बच्चे की पहली होली पर क्या करें? - bachche kee pahalee holee par kya karen?

#दिल से दिल तक# सासु माँ की पहली होली

जबसे सुशांत का रुचिका से विवाह हुआ था  तबसे रंजना को लगता था जैसे उसकी तपस्या सफल हो गई हो |
पति की आकस्मिक मृत्यु के बाद तीन-तीन बच्चों को पालना रंजना के लिए आसान काम नहीं था| प्राइवेट नौकरी करने वाले राजेश ज्यादा धन भी तो नहीं छोड़ कर गए थे परंतु रंजना समझदार थी और उसने घर पर ही छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर और सिलाई का काम करके अपने तीनों बच्चों बहुत अच्छे तरीके से परवरिश की थी और बच्चों ने भी इसमें उसका बखूबी साथ निभाया था तीनों ही बच्चे पढ़ाई मे कुशाग्र थे |
हालांकि बिटिया नेहा सुशांत से छोटी थी परंतु उसका विवाह रंजना ने पहले कर दिया था और जब सुशांत ने अपने ही दफ्तर में काम करने वाले रुचिका से विवाह की इच्छा जताई तो रंजना और सुशांत की दादी ने बड़ी खुशी से स्वीकृति दे दी थी |

खानदान में सभी रंजना की इज़्ज़त करते थे क्यूँकि उसने अपने दम पर अपने बच्चों को आजकल के जमाने में पालने की हिम्मत दिखाई थी |

रुचिका  भी आते ही एक बेटी की तरह इस घर में हिल मिल गई थी बस अब तो सबसे छोटा बेटा शुभम था जो  कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था और बस रंजना का एक ही सपना था कि किसी तरह शुभम भी जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो जाए |

यह सब सोच रही थी कि अचानक रुचिका की आवाज आई, "माँ ! ध्यान किधर है आपका? देखो कड़ाही में सारी गुजिया जलने लगी है |"
रुचिका की आवाज सुनते ही मुस्कुरा कर बोली, " बस यूँ ही कुछ सोचने लग गई थी | तू जा आराम कर ले, दफ्तर से थकी हुई आई है | यह सब काम मैं कर ही लूंगी |"

"वाह ऐसे कैसे! अब तो जरा सा काम बचा है | मुझे करने दो कम से कम कल सबको मैं यह तो बता सकूँ कि होली पर मैंने भी गुजिया बनाने में आपकी मदद की है |" मजाक में रुचिका बोली |

बाहर बैठी  शीला जी बोली,"  सच यह लड़की तो दफ्तर से घर में आते ही कैसे चहल पहल कर देती है | वरना तो सारा दिन हम सास बहू अकेले चुपचाप बैठी रहती हैं|"
रुचिका हँसते हुए बोली," अब दादी मुझसे चुप नहीं रहा जाता | चुप रहूँ तो मेरे तो पेट में दर्द होने लगता है |" रुचिका की बात सुनकर शीला और रंजना जी पुनः हँस पड़ी |
रात को सुशांत ने बताया," माँ!  कल नेहा और जीजा जी भी आएंगे |  हमारी पहली होली है सो उनका फोन आया था कि वह लोग भी इस बार होली हमारे ही साथ मनाएंगे |"

खुश होता हुआ शुभम बोला," वाह! फिर तो मजा आएगा | रुचिका भाभी आपकी खैर नहीं इस बार तो होली पर आपको बहुत रंग से लाल पीला करेंगे |"
"देख लेंगे शुभम! कौन किस पर भारी पड़ेगा |"  हँसते हुए रुचिका बोली |
सुबह-सुबह नेहा और अशोक भी आ गए और चाय नाश्ते के बाद होली खेलने का कार्यक्रम शुरू हुआ |
गुलाल की प्लेट पकड़कर जैसे ही रुचिका अपनी सास रंजना की ओर बढ़ी और हाथ में गुलाल की मुट्ठी भरते हुए अभी  रंजना जी को लगाने की लगी थी कि अचानक शीला जी की पीछे से जोर से आवाज आई, "बहू!  यह क्या कर रही हो? तुम्हारी सास होली कैसे खेल सकती है?"
रुचिका के हाथ वहीं के वहीं रुक गए और घर में एकदम सन्नाटा छा गया |
"क्यों! माँ  होली क्यों नहीं खेल सकती?" रुचिका ने पलट कर दादी से पूछा |

"तुम इतनी भी छोटी नहीं हो बहू और माना पढ़ी लिखी हो पर रीति रिवाज के नाम भी कुछ चीज होती है |  विधवा होली नहीं खेलती है और आज तक रंजना ने राजेश के जाने के बाद होली नहीं खेली है | चलो अब अपना त्यौहार मत खराब करो और जाओ तुम बच्चे छत पर होली खेलने जाओ |" गुस्से से शीला जी बोली |
बात को खत्म करने के लिए नेहा भी बोली," चलो भाभी चलते हैं|"
परंतु रुचिका टस से मस नहीं हुई और वही खड़ी रही |
" जब तक मेरे प्रश्न का जवाब नहीं मिलेगा मैं तब तक होली नहीं खेलूंगी |" रुचिका की  बात सुनकर  सुशांत गुस्से से बोला

," रुचिका हठ मत करो | चलो यहाँ से | खामख्वाह बात बढ़ जाएगी |"
"नहीं सुशांत! बात बढ़ने के डर से मैं गलत होते हुए नहीं देख सकती |
दादी आप मुझे एक बात बताइए कि पापा के जाने के बाद ऐसा कौन सा दुनिया का काम है जो माँ ने नहीं किया | पापा के जाने के बाद उन्होंने इस घर की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया |  आपकी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया जबकि चाचा जी ने तो आपको अपने साथ रखने से भी इंकार कर दिया था | उसके पश्चात माँ ने इन सब बच्चों को अच्छी शिक्षा दें और साथ  नेहा और सुशांत का विवाह भी करवाया | अगर पापा होते तो शायद वह भी सभी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते तो फिर जब माँ सभी जिम्मेदारी पूरी कर रही हैं तो माँ को रंगों से खेलने का हक क्यों नहीं है और क्या रंगों से खेलने से कुछ अनहोनी हो जाएगी?
क्या माँ को अपने बच्चों के साथ कुछ देर खुशी मनाने का भी हक नहीं है?
और आप कौन से रीति रिवाजों की बात करती हैं जो हम सभी ने तो बनाए हैं | जमाना बदल गया है आप कब तक इन पुरानी बातों को पकड़ कर रखेंगी? अगर आज माँ मेरे साथ होली नहीं खेलेंगी तो मैं भी होली नहीं खेलूंगी और आपको तो पता ही है कि मैं कितनी जिद्दी हूँ |"
रुचिका ने कहा |
पहली बार जीवन में किसी ने शीला जी से इस लहजे में और इस तरीके की बात कही थी | इधर रंजना और बाकी लोगों को लग रहा था कि अभी शीला जी बहुत गुस्सा

करेंगी परंतु शीला जी की आँखे भर आई और बोली," सच कड़वा होता है मगर तूने आज मेरा उस कड़वे सच से सामना कराया है | यह सही है कि मेरे छोटे बेटे ने मुझे रखने से इंकार कर दिया और मेरे बड़े बेटे के ना होने पर भी मेरी बहू ने मेरा साथ दिया परंतु ना जाने  रीति रिवाजों के चक्कर में अपनी बहू की खुशियों को ही मैं भूल गयी थी | कोई बात नहीं आज तेरी बात मुझे अच्छी लग रही है | जा अपनी सास के साथ होली खेल ले |"मुस्कुराते हुए शीला जी ने  कहा|
रुचिका को गले लगाते हुए नेहा बोली," सच  भाभी आपने माँ के बारे में इतना सोचा और मैंने तो कभी इस नजरिए से मां के बारे में ना सोचा और ना ही दादी से बात की |"
सुशांत ने गुलाल से मुट्ठी  भरी और शीला
जी की ओर बढ़ गया," अरे रंग मुझे नहीं लगा अपनी माँ के साथ होली खेल मेरे साथ  नहीं |"
रुचिका ने हँसते हुए कहा," क्यों दादा जी के जाने के बाद सारी जिम्मेदारी आपने भी तो निभायी है |खुश होने का हक तो आज आपका भी है|  मेरी दोनों सासें मेरी पहली होली मेरे साथ ही खेलेंगी |
कहते हैं रुचिका और सुशांत ने  रंजना और शीला जी को गुलाल के रंगों से भर दिया |

दोस्तों आखिर कब तक विधवा के जीवन से होली खेलने का अधिकार छीना जाएगा | हमें समाज को बदलने के लिए अपनी सोच के दायरों को बड़ा करना पड़ेगा | समाज को बदलने के लिए बहुत बड़े-बड़े कार्य करने की जरूरत नहीं है आवश्यकता है तो अपनी सोच को थोड़ा सा बदलने की अपने नजरिए को बदलने की|
विधवा औरत के जीवनसाथी के जाने से प्रेम का रंग तो पहले ही चला जाता है तो क्यों हम होली के रंगों से भी उसको वंचित कर देते हैं |
हमें अपनी सोच और नजरिए को बदलने की आवश्यकता है, तो आइए इस होली हम अपनी संकीर्ण सोच को विस्तृत करें और समाज में इस सोच को बदलने का प्रयास करें और होली के इस पावन अवसर पर हम किसी के बेरंग जीवन में रंग भर सके  ऐसी कोशिश करनी चाहिए |
  उम्मीद है यह स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित कहानी आपको पसंद आएगी, आपके कमेंट के इंतजार में
#दिल से दिल तक # पूजा अरोरा

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Published:Mar 17, 2022

  • #प्रेरणादायी
  • #आजकाब्लॉगिंगसुझाव मार्च 17
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होली से एक दिन पहले क्या किया जाता है?

रंगों वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन होता है. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाता है परंतु यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन बिहार की धरती पर हुआ था. जनश्रुति के मुताबिक उस घटना के बाद से ही प्रतिवर्ष होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई.

होली खेलने से पहले क्या करना चाहिए?

ऐसे में होली खेलने से पहले आपको चेहरे को अच्छे से मॉइश्चराइज करना जरूरी है. होली खेलने से पहले बॉडी पर नारियल का तेल या सरसों का तेल लगा लें जिससे रंग त्‍वचा पर टिके नहीं. जहां तक हो सके बॉडी स्किन को कवर कर रखें. केमिकल वाले रंग बालों को भी काफी प्रभावित करते हैं.

बच्चे की पहली होली कैसे मनाएं?

बच्चों के लिए तो यह त्यौहार बहुत महत्व रखता है, वे बाज़ार जा कर तरह-तरह की पिचकारियाँ और गुब्बारे (रंग से भरे हुए) लेकर आते हैं। इन गुब्बारों को एक-दूसरे पर फेंक कर होली खेलते हैं। बच्चे बड़ी उत्साह के साथ होली मनाने के लिए इन पिचकारियों का उपयोग करते हैं।

छोटी होली पर क्या किया जाता है?

छोटी होली के दिन होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन की पूजा का विशेष पौराणिक महत्व है. मान्यता है कि सच्चे मन अगर होलिका दहन की पूजा की जाती है, तो होलिका की अग्नि में सभी दुख जलकर खत्म हो जाते हैं. आइए जानते हैं होलिका दहन की पूजा में किन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है.