक्टूबर 2022 को साझा की।
विश्व हिंदी दिवस 2022 की थीम क्या है?हिंदी दिवस की थीम-
हिंदी दिवस मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा का देश के साथ साथ पूरे विश्व में प्रचार प्रसार करना है। हिंदी दिवस मनाने के लिए जो थीम निर्धारित की गई है वह है -“भारतीय उपमहाद्वीप के सभी लोग हिंदी समझे और विदेशो में भी इसका प्रचार प्रसार किया जाए।”
12वां विश्व हिंदी सम्मेलन कब और कहां होगा?इस बार '12वां विश्व हिंदी सम्मेलन' का आयोजन फिजी में किया जा रहा है। यह पहला मौका है जब पैसिफिक क्षेत्र के किसी देश में यह सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। यह सम्मेलन अगले साल 15 से 17 फरवरी तक भारतीय विदेश मंत्रालय और फिजी सरकार द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है।
हिंदी का पहला विश्व सम्मेलन कब और कहाँ हुआ था?प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन: पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी से 14 जनवरी 1975 तक नागपुर में आयोजित किया गया। सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में हुआ। सम्मेलन से संबंधित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती थे।
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