Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions Show Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 5 कवित्तकवित्त वस्तुनिष्ठ प्रश्न निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ कवि भूषण कविता शिवाजी महाराज Bihar Board Class 12th प्रश्न
1. Kavi Bhushan Shivaji Maharaj Kavita Bihar Board Class 12th प्रश्न 2. Kavi Bhushan Poems On Shivaji Maharaj Bihar Board Class 12th प्रश्न 3. Kavi Bhushan Ne Kis Rajya Ki Prashansa Mein Kavita Likhi प्रश्न 4. Kavi Bhushan Poem On Shivaji Maharaj Bihar Board Class 12th प्रश्न 5. Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks Pdf Bihar Board प्रश्न 6. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें 12 Hindi Book Bihar Board प्रश्न 1. 12th
Hindi Book Bihar Board प्रश्न 2. Bihar Board 12 Hindi Book प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. कवित्त अति लघु उत्तरीय प्रश्न। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. कवित्त पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. वे अत्याचार और शोषण–दमन के विरुद्ध लोकहित के लिए संघर्ष कर रहे हैं। छत्रपति का व्यक्तित्व एक प्रखर राष्ट्रवीर, राष्ट्रचिन्तक, सच्चे कर्मवीर के रूप में हमारे सामने दृष्टिगत होता है। जिस प्रकार इन्द्र द्वारा यम का, वाड़वाग्नि द्वारा जल का, और घमंडी रावण का दमन श्रीराम करते हैं ठीक उसी प्रकार शिवाजी का भी व्यक्तित्व है। पवन जैसे बादलों को तितर–बितर कर देता है, शिव के वश में कामदेव हो जाते हैं, सहस्रार्जुन पर परशुराम की विजय होती है, दावाग्नि जंगल के वृक्षों की डालियों को जला देती है; जैसे चीता (शेर) मृग झुंडों पर धावा बोलता है ठीक हाथी पर सवार हमारे छत्रपति शिवाजी मृगराज की तरह सुशोभित हो रहे हैं। जिस प्रकार सूर्य प्रकाश से अंधकार का साम्राज्य विनष्ट हो जाता है, कृष्ण द्वारा कंस पराजित होता है, ठीक उसी तरह औरंगजेब पर हमारे छत्रपति भारी पड़ रहे हैं। हमारे इन देवताओं एवं प्रकृति के अन्य जीवों की तरह गुण संपन्न शिवाजी का व्यक्तित्व है। वे देशभक्ति और न्याय के प्रति अटूट आस्था रखनेवाले भूषण के महानायक हैं। उनके व्यक्तित्व और शीर्ष के आगे शत्रु फीके पड़ गए हैं। महावीर शिवाजी भूषण के राष्ट्रनायक हैं। इनके व्यक्तित्व के सभी पक्षों को कवि ने अपनी कविताओं में उद्घाटित किया है। छत्रपति शिवाजी को उनकी धीरता, वीरता और न्यायोचित सद्गुणों के कारण ही मृगराज के रूप में चित्रित किया है। प्रश्न 3. उनकी तलवार युद्धभूमि में प्रलयकारी सूर्य की किरणों की तरह म्यान से निकलती है। वह विशाल हाथियों के झुण्ड को क्षणभर में काट–काटकर समाप्त कर देती हैं। हाथियों का झुण्ड गहन अंधकार की तरह प्रतीत होता है। जिस प्रकार सूर्य किरणों के समक्ष अंधकार का साम्राज्य समाप्त हो जाता है ठीक उसी प्रकार तलवार की तेज के आगे अंधकार रूपी हाथियों का समूह भी मृत्यु को प्राप्त करता है। छत्रसाल की तलवार ऐसी नागिन की तरह है जो शत्रुओं के गले में लिपट जाते हैं और मुण्डों की भीड़ लगा देती है, लगता है कि रूद्रदेव को रिझाने के लिए ऐसा कर रही हैं। महाकवि, भूषण छत्रसाल की वीरता से मुग्ध होकर कहते हैं कि हे बलिष्ठ और विशाल भुजा वाले महाराज छत्रसाल मैं आपकी तलवार का गुणगान कहाँ तक करूँ? आपकी तलवार शत्रु–योद्धाओं के कटक जाल को काट–काटकर रणचण्डी की तरह किलकारी भरती हुई काल को भोजन कराती है। प्रश्न 4. प्स छत्रसाल की तलवार नागिन के समान है। वह शत्रुओं के गर्दन से लपटकर जा मिलती है और देखते–देखते नरमुंडों की ढेर लगा देती है। मानों भगवान शिव को रिझा रही हो। इस प्रकार छत्रसाल की तलवार की महिमा गान कवि ने किया है। छत्रसाल की तलवार का कमाल प्रशंसा योग्य है। इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। भयंकर रूप के चित्रण के कारण रौद्र रस का प्रयोग झलकता है। (ख) प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि, इन पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि छत्रसाल बुन्देला की तलवार इतने तेज धारवाली है कि पलभर में ही शत्रुओं को गाजर–मूली की तरह काट–काटकर समाप्त कर देती है। साथ ही काल को भोजन भी प्रदान करती है। यह तलवार साक्षात् कालिका माता के समान है। वैसा ही रौद्र रूप छत्रसाल की तलवार भी धारण कर लेती है। यहाँ अनुप्रास और उपमा अलंकार की छटा निराली है। प्रश्न 5. रीति काव्य के कवियों की प्रवृत्तियों के आधार पर दो भागों में बाँटा जा सकता है– (ii) गौण प्रवृत्तियाँ– (क) रीति–निरूपण के आधार पर रीति कवियों के दो वर्ग हैं– (i) सर्वांग निरूपण : काव्य के समस्त अंगों पर विवेचन किया है। इसके तीन भेद हैं– अलंकार निरूपक आचार्यों में मतिराम, भूषण, गोप, रघुनाथ, दलपति आदि और भी कुछ कवि आते हैं। इस प्रकार भूषण श्रृंगार रस के आलंबन नायक–नायिकाओं के भेदोपभेदों के निरूपक रीति काव्य परंपरा के कवि हैं। अलंकार निरूपक रीति के रूप में भूषण को ख्याति प्राप्त है। महाकवि भूषण का आर्विभाव रीतिकाल में हुआ। उस समय की समस्त कविताओं का विषय था–नख–शिख वर्णन और नायिका भेद। अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करना और वाहवाही लूटना उनकी कविता का उद्देश्य था। अतः तब कविता स्वाभाविक उद्गार के रूप में नहीं होती थी, वरन् धनोपार्जन के साधन के रूप में थी। ऐसे ही समय में महाकवि भूषण का आविर्भाव हुआ। परन्तु उनका उद्देश्य कुछ और था। अतएव देश की करुण पुकार से उनका अंतर्मन गुंजरित हुआ। फलस्वरूप उनके काव्य में श्रृंगार की धारा प्रवाहित नहीं हुई वरन् वीर रस की धारा फूट पड़ी। ऐसी परिस्थिति में कहा जाएगा कि वे तत्कालीन काव्यधारा के विरुद्ध प्रतीत होते हैं। परन्तु उनकी महत्त सुरक्षित कही जाएगी। इसका एकमात्र कारण यही है कि उनकी कविता कवि–कीर्ति संबंधी एक अविचल सत्य का दृष्टांत है। आविर्भाव के विचार से वे रीतिकाल में आते हैं। किन्तु विषय के दृष्टिकोण से उन्हें वीरगाथा–काल में ही मानना चाहिए। कुछ लोग उन्हें चाटुकार जाटों की श्रेणी में रखते हैं। किन्तु भूषण के प्रति यह धीर अन्याय होगा। इसका कारण यह है कि श्रृंगार प्रधानकाल में भी वीर रस की उद्भावना द्वारा जन जीवन में जागरण का मंत्र फूंकना उनके स्वतंत्र हृदय का परिचायक है। उनकी काव्य की रचना देश की नब्ज पहचान कर हुई है। निःसन्देह उनकी रचना युग–परिवर्तन का आह्वान करती है।। भूषण कई राजाओं के यहाँ गए किन्तु कहीं भी उनका मन नहीं लगा। उनका मन यदि कहीं लगा तो एकमात्र छत्रपति शिवाजी के दरबार में ही। ऐसे तो छत्रसाल के यहाँ भी उन्हें सम्मान मिला था। उसी कारण में उन्होंने लिखा था–”शिवा को बखानों कि बखानों को छत्रसाल को।” भूषण का काव्य वीर काव्य की परंपरा में आता है। यहाँ ओज की प्रधानता है। भूषण के काव्य के महानायक हैं–छत्रपति शिवाजी महाराज। रीतिकालीन कवियों की तरह भूषण खुशामदी कविं नहीं बल्कि राष्ट्रीयता के प्रबल पक्षधर हैं। इनकी कविताओं में भारतीयता, हिन्दुत्व और लोक मंगल की कामना है। इसी कारण इन्हें हिन्दू राष्ट्र का जातीय कवि भी कहा जाता है। इनकी तीन प्रमुख रचनाएँ हैं–
भूषण की काव्य भाषा ब्रजभाषा है। इसे ब्रजभाषा नहीं कह सकते हैं। विभिन्न भाषाओं के शब्दों के मेल–जोल से इसे खिचड़ी भाषा भी कह सकते हैं। शब्दों को तोड़–मरोड़ कर अत्यधिक प्रयोग किया है। जिसके कारण उनका स्वाभाविक रूप बिगड़ गया है। मित्र बन्धुओं ने इसलिए कहा है कि भूषण की भाषा सशक्त, भाव–प्रकाशन में प्रभावयुक्त और सुव्यवस्थित है। देशज, विदेशज, तद्भव और तत्सम रूपों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है। ये एक सफल कवि के रूप में हिन्दी जगत में समादृत है। इनकी कविताओं में लोकोक्तियों तथा मुहावरों का प्रयोग भी हआ है। ओज गुण संपन्न इनकी काव्य कृतियाँ हिन्दी की धरोहर है। भूषण की कविता में सुमेरु डोल रहा है। सागर मथा जा रहा है। भूषण और शिवाजी दोनों ही व्यक्ति नहीं है बल्कि भाव के क्षेत्र में जो कविवर भूषण है, वही रणक्षेत्र में शिवाजी का रूप धारण कर लेते हैं। शिवराज भूषण में 105 अलंकारों का प्रयोग हुआ जिसमें 99 अक्कर, 4 शब्दालंकार तथा शेष दो चित्र ओर संकर नामक अलंकार है। विवेचन क्रम एवं लक्षणों को देखने से प्रतीत होता है कि ग्रन्थाकार जयदेव के चन्द्रलोक और मतिराम कालालितलाम का ही आश्रम लिया है। आचार्य कर्म में भूषण को कुछ लोग भले ही असफल कवि के रूप में मानते हैं किन्तु कवि–कर्म में उतने ही सफल हुए हैं। विषय के अनुरूप ओजपूर्ण वाणी का प्रयोग इनमें सर्वत्र मिलता है। भूषण की दृष्टि व्यापक थी। पूरे राष्ट्र को एक इकाई के रूप में वे देखते थे। भूषण के काव्य में सुव्यक्त होनेवाली राष्ट्रीयता की यह चेतना रीतिकालीन साहित्य के उपलब्ध साक्ष्यों में सर्वत्र विद्यमान है। प्रश्न 6. कवि ने कथन को प्रभावकारी बनाने के लिए अनुप्रास और उपमा अलंकार का प्रयोग कर अपनी कशलता का परिचय दिया है। वीर रस में रचित इस कवित्त में अनेक प्रसंगों की तुलना करते हुए शिवाजी के जीवन से तालमेल बैठाते हुए एक सच्चे राष्ट्रवीर के गुणों का बखान किया है। इन्द्र, राम, कृष्ण, परशुराम, शेर, कृष्ण, पवन आदि के गुण कर्म और गुण धर्म से शिवाजी के व्यक्तित्व की तुलना की गयी है। वीर शिवाजी शेरों के शेर हैं, जिन्होंने अपने अभियान में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भाषा में ओजस्विता, शब्द प्रयोग में सूक्ष्मता कथन के प्रस्तुतीकरण की दक्षता भूषण के कवि गुण हैं। अनेक भाषाओं के ठेठ और तत्सम, तद्भव शब्दों का भी उन्होंने प्रयोग किया है। कवित्त भाषा की बात। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7.
प्रश्न 8. प्रश्न 9. कवित्त कवि परिचय भूषण (1613–1715) महान् कवि भूषण के जन्म–मृत्यु के बारे में विद्वानों में मतभेद है। उनका जन्म 1613 में तिकवाँपुर, कानपुर उत्तरप्रदेश माना जाता है। उनका वास्तविक नाम घनश्याम था। ‘भूषण’ उनकी उपाधि है जो चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्र ने उन्हें दी। ये कानपुर के पास तिकवाँपुर के रहनेवाले थे और जाति के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम रत्नाकर त्रिपाठी था। भूषण को रीतिकाल के प्रसिद्ध कवियों–चिन्तामणि तथा मतिराम का भाई माना जाता है। किन्तु कई विद्वानों का इसमें संदेह है। भूषण कई राजदरबारों में गये, किन्तु उन्हें सबसे अधिक सन्तुष्टि शिवाजी के दरबार में मिली। इन्हें शिवाजी के पुत्र शाहूजी एवं पन्ना के बुदेला राजा छत्रसाल के दरबार में रहने का सौभाग्य मिला। सन् 1715 में उनका देहावसान हुआ। भूषण की तीन प्रसिद्ध रचनाएँ हैं––शिवराज भूषण, शिवाबावनी तथा छत्रसाल दशक। इनमें “शिवराज भूषण’ उनकी कीर्ति का आधार है। भूषण की वाणी में ओज और वीरता के भाव व्यक्त हुए हैं। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं–शिवाजी तथा छत्रसाल की प्रशंसा में बहुत सुन्दर कवित्त लिखे हैं। भूषण की भाषा ओजमयी है। उनके शब्द सैनिकों की भाँति दौड़ते–भागते प्रतीत होते हैं। शब्दों की ध्वनि को सुनकर ही लगता है कि हाथी–घोड़े दौड़ रहे हैं। भूषण ने अपनी कविता में अलंकारों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है। अनुप्रास तो उनकी हर पंक्ति में बिखरा पड़ा है। रूपक, उपमा, यमक के उदाहरण भी देखते बनते हैं। कविता का भावार्थ 1. प्रसंग–प्रस्तुत कवित्त कवि भूषण द्वारा रचित है। इसमें शिवाजी वीरता का बखना किया गया है। व्याख्या–शिवाजी के शौन का बखना करते हुए कवि भूषण कहते हैं कि शिवाजी का मलेच्छ वंश पर उसी प्रकार राज है जिस प्रकार इन्द्र का यम पर वाडवाग्नि अर्थात् समुद्र की अग्नि का पानी पर तथा राम का दंभ से भरे रावण पर है। अर्थात् शिवाजी को इन्द्र, समुद्राग्नि व राम के समान बताकर उनका शौर्य वर्णन किया गया है। जिस प्रकार जंगी की आग का पेड़ों के झुंड पर तथा चीता मृगों के झुंड पर तथा हाथी. के ऊपर सिंह का राज है। उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी दवाग्नि के समान विशाल, हाथी के समान बलशाली तथा चीते के समान शौर्यवान है। जैसे उजाले का अंधेरे पर तथा कृष्ण का कंस पर राज है उसी प्रकार छत्रपति शिवाजी का मलेच्छ वंश पर राज है अर्थात् वे अत्यन्त बलशाली है। बिशेष–
2. निकसत म्यान ते मयूबँ, प्रल–भानु
कैसी, प्रसंग–प्रस्तुत कवित्त कवि भूषण द्वारा रचित है। इसमें छत्रसाल की वीरता का वर्णन किया गया है। व्याख्या–कवि भूषण ने छत्रसाल की वीरता का वर्णन करते हुए कहा है कि युद्धभूमि में छत्रसाल की तलवार म्यान से इस प्रकार निकली जैसे प्रलय के सूर्य की तीखी (तेज) किरणें निकलती हैं। यह तलवार हाथी के ऊपर पड़ी हुई लोहे की जालियों को इस प्रकार काट रही है जैसे अंधेरे को चीर कर सूर्य निकल रहा है। उनकी तलवार रूपी नागिन शत्रुओं के गले में मृत्यु के समान लिपट रही है। वह मृत्यु के देवता शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शत्रुओं के सिरों की माला को अर्पित कर रही है। अर्थात् युद्धभूमि में शत्रुओं के सिरों को धड़ से अलग कर रही है। राजा छितिपाल के शक्तिशाली पुत्र छत्रसाल की तलवार का वर्णन कहाँ तक करूँ अर्थात् यह अत्यन्त प्रलयंकारी है। वह शत्रुओं के समूह के समह नष्ट कर रही है। वह शत्रुओं को काटकर कालिका देवी को सुबह का नाश्ता प्रदान कर रही है। अर्थात् वह मृत्यु की देवी को प्रसन्न करने के लिए शत्रुओं का संहार कर रही है। विशेष–
भूषण की लिखी कविता कौन सी है?भूषण वीर रस के श्रेष्ठ कवि हैं भूषण का वीरकाव्य हिन्दी साहित्य की वीर काव्य परंपरा में लिखा गया है। इनकी कविता का अंगीरस वीर रस है। इनकी रचनाएँ शिवराज भूषण, शिवाबावजी और छत्रसाल दशक वीर रस से ओतप्रोत है।
भूषण हजारा किसकी रचना है?टीकम सिंह तोमर ने 'शिवराज भूषण', 'शिवावावनी', 'छत्रसाल दशक' और 'भूषण हजारा' को ही भूषण की उपलब्ध रचनाएँ मानी है। उनके अनुसार शेष ग्रन्थ अनुपलब्ध है। इस प्रकार प्राय: सभी विद्वानों ने 'शिवराज भूषण' का रचनाकाल इस दोहे के आधार पर संवत 1730 माना है।
भूषण ने किसकी प्रशंसा में काव्य लिखा है?भूषण रीतिकाल के कवि हैं, किन्तु उनकी कविता में श्रृंगार की नहीं, वीर रस की प्रधानता है। महाराज शिवाजी एवं बुन्देला वीर महाराज छत्रसाल की प्रशंसा में उन्होंने वीर रस पूर्ण काव्य की रचना की है।
कवि भूषण के दो प्रिय नायक कौन कौन है?यहाँ भूषण के दोनों प्रिय नायकों - छत्रपति शिवाजी और छत्रसाल-से संबंधित दो कवित्त दिए जा रहे हैं जिनमें उनके शौर्य का ओजस्वी बखान है । (1) इंद्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर, रावन सदंभ पर रघुकुल राज है । पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर, ज्यौं सहस्रबाहु पर राम द्विजराज है ।
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