अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था, जिसे 30 जनवरी 1990 से सारे भारत में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएँ हैं। Show
अत्याचार के अपराध अत्याचार के अपराधों के लिए दंड- ( 1 ) कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है- ( i ) अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अन्वाय घृणाजनक पदार्थ पीने या खाने के लिए मजबूर करेगा । ( ii ) अनुसूचित जाति था अनुसुचित जनजाति के किसी सदस्य के परिसर या पड़ोस में मल - मूत्र कुरा पशु - शव या कोई अन्य घृणाजनक पदार्थ इकट्ठा करके उसे क्षति पहुंचाने , अपमानित करने या क्षुब्ध करने के आशय से करेगा . ( iii ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के शरीर से बलपूर्वक कपड़े उतारेगा या उसे नंगा या उसके चेहरे या शरीर को पोतकर घुमाएगा या किसी प्रकार का कोई अन्य ऐसा कार्य करेगा जो मानद के सम्मान के विरुद्ध है ( iv ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के स्वामित्वाधीन या उसे आबंटित या किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे आबंटित किए जाने के लिए अधिसूचित किसी भूमि को सदोष अधिभ ोग में लेगा या उस पर खेती करेगा या उसे आबंटित भूमि को अंतरित करा लेगा ; ( v ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उसकी भूमि या परिसर सदोष बेकब्जा करेगा या किसी भूमि , परिसर या जल पर उसके अधिकारों के सपनोम में हस्तक्षेप करेगा ( vi ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को " बेगार " करने के लिए या सरकार द्वारा लोक प्रयोजनों के लिए अधिरोपित किसी अनिवार्य सेवा से भिन्न अन्य समरूप प्रकार के बलात्श्रम या बंधुआ मजदूरी के लिए विवश करेगा या फुसलएगा. ( vi ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को मतदान न करने के लिए या किसी विशिष्ट अमार्थी के लिए मतदान करने के लिए या विधि द्वारा उपबंधित से निन्न रीति से मतदान करने के लिए मजबूर या अभिवस्त करेगा । ( vii ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरुद्ध मिथ्या , द्वेषपूर्ण या तंग करने वाला बाद या दांडिक या अन्य विधिक कार्यवाही संस्थित करेगा : ( viii) किसी लोक सेवक को कोई मिश्या गा तुच्छ जानकारी देगा और उसके द्वारा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति पहुंचाने या क्षुब्ध करने के लिए ऐसे लोक सेवक से उसकी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कराएगा : ( ix ) जनता को दृष्टिगो चर किसी स्थान में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य का अपमान करने के आशय से साशय उसको अपमानित या अभित्रस्त करेगा ( x ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला का अनादर करने या उनसको लज्जा भंग करने के आशय से हमला या बल प्रयोग करेगा : ( xi) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी महिला की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में होने पर उसी स्थिति का प्रयोग उसका लैंगिक शो ण करने के लिए , जिसके लिए वह अन्यथा सहमत नहीं होती , करेगा :. ( xii) किसी पोत , जलाशय या किसी अन्य उद्गम के जल को जो आम तौर पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उपयोग में लाया जाता है , दूषित या गंदा करेगा जिससे कि वह उस प्रयोजन के लिए कम उपयुक्त हो जाए जिसके लिए उसका आम तौर पर प्रयोग किया जाता है । ( xii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को सार्वजनिक निगम के स्थान के मार्ग के किसी दिजन्य अधिकार से वंचित करेगा या ऐसे सदस्य को बाधा पहुंचाएगा , जिससे कि वह ऐसे सार्वजनिक अभिगम के स्थान का उपयोग करने या वहां पहुंचने से निवारित हो जाए जहां जनता के अन्य सदस्यों या उसके किसी भाग को उपयोग करने का या पहुंचने का अधिकार है :. (1) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकान , गांव या अन्य निवास स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करेगा या कराएगा , दह , कारावास से , जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किंतु पो पाँच वर्ष तक की हो सकेगी . और जुर्माने से . दंडनीय होगा । ( 2 ) कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है मिथ्या साक्ष्य देगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लिए जो तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा मृत्यु दढ से दंडनीय है , दोषसिद्ध कराना है या वह यह जानता है कि इससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य है , वह आजीवन कारावास से और जुर्माने से देखनीय होगा ; और यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी निर्योग सदस्य को ऐसे मिथ्या या गझे हुए साक्ष्य के फलस्वरूप दोषसिद्ध किया जाता है और फासी दी जाती है तो यह व्यक्ति , जो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देता है या गलता है . मृत्यु दंड से दंडनीय होगा :. ( ii ) मिथ्या साक्ष्य देना या गदेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को ऐसे अपराध के लिए जो मृत्यु दंड से दंडनीय नहीं है किंतु सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय है , दोषसिद्ध कराना है या यह यह जानता है कि उससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य है , वह कारावास से , जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किंतु जो सात वर्ष या उससे अधिक की हो सकेगी और जुर्माने से , दंडनीय होगा । ( iii) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य की किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाथ्य है वह कारावास से , जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से , दंडनीय होगा : ( iv ) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय किसी ऐसे भवन को जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता है , नष्ट करता है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य है , वह आजीवन कारावास से और जुर्माने से दंडनीय होगा ; ( v ) भारतीय दंड संहिता ( 1860 का 45 ) के अधीन दस वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दडनीय कोई अपराध किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरुद्ध इस आधार पर करेगा या ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की है , यह आजीवन कारावास से , और जुर्माने से , देखनीय होगा । ( vi ) यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि इस अध्याय के अधीन कोई अपराध किया गया है , वह अपराध किए जाने के किसी सक्ष्य को अपराधी को विधिक दंड से बचाने के आशय से गायब करेगा या उस आशय से अपराध के बारे में कोई ऐसी जानकारी देगा जो वह जानता है या विश्वास करता है कि वह मिथ्या है , वह उस अपराध के लिए उपबंधित देत से देखनीय होगा : या ( vii) लोक सेवक होते हुए या इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा , यह कारावास से , जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगी , दंडनीय होगा । * परिचय[संपादित करें]यह क़ानून क्या करता है?[संपादित करें]यह अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध किए गए अपराधों के निवारण के लिए है, अधिनियम ऐसे अपराधों के संबंध में मुकदमा चलाने तथा ऐसे अपराधों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए राहत एवं पुनर्वास का प्रावधान करता है। सामान्य बोलचाल की भाषा में यह अधिनियम अत्याचार निवारण (Prevention of Atrocities) या अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम कहलाता है। इस कानून की तीन विशेषताएँ हैं :
इस क़ानून के तहत किस प्रकार के अपराध दण्डित किये गए हैं ?[संपादित करें]
आर्थिक बहिष्कार किसे कहते हैं ?[संपादित करें]यदि कोई व्यक्ति किसी अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के सदस्य से व्यापार करने से इनकार करता है तो इसे आर्थिक बहिष्कार कहा जाएगा। निम्न गतिविधियाँ आर्थिक बहिष्कार की श्रेणी में आएँगी:
सामाजिक बहिष्कार क्या है ?[संपादित करें]सामाजिक बहिष्कार तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के साथ संपर्क में आने से इनकार करता है या उसे अन्य समूहों से अलग रखने की कोशिश करता है। क्या एक सरकारी अधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन न करने के लिए दंडित किया जा सकता है?[संपादित करें]यदि कोई सरकारी अधिकारी (जो कि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है) , अभिप्रायपूर्वक/जानबूझकर इस अधिनियम के तहत दिए गए कर्तव्यों का पालन नहीं करता है तो उसे ६ महीने से १ साल तक के कारावास की सज़ा दी जा सकती है। एक अधिकारी पर केस तभी किया जा सकता है जब मामले की जाँच हो चुकी हो, और जाँच की रिपोर्ट में यह रास्ता सुझाया गया हो। सरकारी अधिकारियों के कर्तव्य:
यह कानून एस.सी., एस.टी. वर्ग के सम्मान, स्वाभिमान, उत्थान एवं उनके हितों की रक्षा के लिए भारतीय संविधान में किये गये विभिन्न प्रावधानों के अलावा इन जातीयों के लोगों पर होने वालें अत्याचार को रोकनें के लिए 16 अगस्त 1989 को उपर्युक्त अधिनियम लागू किये गये। वास्तव में अछूत के रूप में दलित वर्ग का अस्तित्व समाज रचना की चरम विकृति का द्योतक हैं। भारत सरकार ने दलितों पर होने वालें विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को रोकनें के लिए भारतीय संविधान की अनुच्छेद 17 के आलोक में यह विधान पारित किया। इस अधिनियम में छुआछूत संबंधी अपराधों के विरूद्ध दण्ड में वृद्धि की गई हैं तथा दलितों पर अत्याचार के विरूद्ध कठोर दंड का प्रावधान किया गया हैं। इस अधिनिमय के अन्तर्गत आने वालें अपराध संज्ञेय गैरजमानती और असुलहनीय होते हैं। यह अधिनियम 30 जनवरी 1990 से भारत में लागू हो गया। यह अधिनियम उस व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर अत्याचार का अपराध करता है़। अधिनियम की धारा 3 (1) के अनुसार जो कोई भी यदि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर निम्नलिखित अत्याचार का अपराध करता है तो कानून वह दण्डनीय अपराध माना जायेगा-
दण्ड[संपादित करें]ऊपर वर्णित अत्याचार के अपराधों के लियें दोषी व्यक्ति को छः माह से पाँच साल तक की सजा, अर्थदण्ड (फाइन) के साथ प्रावधान हैं। क्रूरतापूर्ण हत्या के अपराध के लिए मृत्युदण्ड की सजा हैं। अधिनियम की धारा 3 (2) के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और-
यदि वह मिथ्या साक्ष्य के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लियें दोष सिद्ध कराता हैं जिसमें सजा सात वर्ष या उससें अधिक है तो वह जुर्माना सहित सात वर्ष की सजा से दण्डनीय होगा। आग अथवा किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा किसी ऐसे मकान को नष्ट करता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता हैं, वह आजीवन कारावास के साथ जुर्मानें से दण्डनीय होगा। लोक सेवक होत हुयें इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह एक वर्ष से लेकर इस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा। अधिनियम की धारा 4 (कर्तव्यों की उपेक्षा के दंड) के अनुसार कोई भी सरकारी कर्मचारी/अधिकारी जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं, अगर वह जानबूझ कर इस अधिनियम के पालन करनें में लापरवाही करता हैं तो वह दण्ड का भागी होता। उसे छः माह से एक साल तक की सजा दी जा सकती हैं। अन्य प्रावधान[संपादित करें]धारा-14 (विशेष न्यायालय की व्यवस्था) के अन्तर्गत इस अधिनियम के तहत चल रहे मामले को तेजी से ट्रायल (विचारण) के लियें विशेष न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इससे फैसलें में विलम्ब नहीं होता हैं और पीड़ित को जल्द ही न्याय मिल जाता हैं। धारा-15 के अनुसार इस अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय में चल रहें मामलें को तेजी से संचालन के लिये एक अनुभवी लोक अभियोजक (सरकारी वकील) नियुक्त करने का प्रावधान हैं। धारा-17 के तहत इस अधिनियम के अधीन मामलें से संबंधित जाँच पड़ताल डी.एस.पी. स्तर का ही कोई अधिकारी करेगा। कार्यवाही करने के लियें पर्याप्त आधार होने पर वह उस क्षेत्र को अत्याचार ग्रस्त घोषित कर सकेगा तथा शांति और सदाचार बनायें रखने के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा तथा निवारक कार्यवाही कर सकेगा। धारा-18 के तहत इस अधिनियम के तहत अपराध करने वालें अभियुक्तों को जमानत नहीं होगी। धारा-21 (1) में कहा गया हैं कि इस अधिनियम के प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन के लिये राज्य सरकार आवश्यक उपाय करेगी। (2) (क) के अनुसार पीड़ित व्यक्ति के लियें पर्याप्त सुविधा एवं कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई हैं। (ख) इस अधिनियम के अधीन अपराध के जाँच पड़ताल और ट्रायल (विचारण) के दौरान गवाहों एवं पीड़ित व्यक्ति के यात्रा भत्ता और भरण-पोषण के व्यय की व्यवस्था की गई हैं। (ग) के अन्तर्गत सरकार पीड़ित व्यक्ति के लियें आर्थिक सहायता एवं सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था करेगी। (घ) के अनुसार ऐसे क्षेत्र की पहचान करना तथा उसके लियें समुचित उपाय करना जहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर अत्यधिक अत्याचार होते हैं। अधिनियम की धारा 21 (3) के अनुसार केन्द्र सरकार राज्य सरकार द्वारा अधिनियम से संबंधित उठायें गयें कदमों एवं कियें गयें उपायों में समन्यव के लियें आवश्यकतानुसार सहायता करेगी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1995 यह नियम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का ही विस्तार हैं। अधिनियम के अधीन दर्ज मामलें को और अधिक प्रभावी बनानें तथा पीड़ित व्यक्ति को त्वरित न्याय एवं मुआवजा दिलाने के लियें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण नियम 1995 पारित किया गया हैं। धारा 5 (1) (थाना में थाना प्रभारी को सूचना संबंधी)- इसके अनुसार अधिनियम के तहत किये गयें अपराध के लियें प्रत्येंक सूचना थाना प्रभारी को दियें जानें का प्रावधान हैं। यदि सूचना मौखिक रूप से दी जाती हैं तो थाना प्रभारी उसे लिखित में दर्ज करेंगें। लिखित बयान को पढ़कर सुनायेंगें तथा उस पर पीड़ित व्यक्ति का हस्ताक्षर भी लेंगें। थाना प्रभारी मामलें को थाना के रिकार्ड में पंजीकृत कर लेगें। (2) उपनियम के तहत दर्ज एफ.आई. आर. की एक काॅपी पीड़ित को निःशुल्क दिया जायेगा। (3) अगर थाना प्रभारी एफ.आई. आर. लेने से इन्कार करतें हैं तो पीड़ित व्यक्ति इसे रजिस्ट्री द्वारा एस. पी. को भेज सकेगा। एस.पी. स्वंय अथवा डी. एस.पी. द्वारा मामलें की जाँच पड़ताल करा कर थाना प्रभारी को एफ.आई. आर.दर्ज करने का आदेश देंगें। धारा-6 के अनुसार डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी अत्याचार के अपराध की घटना की सूचना मिलतें ही घटना स्थल का निरीक्षण करेगा तथा अत्याचार की गंभीरता और सम्पत्ति की क्षति से संबंधित रिर्पोट राज्य सरकार को सौंपेगा। धारा-7 (1)-के तहत इस अधिनियम के तहत कियें गयें अपराध की जाँच डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी करेगा। जाँच हेतु डी.एस.पी. की नियुक्ति राज्य सरकार/डी.जी.पी. अथवा एस.पी. करेगा। नियुक्ति के समय पुलिस अधिकारी का अनुभव, योग्यता तथा न्याय के प्रति संवेदनशीलता का ध्यान रखा जायेगा। जाँच अधिकारी (डी.एस.पी.) शीर्ष प्राथमिकता के आधार पर घटना की जाँच कर तीस दिन के भीतर जाँच रिर्पोट एस.पी.को सौपेगा। इस रिर्पोट को एस.पी.तत्काल राज्य के डी.जी.पी. को अग्रसारित करेगें। धारा-11 (1) में यह प्रावधान किया गया हैं कि मामलें की जाँच पड़ताल, ट्रायल (विचारण) एवं सुनवाई के समय पीड़ित व्यक्ति उसके गवाहों तथा परिवार के सदस्यों को जाँच स्थल अथवा न्यायालय जाने आने का खर्च दिया जायेगा। (2) जिला मजिस्ट्रेट/ एस.डी.एम. या कार्यपालक दंडाधिकारी अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति और उसके गवाहों के लियें न्यायालय जानें अथवा जाँच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होने के लियें यातायात की व्यवस्था करेगा अथवा इसका लागत खर्च भुगतान करने की व्यवस्था करेगा। धारा 12 (1) में कहा गया हैं कि जिला मजिस्ट्रेंट और एस.पी. अत्याचार के घटना स्थल की दौरा करेंगें तथा अत्याचार की घटना का पूर्ण ब्यौरा भी तैयार करेंगें। (3) एस.पी. घटना के मुआवजा करनें के बाद पीड़ित व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेंगें तथा आवश्यकतानुसार उस क्षेत्र में पुलिस बल की नियुक्ति करेंगें। (4) के अनुसार डी.एम./एस.डी.एम. पीड़ित व्यक्ति तथा उसके परिवार के लियें तत्काल राहत राशि उपलब्ध करायेंगें साथ ही उचित मानवोचित सुविधा प्रदान करायेगें। बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम कब बना?अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989.
SC ST Act कब और किसने लागू किया?अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में सरकार ने दलितों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए बनाया था। 11 सितंबर 1989 को संसद ने इसे पारित किया था। 30 जनवरी 1990 से इसे पूरे भारत में लागू कर दिया गया था।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989 क्यों अस्तित्व में आया?संयोगवश, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र स्तर पर ' अनुसूचित जातियों' तथा 'अनुसूचित जनजातियों' को भी निर्धारित किया जाना है।
अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति कानून 1989 के मुख्य बिंदु कौन कौन से हैं?अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के विरुद्ध होने वाले क्रूर और अपमानजनक अपराध, जैसे उन्हें जबरन अखाद्य पदार्थ (मल, मूत्र इत्यादि) खिलाना या उनका सामाजिक बहिष्कार करना, को इस क़ानून के तहत अपराध माना गया है I इस अधिनियम में ऐसे २० से अधिक कृत्य अपराध की श्रेणी में शामिल किए गए हैं ।
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