आइए जानते हैं भैंस के बुखार की दवा के बारे मे इसके अलावा भैंस के बुखार का देसी इलाज पर भी चर्चा करेंगे । यह लेख आपके लिए काफी उपयोगी होने वाला है।भैंस को बुखार कई वजह से हो सकता है। एक तो सामान्य बुखार होता है जो सर्दी लगने से भी हो सकता है। इसके अलावा कुछ बुखार ऐसे होते हैं जो दूसरे रोग की वजह से हो सकते हैं। सामान्य बुखार तो बहुत जल्दी ठीक हो जाता है लेकिन जो बुखार दूसरे रोग की वजह से होते हैं उनका ईलाज लंबा हो सकता है। भैंस को यदि बुखार की समस्या है तो आपको चाहिए कि आप उसका ईलाज उचित तरीके से करें नहीं तो यह समस्या और अधिक बढ़ी हो सकती है। Show
लंगडा बुखार या जिसे ब्लैक क्वार्टर के नाम से जाना जाता है। वैसे तो यह रोग सभी स्थानों पर हो सकता है लेकिन यह खास कर उन स्थानों पर होता है जहां पर नमी अधिक होती है। यह रोग अधिकतर गाय ,भैंस के अंदर होता और यह रोग छह माह से दो साल तक की आयु वाले पशुओं में अधिक पाया जाता है। लगंडा बुखार होता है तो पशुखाना पीना तक छोड़ देता है और शरीर का तापमान 106 डिग्री तक पहुंच जाता है। इस रोग के अंदर पशु के पीछे के पैर सूज जाते हैं और सूजन की वजह से पशु लगंडाकर चलने लग जाता है।और सूजन वाले स्थान को दबाने पर कड़ कड़ की आवाज आती है।पहले पहले यह सूजन काफी कष्टदायक होती है लेकिन उसके बाद यह दर्द रहित हो जाती है। यदि इस स्थिति के अंदर पशु का समय पर उपचार नहीं करवाया जाता है तो उसकी मौत तक हो सकती है।
भैंस मे बुखार के लक्षणयदि आपकी भैंस को बुखार है तो आपको सबसे पहले यह तय करना चाहिए कि सच मे ही आपकी भैंस को बुखार है या नहीं है। इसके लिए बुखार के कुछ लक्षण होते हैं उनके बारे मे आपको जान लेना चाहिए । भैंस के नथुन पर पसीना देंखेंआमतौर पर जब भैंस को बुखार नहीं होता है तो उसकी नथुन पर पसीना रहता है। आप अपनी भैंस की नाक या नथुन को चैक करें यदि उस पर पसीना दिखता है तो भैंस को बुखार होने की संभावना कम है । जिस भैंस को बुखार होती है उसकी नाक पर पसीना नहीं दिखाई देता है। यह संभव है उसको बुखार हो सकता है। यह बुखार का पहला लक्षण है। पशु के जीभ पर हाथ रखकर देखेंभैंस के अंदर बुखार को देखने का यह भी एक तरीका है। आप भैंस की जीभ पर हाथ रखकर देख सकते हैं। ध्यानदें कि उंगली को इस प्रकार से रखें की भैंस काट ना लें । यदि आपके घर मे दूसरे पशु हैं तो उनकी जीभ पर भी उंगली रखकर तापमान का पता कर सकते हैं। जिस पशु को बुखार होगा उसका तापमान आपको दूसरे पशुओं से अलग दिख ही जाएगा । भैंस के कान को चैक करेंजिस भैंस को बुखार हो उसके कान को चैक करें । आमतौर पर जब पशु को बुखार रहता है तो उसका कान ठंडा रहता है। जबकि जीभ और शरीर का तापमान काफी हाई होता है। इसके अलावा आप दूसरे पशुओं के कान को और शरीर के तापमान को चैक करके पता कर सकते हैं। तापमापी से चैक करनाडिजिटल थर्मामीटर मार्केट के अंदर बहुत ही सस्ते आते हैं। यदि आपके पास एक थर्मामीटर है तो आप उसकी मदद से भी भैंस को बुखार है या नहीं ? इस बारे मे चैक कर सकते हैं। यदि भैंस का तापमान 102 डिग्री सेंटिग्रेट से उपर है तो पशु को बुखार होने की संभावना है। हालांकि आपको पहले यह पता होना चाहिए कि नोर्मल रूप से आपकी भैंस का तापमान कितना रहता है। भैस सुस्त दिखाई देती हैयदि भैंस को बुखार हो जाती है तो वह काफी सुस्त दिखाई देने लगती है। आमतौर पर जब पशु नोर्मल होता है तो वह काफी अलग ही दिखाई देता है लेकिन बुखार होने की स्थिति मे पशु या तो एक ही जगह पर खड़ा हो जाता है या फिर बैठ जाता है। आप उसके व्यवहार से अनुभव कर सकते हैं की पशु बीमार है। पशुखाने पीने के अंदर रूचि नहीं लेता हैयदि पशु को बुखार हो जाता है तो वह खाना पीना भी कम पसंद करता है।हालांकि पशु को इस दौरान आप खाना भी देते हैं तो भी वह या तो खाता ही नहीं है या फिर बहुत ही कम खाता है। भैंस के बुखार का देसी इलाज या भैंस के बुखार की दवायदि आपको पता लग जाए कि आपकी भैंस को बुखार है तो उसके बाद समस्या आती है कि भैंस के बुखार का ईलाज कैसे करें ? इसके लिए आपको पास दो तरीके हैं पहला तरीका तो यह है कि आप देशी इलाज अजमा सकते हैं और दूसरा तरीका यह है कि आप मेडिकल दवाएं प्रयोग मे ले सकते हैं। यहां पर हम दोनों की प्रकार की दवाओं के बारे मे बता रहे हैं। लौंग से बुखार की दवा बनाएंसबसे पहले नमक को 50 ग्राम लें और तवे पर डालकर गर्म करें ।उसके बाद जब उसका कलर भूरा हो जाए तो उसे तवे से उतार लेना है। फिर हल्दी को 50 ग्राम लेना है। और 10 लौंग को कूट कर इन तीनों का मिक्सचर तैयार करना है। अब इन सभी को भैंस को किसी भी तरीके से खिलाना है।यदि पशु थोड़ा बहुत खाना खा रहा है तो उसे बांटे के अंदर आप दे सकते हैं। और यदि वह खाना पीना नहीं कर रहा है तो आप उसे बोतल के अंदर डालकर गले मे डाल सकते हैं। इसको देने के बाद भैंस का बुखार कम हो जाएगा । गिलोय की बेल का उपयोगगिलोय की बेल भी भैंस के बुखार को दूर करने मे काफी उपयोगी होती है। आपको गिलोय की बेल गांव के अंदर आसानी से मिल जाएंगी । यदि आपकी भैंस को बुखार है तो गिलोय की बेल के पॉव पत्ते लें और उसके बाद उसको अच्छी तरह से कूट लें । अब इसको एक लीटर पानी के अंदर उबालें ।अब जब पानी आधा रह जाए तो उसे नीचे उतारें ।और किसी कपड़े की मदद से छान लें ।अब इस रस को यदि आप अपने पशु को देते हैं तो यह काफी फायदे मंद होगा और भैंस की बुखार उतर जाएगी । Melonex puls bolusMelonex puls bolus टेबलेट का प्रयोग भी पशुओं के बुखार के लिए किया जाता है। आप इसको किसी भी मेडिकल स्टोर से खरीद सकते हैं। यदि आपके भैंस के बुखार है तो आप इसका यूज कर सकते हैं। और एक टेबलेट अपने पशु को खाने पीने की चीजों के अंदर डालकर दे सकते हैं। यदि पशु खाना नहीं खा रहा है तो फिर टेबलेट को उसे बोतल मे घोल कर पिलाना होगा ।लेकिन यदि भैंस गर्भवति है तो इसका प्रयोग डॉक्टर के परामर्श से ही करना होगा । oxalgin np tabletoxalgin np tablet का प्रयोग भी बुखार को दूर करने मे किया जाता है।यदि आपकी भैंस को नोर्मल बुखार है तो दिन के अंदर दो बार इस टेबलट का प्रयोग 3 दिन तक के लिए कर सकते हैं। और उसके बाद बुखार अपने आप ही ठीक हो जाएगा । इस टेबलेट को आप मार्केट से खरीद सकते हैं। जहां से भी यह टेबलेट आप खरीदेंगे वहां आप इसके यूज करने के तरीके के बारे मे भी पूछ सकते हैं। tetracycline for animalstetracycline टेबलेट आप भैंस को एंटीबायटिक के रूप मे दे सकते हैं। यदि आप कोई बुखार की टेबलेट का इस्तेमाल करते हैं तो उसके साथ ही यह टेबलेट देनी होती है। यह दिन के अंदर दो दो टेबलेट देनी होती है। दो सुबह और दो शाम को । बाकि आप अपने डॉक्टर से परामर्श करने के बाद ही टेबलेट का यूज करें । क्योंकि गलत दवा आपकी भैंस को नुकसान पहुंचा सकती है। dcr injection strepto penicillionउपर हमने भैंस के बुखार को दूर करने की दवाओं के बारे मे बताया ।आप उपर दी गई दवाओं का प्रयोग खुद अपने घर पर कर सकते हैं। अब यदि उसके बाद भी आपकी भैंस का बुखार नहीं उतर रहा है तो फिर इंजेक्सन का प्रयोग करना होगा । और इंजेक्सन के प्रयोग के लिए आपको किसी पशु चिकित्सक की आवश्यकता होगी । strepto penicillion इंजेक्सन आप एंटीबायॅटिक के तौर पर लगा सकते हैं।यदि भैंस का वजन 300 से 400 किलो है तो आप ढाई ग्राम उपयोग मे लें और 500 ग्राम वजन है तो 5 ग्राम उपयोग मे लें । chlorpheniramine maleate injectionरफेनमाइन इंजेक्शन को तीव्र पित्ती, कीड़े के काटने और डंक, एंजियोन्यूरोटिक एडिमा, ड्रग और सीरम प्रतिक्रियाओं, डिसेन्सिटाइजेशन प्रतिक्रियाओं, हाइफ़िएवर, वासोमोटराइटिस, गैर-विशिष्ट मूल के गंभीर प्रुरिटस के लिए एलर्जी प्रतिक्रियाओं के लिए प्रयोग मे लिया जाता है। meloxicam and paracetamol injection usesगठिया, मायोसिटिस, बर्साइटिस और फाइब्रोसाइटिस।अधिवृक्क, आंतों और अन्य आंतों के शूल, उच्च बुखार और अज्ञातवास के पाइरेक्सिया से यह तुरंत राहत देता है।एंटी-माइक्रोबियल के साथ सहायक थेरेपी के रूप में अल्सोटो का उपयोग किया जाना चाहिए। इन सभी दवाओं का प्रयोग बिना डॉक्टर के परामर्श के नहीं करना चाहिए क्योंकि यह आपके पशु को नुकसान पहुंचा सकती हैं। जब भैंस को साधारण बुखार नहीं होयदि आपकी भैंस को साधारण बुखार नहीं है वरन किसी अन्य बीमारी की वजह से यह हो रहा है तो दवाएं सीधे तौर पर इस बुखार पर असर नहीं करेंगी। ऐसी स्थिति के अंदर आपको चाहिए कि आप अपनी भैंस को जल्दी से जल्दी डॉक्टर के पास लेकर जाएं नहीं तो स्थिति और अधिक विकट हो सकती है। खूरपका बिमारी से उत्पन्न बुखारयह रोग गाय ,भैंस आदि के अंदर हो सकता है।यह रोग भारत मे ही नहीं विदेशों मे भी पाया जाता है। हालांकि इस रोग की मदद से बहुत ही कम पशुओं की मौत होती है लेकिन यह एक संक्रामक रोग है। और जिस भैंस को हो जाता है। उसका दूध सूख जाता है। यह एक संक्रामक रोग होने की वजह से सभी उम्र के पशुओं मे आसानी से फैल जाता है।और फफोले ठीक हो जाने के बाद भी विषाणु 30 दिनों तक जीवित रह सकता है।और यदि विषाणु घास के अंदर गिर जाते हैं तो भी यह 4 महिने तक आसानी से रह सकते हैं। हालांकि गर्मी और अधिक तापमान की वजह से यह मर जाते हैं। खूरपका बिमारी के लक्षणयदि किसी भैंस को खूरपका बीमारी हो जाती है तो उसके लक्षणों को भी ठीक से जान लेना बहुत ही जरूरी होता है ताकि आप उचित समय पर उचित उपचार करवा सकें ।
वैसे देखने मे यह रोग भी चेचक के जैसा होता है लेकिन यह उससे अलग होता है।चेचक के छाले लाल रंग के होते हैं जबकि खूरपका के छाले पीले रंग के दिखाई देते हैं। खूरपका रोग के विषाणु मुंह ,आंत या फिर जीभ आदि खुली जगहों के अंदर होते हैं।यह विषाणु जब शरीर के किसी अंग को चोट लगती है तो उसके रस्ते शरीर के अंदर घुस जाते हैं।और इसके 7 दिन तक पता नहीं चल पाता है लेकिन उसके बाद खूरपका के लक्षण दिखाई देने लग जाते हैं। उसके बाद पशु धीरे धीरे पशु सुस्त होने लग जाता है। उसे बुखार आ जाता है और खाना पीना बंद कर देता है।इसके बाद पशु लड़खड़ाने लग जाता है और चलने फिरने मे काफी समस्या हो जाती है।इसके अलावा खुर की खाल के अंदर भी फोले पड़ जाते हैं और पशु बार बार अपने पेर को पटकता है। उसके बाद मुंह और जबड़े पर भी छालेपड़ जाते हैं।उसके 14 से 24 दिन बाद यह छाले फूटने लग जाते हैं और इनसे विषाणु निकलते हैं।इस दौरान यदि यह पशु किसी दूसरे पशु के संपर्क मे आता है तो उसे भी यह बीमारी हो सकती है। इसलिए इस प्रकार की बीमारी से ग्रस्ति पशु को अलग रखा जाना चाहिए । उसके बाद पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। पशु ढंग से खा पी भी नहीं पाते हैं।मार्च , अप्रैल ,अक्तुबर,दिसम्बर के अंदर यह रोग सबसे अधिक होता है। वैसे यदि देशी नस्ल की गाय है तो उसके अंदर यह रोग नहीं होता है। संकर नस्ल की गायों के अंदर यह अधिक होता है। यदि किसी गाय या भैंस के अंदर एक बार यह रोग हो जाता है तो उसके बाद उसकी दूध उत्पादन की क्षमता होती है और संतान पैदा करने की क्षमता प्रभावित होती है। इतना ही नहीं ढेड से 3 साल की भैंस मे यह रेाग काफी तेजी से होता है। इसके अलावा यह बूढे पशुओं के अंदर कम होता है। खूरपका से बचाव के उपायखूरपका रोग की 3 अवस्थाएं होती हैं। और इन तीनों अवस्थाओं के अंदर अलग अलग उपचार किया जाना चाहिए । खूरपका रोग के लिए कई प्रकार की देशी औषधियों का प्रयोग किया जाता है। उनके बारे मे नीचे दिया जा रहा है जो उपचार मे बहुत अधिक सहायक हो सकती हैं।
उपर दिये गए उपचार पशु को पहली अवस्था मे होते हैं जो उसकी बुखार को उतारने का कार्य करते हैं।जब बुखार उतर जाता है तो उसके बाद पशु के घावों को सही करने के लिए कार्य करना होता है। इसके लिए कुछ देशी दवाएं इस प्रकार से हैं।
पशु के घावों पर मरहम लगाने से पहले यह देख लेना चाहिए कि घावों मे कीड़े तो नहीं हैं। यदि कीड़े दिखाई देते हैं तो पहले कीड़ों को मारने के लिए दवा लगानी चाहिए ।
खूरपका रोग से बचाव के लिए सवाधानियांयदि आप अपने पशु को खूरपका रोग से बचाना चाहते हैं तो आपको कुछ सावधानियों को भी रखना होगा । इस बारे मे नीचे कुछ टिप्स दिये जा रहे हैं। जिनका ध्यान आप रख सकते हैं।
भैंस मे लंगड़ा बुखारयह भी एक अलग किस्म का रोग है।इसको कई नामों से जाना जाता है जैसे जहरबाद ,फडसूजन और कालाबाय आदि ।यह रोग Clostridium chauvoei नाम जीवाणु से फैलता है। वैसे आपको बतादें कि यह नमी वाले स्थानों पर अधिक होता है लेकिन अन्य स्थानों पर भी आसानी से फैल सकता है। यह एक बहुत ही भयंकर संक्रामक बीमारी है। इस बीमारी से ग्रस्ति पशुओं की मांसपेशियों के अंदर सूजन आ जाता है। और यह बीमारी आमतौर से 2 साल से 6 माह के पशुओं के अंदर बहुत अधिक होती है।
लंगड़ा बुखार से बचने के कुछ उपायबिल्ली भगाने के 20 उपाय billi ko ghar se bhagane ka upay बकरे का वजन बढ़ाने के सबसे बेहतरीन टिप्स बकरी को सर्दी जुकाम कारण उपचार व दवा वैसे तो लंगड़ा बुखार गायों के अधिक होती है।और यदि एक बार किसी पशु को यह बुखार हो जाती है तो फिर उसका बचना काफी मुश्किल होता है। इससे सावधानी ही इससे बचने का उपाय है।
ई. खुरहा – मुहंपकामुहंपका रोग भी भैंसो के अंदर होता है। और इसमे भी पशु को बुखार आता है। और यह एक प्रकार का संक्रामक रोग है।हालांकि इस रोग से पशु के मरने की संभावना बहुत ही कम होती है लेकिन पशुपालकों को काफी नुकसान होता है क्योंकि पशु काफी कमजोर हो जाता है।और दूध देना भी काफी कम कर देता है। यदि इसके लक्षणों के अंदर बात करें तो बुखार हो जाना ,भोजन के अंदर अरूचि हो जाना ,मुंह और खुर के अंदर छोटे छोटे दाने निकलना और बाद मे घाव मे बदल जाना । इस रोग की रोकथाम के लिए मुंह और पैरों के छालों को फिटकरी से धोना चाहिए ।इससे घाव अच्छी तरह से साफ हो जाते हैं। इसके अलावा नीम और तुलसी को पीस कर इसका लेप भी किया जाना उचित रहता है। इस रोग से बचने का उपाय यह है कि पशुओं को रोग निरोधक का टिका भी लगाया जाना चाहिए । milk feverयह रोग गाय और भैंस के अंदर हो सकता है।यह इनके ब्याने के बाद या फिर ब्याने के कुछ दिन बाद तक होता है।हालांकि यह बुखार जैसा नहीं होता है। इसमे पशु के शरीर मे कैल्शियम की कमी होती है।और मांसपेशिया कमजोर होती हैं।पशु एक तरफ गर्दन मोड़ कर बैठ जाता है और शरीर सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है। इसी को मिल्क फिवर कहा जाता है। सामान्य रूप से गाय-भैंस में सीरम कैल्शियम स्तर 10 मिलीग्राम प्रति डेसी-लीटर रहता है।लेकिन जब यह 7 से नीचे चला जाता है तो यह समस्या प्रकट होती है। यह अधिक दूध देने वाली गाय और भैंसों के अंदर अधिक होता है। भैंस के शरीर के अंदर कैल्शियम के गिरने के कई कारण हो सकते हैं।
मिल्क फिवर के लक्षणफिल्क फिवर के लक्षणों को अलग अलग भागों के अंदर बांटा गया है। पशु को पहली अवस्था के अंदर ही पहचान लिया जाए तो उसका उपचार आसानी से किया जा सकता है। अन्यथा बाद मे काफी मुश्किल हो सकता है।
पशु अधिक उत्तेजित दिखाई देता है । पशु चारा और दाना नहीं खाता है। पशु के शरीर का तापमान काफी बढा हो जाता है। बार बार सिर को हिलाता है।
पशु गर्दन मोड़ कर बैठ जाता है और उसके बाद खड़ा नहीं हो पाता है। पशु के शरीर का तापमान सामान्य से अधिक ठंडा पड़ जाता है।और पैर भी अधिक ठंडे पड़ जाते हैं। पशु की आंखें भी सूख जाती हैं। और पुतली फैलकर बड़ी हो जाती हैं। व पलके झपकना तक बंद कर देती हैं। अमाशय की गति कम हो जाती है।और कब्ज की समस्या हो जाती है। हर्ट की ध्वनी कम हो जाती है। और नाड़ी की गति कम हो जाती है।
यह बीमारी अंतिम स्टेज है इसमे पशु बेहोश हो जाता है। शरीर का तापमान बहुत ही कम हो जाता है। नाड़ी की गति अनुभव नहीं होती है।और हर्ट की ध्वनी भी सुनाई नहीं देती है। पशु को बैठे बैठे रहने से आफरा भी आ जाता है। यदि इस बीमारी से ग्रस्ति पशु का तुरंत उपचार नहीं करवाया जाता है तो उसकी मौत तक हो सकती है। भैंस के बुखार की दवा लेख के अंदर हमने यह जाना कि यदि भैंस को बुखार हो जाए तो क्या क्या लक्षण होते हैं और बुखार को दूर करने की क्या दवा होती है? इतना ही नहीं हमने कुछ ऐसी बीमारियों के बारे मे भी चर्चा की जिसकी वजह से भैंस को बुखार हो सकती है। उम्मीद करते हैं आपको यह लेख पसंद आया होगा । भैंस का बुखार कैसे उतारे?पशुओं को बुखार आने पर
पशु को अधिक से अधिक ताजा पानी पीने को देना चाहिए। मीठा सोडा (सोडियम बाइकार्बोनेट) 15 ग्राम, नौसादर 15 ग्राम, सैलीसिलिक एसिड 15 ग्राम, 500 मिली. पोटैशियम नाइट्रेट, 30 ग्राम चिरायता का महीन चूर्ण और गुड़ 100 ग्राम लगभग 200 ग्राम पानी में घोल कर गाय या भैंस को 8 से 10 घंटे के अंतर पर पिलाना चाहिए।
तुरंत बुखार कैसे उतारे?आराम है सबसे ज़रूरी आपको जैसे ही हल्का सा बुखार महसूस होने लगे, फौरन जो भी काम कर रहे हैं उसे रोकें क्योंकि आपको सिर्फ और सिर्फ आराम की ज़रूरत है। ... . ठंडे पानी की पट्टियां ठंडे पानी में कपड़े को डुबोकर माथे पर रखने से बुखार जल्दी उतरता है। ... . खूब पानी पिएं ... . हल्के कपड़े पहनें ... . कमरे को ज़्यादा गर्म न रखें. बुखार के लिए सबसे अच्छी दवा कौन सी है?ऐस्परीन या पैरासिटामोल बुखार उतारने की अच्छी दवाएँ हैं और पूरी दुनिया में लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। आईबूप्रोफेन भी बुखार कम करने या उतारने की दवा है।
भैंस को बुखार आने पर कौन सा इंजेक्शन लगाना चाहिए?ऑक्सिटोसिन के स्थान पर डिस्टिल वाटर का इंजेक्शन लगाया।
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