धर्मनिरपेक्षता (Secularism)
धर्मनिरपेक्षता एक जटिल तथा गत्यात्मक अवधारणा है। इस अवधारणा का प्रयोग सर्वप्रथम यूरोप में किया गया।यह एक ऐसी विचारधारा है जिसमें धर्म और धर्म से संबंधित विचारों को इहलोक संबंधित मामलों से जान बूझकर दूर रखा जाता है अर्थात् तटस्थ रखा जाता है। धर्मनिरपेक्षता राज्य द्वारा किसी विशेष धर्म को संरक्षण प्रदान करने से रोकती है। Show
भारत में इसका प्रयोग आज़ादी के बाद अनेक संदर्भो में देखा गया तथा समय-समय पर विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इसकी व्याख्या की गई है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ:
धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में संवैधानिक दृष्टिकोण:
धर्मनिरपेक्षता का सकारात्मक पक्ष:
धर्मनिरपेक्षता का नकारात्मक पक्ष:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता तथा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता के बीच अंतर:भारतीय धर्मनिरपेक्षता तथा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता के बीच अंतर को निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट किया जा सकता है-
धर्मनिरपेक्षता के समक्ष चुनौतियाँ:भारत में हमेशा से धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा सार्वजानिक वाद-विवाद और परिचर्चाओं में मौजूद रहा है। एक तरफ जहाँ हर राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्ष होने की घोषणा करता है वही धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में कुछ पेचीदा मामले हमेशा चर्चाओं में बने रहते हैं जो समय-समय पर अनेक प्रकार की चिंताओं के साथ धर्मनिरपेक्षता के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न करते रहे जैसे-
उपरोक्त सभी उदाहरणों में किसी-न-किसी रूप में नागरिकों के एक समूह को बुनियादी ज़रूरतों से दूर रखा गया। परिणामस्वरूप भारत में धर्मनिरपेक्षता समय-समय पर धार्मिक कट्टरवाद, उग्रराष्ट्रवाद तथा तुष्टीकरण की नीति के कारण शंकाओं एवं विवादों में घिरी रहती है। समाधान:
निष्कर्ष:निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भारतीय राज्य का धर्मनिरपेक्ष चरित्र वस्तुतः इसी वजह से बरकरार है कि वह किसी धर्म को राजधर्म के रूप में मान्यता प्रदान नहीं करता है। इस धार्मिक समानता को हासिल करने के लिये राज्य द्वारा अत्यंत परिष्कृत नीति अपनाई है। अपनी इसी नीति के चलते वह स्वयं को पश्चिम से अलग भी कर सकता है तथा जरूरत पड़ने पर उसके साथ संबंध भी स्थापित कर सकता है। भारतीय राज्यों द्वारा समय -समय पर धार्मिक अत्याचार का विरोध करने तथा राज्य के हित में धर्मनिरपेक्षता के महत्त्व को समझाने के लिये धर्म के साथ निषेधात्मक संबंध भी स्थापित किया गया हैं। यह दृष्टिकोण अस्पृश्यता पर प्रतिबंध, तीन तलाक, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश जैसी कार्रवाइयों में स्पष्ट रूप से झलकता है। भारत में धर्मनिरपेक्षता को लागू करने के लिए कौन से मौलिक अधिकार शामिल है और क्यों?आपके विचार में भारत में धर्मनिरपेक्षता को लागू करने के लिए कौन-से मौलिक अधिकार शामिल हैं और क्यों? समानता का अधिकार । धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ।। सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार ।
धर्मनिरपेक्षता और मौलिक अधिकार क्या है?धर्मनिरपेक्षता के लिए प्रावधान
'अंतःकरण की स्वतंत्रता', यानी सभी व्यक्तियों को स्वतंत्र रूप से धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का समान अधिकार है। प्रत्येक धार्मिक समूह/व्यक्ति को धार्मिक और धर्मार्थ संस्थाओं को स्थापित करने और बनाए रखने और धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है।
कौन सा अधिकार भारत को धर्मनिरपेक्षता बनाता है?इसके साथ भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतन्त्रता का मूल अधिकार भी प्रदान किया गया है।
धर्मनिरपेक्षता में मुख्य रूप से कौन कौन सी बातें शामिल है?यह भी कहा जा सकता है कि ये सारे उदाहरण अंतर-धार्मिक वर्चस्व और एक धार्मिक समुदाय द्वारा दूसरे समुदायों के उत्पीड़न के मामले हैं। धर्मनिरपेक्षता को सर्वप्रथम और सर्वप्रमुख रूप से ऐसा सिद्धांत समझा जाना चाहिए जो अंतर-धार्मिक वर्चस्व का विरोध करता है।
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