जल परिवहन क्या है दो उदाहरण दीजिए? - jal parivahan kya hai do udaaharan deejie?

प्रश्न जल परिवहन किसे कहते हैं ? यह कितने प्रकार का होता है?

उत्तर--जब परिवहन का कार्य, महासागरों, सागरों, झीलों, नदियों, नहरों के माध्यम से किया जाता है तो ऐसे परिवहन को जल परिवहन कहते हैं।
जल परिवहन के प्रकार-जल परिवहन मुख्यत: तीन प्रकार का होता है-
(i) बाह्य या समुद्री जल परिवहन-परिवहन का कार्य जब दो देशों के मध्य सागरों, महासागरों द्वारा सम्पन्न होता है बाह्य या समुद्री परिवहन कहलाता है।
(ii) आंतरिक जल परिवहन-देश के भीतरी भागों में नदियों, नहरों के द्वारा किया जाने वाला परिवहन आंतरिक जल परिवहन कहलाता है।
(iii) तटवर्ती जल परिवहन-देश के तटीय क्षेत्रों में तट के किनारे-किनारे किया जाने वाला परिवहन तटवर्ती जल परिवहन कहलाता है।

यहाँ पढ़िए परिवहन किसे कहते हैं, परिवहन की परिभाषा प्रकार तथा स्थल परिवहन, जल परिवहन, वायु परिवहन और पाइप लाइन परिवहन की परिभाषा व जानकारी।

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  • जल परिवहन
  • वायु परिवहन
  • पाइपलाइन परिवहन

परिवहन किसे कहते हैं (Transportation in Hindi)

परिवहन व्यक्तियों और वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक वहन करने की सेवा या सुविधा को कहते हैं जिसमें मनुष्यों, पशुओं तथा विभिन्न प्रकार की गाड़ियों का प्रयोग किया जाता है। ऐसा गमनागमन स्थल, जल एवं वायु में होता है। सड़के और रेलमार्ग स्थलीय परिवहन का भाग हैं, जबकि नौपरिवहन तथा जलमार्ग एवं वायुमार्ग परिवहन के अन्य दो प्रकार हैं। पाइपलाइनें पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और तरल अवस्था में अयस्कों जैसे पदार्थों का परिवहन करती हैं।

जल परिवहन क्या है दो उदाहरण दीजिए? - jal parivahan kya hai do udaaharan deejie?

परिवहन के प्रकार (Types of Transportation in Hindi)

विश्व परिवहन के प्रमुख प्रकार हैं - स्थल, जल, वायु परिवहन और पाइपलाइन हैं। इनका प्रयोग अंतर्प्रादेशिक तथा अंतरा-प्रादेशिक परिवहन के लिए किया जाता है और पाइपलाइन को छोड़कर प्रत्येक यात्रियों और माल दोनों का वहन करता है।

स्थल परिवहन (Land Transportation in Hindi)

स्थल परिवहन से आशय भूमि मार्ग द्वारा वस्तुओं तथा यात्रियों को एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले जाने से है। भारत में मार्गों एवं कच्ची सड़कों का उपयोग परिवहन के लिए प्राचीन काल से किया जाता रहा है। आर्थिक तथा प्रौद्योगिक विकास के साथ भारी मात्रा में सामानों तथा लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए पक्की सड़कों तथा रेलमार्गों का विकास किया गया है। रज्जुमार्गों, केबिल मार्गों तथा पाइप लाइनों जैसे साधनों का विकास विशिष्ट सामग्रियों को विशिष्ट परिस्थितियों में परिवहन की माँग को पूरा करने के लिए किया गया।

स्थल परिवहन के प्रकार 

  1. सड़क परिवहन 
  2. रेल परिवहन
  3. रोप-वे परिवहन

जल परिवहन (Water Transportation in Hindi)

भारत में जलमार्ग यात्राी तथा माल वहन, दोनों के लिए परिवहन की एक महत्वपूर्ण प्रकार है। यह परिवहन का सबसे सस्ता साधन है तथा भारी एवं स्थूल सामग्री के परिवहन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। जल परिवहन के महत्वपूर्ण लाभों में से एक यह है कि इसमें मार्गों का निर्माण नहीं करना पड़ता। महासागर एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। इनमें विभिन्न आकार के जहाज चल सकते हैं। आवश्यकता केवल दोनों छोरों पर पत्तन सुविधएँ प्रदान करने की है। यह ईंधन-दक्ष तथा पारिस्थितिकी अनुकूल परिवहन प्रणाली है क्योंकि जल का घर्षण स्थल की अपेक्षा बहुत कम होता है। जल परिवहन की ऊर्जा लागत की अपेक्षाकृत कम होती है। जल परिवहन को समुद्री मार्गों और आंतरिक जल मार्गों में विभक्त किया जाता है।

जल परिवहन दो प्रकार का होता है 

  1. अन्तः स्थलीय जलमार्ग 
  2. महासागरीय जलमार्ग।

वायु परिवहन (Air Transportation in Hindi)

वायु परिवहन वायुमार्ग द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक गमनागमन का तीव्रतम साधन है। परंतु यह अत्यंत महँगा भी है। इसने यात्रा समय को घटाकर दूरियों को कम कर दिया है। तीव्रगामी होने के कारण लंबी दूरी की यात्रा के लिए यात्राी वायु परिवहन को वरीयता देते हैं। यह भारत जैसे विस्तृत देश वेफ लिए बहुत ही आवश्यक है क्योंकि यहाँ दूरियाँ बहुत लंबी हैं तथा भूभाग एवं जलवायवी दशाएँ भी विविधतापूर्ण हैं। भूकंप, बाढ़, भू-स्खलन, ऐवेलांच जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वायु परिवहन के महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत में वायु परिवहन की शुरुआत 1911 में इलाहाबाद से नैनी के बीच हुई, लेकिन इसका वास्तविक विकास देश की स्वतंत्राता-प्राप्ति के पश्चात् हुआ। 

वायु परिवहन के प्रकार 

  1. घरेलु वायु परिवहन
  2. अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन

पाइपलाइन परिवहन (Pipeline Transportation in Hindi)

पाइप लाइन परिवहन से आशय ऐसी परिवहन प्रणाली से है जिसमे गैसों एवं तरल पदार्थों को पाइप लाइनों के माध्यम से एक स्थान से दुसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है। यहाँ तक की इनके द्वारा ठोस पदार्थों को भी घोल या गारा में बदलकर परिवहित किया जा सकता है। न्यूज़ीलैंड में फार्मों से फक्ट्रियों तक दूध पाइप लाइनों द्वारा ही भेजा जाता है। विश्व के अनेक भागों में रसोई गैस अथवा एल.पी.जी. की आपूर्ति पाइपलाइनों द्वारा की जाती है। 

आंतरिक जल परिवहन रेलवे के आगमन से पूर्व आंतरिक जल परिवहन का महत्वपूर्ण स्थान था। आंतरिक जल परिवहन एक सस्ता, ईधन प्रभावी तथा पर्यावरण अनुकूल तरीका है, जो भारी वस्तुओं की दुलाई हेतु उपयुक्त होता है और साथ ही रोजगार निर्माण की व्यापक क्षमता रखता है। किंतु, भारत के कुल यातायात में आंतरिक जल परिवहन का अंश केवल एक प्रतिशत है। भारत में नदी तंत्रों का 14500 किलोमीटर क्षेत्र नौचालन योग्य है।

आंतरिक जल परिवहन का प्रतिरूप: भारत के महत्वपूर्ण आंतरिक जलमार्ग इस प्रकार है-

  1. गंगा-भागीरथी (हुगली का ऊपरी प्रवाह)-हुगली: इस भाग में क्रमिक ढाल एवं सुगम प्रवाह मौजूद है तथा सघन जनसंख्या का जमाव भी है।
  2. ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियां।
  3. महानदी, कृष्णा एवं गोदावरी के डेल्टाई प्रवाह।
  4. बराक नदी (उत्तर-पूर्व में)।
  5. गोवा-मांडोवी एवं जुआरी की नदियां।
  6. केरल के कयाल।
  7. नर्मदा एवं ताप्ती की निचली रीच।
  8. पश्चिमी तट पर पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों की संकरी खाड़ियां, जैसे-काली, शरावती एवं नेत्रवती।
  9. नहरें, जैसे-
  • बकिंघम नहर- कृष्णा डेल्टाई की कोम्मानूर नहर से लेकर माराक्कानम (चेन्नई के 100 किमी. दक्षिण में) तक।
  • कुम्बेरजुआ नहर-गोवा में मांडोवी एवं जुआरी को जोड़ती है।
  • वेदारण्यम नहर-वेदारण्यम को नागपट्टनम बंदरगाह से जोड़ती है।

आंतरिक जल परिवहन की वर्तमान स्थिति:

  1. गंगा-भागीरथी हुगली जलमार्ग इस जलमार्ग पर यात्रियों के अतिरिक्त खाद्यान्न, कोयला, धातु अयस्क, उर्वरक, कपड़ा एवं चीनी का परिवहन किया जाता है।
  2. ब्रह्मपुत्र: यहां जूट,चाय, लकड़ी,चावल, खाद्य तेल, मशीनरी तथा उपभोक्ता वस्तुओं का परिवहन किया जाता है।
  3. कृष्णा-गोदावरी डेल्टा।
  4. कोरलक पश्चजल या कयाल: इनमें नारियल, मछली, सब्जियां,ईटवखप्पर तथा इमारती लकड़ी को परिवहित किया जाता है। कोचीन बंदरगाह पर आयातित होने वाले माल का 10 प्रतिशत इन्हीं जलमागों द्वारा ढोया जाता है।
  5. गोवा की नदियां: यहां लौह-अयस्क (मर्मगाव बंदरगाह को), मैगनीज अयस्क, मछली, नारियल एवं इमारती लकड़ी का परिवहन किया जाता है।

जब संगठित संचालनों को यंत्रीकृत नावों द्वारा किया गया;  देश में निर्मित विभिन्न क्षमताओं की नावों ने भी कागों और यात्रियों का परिवहन किया।

संगठन

1967 में कलकत्ता (कोलकाता) में केंद्रीय आंतरिक जल-परिवहन निगम की स्थापना के साथ ही अन्य स्थानों पर भी शाखायें स्थापित की गई।

इसकी मुख्य जिम्मेदारी देश के आंतरिक जलमार्गों से नावों द्वारा और भारत एवं बांग्लादेश के बीच मान्य मागों से सामान का परिवहन करना है। बांग्लादेश के साथ प्रोटोकॉल समझौता भारत-बांग्लादेश वाणिज्य और बांग्लादेश से प्रेषण या परिवहन के लिए एक-दूसरे के जलमार्गों का प्रयोग करने की अनुमति देता है।


शिपिंग और समुद्री आवागमन के उद्देश्यको पूरा करने के लिए वर्ष 1986 में इनलैण्ड वाटवेज अथॉरिटी ऑफ इण्डिया (आईडब्ल्यूएआई) की स्थापना की गयी, इसका मुख्यालय नोएडा (उत्तर प्रदेश) में है। आईडब्ल्यूएआई मुख्य रूप से राष्ट्रीय जलमार्ग के विकास, रख-रखाव और नियमन के लिए जिम्मेदार है। निम्नांकित पांच जल-मार्ग (2010-11 तक) राष्ट्रीय जलमार्ग के तौर पर घोषित किए गए हैं-

  1. 1986 में गंगा-भागीरथी-हुगली नदी तंत्र का 1620 किमी. लंबा इलाहाबाद-हल्दिया मार्ग।
  2. 1988 ई. में ब्रह्मपुत्र नदी (राष्ट्रीय जलमार्ग-2) का 891 किमी. लंबा सदिया-घुबरी मार्ग।
  3. 1991 ई. में उद्योगमंडल कनाल (250 किलोमीटर) और चंपाकारा कनाल के साथ पश्चिम तटीय कनाल का कोट्टापुरम कनाल। यह राष्ट्रीय जलमार्ग-3 है।
  4. 2008 में गोदावरी और कृष्णा नदी पर 1028 किमी. लंबा जलमार्ग जो काकीनाडा और पुदुचेरी कनाल और कालुवैली टैंक पर बना है।
  5. 2008 में घोषित 585 किमी. लंबा जलमार्ग जो ब्रह्माणी नदी के तालचर घमारा कैनल, पूर्वी तटीय कैनल के गोयनखली छरबतिया, महानदी डेल्टा नदी-तंत्र के साथ मताई नदी पर फैले छरबतिया-घमारा मार्ग को अपने अंदर समेटता है।
  6. बराक नदी पर 121 कि.मी. का लखीमपुर-भंगा मार्ग देश का छठवां जलमार्ग है। इसके परिणामस्वरूप उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र, विशेष रूप से असम, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा एवं अरुणाचल प्रदेश क्षेत्रों के जहाजरानी एवं माल परिवहन में एकीकृत विकास होगा। इसे केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने जनवरी 2013 में छठवें जलमार्ग के तौर पर स्वीकृति प्रदान की।

केंद्रीय जल आयोग द्वारा उत्तर की नदियों को प्रायद्वीपीय नदियों से जोड़ने तथा कोलकाता एवं मंगलौर को जलमार्गों की तटीय प्रणाली के माध्यम से संपृक्त करने का प्रस्ताव रखा गया है।

आंतरिक जल परिवहन की समस्याएं

  1. नदियों, विशेषतः प्रायद्वीपीय भाग, के जलस्तर में मौसमी गिरावट आ जाती है। गर्मियों में कुछ नदियां लगभग सूख जाती हैं।
  2. सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराने के परिणामस्वरूप जल प्रवाह में कमी आजाती है। उदाहरण के लिए, गंगा नदी में जल प्रवाह की कमी से स्टीमर चलाना कठिन हो जाता है।
  3. नदियों में गाद जमा होने के कारण भी नौचालन क्षमता कम हो जाती है। भागीरथी-हुगली एवं बकिंघम नहर में यह समस्या गंभीर है।
  4. जल-प्रपातों एवं काटकों के कारण (विशेषतः नर्मदा एवं ताप्ती में) सुगम नौचालन में समस्या होती है।
  5. तटीय क्षेत्र में क्षारीयता भी नौचालन को प्रभावित करती है।

बंदरगाह

भारत में 12 बड़े बंदरगाह हैं।

  1. पश्चिमी तट के प्रमुख बंदरगाह: कांडला (गुजरात), मुंबई (महाराष्ट्र), मर्मगाव (गोआ), न्यू मंगलौर (कर्नाटक), कोच्चि (केरल), जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (पूर्व में न्हावा शेवा)।
  2. पूर्वी तट के प्रमुख बंदरगाह: तूतीकोरिन एवं चेन्नई (तमिलनाडु), विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश), पारादीप (ओडीशा), कोलकाता-हल्दिया (प. बंगाल)। तमिलनाडु में एन्नोर बंदरगाह को भी मई 1999 में प्रमुख बंदरगाह का दर्जा दिया गया, जबकि बड़े बंदरगाह के रूप में फरवरी 2001 से काम में लाया गया।

मुंबई एक प्राकृतिक पोताश्रय है। व्यापक पृष्ठ प्रदेश सहित, जिसमें महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर-प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं, यह बन्दरगाहों के कुल यातायात का पांचवां भाग संभालता है जिसमें अधिकांशतः पेट्रोलियम उत्पाद एवं शुष्क नौ-भार (कागों) शामिल हैं।

जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह को आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित किया गया है। यहां भारी मात्रा में आने-जाने वाले नौ-भार (कागों) को ध्यान में रखकर यांत्रिक कंटेनर बर्थ एवं सर्विस बर्थ की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है।

कांडला कच्छ खाड़ी के सिरे पर स्थित ज्वारीय बंदरगाह है। गुजरात के अलावा पृष्ठ प्रदेश सहित इसमें राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं। महत्वपूर्ण यातायात की वस्तुओं में खाद्य तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्यान्न, नमक, कपड़ा, कच्चा तेल इत्यादि शामिल हैं।

मर्मगाव गोवा में अरब सागर तट पर जुआरी नदी के तट पर स्थित है। यह बंदरगाह लौह-अयस्क निर्यात के लिए मुख्य है। इससे मैंगनीज, सीमेंट, अपशिष्ट, उर्वरक और मशीन आयात की जाती है।

न्यू मंगलौर मुंबई तक राष्ट्रीय राजमार्ग 17 (एनएच-17) और रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। यहां से लौह-अयस्क (कुद्रेमुख से प्राप्त) का निर्यात किया जाता है। पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक और शीरा का आयात किया जाता है।

कोच्चि एक प्राकृतिक पोताश्रय है, जहां से उर्वरक, पेट्रोलियम उत्पाद एवं सामान्य नौ-भार (कागों) का परिवहन होता है। स्वेज-कोलंबो मार्ग बंद हो जाने से इस बंदरगाह का सामरिक और व्यापारिक महत्व बढ़ गया है। न्यू तूतीकोरिन गहरा कृत्रिम (समुद्री) पोताश्रय है। समृद्ध पृष्ठ प्रदेश के साथरेल और सड़क मार्ग (एनएच 7A) से भलीभांति जुड़ा हुआ है, यहां से मुख्यतः कोयला, नमक, खाद्य तेल, शुष्क और नौ-भार एवं पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात किया जाता है।

चेन्नई एक कृत्रिम पोताश्रय है, यहां से काफी मात्रा में परिवहन का आवागमन होता है। पेट्रोलियम उत्पाद, कच्चा तेल, उर्वरक, लौह अयस्क और शुष्क नौ-भार (कागों) इत्यादि प्रमुख मद हैं।

विशाखापट्टनम सबसे गहरा और प्राकृतिक बंदरगाह है। लौह-अयस्क के निर्यात हेतु यहां एक बाहरी पोताश्रय का विकास किया गया है। साथ ही कच्वे तेल के लिए भी एक बर्थ यहां स्थापित है। इसके सुविस्तृत पृष्ठ प्रदेश हैं-आंध्र प्रदेश के अलावा, ओडीशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़।

कोलकाता-हल्दिया हुगली नदी पर एक नदी मुख बंदरगाह है। इसके सुविस्तृत क्षेत्र में छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, ओडीशा, पूर्वोत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। यहां से अस्थि और अस्थिपूर्ण से बनी कई प्रकार की वस्तु प्रवाह, जूट उत्पाद, अभ्रक तथा मशीनों के कचरे का व्यापार होता है।

पारादीप गहरा तथा लैगून सदृश बंदरगाह है। यहां से लौह अयस्क, कपास, मैंगनीज और लौहा एवं इस्पात का निर्यात किया जाता है। जबकि पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्य तेल और मशीनों का आयात किया जाता है।

एन्नौर पतन देश में प्रथम निगमित पत्तन है जो चेन्नई से लगभग 20 किमी. दूर एन्नौर में स्थित है। इसे 1993 में चेन्नई पत्तन में भौतिक विस्तार की बाधाओं को दूर करने के उपाय के तौर पर अपनाया गया। यह एक प्राकृतिक पोताश्रय है और प्रारंभ में थर्मल कोयला, रसायनों, तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी), और पेट्रोलियम उत्पादों का संचालन करने के लिए डिजाइन और विकसित किया गया। एन्नौर पोर्ट लिमिटेड, जिसे केंद्र और चेन्नई पोर्ट ट्रस्ट द्वारा प्रोत्साहित किया गया, को सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा प्रबंध किया जाएगा। यह अन्य बड़े पत्तनों की तरह, मेजर पोर्ट ट्रस्ट एक्ट के तहत् कार्य नहीं करेगा। यह क्षेत्रीय पत्तन के तौर पर कार्य करेगा जो कार्गो संचालन में संलिप्त नहीं होगा।

लधु एवं मध्यवर्ती बंदरगाह: इस प्रकार के कुल 200 बंदरगाह है, जिनमें रेडीपोर्ट (महाराष्ट्र) काकीनाडा (आंध्र प्रदेश) तथा कोझीकोड (केरल) शामिल हैं। ये बंदरगाह बड़े बंदरगाहों के अतिभार को कम करने में सहायक होते हैं तथा इन्हें गहन समुद्री मत्स्यन हेतु आघार वर्षों के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। ये बंदरगाह मुख्यतः तटीय व्यापार हेतु सुविधा प्रदान करते हैं तथा रेल मार्ग या सड़कों के अभाव वाले क्षेत्रों में यात्री परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराते हैं।

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समस्याएं: मौजूदा बंदरगाह आधार संरचना व्यापार के प्रवाह को नियंत्रित कर पाने की दृष्टि से अपर्याप्त है। इस कारण पूर्व-बर्थिग विलंब तया जहाजों के आवागमन में देरी जैसी समस्याएं सामने आती हैं। लक्षित यातायात जरूरतों को पूरा करने के लिए और अधिक क्षमता के निर्माण की जरूरत है। बंदरगाहों के साथ भली-भांति संबंध नहीं हैं।

भारतीय पत्तन एशियाई क्षेत्र के कार्यक्षम पत्तनों, जैसे सिंगापुरपत्तन, की तुलना में श्रम और उपकरण उत्पादकता मानकों के संदर्भ में निम्न उत्पादकता का निरंतर प्रदर्शन करते रहे हैं। तथापि, प्रमुख पत्तनों पर दो प्रमुख संकेतकों- प्रत्येक जहाज का उत्पादन और इनके घूमने में लगने वाले औसत समय में, हाल के कुछ वर्षों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

भारत की तटरेखा बेहद कम दंतुरित है जिसके परिणामस्वरूप देश में मात्र थोड़े ही पत्तनों पर व्यापार हो पाता है।

दक्षिणी दिशा में बड़े जहाजों के खड़े रहने की व्यवस्था हेतु प्रोताश्रय में जगह का अभाव है। मानसून की प्रचंड हिंसा के कारण मुम्बई, कांदला और कोच्चि पत्तनों के सिवाय मई से अगस्त तक पश्चिमी पत्तन बंद रहते हैं। पृष्ठ प्रदेशों में पश्चिमी घाट की महत्वपूर्ण उपस्थिति के कारण सड़क और रेल परिवहन का विस्तार नहीं हुआ है। देश का पूर्वी तट समुद्री लहरों से घिरा हुआ है और कई डेल्टा हैं। पूर्वी तट पर लगातार बालू और मिट्टी के इकट्ठा होने के कारण नौवहन असंभव हो जाता है। जहाजों को कोलकाता-हल्दिया पतन पर पहुंचने के लिए ज्वार-भाटा का इंतजार करना पड़ता है।

सेवाओं की कार्यक्षमता, उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार लाने के क्रम में और पत्तन सेवाओं में प्रतिस्पर्धा भी लाने के लिए पतन क्षेत्र को निजी क्षेत्र की सहभागिता के लिए खोला गया है। यह उम्मीद की गई कि निजी क्षेत्र सहभागिता नई सुविधाओं की स्थापना के लिए लगने वाले समय में कमी करेगा, और अद्यानुतन प्रविधि और संशोधित प्रबंधन तकनीक भी प्रस्तुत करेगा।

जहाजरानी

जहाजरानी भारत के लिए नया नहीं है। देश में आधुनिक जहाजरानी का प्रारंभ 1919 में सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी की स्थापना के साथ हुआ, कहा जा सकता है। स्वतंत्रता के समय से,जहाजरानी में उल्लेखनीय प्रगति हुईहै। जहाजरानी उद्योग उच्च प्रतिस्पर्धात्मक व्यावसायिक माहौल में संचालित होता है, और विश्व अर्थव्यवस्था और व्यापार से गहरे रूप से जुड़ा होता है।

इसके द्वारा भारत के महत्वपूर्ण उद्योगों के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम पदार्थों का आयात होता है। कुल व्यापार का लगभग 90 प्रतिशत भाग का समुद्री परिवहन द्वारा आवागमन होता है, जो जहाजरानी को व्यापार और आर्थिक संवृद्धि के लिए अपरिहार्य बनाता है।

भारत ने जहाजरानी में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति प्रदान की है।

भारत के पास विकासशील देशों के बीच सर्वाधिक विशाल समुद्री बेड़ा है।

जहाजरानी निकाय: राष्ट्रीय जहाजरानी बोर्ड मर्चेट शिपिंग एक्ट, 1958 के तहत्गठित एक सांविधिक निकाय है। भारतीय जहाजरानी निगम (एससीआई) का गठन 2 अक्टूबर, 1961 को किया गया।

एससीआईमाल एवं गात्री सेवाएं, टैंकर सेवाएं, अपतटीय सेवाएं और विशेषीकृत सेवाएं इत्यादि मुहैया करता है। एससीआई के अतिरिक्त, देश में कई जहाजरानी कंपनियां हैं।

जहाज निर्माण: भारत के पास चार बड़े और तीन मध्यम आकार वाले शिपयार्ड हैं। कोच्चि शिपयार्ड (कोच्चि), हिंदुस्तान शिपयार्ड (विशाखापट्टनम); गार्डन रीच शिप बिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (कोलकाता), और मझगांव डॉक (मुम्बई) सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े जहाज निर्माण शिपयार्ड हैं। हुगली डॉक और पोर्ट इंजीनियर्स लिमिटेड कोलकाता में हैं।

प्रशिक्षण: मर्चेंट नेवी अधिकारियों के लिए पांच प्रशिक्षण संस्थान हैं। मुम्बई में टी.एस.राजेंद्रा नौवहन कैडेट को प्रशिक्षण देता है। लालबहादुर शास्त्री नॉटिकल एंड इंजीनियरिंग कॉलेज (मुम्बई) समुद्र में तैयारी संबंधी पाठ्यक्रम चलाता है। समुद्री इंजीनियरिंग प्रशिक्षण निदेशालय (मुम्बई एवं कोलकाता) मरीन इंजीनियर कैडेट को प्रशिक्षित करते हैं। कोलकाता में भद्रा और विशाखापट्टनम में मेखला डेक और इंजीनियरिंग रेटिंग के लिए समुद्र-पूर्व प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।

तटीय जहाजरानी के लाभ एवं बाघाएं: तटीय जहाजरानी ऊर्जा क्षम और परिवहन का एक आर्थिक रूप है, विशेष रूप से वहां जहां, लंबी दूरी यात्रा, भारी मात्रा में वस्तुएं और सामान लदान बिंदु और गंतव्य दोनों ही तटीय क्षेत्र में हों। यह पारस्परिक रूप से प्रदूषण मुक्त है। लेकिन, तटीय जहाजरानी कई परेशानियों का सामना करती है। पोत सामान्यतः बेहद पुराने हैं और इसलिए ऊर्जा की अधिक खपत होती है तथा संचालन और रख-रखाव की उच्च लागत आती है। तटीय जहाजरानी से सामान्यतः कोयला, नमक और सीमेंट जैसे निम्न दरों वाली वस्तुओं का परिवहन होता है। रेलवे इन मदों पर अनुदानित दरें देता है, इस प्रकार तटीय जहाजरानी के लिए असमान प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो जाती है। पतन पर होने वाला विलम्ब एक अन्य गंभीर समस्या है।यह भी एक चिंताजनक बात है कि पोत द्वारा पूर्व से पश्चिम की ओर ले जाए गए कोयले के बाद वापसी के समय पोत के पास कोई समान नहीं होता।

जल परिवहन क्या होता है?

उत्तर--जब परिवहन का कार्य, महासागरों, सागरों, झीलों, नदियों, नहरों के माध्यम से किया जाता है तो ऐसे परिवहन को जल परिवहन कहते हैं।

जल परिवहन किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं?

जल परिवहन के तीन प्रकार है। पहला, अन्तरदेशीय जलमार्ग है जिसमें नदियाँ, नहरें, झीलें और बैकवाटर आते हैं। फिर समुद्री जलमार्ग है जिसमें तटीय मार्ग तथा महासागरीय मार्ग आते हैं। आज भी यूरोप, अमेरिका, चीन तथा पड़ोसी बांग्लादेश में काफी मात्रा में माल की ढुलाई अन्तरदेशीय जल परिवहन तंत्र से हो रही है।

जल परिवहन का क्या महत्व है?

जल परिवहन का महत्व : (1) सबसे सस्ता साधन :- जल परिवहन सबसे सस्ता साधन हैं। इसमें रेलमार्ग एवं सड़क मार्ग बनाने में कोई व्यय नहीं होता हैं, क्योंकि यह मार्ग प्राकृतिक होते हैं। (2) भार ढोने की अधिक क्षमता :- जल परिवहन में अन्य परिवहनों की तुलना में अधिक भार ढोने की क्षमता होती हैं।

भारत में कितने जल परिवहन है?

भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का एक विशाल नेटवर्क है जिसमें नदी निकाय, नहरें, पश्चजल (बैकवाटर) एवं खाड़ियाँ सम्मिलित हैं। राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम, 2016 के अनुसार 111 अंतर्देशीय जलमार्ग (भारत में पहले घोषित पांच राष्ट्रीय जलमार्गों सहित) को 'राष्ट्रीय जलमार्ग' घोषित किया गया है।