भारत में सबसे पहली फिल्म कौन सी है? - bhaarat mein sabase pahalee philm kaun see hai?

14 मार्च का दिन भारतीय सिनेमा के लिए बेहद ख़ास है. इसी दिन 84 साल पहले हिंदुस्तानी सिनेमा को आवाज़ मिली.

गूंगी फ़िल्मों ने बोलना सीखा. दिन था शनिवार, तारीख़ 14 मार्च और वर्ष 1931.

इसी दिन मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा हॉल में आर्देशिर ईरानी निर्देशित 'आलम आरा' रिलीज़ हुई. ये भारत की पहली बोलती फ़िल्म (टॉकी) थी.

इमेज कैप्शन,

'आलम आरा' के निर्देशक आर्देशिर ईरानी.

हालांकि इससे पहले भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहब फाल्के ने भी फ़िल्मों में आवाज़ डालने के कई प्रयास किए थे लेकिन वो क़ामयाब नहीं हो पाए.

फ़िल्मों के इतिहास की गहरी समझ रखने वाले जानेमाने समीक्षक फ़िरोज़ रंगूनवाना की मुलाक़ात 50 के दशक में आलम आरा के निर्देशक आर्देशिर ईरानी से हुई थी.

बीबीसी से बात करते हुए फ़िरोज़ ने उस मुलाक़ात को याद किया.

फ़िरोज़ बताते हैं, "मैं जब उनसे मिला तो वो ख़ासे उम्रदराज़ हो चुके थे. उन्होंने मुझे बताया कि उस दौर तक भारत में लोगों की फ़िल्मों में दिलचस्पी कम होने लगी थी. हॉलीवुड की कई टॉकी (बोलती फ़िल्में) भारत आने लगी थीं. ऐसे में आर्देशिर को लगा कि भारत में भी ऐसी फ़िल्में बनानी ज़रूरी हैं."

ईरानी और उनकी यूनिट इंपीरियल स्टूडियो ने टैनोर सिंगल सिस्टम कैमरा विदेश से आयात किया.

जिस समय आर्देशिर ईरानी आलम आरा बना रहे थे, उसी समय कृष्णा मूवीटोन, मदन थिएटर्स जैसी कंपनियां भी बोलती फ़िल्म बनाने की कोशिश में थी.

ईरानी 'आलम आरा' की शूटिंग जल्द से जल्द ख़त्म करना चाहते थे ताकि उनकी फ़िल्म भारत की पहली बोलती फ़िल्म बन जाए.

फ़िरोज़ रंगूनवाला ने बताया कि फ़िल्म की शूटिंग में बहुत दिक़्क़तें पेश आईं. आस-पास बहुत आवाज़ें आती थीं जो साथ में रिकॉर्ड हो जाती थीं.

ऐसे में दिन में शूटिंग करना बड़ा मुश्किल होता था. फ़िल्म के ज़्यादातर कलाकार मूक फ़िल्मों के दौर के थे.

ऐसे में उन्हें टॉकी फ़िल्म में काम करने की तकनीक के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी.

उन्हें घंटों तक सिखाया जाता कि माइक पर कैसे बोलना है. उन्हें ज़बान साफ़ करने के तरीक़े बताए जाते.

फ़िरोज़ रंगूनवाला बताते हैं, "टैनोर सिंगल सिस्टम कैमरे से शूट करने में बड़ी दिक़्क़त होती. एक ही ट्रैक पर साउंड और पिक्चर रिकॉर्ड होती. इसलिए कलाकारों को एक ही टेक में शॉट देना पड़ता."

डबिंग की तकनीक का तो सवाल ही नहीं पैदा होता.

कैमरे के प्रिंट के साथ समस्या ये थी कि उसे संरक्षित नहीं किया जा सकता क्योंकि वो नाइट्रेट प्रिंट था जो बड़ी जल्दी आग पकड़ लेता था.

इसके अलावा फ़िल्म इतिहासकार शरद दत्त ने भी आलम आरा से जुड़ी कई बातें बीबीसी से साझा कीं.

शरद दत्त सिनेमा पर कई किताबें लिख चुके हैं.

शरद दत्त ने बताया, "आलम आरा जोसेफ़ डेविड निर्देशित एक पारसी नाटक था. आर्देशिर इसे देखकर बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने तय किया कि वो गाने डालकर इस पर फ़िल्म बनाएंगे."

मैजेस्टिक सिनेमा में जब फ़िल्म का प्रीमियर हुआ तो ख़ुद आर्देशिर ईरानी एक-एक मेहमान का स्वागत करने के लिए गेट पर खड़े थे.

शरद दत्त ने उस दौर की फ़िल्मों के प्रिंट्स के बारे में बताया, "उस वक़्त फ़िल्म के नेगेटिव बहुत ज़्यादा दिन नहीं चलते थे. आलम आरा के बहुत लिमिटेड प्रिंट्स बने थे. उस वक़्त फ़िल्म आर्काइव जैसी कोई संस्था नहीं थी. जब स्टूडियो कल्चर ख़त्म होने लगा तो फ़िल्मों के प्रिंट्स को कौड़ियों के भाव कबाड़ियों को बेच दिया गया क्योंकि उन स्टूडियो की इमारतों में कुछ और निर्मित होने लगा."

इस तरह भारतीय सिनेमा की इस ऐतिहासिक फ़िल्म का कोई प्रिंट मौजूद नहीं है और अब ये सिर्फ़ तस्वीरों के ही माध्यम से याद की जाती है.

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

आलम आरा 1931 में बनी हिंदी भाषा में भारत की पहली बोलती फिल्म थी धन्यवाद

aalam aara 1931 mein bani hindi bhasha mein bharat ki pehli bolti film thi dhanyavad

आलम आरा 1931 में बनी हिंदी भाषा में भारत की पहली बोलती फिल्म थी धन्यवाद

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भारत का पहला मूवी कौन सा है?

दादासाहेब फाल्के द्वारा राजा हरिश्चंद्र (1 9 13) को भारत में बनाई गई पहली मूक फीचर फिल्म के रूप में जाना जाता है। 1 9 30 के दशक तक, उद्योग प्रति वर्ष 200 से अधिक फिल्मों का उत्पादन कर रहा था।

भारत की दूसरी फिल्म कौन सी है?

आलमआरा (1931 फ़िल्म).

दुनिया की पहली फिल्म कौन सी है?

ऐसी मान्यता है कि Rounhay Garden Scene ही पहली फ़िल्म हैं। इस फ़िल्म का निर्माण 1888 में एक French आविष्कारक Louis Le Prince ने किया था। यह एक Mute ( मूक ) फ़िल्म थी। इस फ़िल्म की लंबाई सिर्फ 2.11 सेकंड है।

सबसे पुरानी फिल्म का नाम क्या है?

अगर बात करें सबसे पुरानी फिल्म का नाम क्या है, सबसे पुरानी फिल्म का नाम “राजा हरिश्चंद्र” है, जिसे सन 1913 में बनाया गया था। इस फिल्म को बनाने का श्रेय दादा साहब फाल्के को दिया जाता है।