मुलाक़ात वो है जिसकी उम्मीद से रिश्तों में बेक़रारी बनी रहती है और दूरियों के दर्द को राहत मिलती है। शायर अपने महबूब से मुलाक़ात को बेक़रार रहे और जब उनसे मिले तो उसे अपने लफ़्ज़ों में कुछ यूं बयां किया- Show यूँ सर-ए-राह मुलाक़ात हुई है अक्सर
मुसाफ़िर हैं हम...मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
मुद्दतें गुज़रीं मुलाक़ात हुई थी तुम से
मिलना जो न हो...मिलना जो न हो तुम को तो कह दो न मिलेंगे
मिल रही हो बड़े तपाक के साथ
बताओ कौन सी सूरत है...बताओ कौन सी सूरत है उन से मिलने की
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
न उदास हो न मलाल कर...न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है
जाने वाले से...जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई
ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है
गाहे गाहे की मुलाक़ात...गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
'फ़राज़' तर्क-ए-तअल्लुक़ तो ख़ैर क्या होगा
आज नागाह...आज नागाह हम किसी से मिले
आँख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुई
अगर हमारी आपसे...अगर हमारी आपसे मुलाक़ात हो गई होती
जब ख़यालों में दबे पाँव वो आ जाता है
तू है ख़ुर्शीद...तू है ख़ुर्शीद न मैं हूँ शबनम
कल रात ज़िंदगी से मुलाक़ात हो गई
मैंने माना कि...मैंने माना कि मुझे उनसे मोहब्बत न रही मुसाफ़िर हैं हम...4 years ago |