चित्रकूट में भरत (Page 31 & 32) Show Page 31 Page 32 Image from NCERT book प्रश्न / उत्तर प्रश्न-1 भरत की पॉँव की गति अचानक क्यों बढ़ गई? उत्तर- भाई से मिलने की उत्कंठा में भरत की पॉँव की गति अचानक बढ़ गई । प्रश्न-2 भरत को पहाड़ी पर किसकी छवि दिखी? उत्तर- भरत को पहाड़ी पर राम की छवि दिखी । प्रश्न-3 राम-भरत मिलाप का वर्णन कीजिए । उत्तर - राम शिला पर बैठे हुए थे । भरत दौड़ कर राम के चरणों में गिर पड़े । राम ने भरत को उठा कर सीने से लगा लिया । प्रश्न-4 भरत किस बात के लिए साहस नहीं जुटा पा रहे थे? उत्तर - भरत इस बात के लिए साहस नहीं जुटा पा रहे थे की वे भाई राम को किस प्रकार सुचना दें कि पिता दशरथ नहीं रहें । प्रश्न-5 माताएं किसको और क्यों देखकर दुखी हुईं? उत्तर - माताएं सीता को तपस्विनी के वेश में देखकर दुखी हुईं । प्रश्न-6 राम माता कैकेयी से वन में किस प्रकार मिले? उत्तर - राम ने सहज भाव से माता कैकेयी को प्रणाम किया । प्रश्न-7 भरत ने राम से क्या विनती की? उत्तर - भरत ने राम से राजग्रहण का आग्रह किया और विनती कि की वो अयोध्या लौट चलें । प्रश्न- 8 किसने किससे कहा? i. “वीर पुरुष धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते ।” राम ने लक्ष्मण से कहा । ii. “एक दु:खद समाचार है भ्राता !” भरत ने राम से कहा । iii. “पिता दशरथ नहीं रहे । आपके आने के छठे दिन । दुःख में प्राण त्याग दिए ।” भरत ने राम से कहा । iv. “पिता की आज्ञा का पालन करना अनिवार्य है । पिता की मृत्यु के बाद मैं उनका वचन नहीं तोड़ सकता ।” राम ने भरत से कहा । v. “राम! रघुकुल की परंपरा में राजा ज्येष्ठ पुत्र ही होता है ।” महर्षि वशिष्ठ ने राम से कहा । vi. “आप नहीं लौटेंगे तो मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँगा । आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें ।” भरत ने राम से कहा । vii. “चौदह वर्ष तक इन चरण पादुकाओं का शासन रहेगा ।” भरत ने राम से कहा । These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 5 चित्रकूट में भरत are prepared by our highly skilled subject experts. Bal
Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. भरत ने अपनी ननिहाल में क्या सपना
देखा? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. अयोध्या लौटकर भरत का माता कैकेयी के साथ क्या वार्तालाप हुआ? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 5 Summary भरत अपने ननिहाल कैकेय राज्य में थे। वे अयोध्या की घटनाओं से बिलकुल अनिभिज्ञ थे, पर चिंतित थे। एक दिन उन्होंने विचित्र सपना देखा। समुद्र सूख गया है, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं। जिस समय भरत अपना सपना मित्रों, सगे संबंधियों को सुना रहे थे, ठीक उसी समय अयोध्या के घुड़सवार दूत वहाँ आ पहुँचे। भरत अपने नाना कैकयराज से विदा लेकर सौ रथों के साथ आयोध्या के लिए निकल पड़े। लंबा रास्ता होने के कारण वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। अयोध्या नगर काफ़ी शांत और उदास था। अयोध्या के बदले रूप को देखकर उन्हें मन में अनिष्ट की आशंका होने लगी। वे सीधे राजभवन गए। वे पिता के महल की ओर गए, किंतु वहाँ उन्हें महाराज नहीं मिले। वे कैकेयी के महल की ओर गए। माता कैकेयी ने अपने पत्र भरत को गले लगा लिया। भरत ने माँ से पिता के बारे में पूछा तो कैकेयी ने उन्हें बताया कि उनके पिता स्वर्ग सिधार गए। यह सुनते ही भरत शोक में डूब गए और पछाड़ खाकर गिर पड़े। माता कैकेयी ने उन्हें उठाया। माँ ने भरत को ढाढस बंधाया। भरत तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। कैकेयी ने बताया कि राम को पिता ने चौदह वर्षों के लिए वनवास दे दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं। कैकेयी ने भरत को बताया कि अंतिम समय में महाराज के मुँह से केवल तीन शब्द निकले-हे राम! हे सीते! हे लक्ष्मण! तुम्हारे लिए कुछ नहीं कहा। भरत ने यह सुनकर आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वनवास क्यों? क्या उनसे कोई अपराध हो गया था। तब कैकेयी ने उन्हें वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए राजगद्दी संभालने के लिए कहा। भरत अपना क्रोध नहीं रोक पाए। वे चीख पड़े-‘यह आपने क्या किया माते। आप अपराधिनी हो। नहीं चाहिए मुझे ऐसा राज्य।’ मेरे लिए यह राज बेकार है। पिता को खोकर, भाई से बिछड़कर मुझे ऐसा राज्य नहीं चाहिए। वे बार-बार अपनी माता को कोसते रहे।’ किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। किसने तुम्हें उलटा पाठ पढ़ाया। मैं राजपद ग्रहण नहीं करूँगा। इस बीच मंत्रिगण और सभासद भी वहाँ आ गए। भरत ने साफ़ शब्दों में सभासदों से कह दिया-‘आप सुन लें। मेरी माँ ने जो किया है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ। मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी सँभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।’ वे सुध-बुध खो बैठे थे। होश में आने पर वे कौशल्या के महल की ओर चल दिए। कौशल्या भी आहत थी। वे कौशल्या के चरणों से लिपटकर खूब रोए। कौशल्या ने भरत को क्षमा किया और गले लगा लिया। भरत सारी रात रोते रहे। सुबह होते ही शत्रुघ्न को पता चल गया कि कैकेयी के कान किसने भरे हैं। मंथरा अयोध्या के घटनाक्रम से घबरा गई थी। शत्रुघ्न ने लपककर मंथरा के बाल पकड़ लिए। वे मंथरा को घसीटते हुए भरत के सामने लाए। भरत ने बीचबचावकर उसे छोड़ दिया। मुनि वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन खाली नहीं देखना चाहते थे। उन्होंने भरत से कहा-‘वत्स। तुम राजकाज संभाल लो। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है।’ भरत ने इस सलाह को नहीं माना और वन वापस जाकर राम को वापस लाने की इच्छा जताई। सभी वन जाने के लिए तैयार थे। अगली सुबह सभी मंत्रियों और सभासदों, गुरु वशिष्ठ तथा नगरवासियों के साथ वन की ओर चल दिए। तब तक राम गंगा पार कर चित्रकूट पहुँच गए थे। महर्षि भारद्वाज के आश्रम के निकट एक पहाड़ी पर एक पर्णकुटी बनाई गई। भरत को सूचना मिल गई थी। वे चित्रकूट ही आ रहे थे। वे पूरे दल बल के साथ थे। निषाद गुह को उन्हें देखकर कुछ संदेह हुआ। सही स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भरत की अगवानी की। गंगा पार करने के लिए उन्होंने पाँच सौ नाव लाकर खड़ी कर दी। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ता था। उन्होंने भरत को राम का समाचार दिया और मार्ग भी दिखा दिया जो राम की पर्णकुटी तक जाता था। अयोध्यावासियों ने रात आश्रम में बिताई। आगे जंगल घना था। सेना चली तो वन में खलबली मच गई। सभी जानवर पक्षी इधर-उधर भागने लगे। राम-सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि एक विशाल सेना चली आ रही है। लक्ष्मण जोर से राम से बोले-‘भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाह रहे हैं। राम कुटी से बाहर आ गए। वे बोले-भरत हम पर हमला कभी नहीं करेगा। वह हम लोगों से मिलने आ रहा होगा।’ लक्ष्मण आक्रमण करने के लिए व्यग्र थे किंतु राम ने उन्हें समझाया कि वीर पुरुष अपना धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। भरत सेना को पहाड़ी के नीचे छोड़कर शत्रुघ्न के साथ पहाड़ी के ऊपर गए। वे राम के चरणों पर गिर पड़े। राम ने भरत और शत्रुघ्न को उठाकर अपने गले से लगा लिया। उस समय सबकी आँखों में आँसू थे। भरत ने राम को पिता के निधन की बात बताई। वे सुनकर शोक में डूब गए। कुछ देर बाद राम पहाड़ी के नीचे उतरकर नगर वासियों तथा माता कौशल्या, कैकेयी और गुरु से मिलने गए। राम ने बड़े ही सहज भाव से माता कैकेयी को प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पछता रही थी। अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण का आग्रह किया। राम इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने भरत को समझाया कि अब तुम ही गद्दी सँभालो। यह पिता की आज्ञा है। मुनि वशिष्ठ ने भी राम को रघुकुल की परंपरा का वास्ता देकर राज-काज सँभालने का आग्रह किया। राम संयमित होकर बोले मैं पिता की आज्ञा से वन में आया हूँ। उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा-चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य ठंडा पड़ जाए किंतु मैं पिता की आज्ञा को नहीं ठुकरा सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ और भरत को भी उन्हीं के आज्ञा से राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में लौटने को तैयार नहीं हुए। भरत ने राम से आग्रह किया वे अपनी खड़ाऊँ उन्हें दें। वह चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाएँगे। भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया और अपनी खड़ाऊँ दे दी। भरत ने खड़ाऊँ को माथे से लगाकर कहा, चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण पादुकाओं का शासन होगा। ‘राम की इन चरण पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखकर अयोध्या लाया गया। भरत ने वहाँ उनका पूजन किया। भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। वे तपस्वी पोशाक पहनकर नंदी ग्राम चले गए और राम के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 26 पृष्ठ संख्या 27 पृष्ठ संख्या 28 पृष्ठ संख्या 29 पृष्ठ संख्या 31 पृष्ठ संख्या 32 राम ने भारत को क्या क्या करने की सलाह दी?उत्तर-राम ने भरत को सलाह दी कि जब तक हमारे गुरु, मुनि और राजा जनक हमारे साथ है तब तक चिंता करने की अवश्यकता नहीं है। वे ही रक्षा करेंगे। बड़ों की आज्ञा का पालन करते रहने से पतन नहीं होता। गुरुजनों की आज्ञा के अनुसार ही राजधर्म का पालन करना चाहिए।
भरत ने राम से क्या मांगा था?भरत उदास मन से राम की चरण पादुका ले लेते हैं और उनसे वापस जाने की अनुमति मांगते हैं। राम उन्हें वापस लौटकर राज काज संभालने को कहते हैं तो भरत कहते हैं कि राजगद्दी पर केवल चरण पादुका रहेंगी और वो उनके प्रतिनिधि के तौर पर राजकाज देखेंगे।
भरत ने राम से क्या मांगा class 6?भरत ने राम से आग्रह किया वे अपनी खड़ाऊँ उन्हें दें। वह चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाएँगे।
भरत ने चित्रकूट में राम से क्या प्रार्थना की?तब भरत क्रोध में बोले कि मुझे इस अयोध्या का राजा तो क्या अगर तीनों लोगों का राजा भी बनाओगे तो भी मैं भी ठुकरा दूंगा। तब गुरु वशिष्ठ ने उनको समझाया और पिताजी का अंतिम संस्कार के लिए कहा। राजा दशरथ के अंतिम संस्कार के बाद गुरु वशिष्ठ भरत को राजपाठ संभालने को कहते हैं।
|