योग की उत्पत्ति किस देश से हुई - yog kee utpatti kis desh se huee

योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शाखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुर‍ि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्‍य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ।

दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति काल लगभग 10000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ईपू में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा।
भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने 'सिंधु सरस्वती सभ्यता' को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है।
'यस्मादृते न सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन। स धीनां योगमिन्वति।।-ऋक्संहिता, मंडल-1, सूक्त-18, मंत्र-7। अर्थात- योग के बिना विद्वान का भी कोई यज्ञकर्म सिद्ध नहीं होता। वह योग क्या है? योग चित्तवृत्तियों का निरोध है, वह कर्तव्य कर्ममात्र में व्याप्त है।

स घा नो योग आभुवत् स राये स पुरं ध्याम। गमद् वाजेभिरा स न:।।- ऋ. 1-5-3 अर्थात वही परमात्मा हमारी समाधि के निमित्त अभिमुख हो, उसकी दया से समाधि, विवेक, ख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा का हमें लाभ हो, अपितु वही परमात्मा अणिमा आदि सिद्धियों के सहित हमारी ओर आगमन करे।
उपनिषद में इसके पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं। कठोपनिषद में इसके लक्षण को बताया गया है- 'तां योगमित्तिमन्यन्ते स्थिरोमिन्द्रिय धारणम्'

योगाभ्यास का प्रामाणिक चित्रण लगभग 3000 ई.पू. सिन्धु घाटी सभ्यता के समय की मोहरों और मूर्तियों में मिलता है। योग का प्रामाणिक ग्रंथ 'योगसूत्र' 200 ई.पू. योग पर लिखा गया पहला सुव्यवस्थित ग्रंथ है। हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में योग का अलग-अलग तरीके से वर्गीकरण किया गया है। इन सबका मूल वेद और उपनिषद ही रहा है।
वैदिक काल में यज्ञ और योग का बहुत महत्व था। इसके लिए उन्होंने चार आश्रमों की ‍व्यवस्था निर्मित की थी। ब्रह्मचर्य आश्रम में वेदों की शिक्षा के साथ ही शस्त्र और योग की शिक्षा भी दी जाती थी। ऋग्वेद को 1500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच लिखा गया माना जाता है। इससे पूर्व वेदों को कंठस्थ कराकर हजारों वर्षों तक स्मृति के आधार पर संरक्षित रखा गया।
भारतीय दर्शन के मान्यता के अनुसार वेदों को अपौरुषेय माना गया है अर्थात वेद परमात्मा की वाणी हैं तथा इन्हें करीब दो अरब वर्ष पुराना माना गया है। इनकी प्राचीनता के बारे में अन्य मत भी हैं। ओशो रजनीश ऋग्वेद को करीब 90 हजार वर्ष पुराना मानते हैं। 563 से 200 ई.पू. योग के तीन अंग तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान का प्रचलन था। इसे क्रिया योग कहा जाता है।

जैन और बौद्ध जागरण और उत्थान काल के दौर में यम और नियम के अंगों पर जोर दिया जाने लगा। यम और नियम अर्थात अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप और स्वाध्याय का प्रचलन ही अधिक रहा। यहाँ तक योग को सुव्यवस्थित रूप नहीं दिया गया था।
पहली दफा 200 ई.पू. पतंजलि ने वेद में बिखरी योग विद्या का सही-सही रूप में वर्गीकरण किया। पतंजलि के बाद योग का प्रचलन बढ़ा और यौगिक संस्थानों, पीठों तथा आश्रमों का निर्माण होने लगा, जिसमें सिर्फ राजयोग की शिक्षा-दीक्षा दी जाती थी।

भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया। इसके पश्चात पातंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया। इस रूप को ही आगे चलकर सिद्धपंथ, शैवपंथ, नाथपंथ वैष्णव और शाक्त पंथियों ने अपने-अपने तरीके से विस्तार दिया।
योग परम्परा और शास्त्रों का विस्तृत इतिहास रहा है। हालाँकि इसका इतिहास दफन हो गया है अफगानिस्तान और हिमालय की गुफाओं में और तमिलनाडु तथा असम सहित बर्मा के जंगलों की कंदराओं में।

जिस तरह राम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह बिखरे पड़े हैं उसी तरह योगियों और तपस्वियों के निशान जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते हैं। बस जरूरत है भारत के उस स्वर्णिम इतिहास को खोज निकालने की जिस पर हमें गर्व है।
- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

योग या अंग्रेजी में कहूं योगा ( YOGA ) एक ऐसा विज्ञान है जिससे हमारे जीवन में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन आ सकते हैं । एक बार स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने कहा था कि योग विस्मरण में दफन एक प्राचीन मिथक नहीं है । यह वर्तमान की सबसे बहुमूल्य विरासत है । जो आज की आवश्यकता है और कल की संस्कृति है। योग की उत्पत्ति और इतिहास को जानिए, हमारे इस लेख में ।

योग का इतिहास

2019 में आए कोरोना वायरस को लड़ने में भी योग भूमिका काफी ज्यादा महत्वपूर्ण रही है। 2020 के लॉकडाउन में भी लोग घर में कड़ी मेहनत करने के साथ योग की सहायता ले रहे थे ताकि वह अपने आप को स्वस्थ रख सके । वर्क फ्रॉम होम के चलते भी जब लोग आलसी महसूस करते हैं तो वे लोग घर में ही चटाई बिछाकर योग करते हुए नजर आए थे ।

योग-क्या-है

कर्म योग में कभी कोई प्रयत्न बेकार नहीं जाता, और इससे कोई हानि नहीं होती। इसका थोड़ा सा भी अभ्यास जन्म और मृत्यु के सबसे बड़े भय से बचाता है।

भगवद गीता

योग की परिभाषा – योग की उत्पत्ति और इतिहास

योग का अर्थ

योग का अर्थ एकता होता है यह शब्द सांस्कृतिक है जिसका मतलब जुड़ना होता है । इसे आम जीवन में लोग शामिल करते हैं ताकि वह अपने जीवन को मानसिक , शारीरिक और भावनात्मक तौर पर बेहतर बना सके । योग को एक साधन के तौर पर भी देखा जाता है , जिससे शरीर और मन की भावनाओं को आसानी से संतुलित किया जा सकता है । योग हमारे शरीर को अंदर से ही नहीं एवं बाहर से भी कई तरह के लाभ पहुंचाता है ।

जब आप सांस लेते हैं , आप भगवान से शक्ति ले रहे होते हैं। जब आप सांस छोड़ते हैं तो ये उस सेवा को दर्शाता है जो आप दुनिया को दे रहे हैं।

बी के एस आयंगर

योग का इतिहास – योग की उत्पत्ति और इतिहास

योग की खोज कब हुई इसकी कोई लिखित जानकारी या सच तो किसी के पास भी नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है की योग की शुरुआत हमारे देश भारत में ही हुई थी । भारतीय ऋषि पतंजलि द्वारा योग दर्शन को लिखे गए कम से कम 2000 साल बीत गए हैं जिससे आप अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कर सकते हैं और इसे ही योग की गाइड भी मानी जाती है । योग सत्र योग का सबसे पहले लिखित रिकार्ड है और यह सबसे पुराने ग्रंथों में से भी एक है ।

योग का इतिहास – योग की उत्पत्ति और इतिहास

इतने पुराने प्राचीन इतिहास के बाद भी 19वीं शताब्दी के आखिर में योग को सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली। योग का भारत में नाम तब उठा जब 1920 और 1930 के बीच में लोगों के मन में इसकी रुचि जागी।

जैसा कि पहले भी बताया गया था कि योग प्राचीन काल से है जिसकी उत्पत्ति भारत में 3000 ई.पू. में हुई थी। धीरे-धीरे इसमें कई परिवर्तन आए है, विकास हुआ और इस बात का भी खुलासा हुआ कि इससे मधुमेह जैसी बीमारियां को भी ठीक किया जा सकता है एवं आज के दौर में हम देख सकते हैं कि इसे स्कूल के पाठ्यक्रम में भी लाया जा चुका है । योग की इन दिनों काफ़ी कोर्स  भी उपलब्ध है मार्केट में जिसे सीख कर योग के अध्यापक भी बन सकते है ।

ध्यान से ज्ञान आता है; ध्यान की कमी अज्ञानता लाती है। अच्छी तरह जानो कि क्या तुम्हे आगे ले जाता है और क्या तुम्हे रोके रखता है, और उस पथ को चुनो जो ज्ञान की ओर ले जाता है।

गौतम बुद्ध

योग के क्या लाभ होते हैं ? – योग की उत्पत्ति और इतिहास

योग का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण लाभ इंसान पर  शारीरिक एवं मानसिक तौर पर देखे जाते है। ऐसा भी कहा जाता है कि योग में इतनी शक्ति और क्षमता है कि इससे एचआईवी ( HIV ) , एड्स (AIDS ) जैसी हानिकारक बीमारी पर भी लगाम लगाई जा सकती है । कई वैज्ञानिक चिकित्सकों का कहना है कि योग करने से शरीर के सभी प्रणालियों पर और अंगों पर सकारात्मक प्रभाव होते हैं । अधिकतर लोग योग को इसलिए करते हैं क्योंकि वह अपनी तनाव से भरी जिंदगी में अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं ।

योग के मानसिक लाभ

तो अब बात कर लेते हैं योग के शारीरिक फायदों की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे कोई भी व्यक्ति कर सकता है चाहे वह बच्चा हो या फिर कोई बड़ा व्यक्ति । जो लोग योग नहीं करते हैं उनकी तुलना में जो लोग योग करते हैं उनकी बीएमआई ( BMI ) ,  अच्छे कोलेस्ट्रॉल ( Cholesterol ) का स्तर ज्यादा बेहतर देखा गया है ऐसे में यह निष्कर्ष निकलता है कि आप योग करने से ह्रदय को भी काफी स्वस्थ बना सकते हैं ।

योगासन करने से दिल और फेफड़ों समस्याओं का होना काफी कम हो जाता है एवं इससे हमारी हड्डियों को भी ताकत मिलती है और मांसपेशियों की ताकत भी बढ़ती है। यदि आप एक एथलीट है तो इससे आप के प्रदर्शन में भी सुधार आ सकता है । इसके अलावा विभिन्न तरीके के योगासन करने से आपका वजन भी कम होता है और शरीर में ज्यादा ऊर्जा रहती है जिससे आपके जीवन शक्ति बढ़ जाती है ।

योग से जीवन निरोग

जिम (GYM )  करने से शरीर वैसे तो अकड़ जाता है परन्तु योग में ही इसका विपरीत देखने को मिलता है जिसमें शरीर लचीला बन जाता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि योग के शारीरिक फायदे काफी अधिक है और आपके शरीर के सारे भागों पर इसके केवल सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलेंगे ।

योग मन को स्थिर करने की क्रिया है।

पतंजलि

योग के मानसिक लाभ क्या हो सकते हैं ? – योग की उत्पत्ति और इतिहास

शारीरिक लाभों के अलावा योगासन करने से मानसिक तौर पर भी इंसानों को काफी फायदे देखने को मिलते हैं जैसे इसे करने से ध्यान बढ़ता है और सांस लेने की क्षमता में  भी इजाफा होता है । यह मानसिक तौर पर शांति प्रदान करता है और हमारी दुख भरी जिंदगी में खुशहाली लाने का भी प्रयास कर सकता है ।

योग से होने वाले लाभ

योग करने से हमारा तंत्रिका-तंत्र संतुलित बना रहता है और इसको करने के बाद बेहतर नींद भी आती है । विभिन्न प्रकार के योगासन करने से हमारा शरीर को आंतरिक शक्ति मिलती है और इससे आप अपने मन को भी शांत कर सकते हैं ।

योग 99% अभ्यास और 1% सिद्धांत है।

श्री कृष्ण पट्टाभि जॉइस

योग के चार प्रकार – योग की उत्पत्ति और इतिहास

योग का इतिहास वैसे तो बहुत पुराना है जिसमें शास्त्रों के अनुसार कम से कम 84 लाख आसन है जिसमें से आज 32 आसन सबसे ज्यादा मशहूर है जिसमें चार प्रकार शामिल है । इनका उपयोग मानसिक शारीरिक और स्वास्थ्य लाभ उठाने में किया जा रहा है।

ज्ञान योग

ज्ञान योग – योग की उत्पत्ति और इतिहास

जैसा कि इसके नाम से प्रतीत हो रहा है कि इस योग को बुद्धि में विकास लाने का प्रयोग किया जाता है। ज्ञान योग वैसे योग की सबसे कठिन शाखा में से भी एक है एवं इससे मौखिक रूप से बुद्धि को ज्यादा से ज्यादा ज्ञानवर्धक बनाने की कोशिश की जाती है ।

कर्म योग

कर्म योग – योग की उत्पत्ति और इतिहास

एक ऐसा योग जिसमें सेवा भाव निहित है । कर्म योग के मुताबिक आज जो कुछ भी हो रहा है इंसानों की जिंदगी में वह सब उसके पिछले जन्मों का फल है । इसके अनुसार मनुष्य अपने वर्तमान में अच्छे कर्म करेगा तो उसके हिसाब से भविष्य में और अगले जन्म में उसे  अच्छे  फायदे होने की संभावना है ।

भक्ति योग

भक्ति योग – योग की उत्पत्ति और इतिहास

जैसा किसके नाम से प्रतीत हो रहा है भक्ति ठीक उसी प्रकार इसमें हम एक तरफ ध्यान अपने ईश्वर की ओर देते हैं जिन्होंने इस संसार को बनाया है । इस योग में विभिन्न प्रकार की भावनाओं को भक्ति की ओर केंद्रित करने के बारे में बताया गया है ।

राज योग

राज योग – योग की उत्पत्ति और इतिहास

सबसे आखिर में आता है राजयोग इसमें आठ अंग है जो इस प्रकार है : आसन, प्रत्याहार( इन्द्रियों पर नियंत्रण), नियम , धारण, यम (शपथ लेना ), प्राणायाम, एकाग्रता और समाधि | राज योग में आसन योग को अधिक स्थान दिया जाता है क्योंकि यह आसन राज योग की प्रारंभिक आसन क्रिया होने के साथ-साथ सरल भी है |

योग एक धर्म नहीं है। यह एक विज्ञान है, सलामती का विज्ञान, यौवन का विज्ञान, शरीर, मन और आत्मा को एकीकृत करने का विज्ञान है।

अमित रे

अगर आप योग में नए है तो क्या करें ? – योग की उत्पत्ति और इतिहास

जीवन में अगर कोई व्यक्ति पहली बार योग अभ्यास कर रहा है तो उसे सीखना काफी जरूरी है अगर सही ढंग से योग ना किया जाए तो इसको करना व्यर्थ है । यदि आप लोग योग सीखना चाहते हैं तो इन 3 आसनों आप अपने योगाभ्यास की शुरुआत कर सकते हैं।

अधोमुख आसन

अधोमुख आसन – योग की उत्पत्ति और इतिहास

हमारे देश के तमाम योग गुरु भी इस आसन को सबसे पहले सिखाते हैं इस आसन को करने से पूरे शरीर में खिंचाव आ मजबूती आती है।  इस आसन को करने से पहले आप पेट के बल लेट जाएं उसके बाद अपनी सांसों को खींचे हाथ पैरों के बल शरीर को उठाएं और टेबल जैसी आकृति बना ले उसके बाद धीरे-धीरे सांस छोड़ें और आप को उल्टे वी के आकार में आना होगा ताकि आसन संभव हो सके ।

इस बात का ध्यान रखें कि कंधे और हाथ दोनों सीधे रहे इसके बाद अब कुछ सेकंड तक उसी अवस्था में रुके और सांस छोड़ते हुए वापस अपनी पुरानी अवस्था में आ जाए ।

वृक्षासन

वृक्षासन – योग की उत्पत्ति और इतिहास

जैसा किसके नाम से ही पता लग रहा है कि आपको एक वृक्ष के तौर पर सीधा खड़ा होना है और अपने शरीर का संतुलन बनाए रखना है यह योगासन आपके शरीर को अंदर से काफी मजबूत कर देगा इसके लिए आप पहले साधारण अवस्था में खड़े हो जाए । उसके बाद अपने बाएं पैर को जमीन से मजबूत स्थिति में कर ले । उसके बाद दूसरा पैर आप अपनी जंघा पर लाए और धीरे-धीरे अपने हाथों को नमस्कार की मुद्रा में ले आए और ऊपर ले जाए ।

इस बात का ध्यान रखना है कि आप अपनी रीड की हड्डी को सीधा रखें और सारे जोड़ सीधे ही होने चाहिए इसके बाद आपको धीरे-धीरे सांस लेनी है उसके बाद उसी अवस्था  में रुके और धीरे-धीरे वापस सांस छोड़ते हुए वापस पुरानी अवस्था में आ जाए इसी को वापस घर आते हुए अब आप बाएं पैर के साथ वापस इसको कर सकते हैं ।

बालासन

बालासन – योग की उत्पत्ति और इतिहास

हर एक योग करने के बाद एक ऐसी अवस्था में इंसान होता है कि अब उसे विश्राम करने की जरूरत पड़ती है जिसके लिए योग में ऐसे कई योगासन है जिससे शरीर की थकान मिटाई जा सकती है उदाहरण के लिए बालासन।

बालासन को करने के लिए आप घुटनों के बल बैठ जाए फिर दोनों ठिकानों और एड़ियों को आपस में छुए ।  फिर धीरे-धीरे आप अपने घुटनों को बाहर की तरफ जितना हो सके उतना फैलाएं उसके बाद आप गहरी सांस लीजिए और पेट को दोनों जांघों को बीच में से लें और अपनी सांस छोड़ दें ।

जितना हो सके उतना खिंचाव करें वरना रहने दे आखिर में सबसे अंतिम हाथों को सामने की ओर लाएं और ने अपने सामने रख ले स्थिति में कम से कम 30 सेकंड तक रहे और उसके बाद आपका योगाभ्यास समाप्त हो जाएगा । 

अन्य आसन – योग की उत्पत्ति और इतिहास

सूर्य नमस्कार

सूर्य नमस्कार – योग की उत्पत्ति और इतिहास

रोना उच्चतम भक्ति गीतों में से एक है। जो रोना जानता है, वह साधना जानता है। यदि आप सच्चे दिल से रो सकें, तो इस प्रार्थना के तुल्य कुछ भी नहीं है। रोने में योग के सभी सिद्धांत शामिल हैं।

कृपालवानंदजी

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कब और क्यों मनाया जाता है ?

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – योग की उत्पत्ति और इतिहास

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के कारण भारत ने दुनिया भर के देशों में अपनी सुर्खियां योग के कारण बटोरी थी जिसकी शुरुआत सबसे पहले 21 जून 2015 को भारत में ही हुई थी । हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा को दिए गए प्रस्ताव में इसको मंजूरी भी मिली गई है और 21 जून को ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है ।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2021 CONTEST

एक फोटोग्राफर लोगों से उसके लिए पोज दिलवाता है। एक योग प्रशिक्षक लोगों से खुद के लिए पोज दिलवाता है।

टी गिलेमेट्स

21 जून को ही क्यों मनाया जाता है? – योग की उत्पत्ति और इतिहास

राजपथ पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन (स्रोत: Youtube)

सभी के मन में यह प्रश्न जरूर होता होगा कि आखिर 21 जून को ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस क्यों मनाया जाता है क्योंकि इस तारीख पर सबसे बड़ा दिन होता है और विश्व भर में कई जगह एक विशेष महोत्सव भी बनाया जाता है जिसके बाद हमारे प्रधानमंत्री जी ने 21 जून का सुझाव दिया था । (स्रोत: OneIndia)

21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – योग की उत्पत्ति और इतिहास

इंसान जो एक बार योग से जुड़ता है, पूरी लगन से योग का अभ्यास करता है, योग आजीवन उसका हिस्सा बन जाता है। योग आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

2020 का योग दिवस – योग की उत्पत्ति और इतिहास

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2020

जब विश्व भर में कोरोना वायरस के संकट में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बनाया गया तो इसकी भी बहुत तारीफ हुई जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने योग करके विश्व को दिखाया कि योग की ताकत कितनी विशाल है । डिजिटल माध्यम के जरिए भी योग को टेलीकास्ट किया गया जिसकी थीम थी – घर पर योग परिवार के साथ योग । (स्रोत: Wikipedia)

योग स्वीकार करता है. योग प्रदान करता है.

अप्रैल वेली

बाबा रामदेव का वर्ल्ड रिकॉर्ड – योग की उत्पत्ति और इतिहास

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को बस 3 साल ही हुए थे लेकिन वर्ष 2018 में एक ऐसा कीर्तिमान स्थापित हुआ जो शायद ही कभी टूटे । 2018 में राजस्थान के कोटा में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर दुनिया का सबसे बड़ा योग शिविर का आयोजन किया गया जिसके नाम पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना है ।

बाबा रामदेव का वर्ल्ड रिकॉर्ड

इस सत्र में 1,00,000 लोगों से ज्यादा लोगों ने योग अभ्यास किया जिसमें योग गुरु बाबा रामदेव राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एवं अन्य मंत्री , अधिकारी एवं स्थानीय लोग भी शामिल थे । इस कार्यक्रम में एक लाख से ज्यादा लोगों ने भाग लिया और सभी लोगों ने एक साथ योगाभ्यास किया था ।

हो सकता है आप बड़े बिजनेसेस और इंटरप्राइजेज को मैनेज करते हों। योग इम्पोर्टेन्ट है क्योंकि ये आपको खुद को मैनेज करना सिखाता है। ये आपकी बॉडी में कम्प्लीट बॅलेन्स लाता है और उसे हेल्दी बनाता है।

बाबा रामदेव

क्या योग करने का उचित समय भी होता है ?

जिस प्रकार हर एक कार्य को करने का एक उचित समय होता है ठीक उसी प्रकार योग करने का भी सही समय होता है । सही समय पर योग इसलिए किया जाता है क्योंकि हमारे शरीर को नुकसान ना पहुंचे और इसके अधिक से अधिक लाभ योग करने वाले व्यक्ति को मिले।

योग करने का उचित समय योग की उत्पत्ति और इतिहास

योगासन करने का सबसे उचित समय है सुबह जल्दी उठकर नाश्ता के पहले का समय होता है । सुबह जल्दी उठने के बाद , पेट साफ होने के बाद इंसान स्नान करने से पहले भी योग कर सकते हैं । इसको आप स्नान के बाद भी कर सकते हैं जिससे आपके दिन की शुरुआत और बेहतर तरीके से हो सकती है ।

सुबह वक्त नहीं मिलता है तो इसको हम शाम के वक्त सूर्यास्त के बाद भी कर सकते हैं| सबसे महत्वपूर्ण बात यहां पर यह है कि आप लोग हमेशा इसे खाली पेट भली भांति करें या खाना खाने के दो-तीन घंटे के बाद इसका अभ्यास करें ताकि योगासन के होने वाले लाभ मिल सकें। 

योग करने का समय

यदि आप दफ्तर या फिर बाहर भी जाते हैं तो भी आप योग कर सकते हैं वहां पर भी आप एक गहरी
सांस अंदर बाहर ले कर अपने आप को तरो ताज़ा कर सकते हैं । आप 1 सप्ताह में कितनी बार भी योग को करें बस सही तरीके से करें ताकि आप ही को से फायदा पहुंचे ।

योग एक  तरह  से  लगभग संगीत जैसा है; इसका कोई अंत नहीं है।

स्टिंग

क्या योग से नुकसान भी होता है ? – योग की उत्पत्ति और इतिहास

जब आप किसी भी कार्य को सीमा में करते हैं तब उसके फायदे ही फायदे होते हैं लेकिन जब आप उस सीमा को लांघ लेते हैं तो उसके नुकसान सामने आते हैं । योग जो कि अत्यंत सुरक्षित और लाभदायक है लेकिन योग के नुकसान तो बहुत ही कम देखे जाते हैं जिनमें से कुछ परिस्थितियां इस प्रकार हो सकती हैं कि

योग से नुकसान

यदि कोई गर्भवती महिला का मेडिकल समस्या से जूझता हुआ व्यक्ति जिससे हाय ब्लड प्रेशर या दिल के रोग की बीमारी है वह अगर सही देखरेख में योग नहीं करें या गलत तरीके से योग करें तो इसके नुकसान झेलने को मिल सकते हैं ।

योगासन को अगर सही ढंग से ना किया जाए तो इससे काफी गंभीर चोट भी लग सकती है । आपने अगर योग हाल ही में ही करना शुरू किया है तो आप मुश्किल योग आसन करने से बचे जैसे हैंड स्टैंड (hand stand )  और ज्यादा ताकत के साथ सांस लेना या छोड़ना ।

यदि आपको किसी चिकित्सक ने कहा है कि योग करने से इस रोग को समाप्त कर सकते हैं तो उसी की देखरेख में आप योग कीजिए यदि कोई समस्या आती है तो उसी चिकित्सक से अपने सवाल पूछ लीजिए ताकि योग का बुरा असर आपके शरीर पर न पड़े।

यह योग उसके लिए संभव नहीं है जो बहुत अधिक खाता है , या जो बिलकुल भी नहीं खाता ; जो बहुत अधिक सोता है , या जो हमेशा जगा रहता है।

भगवद गीता

निष्कर्ष – योग की उत्पत्ति और इतिहास

योग

योग का इस्तेमाल वैसे तो शरीर को चुस्त और मन को दुरुस्त करने में सबसे ज्यादा किया जाता है जिसके कई सारे फायदे होते हैं हाल ही में हुए कोरोना वायरस को कुछ हद तक हराने में भी और आपकी इम्यूनिटी को बूस्ट करने में भी योग का ही हाथ है विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत हैं कि योग करने से आपकी स्वास्थ्य क्षमता और अन्य मानसिक ताकत भी बढ़ती हैं।

सब करें योग

स्वास्थ्य है, जो वास्तविक धन है और सोने और चांदी के टुकड़े नहीं हैं, इसलिए लंबे जीवन के लिए योग करें.

योग का जन्मदाता कौन सा है?

योग की परम्परा भारत में हजारों साल से चली आ रही है, योग दर्शन के प्रणेता महर्षि पतंजलि द्वारा 'योग सूत्र' की रचना से भी पहले से। भारतीय संस्कृति में शिव को पहला योगी माना गया है। उन्होंने ही योग विज्ञान की नींव डाली थी।

योग की शुरुआत कब और कहां हुई?

पूर्व वैदिक काल (ईसा पूर्व 3000 से पहले) अभी हाल तक, पश्चिमी विद्वान ये मानते आये थे कि योग का जन्म करीब 500 ईसा पूर्व हुआ था जब बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ। लेकिन हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में जो उत्खनन हुआ, उससे प्राप्त योग मुद्राओं से ज्ञात होता है कि योग का चलन 5000 वर्ष पहले से ही था।

योग की शुरुआत कब और किसने की?

पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ईपू में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा। भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई।

योग शब्द की उत्पत्ति कहाँ से हुई?

योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृति शब्द युज (वाईयूजे) से हुई है। जिसका मतलब है- जे से ज्वाइन यानि जड़ना, वाई से योक यानि मिलाना और यू से युनाइट मतलब एक साथ। योग शास्त्रों के मुताबिक, योग का मानव के मस्तिष्क और शरीर के बीच वैसा सीधा ही संबंध है जैसा जैसा मानव का प्रकृति से है।

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