अगर ईo में बात करें तो आधुनिक काल को हिंदी कविता के संदर्भ में आगे निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता है:- Show
▶️ भारतेंदु युग (1850 ईo से 1900 ईo)
▶️ द्विवेदी युग ( 1900 ईo से 1920 ईo) ▶️ छायावाद (1920 ईo से 1936 ईo) ▶️ प्रगतिवाद (1936 ईo से 1943 ईo) ▶️ प्रयोगवाद या नई कविता (1943 ईo से 1960 ईo) ▶️ साठोत्तरी कविता (1960 ईo से आगे ) प्रस्तुत प्रश्न में ‘छायावाद’ का विवेचन करना अपेक्षित है | ⚫️ छायावाद : आधुनिक हिंदी काव्य में छायावाद को ‘आधुनिक हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग’ कहा जा सकता है | यह युग साहित्य के क्षेत्र में एक क्रांति था जिसमें कला पक्ष तथा भाव पक्ष दोनों दृष्टिकोण से उत्कर्ष का चरम दिखाई देता है| सन 1920 से सन 1936 तक के काव्य को छायावाद कहा जाता है | छायावाद का आरंभ – मुकुटधर पांडेय ने 1920 ईo में जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘श्री शारदा’ में ‘हिंदी में छायावाद’ शीर्षक से चार निबंध एक श्रृंखला के रूप में छपवाए थे जो छायावाद के संबंध में सर्वप्रथम लेख हैं | इसके अतिरिक्त 1921 ईo में ‘सरस्वती’ पत्रिका में सुशील कुमार ने ‘हिंदी में छायावाद’ शीर्षक से एक संवादात्मक निबंध लिखा था | इस प्रकार सर्वप्रथम छायावाद शब्द का प्रयोग मुकुटधर पांडेय ने किया था | छायावाद को ‘मिस्टिसिजम’ के अर्थ के रूप में प्रयोग किया गया था | आरंभ में छायावाद शब्द का प्रयोग व्यंग्य के रूप में किया गया था लेकिन बाद में इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया गया | जयशंकर प्रसाद ( Jaishankar Prasad ) के काव्य ‘आँसू’ को छायावाद की पहली रचना माना जाता है | 🔷 छायावाद का अर्थ व परिभाषा : छायावाद के अर्थ को लेकर विद्वानों में मतभेद है आचार्य शुक्ल छायावाद का संबंध रहस्यवाद और विशेष काव्य-शैली से जोड़ते हैं | आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 1927 ईस्वी में ‘सरस्वती’ पत्रिका में ‘सुकवि किंकर’ छदम नाम से ‘आजकल के हिंदी कवि और कविता’ नामक लेख लिखा था इसमें उन्होंने छायावाद के संबंध में लिखा था – “छायावाद से लोगों का क्या मतलब है कुछ समझ में नहीं आता | शायद उनका मतलब है कि किसी कविता के भावों की छाया यदि कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो उसे छायावादी कविता कहना चाहिए |” छायावाद के सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने छायावाद को ‘चित्र भाषा पद्धति’ कहा है | डॉ रामकुमार वर्मा भी छायावाद को रहस्यवाद से जोड़ते हैं | वे कहते हैं- “जब परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा में तो यही छायावाद है |” नंददुलारे वाजपेई ने ‘हिंदी साहित्य : बीसवीं सदी’ पुस्तक में इसे आध्यात्मिक छाया का भान कहा है | उनके अनुसार – “छायावाद सांसारिक वस्तुओं में दिव्य सौंदर्य का प्रत्यय है |” डॉ नगेंद्र के अनुसार- “स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह ही छायावाद है |” मुख्यतः विभिन्न विद्वानों ने छायावाद के संदर्भ में निम्नलिखित विशेषताएं उद्घाटित की हैं : – छायावाद के प्रमुख कवि 🔹 जयशंकर प्रसाद ( 1889 ईo से 1937 ईo ) – कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, करुणालय, प्रेम पथिक, झरना, आंसू, लहर, कामायनी | 🔹 सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ( 1899 ईo – 1961 ईo ) – अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना, गीत कुंज, सांध्य-काकली | 🔹 सुमित्रानंदन पंत ( 1990 ईo से 1977 ईo ) – गिरजे का घंटा ( पंत कि पहली कविता ), ग्रंथि, पल्लव, वीणा, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूली, युगपथ, उत्तरा, अतिमा, वाणी, पतझर, कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन, सत्यकाम | 🔹 महादेवी वर्मा ( 1907 ईo से 1987 ईo ) – निहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा ( इसमें पहली चारों काव्य शंकर को एक साथ संकलित किया गया है ), दीपशिखा | ⚫️ छायावादी काव्य की प्रवृत्तियां⚫️ छायावादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं : 2️⃣ मानवतावाद : छायावाद का सबसे उज्ज्वल पक्ष मानवतावाद है | वह युग वास्तव में विश्वयुद्ध और मानवतावाद का युग था | युद्ध के भयंकर परिणामों को देखकर अनेक महापुरुष मानवतावाद का प्रचार कर रहे थे | प्रसाद की ‘कामायनी’ और निराला की ‘तुलसीदास’ रचनाएं मानवतावाद की भावना से ओतप्रोत रचनाएं हैं | छायावादी काव्य में राष्ट्रवाद की भावना भी संकीर्ण नहीं अपितु मानवतावादी है | यही कारण है कि छायावादी काव्य में मानव-प्रेम, उदारता, करुणा और विश्व-बंधुत्व की भावना आदि के दर्शन होते हैं | 3️⃣ प्रकृति-चित्रण : छायावादी कवियों ने प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है | इनके काव्य में प्रकृति का आलंबनगत व उद्दीपनगत दोनों रूपों में वर्णन किया गया है | इन्होंने अपने काव्य में प्रकृति का मानवीकरण किया है | सभी प्रमुख छायावादी कवियों ने प्रकृति का चित्रण नारी रूप में किया है | छायावादी कवियों ने प्रकृति के माध्यम से सुंदर व सात्विक चित्र खींचे हैं परंतु कहीं-कहीं इनके प्रकृति-चित्रण में भी अश्लीलता के दर्शन होते हैं | निराला की कविता ‘जूही की कली’ को कुछ लोग भले ही प्रकृति- चित्रण का श्रेष्ठ उदाहरण मानें लेकिन वास्तव में इस कविता में पुरुष-नारी के संगम का चित्रण है | एक उदाहरण देखिए :- 4️⃣ रहस्यवाद : छायावादी काव्य की एक प्रमुख प्रवृत्ति है-रहस्यवाद| यही कारण है कि कुछ विद्वानों ने तो छायावाद को रहस्यवाद से जोड़कर ही इस को परिभाषित किया है | उदाहरण के लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल छायावाद को रहस्यवाद से जोड़ते हैं | डॉक्टर रामकुमार वर्मा भी रहस्यवाद को की छायावाद मानते हैं | वे कहते हैं – “जब परमात्मा की छाया आत्मा पर तथा आत्मा की छाया परमात्मा पर पड़ने लगती है तो यही छायावाद है |” वस्तुतः सभी छायावादी कवियों ने अपने काव्य में आध्यात्मिकता को स्थान दिया है | इन कवियों ने आंतरिक अनुभूतियों को प्रकट करने के लिए रहस्यवाद का सहारा लिया है | प्रसाद ने परम सत्ता को बाहर खोजा, महादेवी वर्मा ने प्रेम और वेदना में, पंत ने प्रकृति में तथा निराला ने तत्वज्ञान में ; लेकिन इनमें से किसी का भी रहस्यवाद कबीर या दादू जैसा गहरा नहीं | इनके रहस्यवाद में मार्मिकता का अभाव है | 5️⃣ स्वच्छंदतावाद : छायावादी कवियों ने अहमवादी व व्यक्तिवादी होने के कारण स्वच्छंदतावादी प्रकृति को अपनाया है | उन्होंने काव्य-रचना करते समय किसी भी प्रकार के शास्त्रीय बंधनों को स्वीकार नहीं किया | विषय का चयन करते समय भी उन्होंने इसी नियम को अपनाया | यही कारण है कि छायावादी काव्य में विषयगत विविधता है | सौंदर्य वर्णन, प्रेम-चित्रण, प्रकृति-वर्णन, राष्ट्रप्रेम, रहस्यवाद, वेदना, निराशा, उत्साह आदि सभी विषयों पर इन्होंने अपनी लेखनी चलायी | 6️⃣ वेदना और निराशा : छायावादी काव्य में वेदना और निराशा सर्वत्र अभिव्यक्त हुई है | कुछ आलोचक मानते हैं कि यह निराशा तत्कालीन वातावरण की देन है क्योंकि उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था और आंदोलन असफल हो रहे थे | दूसरा, छायावादी कवि मानते थे कि वेदना और निराशा से ही काव्य उपजता है | 7️⃣ नारी प्रेम और सौंदर्य का चित्रण : छायावादी कवियों ने नारी-प्रेम और सौंदर्य के अनेक चित्र प्रस्तुत किए हैं | नारी सौंदर्य का चित्रण कहीं-कहीं दैहिक बन पड़ा है | यथा :- छायावादी कवियों ने नारी के करुणा, दया, ममता आदि भावों का भी सुंदर चित्रण किया है | प्रसाद ने नारी के विषय में लिखा है :- “नारी तुम केवल श्रद्धा हो |” 8️⃣ स्वतंत्रता प्रेम : छायावादी कवियों के काव्य में राष्ट्रीय जागरण का स्वर भी मिलता है | यह कवि अनेक स्थानों पर स्वतंत्रता का आह्वान भी करते हैं | राष्ट्रीय आंदोलन का प्रभाव इन कवियों पर पड़ना स्वाभाविक ही है | प्रसाद के काव्य तथा नाटक दोनों में ही राष्ट्रीय भावना देखने को मिलती है | माखनलाल चतुर्वेदी की राष्ट्रीय भावना का एक उदाहरण देखिए :- 9️⃣ कला पक्ष : कला पक्ष के दृष्टिकोण से भी छायावादी काव्य उतना ही उत्कृष्ट है जितना भाव पक्ष के दृष्टिकोण से | ◼️ निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि छायावाद आधुनिक हिंदी कविता का स्वर्ण युग था | छायावादी कवियों ने खड़ी बोली हिंदी को चरम उत्कर्ष प्रदान किया | हिंदी कविता को नई प्रतिष्ठा मिली | प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा जैसे महान कवियों ने इस काल में हिंदी कविता को नए आयाम प्रदान किए | इस काल की कविता को पढ़कर पहली बार लोगों ने माना कि खड़ी बोली का माधुर्य ब्रज या अवधी से कम नहीं है | आधुनिक काल का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य ‘कामायनी’ इसी काल की देन है | Other Related Posts भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक ( Bhartendu Harishchandra Ke Natak ) द्विवेदी युग : समय-सीमा, प्रमुख कवि तथा प्रवृत्तियाँ ( Dvivedi Yug : Samay Seema, Pramukh Kavi V Pravrittiyan ) प्रगतिवाद : अर्थ, आरम्भ, प्रमुख कवि व प्रवृतियां ( Pragativad : Arth, Aarambh, Pramukh Kavi V Pravritiyan ) प्रयोगवादी कविता ( नई कविता ) की सामान्य प्रवृतियां ( Prayogvadi kaviata / Nai Kavita Ki Samanya Pravrittiyan ) छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियां क्या है?छायावादी कवि के लिए कोई भी वस्तु काव्य-विषय बनने के लिए उपयुक्त थी। इसी स्वच्छंदतावादी प्रवृत्ति के फलस्वरूप छायावादी काव्य में सौंदर्य और प्रेम चित्रण, प्रकृति-चित्रण,राष्ट्रप्रेम,रहस्यात्मकता,वेदना और करुणा, वैयक्तिक सुख-दु:ख, अतीत प्रेम, कलावाद,प्रतीकात्मकता और लाक्षणिकता,अभिव्यंजना आदि सभी प्रवृत्तियां मिलती है।
छायावाद क्या है छायावाद युग की विशेषताएँ लिखिए?काव्य में वेदना और करुणा की अधिकता– छायावादी काव्य में वेदना और करुणा की अधिकता पाई जाती है। छायावादी युग के समाज के करुणामयी होने के प्रमुख कारण हृदयगत भावों की अभिव्यक्ति की अपूर्णता, अभिलाषाओं की विफलता, प्रेयसी की निष्ठुरता, सौंदर्य की नश्वरता, मानवीय दुर्बलताओं के प्रति संवेदनशीलता, प्रकृति की रहस्यमयता आदि हैं।
छायावाद से आप क्या समझते हैं बताइए?हिन्दी साहित्य के आधुनिक चरण मे द्विवेदी युग के पश्चात हिन्दी काव्य की जो धारा विषय वस्तु की दृष्टि से स्वच्छंद प्रेमभावना, पकृति मे मानवीय क्रिया कलापों तथा भाव-व्यापारों के आरोपण और कला की दृष्टि से लाक्षणिकता प्रधान नवीन अभिव्यंजना-पद्धति को लेकर चली, उसे छायावाद कहा गया।
छायावाद की प्रमुख साहित्यिक प्रवृत्तियां क्या थी एवं प्रमुख कवि कौन कौन थे?जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा इस युग के चार प्रमुख कवि हैं। “छायावाद” का केवल पहला अर्थात् मूल अर्थ लेकर तो हिन्दी काव्य क्षेत्र में चलने वाली महादेवी वर्मा ही हैं।
|