भारत के प्रथम भारत के राष्ट्रपति डॉ॰राजेंद्र प्रसाद ने इसको खुलवाया। यहाँ राष्ट्रपति परिवार/आगन्तुक [1] से प्रतिदिन मिलते है। भारत की राजधानी नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के पीछे के भाग में स्थित मुगल गार्डन अपने किस्म का अकेला ऐसा उद्यान है, जहां विश्वभर के रंग-बिरंगे फूलों की छटा देखने को मिलती है। यहां विविध प्रकार के फूलों और फलों के पेड़ों का संग्रह है। इस उद्यान को देखने वालों की संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। २३ जनवरी,०९ को यहां ९५,५३७ दर्शक आए थे[2]। मुगल उद्यान वसंत ऋतु में एक माह के लिये पर्यटकों के लिए खुलता है। इसकी अभिकल्पना ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस ने लेडी हार्डिग के आदेश पर की थी। १३ एकड़ में फैले इस उद्यान में ब्रिटिश शैली के संग-संग औपचारिक मुगल शैली का मिश्रण दिखाई देता है।[3] यह उद्यान चार भागों में बंटा हुआ है और चारों एक दूसरे से भिन्न एवं अनुपम हैं। यहां कई छोटे-बड़े बगीचे हैं जैसे पर्ल गार्डन, बटरफ्लाई गार्डन और सकरुलर गार्डन, आदि। बटरफ्लाई गार्डन में फूलों के पौधों की बहुत सी पंक्तियां लगी हुई हैं। यह माना जाता है कि तितलियों को देखने के लिए यह जगह सर्वोत्तम है। मुगल उद्यान में अनेक प्रकार के फूल देखे जा सकते हैं जिसमें गुलाब, गेंदा, स्वीट विलियम आदि शामिल हैं। इस बाग में फूलों के साथ-साथ जड़ी-बूटियां और औषधियां भी उगाई जाती हैं। इनके लिये एक अलग भाग बना हुआ है, जिसे औषधि उद्यान कहते हैं। स्थितिमुख्य उद्यान मुगल गार्डन का समसे बड़ा भाग है, जिसे पीस द रेज़िस्टेन्स कहते हैं। यह २०० मी. लंबा व १७५ मी.चौड़ा है। इसके उत्तर और दक्षिण में टेरेस गार्डन हैं और इसके पश्चिम में एक टेनिस कोर्ट तथा लॉन्ग गार्डन हैं। यहां से दो नहरें उत्तर से दक्षिण व दो नहरें पूर्व से पश्चिम को बहती हैं, जिनके बीच में संगम पर ६ फव्वारे कमल के आकार के बने हुए हैं। ये नहरें बाग को चार भागों में विभाजित करती हैं। यहीं मुगल वास्तु की चार बाग शैली का आभास होता है। इन कमल फव्वारों से १२ फीट की ऊंचाई तक पानी की धार उठती है। नहर के केन्द्र में एक लकड़ी की ट्रे में चिड़ियों के लिये दाने भी डाले जाते हैं।[3] बनावट के आधार पर मुगल गार्डन के चार भाग हैं[4][5]-
मुगल शैली विकसित किया गया यह उद्यान छ: हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है।[5] उद्यान को राष्ट्रपति भवन के पिछवाड़े इसलिए रखा गया है, क्योंकि मुगलों के बाग-बगीचे महल के पीछे ही हुआ करते थे। इसलिए एडवर्ड लुटियन्स ने केवल इसका रूपांकन ही नहीं किया, बल्कि मुगलों की सोच को भी उसी तरह बनाये रखा। इतिहास१९११ में जब अंग्रेजों ने तय किया कि राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले आएं तो उन्होंने दिल्ली डिजाइन करने के लिए प्रसिध्द अंग्रेज वास्तुकार एडवर्ड लुटियन्स को इंग्लैंड से भारत बुलाया। उन्होंने दिल्ली आकार वायसराय हाउस के लिए रायसीना की पहाड़ी का चयन किया। उसे काटकर वायसराय हाउस (जिसे अब राष्ट्रपति भवन कहते हैं), का जो नक्शा तैयार किया उसमें भवन के साथ-साथ बाग-बगीचा तो था, लेकिन वह ब्रिटिश शैली के थे। तत्कालीन वाइररॉय लॉर्ड हार्डिंग की पत्नी लेडी हार्डिंग ने तब यहां भारतीय शैली के उद्यानों का प्रस्ताव दिया और फिर मुगल उद्यान की परिकल्पना भी की।[5] उन्होंने श्रीनगर में निशात बाग और शालीमार बाग देखे थे, जो उन्हें बहुत भाये। बस तभी से मुगल उद्यान शैली उनके मन में बैठ गयी थी। वह इन बागों से इस तरह रोमांचित हो उठी थीं कि वायसराय हाउस में मुगल गार्डन को साकार होते देखना चाहती थीं। उन्होंने लुटियन्स के सामने अपनी बात रखी। वास्तुकार लुटियन्स लेडी हार्डिंग का बह्तु सम्मान करते थे। इसलिए वायसराय हाउस में मुगल उद्यान की उनकी परिकल्पना को साकार रूप देने को मना नहीं कर सके। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत उद्यानों, ताजमहल के उद्यान तथा पारसी और भारतीय चित्रकारियों से प्रेरित होकर इन उद्यानों का खाका तैयार किया। सन १९२८ में लॉर्ड इर्विन ने इस वायसराय हाउस में शानोशौकत के साथ कदम रखा। उन्हें लुटियन्स द्वारा डिजाइन किया गया भवन और परिकल्पित मुगल उद्यान बहुत भाया। तभी से इस उद्यान को मुगल उद्यान नाम मिला। चिंतनसन १९४७ में भारत की स्वतंत्रता उपरांत वायसराय हाउस का नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन कर दिया गया। कुछ नामों को बदल देने के सिवाय लुटियन्स द्वारा रूपांकित किया गया यह भवन जैसा था, वैसा ही आज भी है। मुगल उद्यान में भी कोई खास बदलाव नहीं आया, सिवाय कुछ बागवानी संबंधित सुधारों के। भारत के अब तक जितने भी राष्ट्रपति हुए हैं, उनके मुताबिक इसमें कुछ न कुछ बदलाव अवश्य हुए हैं।[5] प्रथम राष्ट्रपति, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने इस गार्डन में कोई बदलाव नहीं कराया लेकिन उन्होंने इस खास बाग को जनता के लिए खोलने की बात की। उन्हीं की वजह से प्रति वर्ष मध्य-फरवरी से मध्य-मार्च तक यह आकर्षक गार्डन आम जनता के लिए खोला जाता है। डॉ॰ जाकिर हुसैन गुलाबों के अत्यंत शौकीन थे। उन्होंने देश-विदेश से गुलाब की कई किस्में मंगवाकर यहां लगवाई। डॉ॰ वी.वी.गिरी और श्री नीलम संजीव रेड्डी की बागों तथा बागवानी में खास दिलचस्पी नहीं थीं, फिर भी वे बाग कर्मचारियों की मेहनत से खिले फूलों को देखकर, उनकी सराहना करते रहते थे। ज्ञानी जैल सिंह को मुगल गार्डन खूब भाया। वे सुबह ५ बजे ही नहा-धोकर इस बगीचे में सैर के लिए आ जाया करते थे। यहां पर उनके सचिव उन्हें गुरवाणी तथा रामायण का पाठ सुनाया करते थे। यहां पर जो डेलिया अपनी मनमोहन छटा बिखेर रहा है, वह उन्हीं के प्रयासों से कलकत्ता के राजभवन से यहां लाया गया। श्री आर वेंकटरामन ने भी अपनी पसंद के कुछ फूलों के पौधों को यहां लगाया था। वे यहां सुबह-शाम खाली समय में घूमा करते थे। श्री फखरूद्दीन अली अहमद को कोई खास दिलचस्पी इस बाग में नहीं थी, लेकिन बेगम आबिदा को यह गार्डन बहुत भाया। वे घंटों इस बाग में फूलों को निहारती, उनसे बातें किया करती और धूम-घूम कर प्रत्येक क्यारी में जाकर उनकी देखभाल करती थीं। इकेबाना उन्हीं की वजह से इस बाग की शोभा बढा रहा है। डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा को फूलों से अधिक उनकी खुशबू से प्यार था। उन्होंने बाग में अनेक खुशबूदार फूलों को लगाने पर जोर दिया था। चम्पा, चमेली, हरसिंगार जैसे ठेठ भारतीय फूल इसी दौरान इस बाग में लगाए गए। श्री के.आर.नारायणन महोदय को भी फूलों से ज्यादा लगाव नहीं था, फिर भी वे कभी-कभार बाग में टहलने जरूर जाते थे और फूलों को बड़े गौर से निहारते थे। उन्हे फूलों की खुशबू बहुत अच्छी लगती थी। डॉ॰ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एक महान वैज्ञानिक के साथ-साथ प्रकृति प्रेमी भी रहे हैं। उन्हें इस बाग के बोन्साई पेड़ बहुत अच्छे लगते थे। वे लगभग प्रतिदिन इस बाग में सैर करने आते थे। उन्हें फूलों से भी बहुत लगाव रहा। वे चाहते थे कि इस उद्यान का कोना-कोना ऐसा हो जहां कोई न कोई फूल महक रहा हो। किस्मेंयहां बोने नट व ओकलाहोमा सहित अकेले गुलाब की ही २५० से भी अधिक किस्में हैं। ओकलाहोमा गुलाब के फूल का रंग लगभग काला है। नीले गुलाब की प्रजातियों में पैराडाइज, ब्ल्यूमून और लेडी एक्स शामिल हैं। यहां हरे रंग के गुलाब की भी किस्में है।[5] मॉलश्री, पुत्रंजीव, सरू, जुनिपर, चाइना औरेंज जैसे वृक्षों से हमेशा हरा-भरा रहने वाला इस उद्यान में कई प्रकार के दुर्लभ फूलों की बहार देखने को मिलती हैं। गुलदाउदी की १२५, बॉगनविलिया की ५० से अधिक किस्मों को यहां देखा का सकता है। गेंदे की जितनी किस्में यहां हैं शायद ही और कहीं देखने को मिलती हों। डहेलिया के पेड़ों की भी अलग ही छटा है। इनके अलावा यहां बोनसाई का भी प्रयोग किया गया है। कुछ तो ऐसे भी हैं, जिनकी आयु ५०-६० वर्ष से भी अधिक है। यहां कैलेन्डुला एन्टिरहिनम, एलिसम, डिमोरफोथेका, एसोलझिया, लार्क्सपर, गजेनियां, गेरबेरा, गोडेतिया, लाइनेरिया, मेसमब्राइन्थेमम, ब्रासिकम, मेतुसेरिया, वेरबेना, विओला, पैन्सी, स्टॉक तथा डहलिया, कारनेशन और स्वीटपी जैसे सर्दियों में खिलने वाले फूलों की भी बहुतायत है। दर्शनमुगल उद्यान हर वर्ष फरवरी-मार्च के महीने में वसंत ऋतु में आम जनता के लिए खोला जाता है। यहां सोमवार के अलावा सभी दिनों पर सुबह ९:३० बजे से दोपहर २:३० बजे तक दर्शक आ सकते हैं। इस उद्यान में आने और जाने के रास्तों को राष्ट्रपति आवास के गेट नंबर ३५ से विनियमित किया जाता है, जो चर्च रोड के पश्चिमी सिरे पर नॉर्थ एवेन्यू के पास स्थित है।[3] बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
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