भारतीय शास्त्री संगीत की प्राख्यात गायिका कौन है? - bhaarateey shaastree sangeet kee praakhyaat gaayika kaun hai?

शास्त्रीय संगीत और दूसरे संगीत में क्या फर्क है? योग शास्त्र में कहा जाता है – नाद ब्रह्म; यानी ध्वनि ही इश्वर है। ध्वनी की इसी समझ से जन्म हुआ है भारतीय शास्त्रीय संगीत का। ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि हमारा शरीर और सारा जगत एक ध्वनी या फिर कंपन ही है। इसका अर्थ है कि अलग-अलग तरह की ध्वनियों हम पर अलग-अलग तरह के असर डाल सकती हैं। आइये आगे जानते हैं सद्‌गुरु से भारतीय संगीत के बारे में..

भारतीय शास्त्री संगीत की प्राख्यात गायिका कौन है? - bhaarateey shaastree sangeet kee praakhyaat gaayika kaun hai?
हमारे जीवन में ध्वनि की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। हम चारों ओर से ध्वनियों से घिरे हुए हैं। योग शास्त्र में कहा जाता है – नाद ब्रह्म; यानी ध्वनि ही इश्वर है। ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि हमारा शरीर और सारा जगत एक ध्वनी या फिर कंपन ही है। इसका अर्थ है कि अलग-अलग तरह की ध्वनियों हम पर अलग-अलग तरह के असर डाल सकती हैं। ध्वनी की इसी समझ से जन्म हुआ है भारतीय शास्त्रीय संगीत का। आइये आगे जानते हैं सद्‌गुरु से भारतीय संगीत के बारे में... 

मानव शरीर और मन को ध्वनि कैसे प्रभावित करती है, इसे समझने और जानने में मेरी गहरी रुचि रही है। मैंने अपनी हर यात्रा में इस पर अध्ययन किया है। ध्वनि को जितनी गहराई के साथ हिंदुस्तानी संगीत में देखा गया है, उतना दुनिया में कहीं और नहीं देखा गया।

 हिंदुस्तानी संगीत में ध्वनि का महत्व ज्यादा है, जबकि कर्नाटक संगीत में भावों का।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो मूल शाखाएं हैं। कर्नाटक संगीत, जिसका संबंध दक्षिण से है और हिंदुस्तानी संगीत जो उत्तर भारत का संगीत है। हिंदुस्तानी संगीत में ध्वनि का महत्व ज्यादा है, जबकि कर्नाटक संगीत में भावों का। ऐसा नहीं है कि कर्नाटक संगीत के जानकारों को ध्वनि का कोई ज्ञान नहीं है, बेशक ज्ञान है, लेकिन इसमें भाव प्रधान रहता है। हो सकता है, काफी पहले ऐसा न हो, लेकिन पिछले चार सौ साल के दौरान कर्नाटक संगीत में ध्वनि की जगह भाव मुख्य हो गए हैं। ऐसा भक्ति आंदोलन के कारण हुआ है जो दक्षिण भारत में चलाया गयाथा। आज जो भी कर्नाटक संगीत है, उसमें से ज्यादातर की रचना त्यागराज और पुरंदरा दास जैसे भक्तों ने की थी और इस तरह संगीत में ज्यादा से ज्यादा भाव लाया गया। दूसरी तरफ हिंदुस्तानी संगीत में भावों की जगह ध्वनी को मुख्य स्थान दिया गया। इसमें ध्वनि का इस तरह इस्तेमाल किया गया, जिससे यह मन और शरीर पर एक ख़ास प्रभाव डाल सके। हिंदुस्तानी संगीत के तहत संगीत के कई अनुभाग हैं। हर अनुभाग संगीत की एक ख़ास तरह की रचना पर ध्यान देता है। अगर आप हिंदुस्तानी संगीत की वाकई में खूबी जानना चाहते हैं, तो आपको कम से कम एक से दो साल की ट्रेनिंग की जरूरत होगी। यह ट्रेनिंग आपको इस लायक बना देगी कि आप इस संगीत की बारीकियों की तारीफ कर सकें। सीखने या किसी संगीत समारोह में प्रदर्शन करने के लिए काफी ज्यादा अभ्यास की जरुरत है। इसमें ध्वनि का इस तरीके से प्रयोग किया जाता है, कि अगर आप इसे ग्रहण करने के लिए तैयार हैं तो आपके साथ चमत्कारिक चीजें हो सकती हैं।

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शास्त्रीय संगीत और योग

ध्वनि का अर्थ क्या है? योग में हम कहते हैं ‘नाद ब्रह्म’, जिसका मतलब है ‘ध्वनि ही ईश्वर है’। ऐसा इसलिए क्योंकि इस जीवन का आधार कंपन में है, यह कंपन ही ध्वनि है। इसे हर इंसान महसूस कर सकता है। अगर आप अपने भीतर ही भीतर एक खास अवस्था में पहुंच जाएं तो पूरा जगत ध्वनि हो जाता है। यह संगीत इसी तरह के अनुभव और समझ से विकसित हुआ। अगर आप ऐसे लोगों को गौर से देखेंगे जो शास्त्रीय संगीत से गहराई से जुड़े हैं, तो आपको लगेगा कि वे स्वाभाविक रूप से ही ध्यान की अवस्था में रहते हैं। वे संतों जैसे हो जाते हैं। इसलिए इस संगीत को महज मनोरंजन के साधन के तौर पर ही नहीं देखा गया, बल्कि यह आध्यात्मिक प्रक्रिया के लिए एक साधन की तरह था। रागों का प्रयोग इंसान की समझ और अनुभव को ज्यादा उन्नत बनाने के लिए किया गया।

 ‘ध्वनि ही ईश्वर है’ - ऐसा इसलिए क्योंकि इस जीवन का आधार कंपन में है, यह कंपन ही ध्वनि है।

संगीत के क्षेत्र में शुरुआत करने के लिए आपको शास्त्रीय संगीत पर नए प्रकाशनों की मदद लेनी चाहिए। इन संगीतों में थोड़ा फेरबदल किया गया है, और उन्हें एक ख़ास तरह से बनाया गया है। इसके कारण जिस शख्स के पास संगीत की जरा भी ट्रेनिंग नहीं है, वह भी इसका मूल्य समझ सकता है। उदाहरण के लिए म्यूजिक टुडे सीरीज में सुबह, दोपहर, शाम और रात के समय गाए जाने वाले रागों का संकलन है। कई जाने-माने संगीतकारों और बड़े कलाकारों के संगीत के संकलनों को भी आप खरीद सकते हैं। इनमें से कई कलाकार तो हमारे यहां योग केंद्र में भी आ चुके हैं। ईशा योग केंद्र पर साल में दो बार हम संगीत कार्यक्रम का भी आयोजन करते हैं। इसका मकसद लोगों को संगीत की बारीकियों से परिचित करना होता है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत

देश की ललित कलाओं की खूबियों, शुद्धता और विविधता को बनाए रखने और कलाकारों को प्रोत्साहित करने की कोशिश में ईशा फाउंडेशन हर वर्ष संगीत और नृत्य का सात दिवसीय महोत्सव 'यक्ष’ का आयोजन करता है। यह महोत्सव वेलिंगिरी पहाड़ियों की हरी-भरी तलहटी में विराजमान ध्यानलिंग योग मंदिर और लिंग भैरवी मंदिर के पवित्र वातावरण में मनाया जाता है। इस महोत्सव का नाम यक्षों से प्रेरित है जिनका वर्णन भारतीय पुराणों में दिव्य प्राणियों के रूप में किया गया है। यक्ष एक ऐसा सांस्कृतिक मंच है, जहां कला विशेषज्ञ और नए कलाकार, दोनों को ही प्राचीन कलाओं के प्रदर्शन का मौका मिलता है। साथ ही, यह संगीत और नृत्य प्रेमियों के लिए झूमने और आनंदित होने का अवसर होता है। कलाओं की सूक्ष्मता और जीवंतता की ये प्रस्तुतियां भारत की प्राचीन संस्कृति की गंभीरता और गहराई को उजागर करती हैं। ये विश्व भर के लोगों को कला की खूबसूरती को जानने और उसका आनंद लेने का मौका भी प्रदान करती हैं।

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का प्रसिद्ध गायक कौन है?

इस शैली के कुछ प्रसिद्ध गायक हैं- मियां सोदी, ग्वालियर के पंडित लक्ष्मण राव और शन्नो खुराना।

शास्त्रीय गायकी में कौन कौन से राग आते हैं?

खयाल, ध्रुपद, धमार आदि शास्त्रीय गायकी के अंतर्गत आते हैं। 3. भैरवी थाट का राग, जिसमें रे और प वर्जित हैं

शास्त्री गायिका से आप क्या समझते हैं?

शास्त्रीय गायकी से आप क्या समझते हैं? उत्तर: शास्त्रीय गायकी गायन की एक ऐसी विधा है जिसमें गायन को कुछ निर्धारित नियमों के अन्दर ही गाया बजाया जाता है। ख्याल, ध्रुपद, धमार आदि शास्त्रीय गायकी के अन्तर्गत ही आते हैं

भारत में संगीत कौन लाया?

ग्यारहवीं शताब्दी में मुसलमान अपने साथ फारस का संगीत लाए। उनकी और हमारी संगीत पद्धतियों के मेल से भारतीय संगीत में काफी बदलाव आया। उस दौर के राजा-महाराजा भी संगीत-कला के प्रेमी थे और दूसरे संगीतज्ञों को आश्रय देकर उनकी कला को निखारने-सँवारने में मदद करते थे। बादशाह अकबर के दरबार में 36 संगीतज्ञ थे।