आदिमानव के औजार पत्थरों से बने होते थे क्योंकि - aadimaanav ke aujaar pattharon se bane hote the kyonki

आदि मानव को सभ्य बनने मे लाखों साल लग गये। खाद्य संग्राहक से खाद्य उत्पादक तक की अवस्था तक पहुंचने में आदमी को करीब ३,००,००० साल लगे। परन्तु एक बार खाद्य उत्पादक बनने के बाद मनुष्य ने बड़ी तेजी से उन्नति की। मनुष्य का अपने आस पास के वातावरण पर जितना अधिक नियंत्रण होता है, उतनी ही अधिक तेजी से वह उन्नति करता है।

आरंभ में आदमी खानाबदोश थे, यानी वे भोजन और आश्रय की तलाश में झुंड बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। आमतौर पर एक झुंड में कुछ पुरूष, स्त्रियां तथा बच्चे हुआ करते थे। सुरक्षा की दृष्टि से, अकेले रहने की बजाय समूह बनाकर रहना बेहतर था। उन दिनों का जीवन सचमुच ही बड़ा कठिन था, क्योंकि लोग पेड़ों के फल- फूल खाते थे और जो जानवर मिल जाते उनका शिकार करते। वे शाक-भाजी या अनाज पैदा करना नहीं जानते थे। इसलिए जब वे एक स्थान पर मिलने वाली सभी वस्तुओं को खाकर समाप्त कर देते, तो उन्हें भोजन की तलाश में अन्य किसी स्थान पर जाना पड़ता था। इसी प्रकार, जब वे एक स्थान पर पाये जाने वाले अधिकांश पशुओं का शिकार कर लेते, तो शिकार की खोज में उन्हें दूसरे स्थान पर जाना पड़ता था।

यदि कहीं गुफाएं होती तो मनुष्य उन्हीं में रहने लगते थे। अन्यथा वे बड़े पेड़ों की पत्तों वाली शाखाओं के बीच अपने लिए शरणस्थान बना लेते थे। उन्हें दो चीजों का भय रहता था- मौसम का और जंगली जानवरों का।‌ आदिमानव नहीं जानता था कि बादल क्यों गरजते हैं या बिजली क्यों चमकती है। और जब किसी चीज का कारण नहीं समझ आता तो आदमी उससे भयभीत रहता है। बाघ शेर चीता हाथी और गैंडा जैसे खूंखार जानवर जंगलों में घूमते फिरते रहते थे(और उन दिनों भारत में खूब जंगल थे) इन जानवरों की तुलना में मनुष्य कमजोर था इसलिए उसे या तो गुफाओं और पेड़ों पर छिपकर अपनी रक्षा करनी पड़ती थी या फिर अपने अनगढ़ हथियारों से उन्हें मार डालना पड़ता था। परन्तु इन जानवरों से रक्षा का सर्वोत्तम उपाय था- आग।

रात के समय जब सभी प्राणी गुफा में जमा हो जाते, गुफा के मुंह पर आग जलाई जाती थी। आग के डर से जानवर गुफा के भीतर नहीं आते थे। शीतकाल में और तुफानी रातों में आग ही उन्हें आराम और सुरक्षा प्रदान करती थी। आग की खोज संयोग से हुई है। चकमक पत्थर के दो टुकडो को आपस मे टकराने से एक चिंगारी उठी और जब वह सूखी पत्तियों और टहनियों पर गिरी तो उनमें से आग निकली। आदि मानव के लिए आग एक अजूबा थी, परन्तु आगे जाकर आदमी ने इसका अनेक‌ कामों में इस्तेमाल किया और इससे आदमी के रहन सहन में बड़ा सुधार हुआ। इस प्रकार आग की खोज से आदमी के जीवन में बड़ा परिवर्तन हुआ, इसलिए इसे हम एक महान खोज कह सकते हैं।

औजार और हथियार

चकमक पत्थर का, आग पैदा करने के अलावा, अन्य कई कामों में इस्तेमाल होता था। चकमक पत्थर कठोर है परन्तु, इसके चिप्पड़ आसानी से निकलते हैं। इसलिए इसे तरह तरह के आकार दिए जा सकते हैं । चकमक पत्थर तथा कुछ अन्य किस्मों के पत्थरों का औजार और हथियार बनाने में इस्तेमाल हुआ। इस तरह की कुछ चीजें पंजाब में सोहन नदी की घाटी से मिली है। कुछ स्थानों में, जैसे कश्मीर की घाटी में, जानवरों की हड्डियों से भी औजार और हथियार बनाए जाते थे। पत्थर के बड़े टुकड़ों से, जो कि आदमी की मुठ्ठी में आ सकते हैं, हथौड़ी कुल्हाड़िया और बसुले बनाए जाते थे‌‌। आरंभ में बिना मूठ के कुल्हाड़ियों से ही पेड़ आदि की टहानियां  काटी जाती थी। बाद में उसे डडे़ से बांध दिया गया, तो उसकी शक्ति और बढ़ गई और उसका बेहतर उपयोग होने लगा। औजारो के उपयोग से आदमी को बड़ा लाभ हुआ। इनसे वह पेड़ों की टहनियों को काटने, जानवर मारने, ज़मीन खोदने और लकड़ी और पत्थर को शक्ल देने में समर्थ हुआ।

पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े, जो प्रायः बड़े टुकड़ों के छीलन व कतरन होते थे, इतनी सावधानी से बनाए जाते थे, कि उनमें पतली धार आ जाती थी, और तब बारीक काम के लिए उनका चाकू या खुरचनी के रूप में उपयोग होता था अथवा उन्हें नोकदार बनाकर तीर या भाले के साथ बांध दिया जाता था। पानी की सुविधा के लिए आदिमानव प्रायः नदी या झरने के किनारे रहता था। यदि तुम हिमालय की तराई की नदियों के पाटों में दक्कन के पठार के कुछ भागों में, जैसे नर्मदा की घाटी में घुमो और जमीन में गौर से देखो, तो यदा-कदा आदि मानव का ऐसा कोई औजार तुम्हारे हाथ लग सकता है। पुरातत्ववेत्ता इन औजारों को 'अश्मोपकरण' कहते हैं।

आदिमानव के औजार पत्थरों से बने होते थे क्योंकि - aadimaanav ke aujaar pattharon se bane hote the kyonki

आदिम मानव द्वारा प्रयुक्त औजार 

आदिमानव के औजार पत्थरों से बने होते थे क्योंकि - aadimaanav ke aujaar pattharon se bane hote the kyonki

अन्न संग्राहक की अवस्था में मानव द्वारा प्रयुक्त औजार तथा वस्तुएं 

कपड़े

आदि मानव को कपड़ों के बारे में कोई अधिक कठिनाई नहीं थी। गर्मी के मौसम में बिना कपड़ों के चल जाता था। बरसात या ठंडक के दिनों में मारे हुए पशुओं की खाल, वृक्षों की छाल अथवा बड़े पत्ते कपड़े के रूप में काम में लाए जाते थे। बदन पर लपेटे गये एक या दो मृगचर्म शरीर को गर्म रखने के लिए पर्याप्त थे।

स्थिर जीवन का आरंभ

जैसे-जैसे आदमी को अपने आसपास की वस्तुओं का अधिक ज्ञान होता गया, वैसे-वैसे अधिक सुविधा का जीवन बिताने की उसकी लालसा बढ़ती गई। कुछ नयी खोजों के साथ आदमी का रहन-सहन भी बदल गया। इनमें आदमी की सबसे महत्वपूर्ण खोज थी पौधे उगाना  और अन्न पैदा करना। उसने पता लगा लिया की भूमि में बीज डालने और पानी देने से पौधे उगते हैं यह कृषि की शुरुआत थी। यह एक महत्वपूर्ण खोज थी, क्योंकि मानव को अब भोजन की तलाश मे एक जगह से दूसरी जगह भटकने की जरूरत नहीं रह गई थी। उसका खानाबदोशी का जीवन समाप्त हो गया था, और उसने एक स्थान पर टिके रहने वाले किसान का जीवन शुरू कर दिया था। मानव की जीवन पद्धति मे ये परिवर्तन भारत के विभिन्न भागों में विभिन्न कालों में हुए। हमारे देश के अधिकांश भागों में यह परिवर्तन आज से करीब चार से पांच हजार साल पहले हुए।

पशुपालन

मनुष्य ने एक और महत्वपूर्ण खोज की। उसे पता चल गया कि जंगली पशुओं को पालतू बनाया जा सकता है, यानी वह उन्हें अपने काम के लिए उपयोग में ला सकता है, उदाहरण के लिए, जंगली बकरे-बकरीयो को केवल मारा जा सकता था और उनका मांस खाया जा सकता था परंतु फालतू बकरियां प्रतिदिन दूध दे सकती थी, उनसे और बकरियां पैदा की जा सकती थी, और उनमें से कुछ खाई भी जा सकती थी। इस प्रकार शिकार के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं रह गई थी। कुत्ते को पालना मनुष्य के लिए बड़ा फायदेमंद सिद्ध हुआ। पालतू बनाए गए दूसरे पशु थे, भेड़ और ढोर। ढोरो का बड़ा लाभ था, क्योंकि उनसे ना केवल भोजन मिलता था, बल्कि हल जोतने में और गाड़ी खींचने में भी उन्हें काम में लाया जा सकता था।

धातुओं की खोज

जब मनुष्य एक स्थान पर स्थायी रूप से बस गया और अन्न पैदा करने लग गया तो उसने सर्वप्रथम पेड़ों तथा झाड़ियों को काट कर या जला कर जमीन साफ करनी पड़ी। इस काम से पहले दो आविष्कार बड़े उपयोगी सिद्ध हुए। पत्थर की कुल्हाड़ीया पेड़ और झाड़ियां काटने के काम आई, और बाद में ठूंठ जला देने पर जमीन साफ हो कर खेती के लिए तैयार हो गई। पत्थर की कुल्हाड़ियो से पेड़ काटना बड़े परिश्रम का काम था। पर सौभाग्य से एक अन्य खोज ने पेड़ो को काटना आसान बना दिया। यह थी धातुओं की खोज। आरंभ में तांबे की खोज हुई। बाद में तांबे के साथ दूसरी धातु मिलाई गई; जैसे रांगा, जस्ता, सीसा। इन्हे मिलने से जो मिश्रधातु बनी वह कांसा कहलायी। यह सब कैसे हुआ कच्ची धातु के पिंड को पिघला कर किस प्रकार धातु तैयार की गई, यह हमे मालूम नहीं है। धातु की छुरिया और कुल्हाडिया पत्थर k औजार से अधिक पैनी और बेहतर काम करने वाली सिद्ध हुई। जिस युग में मनुष्य केवल पत्थर के औजारों का इस्तेमाल उसे पाषाण युग अथवा (पुरापाषाण युग तथा  नव पाषाण युग) कहते हैं। जिस युग में मनुष्य ने छोटे छोटे पत्थरो के औजारों साथ साथ धातुओं का इस्तेमाल शुरू कर दिया उसे ताम्रयुग या कांस्य युग या ताम्र-पाषाणयुग कहते हैं । भारत के कई स्थानों से उस युग की तांबे या कांसे की कुल्हाड़ियां और छुरियां मिली है। ऐसे कुछ स्थान है- ब्रह्मगिरि (मैसूर के पास) और नवदा- टोली(नर्मदा के तट के पास)

पहिया

एक अत्यन्त महत्वपूर्ण खोज थी चाक या पहिया। पर कोई नहीं जानता कि पहिये की खोज किसने की, कहा कि और कब की।‌ लेकिन इस खोज से आदमी के जीवन में बड़ी तेजी से प्रगति हुई। पहिया या चाक आवश्यकता आज भी है फिर वह चाहे हाथ की घड़ी जैसी छोटी चीज के लिए हो‌ या बड़ी रेलगाड़ी जैसी बड़ी चीज के लिए । पहिये के अविष्कार ने जीवन को अनेक प्रकार से काफी सुगम बना दिया है। उदाहरण के लिए पहिये के प्रयोग के पहले मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने के लिए या तो पैदल जाता था या किसी पशु की पीठ पर बैठकर। लेकिन वह ऐसी गाड़ी बना सकता था जिसे कोई पशु खींचता था और जिसमें एक से अधिक आदमी बैठ कर एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंच सकते थे। पहिए ने भारी चीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने मे सहायता दी जो पहले संभव नहीं था। इसके अलावा, चाक के प्रयोग ने मिट्टी के बेहतर बर्तन बनाने में योग दिया।

प्रारंभिक गांव

मानव का जीवन स्थिर होने पर दूसरे कई परिवर्तन हुए। जब तक लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकना पड़ा, तब तब उन्हें पुरुष स्त्रियों तथा बच्चों के बड़े समूहों में रहना पड़ा। समूह के भीतर एक दूसरे को सुरक्षा और सहायता मिलती थी जब लोग एक स्थान पर स्थायी रूप से बसने लगे और अपने लिए अन्न पैदा करने लगे, तो उनके बड़े समूह ही कायम रहे, परंतु काम के लिहाज से उनकी पारिवारिक इकाइयां बन गई। एक गांव में कई परिवार बसते थे, इसलिए एक दूसरे को सुरक्षा और सहायता मिलती रही, अब उन्होंने अपने लिए झोपड़ियां बनाई; जौ, चावल या गेहूं उगाने लगे और बकरियां भेड़ ढोर तथा दूसरे पशु पालने लगे। ऐसे गांव सारे भारतवर्ष में पाए गए हैं, पर नदियों की घाटियों में और समतल मैदानों में, जहां जमीन अधिक उपजाऊ होती थी और फसल उगाना आसान था इनकी तादाद अधिक थी। पुरातत्वेक्ताओं ने ऐसे गांवों के अनेक अवशेषों को खोज निकाला है। इन स्थलों को देखकर हम बता सकते हैं कि उस समय के लोग किस तरह का जीवन बिताते थे।

गांव छोटे थे और झोपड़िया एक दूसरे से सती रहती थी। एक दूसरे के नजदीक रहने से जंगली जानवरों से गांव की रक्षा करने में आसानी होती थी। झोपड़ीयो के क्षेत्र को संभवत मिट्टी की दीवार या कांटेदार झाड़ियों की बाड़ से घेर दिया जाता था। खेत इस घेरे के बाहर होते थे। आमतौर पर गांव खेतों की अपेक्षा कुछ अधिक ऊंची भूमि पर बसा होता था। झोपड़िया घास-फूस के छप्परो से ढकी जाती थी और आमतौर पर एक-एक कमरे की ही होती थी। बल्लियों की ठटरी बनाकर उस पर टहानियां और फूस बिछाई जाती थी। झोपड़ी में आग जलाकर उस पर खाना पकाया जाता था। रात के समय उसी आग के चारों और परिवार के लोग सोते थे।

अब भोजन कच्चा नहीं, पकाकर खाया जाता था। मांस को आग पर भूना जाता था। दो पत्थरों के बीच अनाज पीसा जाता था। और आटे की रोटी बनाई जाती थी। अतिरिक्त अनाज बड़े-बड़े घड़ों या मर्तबानो में रखा जाता था। खाना पकाने के लिए बर्तनों की जरूरत पड़ती थी। आरंभ में मिट्टी के बर्तन बनते थे, बाद में धातु के भी बनने लगे। शुरू में मिट्टी के बर्तन स्त्रियां बनाती थी। वह अपने हाथों में मिट्टी को गोल घड़ों कटोरा और तश्तरियों में ढाल देती थी। फिर इन्हें धूप में सुखा लिया जाता था। आगे चलकर सुखाय गए इन मिट्टी के बर्तनों को भट्ठे या आवे में पकाया जाने लगा। तब यह बर्तन इतने सख्त और मजबूत हो जाते थे कि पानी में डालने पर भी नहीं करते थे। और आगे चलकर चाक का इस्तेमाल होने लगा, तो चाक पर अधिक तेजी से बर्तन बनने लगे। यह बर्तन उसी प्रकार बनते थे जैसे आजकल गांवों में बनाए जाते हैं। ताम्रपाषाण युग के कुम्हार कभी-कभी अपने बर्तनों पर सुंदर रूपांकन करते थे।

आदिमानव के औजार पत्थरों से बने होते थे क्योंकि - aadimaanav ke aujaar pattharon se bane hote the kyonki

अन्न उत्तपादक की अवस्था में मानव  प्रयुक्त औजार और वस्तुएं

वस्त्र और आभूषण

ताम्र पाषाण युग का मानव आभूषण और सजावट का शौकीन था। अब मनुष्य को जंगली जानवरों और खराब मौसम के खिलाफ कठोर संघर्ष नहीं करना पड़ता था। इसलिए आनंद मनाने और अपने तथा अपनी स्त्रियों के लिए आभूषण बनाने के लिए उसके पास समय था। स्त्रियां सीपियो तथा हड्डियों के आभूषण पहनती थी और बालों में सुंदर कंघियां लगाए लगाए रहती थी। अब कपड़े केवल पशुओं की खाल, पेड़ों की छाल और पत्तों के नहीं होते थे। मनुष्य ने कपास के पौधे की रुई से सूट कातने और कपड़ा बुनने की विधि खोज ली थी। अवकाश का समय खेल और मनोरंजन में व्यतीत होता था।

समाज 

जब लोग खानाबदोशी का जीवन छोड़कर गांवों में रहने लगे, तब वे मनमानी नहीं कर सकते थे; उनके लिए आचरण का नियम बनाना आवश्यक हो गया दूसरे परिवारों और दूसरे समूहों के साथ रहने के लिए यह जरूरी था कि गांव में कोई कानून और व्यवस्था हो। सर्वप्रथम यही निश्चित करना था कि प्रत्येक व्यक्ति का क्या काम हो। कुछ आदमी खेती में काम करने जाते जबकि कुछ पशुओं की देखभाल करते या झोपड़िया बनाते औजार तथा हथियार बनाते। पुरूषों के साथ स्त्रियां भी खेतों में काम करने जाती थी और पशुओं की देखभाल करती थी। कुछ स्त्रियां सूत कातती व कपड़े बुनती थी, कुछ मिट्टी के बर्तन बनाती थी। स्त्रियां बर्तन बनाने के लिए कुम्हार की चाक का इस्तेमाल नहीं करती थी। केवल पुरुष ही चौक पर बर्तन बनाते थे। कौन क्या, काम करें उसका निर्णय सारा गांव मिलकर करता था। फिर भी गांव में एक ऐसे नेता या मुखिया की आवश्यकता थी जो आदेश दे सके। गांव का सबसे वृद्ध आदमी ही प्रायः मुखिया होता था, और उसे ही सबसे अधिक बुद्धिमान भी समझा जाता था।

धर्म

जीवन के कुछ ऐसे पहलू थे जो मनुष्य के लिए पहेली बने हुए थे। हर रोज सूरज क्यों निकलता है और शाम को क्यों डूब जाता है? नींद, स्वप्न, जन्म, विकास और मृत्यु मनुष्य की समझ से बाहर थे। क्या कारण है कि हर साल वही ऋतुएं है बराबर आती जाती रहती हैं? मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है? मनुष्य मृत्यु से डरते थे वे बिजली की कड़कड़ाहट और भूकंप से भी डरते थे, क्योंकि वे इनका कारण नहीं जानते थे। कुछ लोगों ने इन सवालों के बारे में दूसरों की अपेक्षा अधिक सोचा और उनके उत्तर सुझाएं। आकाश का एक देवता था जो सूर्य को प्रतिदिन आकाश में यात्रा करने की अनुमति देता था। धरती की कल्पना एक ऐसी मां के रूप में की गई जो फसलों और पौधों से अपने बच्चों का पालन करती है। और यदि हर सुबह सूर्योदय होता रहे और धरती फसल पैदा करती रहे, तो आकाश के देवता और धरती माता को बलि देकर स्तुति गान से संतुष्ट करना जरूरी था। मातृ देवी के रूप में धरती माता की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई जाती थी और सर्वत्र इनकी पूजा होती थी। इस प्रकार कुछ व्यक्ति चमत्कारी हो गए और दावा करने लगे कि वे मौसम पर काबू पा सकते हैं बीमारी अच्छी कर सकते हैं और नुकसान से लोगों की रक्षा कर सकते हैं। बाद में पुरोहितों का एक ऐसा वर्ग तैयार हुआ जो समूचे समाज की ओर से यज्ञ करता था और मंत्रों का गान करता था।

मृत्यु एक ऐसे अन्य लोक की यात्रा समझी जाती थी जहां से कभी कोई वापस नहीं लौटता। इसलिए जब किसी स्त्री या पुरुष की मृत्यु हो जाती थी तो कब्र या समाधि बनाकर उसे जमीन में गाड़ दिया जाता था। जब कोई बच्चा मर जाता तो उसके शव को एक बड़े घड़े में रखकर गाड़ जाता था। कभी-कभी समाधि-स्थल को बड़ी-बडी़ प्रस्तर शिलाओ से घेर भी दिया जाता था। शव के साथ बर्तन, मनके। तथा अन्य ऐसी चीज भी रख दी जाती थी । जिन्हें ग्रामवासी मरे हुए मनुष्य के लिए उसकी यात्रा में जरूरी समझते थे।

मनुष्य की संस्कृति रहन-सहन का ढंग या व्यवहार का तरीका उस आदिम अवस्था से काफी आगे बढ़ गया था जब मनुष्य खानाबदोश था, और हर रोज भोजन जुटाता था। अब उसके पास रहने के लिए स्थाई जगह थी और वह अपने गांव में काफी सुरक्षित था। वह अपनी जीवन-पद्धति में सुधार कर रहा था और चीजें बनाने के नए तरीके खोज रहा था- ऐसे तरीके जो उसके जीवन को अधिक सुखमय और सुगम बना रहे थे। परंतु अभी भी उसके जीवन में एक चीज का अभाव था जिसके कारण वह तेजी से उन्नति करने में असमर्थ था। वह लिखना नहीं जानता था। वह अपने बच्चों को यह तो सिखा सकता था कि कैसे फसलें उगाई जाए, पशु कैसै पाला जाए या बर्तन कैसे बनाए जाएं, परंतु वह अपने ज्ञान को लिख नहीं सकता था। उसे लिखने का ज्ञान आगे जाकर तब हुआ जब नगरों का जन्म हुआ।

आदिमानव के औजार पत्थरों से बने होते थे क्यों?

उत्तर- आदिमानव पत्थरों के औजारों का उपयोग जानवरों का शिकार करने, मांस काटने, लकड़ी काटने, कंदमूल खोजने, आदि के लिए करता था।

आदिमानव के औजार कैसे बने थे?

पाषाण काल के अंतिम चरण को नवपाषाण युग कहा जाता है। 7,000 ई. पू. का यह समय मुख्यतः धरती पर खेती की शुरुआत तथा पत्थरों के तराशे गए हथियारों और औजारों के उपयोग के लिए प्रसिद्ध है। पाषाण युग के दो अन्य चरण - पुरापाषाण युग (500,000 ईसा पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व) और मध्य पाषाण युग (9,000 ईसा पूर्व से 4,000 ईसा पूर्व) थे

औजारों का निर्माण कैसे हुआ?

होमो इरेक्टस के द्वारा बनाए गए औजार चकमक पत्थर के बने थे और जो चट्टानें उन्होंने इन औजारों को बनाने के लिए प्रयुक्त की थी वे क्वार्टज, क्वार्टजाइट तथा अन्य ज्वालामुखीय चट्टानें थीं। पत्थर से बनी हत्था लगी कुल्हाड़ी जो होमो इरेक्टस ने बनायी थी, उसके सिरे पैने थे।

आदिमानव ने हथियार बनाना क्यों सीखा?

( घ ) आदि मानव ने हथियार बनाना क्यों सीखा ? उत्तर – जानवरों से अपनी रक्षा करने के लिये ।