आधुनिक हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी की लेखिका हैं - aadhunik hindee kee pratham maulik kahaanee kee lekhika hain

हिन्दी कहानी का विकास

आधुनिक हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी की लेखिका हैं - aadhunik hindee kee pratham maulik kahaanee kee lekhika hain

सन् 1900 के लगभग हिन्दी कहानी का जन्म हुआ और 1912 से 1918 ई. के बीच वह पूर्णतः प्रतिष्ठित हो गई।

सन् 1900 में आधुनिक हिन्दी कहानी के मौलिक लेखन का श्रीगणेश प्रयाग से प्रकाशित 'सरस्वती पत्रिका' से हुआ। इस पत्रिका में किशोरीलाल गोस्वामी की कहानी 'इन्दुमती' प्रकाशित हुई जिसे हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी का श्रेय दिया जाता है। यह शेक्सपियर के 'टेम्पेस्ट' नाटक के आधार पर लिखी गई थी।

वर्ष 1803 में मुंशी इंशा अल्लाह खाँ द्वारा 'रानी केतकी की कहानी' लिखी गई। कुछ विद्वान बंग महिला की कहानी 'दुलाई वाली' (1907) को भी हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी स्वीकारते हैं।

सन् 1909 में काशी से 'इन्दु' मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ, जिसमें 1911 में जयशंकर प्रसाद की कहानी 'ग्राम' प्रकाशित हुई। सन् 1911 से 1927 तक कहानी का विकास काल रहा, इसमें चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'सुखमय जीवन' विश्वम्भर नाथ की 'परदेश' (1912), राजा राधिकारमण सिंह की 'कानों में कंगना' (1913) मासिक पत्रिका 'इन्दु' में प्रकाशित हुई। सन् 1914 में आचार्य चतुरसेन शास्त्री की 'गृहलक्ष्मी' 1915 में चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहानी 'उसने कहा था' प्रकाशित हुई। इसी वर्ष कथा साहित्य के अमर कथाकार मुंशी प्रेमचन्द की पंच परमेश्वरकहानी प्रकाशित हुई।

हिन्दी कहानी को जनजीवन से जोड़ने और उसके क्षेत्र को व्यापकता प्रदान करने का श्रेय प्रेमचन्द को है। यथार्थ जीवन को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर उन्होंने समाज की रूढ़ियों, धर्म के बाह्याडम्बरों, राजनीति के खोखलेपन, उत्कट देश-प्रेम, आर्थिक वैषम्य, कृषक वर्ग एवं श्रमिक वर्ग के शोषण के जीवन्त सशक्त चित्र खींचे। उन्होंने हिन्दी में यथार्थवादी आदर्शोन्मुख कहानी लेखन का सूत्रपात किया। वे अपनी आरम्भिक कहानियों में घटनाओं को महत्व देते रहे पर धीरे-धीरे उनकी दृष्टि चरित्र की ओर गई। अन्ततः मनोवैज्ञानिक अनुभूति को ही उन्होंने अपनी कहानी का आधार स्वीकार किया। ग्राम्य जीवन को केन्द्र में रखकर लिखी गई कहानियाँ पंच परमेश्वर’, ‘बूढ़ी काकी’, ‘ईदगाह’, ‘सुजान भगत, पूस की रात, ‘कफनआदि सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ हैं।

कहानी विकास युग में अधिकांश कहानीकार प्रेमचन्द की शिल्पकला के अनुगामी रहे।

सियारामशरण गुप्त की कहानियाँ यथार्थ पृष्ठभूमि पर निर्मित होकर भी आदर्शवादी जीवन-दृष्टि पर अधिक बल देती हैं। वृन्दावनलाल वर्मा ने ऐतिहासिक, सामाजिक और शिकार सम्बन्धी कहानियों का लेखन किया जिनमें आदर्शोंन्मुख यथार्थ की प्रवृत्ति अधिक रही है।

प्रेमचन्द के समकालीन कहानीकारों में जयशंकर प्रसाद का योगदान भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहाहै। उन्होंने कहानी में भावमूलक आदर्शवादी परम्परा की नींव डाली। उनकी कहानियाँ कभी गीतिकाव्य की संवेदना से प्रेरित तो कहीं महाकाव्य की संवेदना से प्रेरित होकर लिखी गईं। आकाशदीपऔर पुरस्कारउनकी उल्लेखनीय कहानियाँ हैं। प्राचीन भारत की वैभवपूर्ण, सांस्कृतिक झाँकी का चित्रण इनकी कहानियों में देखने को मिलता है।

हिन्दी कहानी के संक्रान्ति युग में कहानी व्यक्तिपरक एवं भावपरक हो गई। जैनेन्द्र ने नैतिकमान्यताओं के आधार पर अपने चरित्र खड़े किए। अज्ञेय और इलाचन्द्र जोशी के पात्र अहं और विद्रोह की भित्ति पर खड़े हुए। अज्ञेय की शत्रुकहानी इसका उदाहरण है। इस युग में आकर पात्रों के मन में उठने वाला अन्तर्द्वन्द्व बाहरी घटनाओं से सम्बन्धित नहीं रहा। अब अवचेतन मन की आन्तरिक प्रवृत्तियाँ ही उनके बाह्य-व्यापारों का संचालन करने लगीं। जैनेन्द्र ने अपनी कहानियों में घटनाओं और कार्यों की अपेक्षा मानसिक ऊहापोह विश्लेषण को प्रधानता दी। अज्ञेय ने अपने चरित्रों में वैयक्तिकता को अधिक प्रश्रय दिया।

मार्क्सवादी विचारधारा की पोषक कहानियों में वर्ग संघर्ष का चित्रण मिलता है। इन प्रगतिवादी कहानीकारों ने धार्मिक अन्धविश्वासों, परम्परागत रूढ़ियों, समाज में चलते आ रहे शोषण चक्र का तीव्रता के साथ विरोध और खण्डन किया। उन्होंने व्यक्ति के रूप में न देखकर समाज के माध्यम से देखा और पूरे इतिहास का आर्थिक दृष्टि से मूल्यांकन कर प्रतिपादित किया कि उत्पादन के साधन जब तक उत्पादनकर्ता के हाथों में न आयेंगे तब तक ये संघर्ष जारी रहेगा।

इस संघर्ष की सशक्त अभिव्यक्ति यशपाल की कहानियों में देखने को मिलती हैं। अन्य कहानीकारों में रांगेय राघव, राहुल सांकृत्यायन आदि उल्लेखनीय हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कहानी ने नई दिशा की ओर कदम बढ़ाये। देश के सामने नए दृष्टिकोण उभरे। जीवन मूल्यों में परिवर्तन आने लगा। कहानी के शिल्प में नए प्रयोग होने लगे। सोच और चिन्तन में परिवर्तन आया। इस काल में निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, विष्णु प्रभाकर, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, मोहन राकेश, मन्नू भण्डारी, ज्ञान रंजन आदि कहानीकार प्रमुख रूप से उभरे।

समकालीन कहानी का रचना संसार अपने आस-पास के परिवेश से निर्मित है। जीवन की अनेक समस्याओं को विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त किया है। इसी काल में मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव व कमलेश्वर ने नई कहानीके आन्दोलन का सूत्रपात किया। तत्पश्चात् सचेतन कहानी और अकहानी जैसे अन्य आन्दोलन शुरू हुए।

Objective Question 

निम्न में से हिन्दी की प्रथम कहानी किसे माना जाता है?

अ. दुलाई वाली

ब. रानी केतकी की कहानी

स. राजा भोज का सपना

द. इन्दुमती

उत्तर— द

आधुनिक हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी के लेखक कौन हैं?

हिन्दी की सर्वप्रथम कहानी समझी जाने वाली कड़ी के अर्न्तगत सैयद इंशाअल्ला खाँ की 'रानी केतकी की कहानी' (सन् 1803 या सन् 1808), राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद की 'राजा भोज का सपना' (19 वीं सदी का उत्तरार्द्ध), किशोरी लाल गोस्वामी की 'इन्दुमती' (सन् 1900), माधवराव सप्रे की 'एक टोकरी भर मिट्टी' (सन् 1901), आचार्य रामचंद्र ...

हिंदी के पहले कहानी के लेखक कौन है?

हिन्दी की पहली कहानी माधवराव सप्रे ने लिखी थी। एक टोकरी मिट्टी (टोकनी भर मिट्टी) नाम की यह कहानी छत्तीसगढ़ मित्र नाम की पत्रिका में अप्रैल 1901 के अंक में प्रकाशित हुई थी।

मौलिकता की दृष्टि से हिंदी की पहली कहानी कौनसी है?

इसलिए उनके लिए वे किताबें ज़्यादा उपयोगी थीं जिनमें केवल चित्र हों और लिखा हुआ कम हो ।

हिंदी की मौलिक कहानी कौन सी है?

वर्ष 1803 में मुंशी इंशा अल्लाह खाँ द्वारा 'रानी केतकी की कहानी' लिखी गई। कुछ विद्वान बंग महिला की कहानी 'दुलाई वाली' (1907) को भी हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी स्वीकारते हैं।