Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 2 (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 12 Hindi Solutions Antra Poem 2 (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृतिRBSE Class 12 Hindi (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति Textbook Questions and Answersगीत गाने दो मुझे - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. सरोज स्मृति - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. (ख) श्रृंगार रहा जो निराकार (ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला (घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ. योग्यता विस्तार - प्रश्न 1. सन् 1934 से 1938 तक का चार वर्ष का काल उनके जीवन का उत्कर्ष काल था। इस समय उनकी बहुत-सी कृतियाँ प्रकाशित हुईं। पहले वे भावों को मन में संजोते थे फिर उन भावों को कविता में व्यक्त करते थे। निराला जी सामासिक पदावली का प्रयोग अधिक करते थे इसलिए उनकी कविताएँ कठिन लगती हैं और देर से समझ में आती हैं। वे बड़े परिश्रम से अपनी रचना को तैयार करते थे। वे कविताओं को पढ़ने और सुनने में बहुत आनन्दित होते थे। वे भाव विभोर होकर हाव-भाव के साथ कविता सुनाते थे। उनके घर पर साहित्यकार एकत्रित होते रहते थे। वे बड़े स्वाभिमानी थे। वे तार्किक थे और अपने तर्कों से अच्छे-अच्छों के छक्के छुड़ा देते थे। वे व्यक्तिगत आक्षेप सहन नहीं कर सकते थे। वे शरीर से सुडौल थे और कबड्डी तथा फुटबाल बड़े शौक से खेलते थे। वे भोजन बनाने में सिद्धहस्त थे। वे तम्बाकू खाते थे। अच्छी पोशाक पहनने और उसकी प्रशंसा सुनने में उन्हें बड़ा आनन्द आता था। वे गरीबी में भी उच्च आकांक्षाएँ रखते थे। उन्हें साधारण जीवन जीना अच्छा लगता था। उन्हें सारे जीवन में विरोध सहन करना पड़ा। प्रिय पुत्री संरोज की अकाल मृत्यु ने उन्हें व्यथित कर दिया। वे अन्दर ही अन्दर दुखी रहते थे। प्रश्न 2. प्रश्न 3. RBSE Class 12 Hindi (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति Important Questions and Answersअतिलघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न
8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लयूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न
20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. निबन्धात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. जिनमें संघर्ष करने की शक्ति थी वे भी हार मान चुके हैं। मानवता कराह रही है। आशा की ज्योति बुझ गई है, निराशा के अन्धकार लिया है। अतः कवि इस कविता में आशा की लौ जगाना चाहता है। वेदना और पीडा को छिपाने के लिए आशा का गीत गाना चाहता है। निराशा में आशा का संचार करना चाहता है। 'गीत गाने दो मझे गीत से निराला के व्यक्तिगत जीवन की भी झलक मिलती है। प्रश्न 2. प्रस्तत अंश में पत्री के विवाह और मत्य का वर्णन है। पत्री के विवाह के समय कवि को अपनी पत्नी की याद आती है। कवि ने पुत्री की विदाई के समय स्वयं ही माँ का धर्म निभाया। पुत्री के लिए बहुत कुछ न कर पाने के कारण उन्हें पश्चात्ताप है। इसमें निराला के जीवन संघर्ष की झलक मिलती है। उन्होंने स्वयं कहा है "दुःख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज जो नहीं कही।" प्रश्न 3. विदाई के समय कवि को शकुन्तला की याद आई, यद्यपि उसका पालन-पोषण और शिक्षा शकुन्तला से भिन्न थी। उसे अपनी दिवंगत पत्नी की भी याद आई। उसे पुत्री के रंग-रूप में अपनी पत्नी के रंग-रूप की झलक दिखाई दी। पुत्री का पालन-पोषण ननिहाल में हुआ और वहीं उसकी मृत्यु हुई। कवि ने अपने जीवन के सत्कर्मों के फल द्वारा पुत्री का तर्पण किया। प्रश्न 4. (ख) कलापक्ष - निराला की अभिव्यक्ति का अपना एक निराला ही ढंग है। वे छायावादी युग के कवि हैं फिर भी उन्होंने एक नई राह पकड़ी जो उनको प्रगतिवाद के निकट तक ले जाती है। उपर्युक्त पंक्तियाँ मुक्त छन्द में लिखी गई हैं। तत्सम शब्दावली है। भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण एवं भावानुकूल है। ठग-ठाकुरों' जैसे प्रतीकों का प्रयोग किया है। 'ठग-ठाकुरों' में अनुप्रास अलंकार और लक्षणा शक्ति है। उपर्युक्त पंक्तियों का भावपक्ष और कलापक्ष दोनों सबल हैं। प्रश्न 5. (ख) कलापक्ष - इन पंक्तियों में निराला जी की पीड़ा के दर्शन होते हैं। भावों के प्रवाह में यदि कोई अलंकार अथवा अन्य भाषा का शब्द आ जाए तो निराला उसका सहज प्रयोग कर लेते थे। जैसे 'जहर' शब्द का सहज ही प्रयोग हो गया है। 'संसार जैसे हार खाकर' में उपमा अलंकार है। लोग-लोगों में अनुप्रास अलंकार है। खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है। लाक्षणिक शक्ति और प्रसाद गुण है। भावानुकूल भाषा का प्रयोग है। प्रश्न 6. (ख) कलापक्ष - कलापक्ष की दृष्टि से उपर्युक्त पंक्तियाँ श्रेष्ठ हैं। तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है। भावानुसार भाषा का प्रयोग है। भाषा में एक प्रवाह और लक्षणा शक्ति है। मुक्त छन्द है और वर्णनात्मक शैली है। उत्प्रेक्षा अलंकार है। स्मृति बिम्ब है। शब्दों का सार्थक प्रयोग भी हुआ है। प्रश्न 7. (ख) कलापक्ष-उपर्युक्त पंक्तियाँ निराला की कल्पना का सुन्दर उदाहरण हैं। सरोज के सौन्दर्य का साकार चित्रण किया गया है। सामासिक शब्दावली का प्रयोग है। तत्सम शब्दों का प्रयोग है। राग-रंग, रति-रूप में अनुप्रास अलंकार है। भाषा में प्रसाद गुण है। मुक्त छन्द और वर्णनात्मक शैली है साहित्यिक परिचय का प्रश्न - प्रश्न : कला पक्ष - निराला छायावाद तथा स्वच्छन्दतावादी कविता के आधार स्तम्भ थे। उनका काव्य जगत बहुत व्यापक है। उनके काव्य में विचारों की व्यापकता, विविधता और गहराई मिलती है। उन्होंने छन्द मुक्त तथा छन्दबद्ध कवितायें लिखी हैं। प्राचीन तथा मानवीकरण, विशेषण विपर्यय आदि अंग्रेजी काव्य के अलंकार उनकी कविता की शोभा बढ़ाते हैं। बोलचाल की भाषा तथा संस्कृतनिष्ठ शब्दावली युक्त भाषा - उनकी भाषा के ये दो रूप हैं। उन्होंने हिन्दी में गजलें भी लिखी हैं। कृतियाँ - प्रमुख काव्य कृतियाँ - परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते। उपन्यास-बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, प्रभावती। कहानियाँ सुकुल की बीबी, लिली। (क) गीत गाने दो मुझे (ख) सरोज स्मृति Summary in Hindiकवि परिचय : जन्म - सन् 1898 ई. बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल गाँव में। पैतृक गाँव गढ़कोला जिला उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। बचपन का नाम सूर्य कुमार। पत्नी, परिवारीजनों तथा पुत्री सरोज के देहावसान से आहत। 'समन्वय', 'मतवाला' आदि पत्रिकाओं के सम्पादन से जुड़े। 'छायावाद' और स्वच्छंदतावादी कविता के आधार स्तम्भ। हिन्दी में मुक्त छन्द के प्रणेता। सन् 1961 में देहावसान। साहित्यिक परिचय - भाव पक्ष-निराला छायावादी कवि होने के साथ-साथ प्रगतिवादी कवि भी हैं क्योंकि उनकी कविता में शोषण का विरोध और शोषकों के प्रति घृणा की अभिव्यक्ति हुई है। वे क्रान्तिदर्शी कवि हैं। 'बादल राग' उनकी क्रांतिभावना से युक्त कविता है। इसी प्रकार 'वह तोड़ती पत्थर' कविता भी प्रगतिवादी स्वर से युक्त है। उन्होंने भारतीय संस्कृति का चित्रण भी अपनी रचनाओं में किया है। वे प्रकृति प्रेमी कवि हैं। भारतीय कृषक जीवन से भी उनका लगाव है। कला पक्ष - निराला को सर्वाधिक प्रसिद्धि 1916 ई. में लिखी कविता 'जुही की कली' से मिली और बाद में वे मुक्त छंद के प्रवर्तक माने गए। सन् 1922 में रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'समन्वय' से जुड़े और सन् 1923-24 में वे 'मतवाला' के सम्पादक मण्डल में शामिल हो गए। सन् 1935 में वे लखनऊ से निकलने वाली 'सुधा' पत्रिका से जुड़े। निराला जी को जीवनपर्यन्त आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। निराला छायावाद तथा स्वच्छन्दतावादी कविता के आधार स्तम्भ थे। उनका काव्य जगत बहुत व्यापक है। उनके काव्य में विचारों की व्यापकता, विविधता और गहराई मिलती है। उन्होंने छन्द मुक्त तथा छन्दबद्ध कवितायें लिखी हैं। प्राचीन तथा मानवीकरण, विशेषण विपर्यय आदि अंग्रेजी काव्य के अलंकार उनकी कविता की शोभा बढ़ाते हैं। बोलचाल की भाषा तथा संस्कृतनिष्ठ शब्दावली युक्त भाषा - उनकी भाषा के ये दो रूप हैं। उन्होंने हिन्दी में गजलें भी लिखी हैं। कृतियाँ-काव्य कृतियाँ - परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीतगुंज। सप्रसंग व्याख्याएँ : गीत गाने दो मुझे 1. गीत गाने दो मुझे तो, शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित कविता 'गीत गाने दो मुझे से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता छायावादी कवि महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला' हैं। प्रसंग : इस कविता में कवि ने उन ठगों के प्रति आक्रोश व्यक्त किया है जिनके कारण संसार के लोग व्यथित हैं और अपने हवाश खो चुके हैं। होश वालों के भी होश उड़ गये हैं, लोगों का जीवन जीना कठिन हो गया है। कवि इस गीत से आशा का संचार करना चाहता है। व्याख्या : कवि निराला का हृदय मानव की विषम परिस्थितियों को देखकर व्यथित हो गया है। वे कहते हैं कि इस व्यथित हृदय की वेदना को भूलने के लिए, इससे मुक्ति पाने के लिए मुझे गीत गाने दो अर्थात् वेदना की अभिव्यक्ति करने दो जिससे मैं वेदना को भूल सकूँ। जीवन में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, शोषण से जूझते-जूझते होश वालों के भी होश उड़ गये हैं। भाव यह है कि जिनमें संघर्ष करने की शक्ति थी, जो विषम परिस्थितियों से संघर्ष करने में समर्थ थे, वे भी जिजीविषा शक्ति खो चुके हैं, निराश हो गये हैं। उनका जीना भी कठिन हो गया है। जीवन में जो संबल था, सहारा था उसे भी शोषण तथा अन्याय करने वाले ठगों ने लूट लिया। ठगों के ठेकेदारों के कारण संघर्ष करने वालों की विरोध भरी आवाज भी बन्द हो गई। अब उनमें विरोध करने की शक्ति नहीं रही है। ऐसा लगता है मानो मृत्यु निकट आ रही है। भाव यह है कि इन विषम परिस्थितियों के कारण जीना कठिन हो गया हैं। लोग किंकर्तव्यविमूढ़ और निराश हो गये हैं। ऐसी स्थिति में कविता ही लोगों के हृदय में आशा का संचार कर सकती है। उनमें चेतना का संचार कर सकती है। विशेष :
2. भर गया है जहर से शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित कविता 'गीत गाने दो मुझे से अवतरित हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। प्रसंग : इस काव्यांश में कवि ने संसार में व्याप्त शोषण तथा अत्याचार की भयावह स्थिति का यथार्थ चित्रण किया है। व्याख्या : कवि निराला कहते हैं कि सारा संसार विषमता से भर गया है। द्वेष और ईर्ष्या का विष जन-जन में व्याप्त हो गया है। विषमता के कारण लोग निराश हो गये हैं और हार मान बैठे हैं अर्थात् जिजीविषा खो बैठे हैं। मनुष्यता हार गई है। विषम परिस्थितियों से संघर्ष करने के कारण लोग जीना नहीं चाहते। वे जीवन का दाँव हार चुके हैं। लोग एक-दूसरे को अपरिचित की तरह देखते हैं। मनुष्य को उसकी सही पहचान नहीं मिल रही है। पारस्परिक स्नेह, सौहार्द्र का भाव समाप्त हो गया है। उसकी चेतना की लौ बुझ गई है। अतः कवि उस बुझी हुई लौ (जिजीविषा) को पुनः जगाना चाहता है। कवि सांसारिक विषमता को दूर करने और संघर्ष करने के लिए लोगों का आह्वान करता है। कवि गीत गाकर लोगों को प्रेरणा देना चाहता है कि वे जागें और अपने तेज से पृथ्वी की बुझी हुई लौ (जिजीविषा) को पुनः प्रज्वलित करें। कवि क्रान्ति चाहता है, विषाक्त और असंगत व्यवस्था को बदलना चाहता है। विशेष :
(सरोज स्मृति) 1. देखा विवाह आमूल नवल, शब्दार्थ :
सन्दर्भ : उपर्युक्त पद्यांश महाकवि निराला की लम्बी कविता 'सरोज स्मृति' से उद्धृत कर हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया है। प्रसंग : यह कविता पुत्री सरोज की मृत्यु के पश्चात् उसकी स्मृति में लिखी गई है। वास्तव में यह एक शोक गीत है। . कवि सरोज के विवाह का स्मरण करके दुखी हैं। व्याख्या : कवि कहता है-पुत्री सरोज! तेरे विवाह में जो आमंत्रित व्यक्ति आए, उन्होंने तेरे एकदम नवीन विवाह को देखा। ऐसा लगा मानो तुझ पर शुभ कलश का जल छिड़का गया हो। उस समय तू मेरी ओर देखकर होठों ही होठों में मन्द-मन्द मुसकराई थी। उस मुसकान को देखकर ऐसा लगा मानो तेरे होठों में बिजली काँप रही थी। उस समय तेरे हृदय में प्रिय पति की छवि झूल रही थी। ऐसा प्रतीत होता था मानों तेरे दाम्पत्य जीवन का सुख तेरे श्रृंगार में मुखरित हो उठा था। उस समय त मधुर भाव से खिलती हुई दीख रही थी और लगता था जैसे तेरे प्रत्येक अंग में भविष्य के विश्वास का भाव स्थिर हो गया था जो पति के प्रति प्रगाढ़ प्रेम और विश्वास का द्योतक था। लज्जा और संकोच के कारण नम्रता से भरी तेरी आँखों में जो नया प्रकाश उभर आया था वह आँखों से उतरकर होठों पर थर-थर काँप रहा था। उस समय मुझे तेरी सुशील और धैर्य की मूर्ति के दर्शन हुए। उस सौन्दर्य में मैंने अपने जीवन के प्रथम वासन्ती प्रभाव के दर्शन किये। आशय यह है कि उस सौन्दर्य को देखकर कवि को अपने यौवन की याद आ गई। विशेष :
2. शृंगार, रहा जो निराकार, शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित कविता 'सरोज स्मृति' से ली गई हैं। यह कविता 'अन्तरा भाग-2' में संकलित की गई है। प्रसंग : कवि निराला अपनी पुत्री सरोज की मृत्योपरान्त अपने भावों को व्यक्त कर रहे हैं। वे अपनी दिवंगत पत्नी का सौन्दर्य पुत्री के सौन्दर्य में देखते हैं। इन पंक्तियों में उन्होंने पुत्री के विवाह की सादगी का वर्णन किया है। व्याख्या : कवि कहता है हे पुत्री ! मैंने अपनी कविताओं में सौन्दर्य के जिन निराकार भावों का वर्णन किया है उन्हें मैं आज तुम्हारे सौन्दर्य में देख रहा हूँ। काव्य की रसधारा जो छिपी रहकर भी सहस्र रूप में छलकती रहती है, वहीं शृंगारिक रसधारा मैंने तुम्हारे शृंगार में देखी है। जिस गीत को मैंने अपनी स्वर्गीया पत्नी के साथ गाया था वह मानो आज भी मेरे मन में प्रेम का संगीत भर रहा है। वही तुम्हारे सुन्दर स्वरूप में रति के रूप में प्रकट हो रहा है। जिस प्रेमगीत को मैंने स्वर्गीया पत्नी के साथ गाया था, वह उच्छ्वसित धारा आज भी मेरे प्राणों में प्रेम का संचार कर रही है। वही रूप-रस आकाश (स्वर्गीय पत्नी) से बदल कर पार्थिव रूप (पुत्री. सरोज) में साकार हो उठा है। पुत्री! तेरा विवाह सम्पन्न हो गया। विवाह में कोई भी रिश्तेदार नहीं आया था क्योंकि उन्हें आमंत्रण नहीं भेजा था। विवाह बड़े साधारण रूप में सम्पन्न हुआ था इसलिए न तो घर में रौनक हुई, न गीत गाये गये और न. रतजगा संगीत सर्वत्र समा गया। इस प्रकार तेरा विवाह सम्पन्न हुआ। विशेष :
3. माँ की कुल शिक्षा मैंने दी, शब्दार्थ :
सन्दर्भ : 'सरोज स्मृति' नामक निराला की कविता से उद्धृत ये पंक्तियाँ इसी शीर्षक वाली कविता के रूप में हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित हैं। प्रसंग : निराला ने मातृहीन पुत्री का विवाह नयी पद्धति से किया और स्वयं माँ का फर्ज निभाते हुए उसे शिक्षा दी। पुत्री का विवाह करके निराला को सुख हुआ, किन्तु उनको कुछ समय पश्चात् ही पुत्री की मृत्यु का दुःख झेलना पड़ा। व्याख्या : कवि कहता है-हे पुत्री! विवाह के समय तुम मातृहीन थीं जो एक अभिशाप था। वह भी मुझे झेलना पड़ा। विवाह के पश्चात् माँ ही बेटी को विदा करती है और माँ ही विदाई के समय पुत्री को ससुराल में लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने की शिक्षा देती है। दुर्भाग्य है कि यह फर्ज मुझे ही निभाना पड़ा। तेरी पुष्प शय्या भी मुझे ही सजानी पड़ी। तुझे विदा करते समय मुझे कालिदास की नायिका शकुन्तला की याद आ गई। किन्तु तुम्हारी और शकुन्तला की स्थिति में अन्तर था। दोनों के संस्कारों में अन्तर था। तुम दोनों मातृहीन थीं। इस कारण शकुन्तला की याद आ गई। उसी क्रम में कण्व ऋषि की याद आई। शकुन्तला को विदा करते समय कण्व ऋषि को जो दुःख हुआ होगा उससे अधिक दुःख मुझे हुआ। हे बेटी! तुमने ससुराल में कुछ समय सुख से व्यतीत किया फिर तुम अपनी नानी के घर आ गईं। तुम्हें नानी, मामा-मामी का अपार स्नेह मिला। जैसे बादल वर्षा करके धरती की प्यास बुझाते हैं, उसका हित करते हैं; उसी प्रकार नानी, मामा-मामी ने अपने अपार स्नेह से तुमको सुख दिया। उन्होंने सदैव तुम्हारे सुख-दुःख का ध्यान रखा। जिस लता पर तुम कली बनी और फूल बन खिली, वह लता (सरोज की माँ) भी वहीं की थी। जिस नानी के घर तुम पली, बड़ी हुईं उसी नानी की गोद में अपने प्राण त्याग दिये। विशेष :
4. मुझ भाग्यहीन की तू संबल शब्दार्थ :
सन्दर्भ : कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित 'सरोज स्मृति' से ली गई ये पंक्तियाँ इसी शीर्षक वाली कविता के रूप में 'अन्तरा भाग-2' में संकलित हैं। प्रसंग : निराला की लम्बी कविता 'सरोज स्मृति' का यह अन्तिम अंश है। यहाँ कवि ने अपने हृदय की सम्पूर्ण करुणा अपनी पुत्री के प्रति अर्पित की है। एक भाग्यहीन पिता के संघर्षमय जीवन और पुत्री के प्रति कुछ न कर पाने का पश्चात्ताप इसमें व्यक्त हुआ है। व्याख्या : कवि प्रिय पुत्री के प्रति अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हे पुत्री सरोज! तू मुझ भाग्यहीन पिता का एकमात्र सहारा थी। दो वर्ष तक अथवा लम्बे समय तक मैंने तेरी स्मृतियों को अपने हृदय में संजोए रखा, परन्तु अब मैं बहुत व्याकुल हो गया हूँ। अतः उस व्याकुलता को अब प्रकट कर रहा हूँ। मेरे जीवन की कथा दुःख भरी है अर्थात् मैंने जीवन-पर्यन्त दुःख ही झेला है। आज तक जिस दुःख की कथा को प्रकट नहीं कर पाया था, उसे आज इस कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा हूँ। मानवीय धर्म की रक्षा करते हुए यदि मेरे सम्पूर्ण. कर्मों पर वज्रपात भी हो जाए तो भी मेरा सिर नम्रता से झुका ही रहेगा। मैं अपने जीवन धर्म का निर्वाह करता ही रहूँगा, चाहे मेरे शील सौजन्य रूपी सत्कर्म और धर्म शीतकालीन कमल की पंखुड़ियों की तरह बिखर ही क्यों न जाएँ, मुझे इसकी चिन्ता नहीं है। मैं अपने जीवन के सभी पुण्य कर्मों का फल तुझे श्रद्धांजलि रूप में अर्पित करता हूँ। यही मेरा तर्पण है। यही मेरी तेरे प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। विशेष :
मुझ भाग्यहीन की तू संबल निराला की यह पंक्ति क्या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कैसे कार्यक्रम की मांँग करती है?हाँ, ये पंक्ति 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे कार्यक्रम की मांग करती है। यह पंक्ति राष्ट्र कवि सूर्यकांत त्रिपाठी द्वारा स्वरचित 'सरोज की स्मृति' कविता से ली गईं हैं। इस कविता के माध्यम से कवि निराला ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद उत्पन्न वियोग की दशा का वर्णन किया है।
ठाकुरों से कवि का संकेत किसकी ओर है?'ठग-ठाकुरों' से कवि का संकेत किसकी ओर है ? उत्तर : 'ठग-ठाकुरों' एक प्रतीक है जो उन शोषकों की ओर संकेत करता है जो सदैव समाज का शोषण करते रहे हैं और स्वयं विलासिता का जीवन व्यतीत करते रहे हैं। ये पूँजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और सदैव सामान्यजन पर अत्याचार करते रहते हैं।
|