[ १ ] Show [ ३ ] प्रेमचंदरचनावली5उपन्यास : 1931-1932 गबन, कर्मभूमि [ ४ ] प्रेमचंदरचनावलीखण्ड : पाँच भूमिका एवं मार्गदर्शन डॉ॰ रामविलास शर्मा [ ५ ] प्रकाशकीय
श्रेष्ठ और कालजयी साहित्यकारों के समग्र कृतित्व का एकत्र प्रकाशन कई दृष्टियों से उपयोगी होता है। इसी आलोक में 'प्रेमचंद रचनावली' की कुछ विशेषताओं का संक्षेप में उल्लेख बहुत आवश्यक है। इस रचनावली में पहली बार सम्पूर्ण प्रेमचंद साहित्य सर्वाधिक शुद्ध और प्रामाणिक मूल पाठ के साथ सामने आया है। सम्पूर्ण रचनाओं का विभाजन पहले विधावार तत्पश्चात् कालक्रमानुसार किया गया है। रचनाओं के प्रथम प्रकाशन एवं उनके कालक्रम संबंधी प्रामाणिक जानकारी प्रत्येक रचना के अन्त में दी गई है जिससे प्रेमचंद के कृतित्व के अध्ययन और मूल्यांकन में विशेष सुविधा होगी। इसकी अधिकांश सामग्री प्रथम संस्करणों या काफी पुराने संस्करणों से ली गई है। प्रेमचंद साहित्य के अध्ययन, अध्यापन तथा शोध के लिए इस रचनावली का अपना एक ऐतिहासिक महत्त्व है, क्योंकि इसमें प्रेमचंद की अब तक उपलब्ध सम्पूर्ण तया अद्यतन सामग्री का समावेश कर लिया गया है। रचनावली के बीस खंडो का क्रमबद्ध प्रारूप इस प्रकार है-- खण्ड 1-6 : मौलिक उपन्यास, खण्ड 7-9 : लेख, भाषण, संस्मरण, संपादकीय, भूमिकाएं, समीक्षाएं, खण्ड 10 : मौलिक नाटक: खण्ड 9-15 : सम्पूर्ण कहानियां (302), खण्ड 16-17 :अनुवाद (उपन्याम, नाटक, कहानी); खण्ड 18 :जीवनी एवं बाल साहित्य,खण्ड 19 :पत्र (चिट्ठी-पत्री), खंड 20 :विविध। रचनावली की विस्तृत भूमिका मूर्धन्य आलोचक डॉ० रामविलास शर्मा ने लिखी है, जो इस रचनावली की सबसे बड़ी उपलब्धि है। डॉ. शर्मा ने अपनी साहित्य-साधना के व्यस्त क्षणों में भी हर कदम पर हमारा मार्गदर्शन किया। रचनावली का जो यह उत्कृष्ट रूप सामने आया है। यह सब उन्हीं के आशीर्वाद का प्रतिफल है। इस कृपा और सहयोग के लिए मैं उनके प्रति नतमस्तक हूँ। बिहार विधान परिषद् के माननीय सभापति, हिन्दी और उर्दू के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. जाबिर हुसेन ने प्रेमचंद रचनावली के संपादक-मण्डल का अध्यक्ष होना स्वीकार किया और रचनावली के संपादन कार्य में हमारा उचित मार्गदर्शन किया, इसके लिए मैं उनका आभारी हूं। साथ ही संपादक-मण्डल के विद्वान सदस्यों के प्रति भी हार्दिक आभार प्रकट करता हूं। श्री केशवदेव शर्मा ने अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद सम्पादन कार्य में जिस गहरी लगन, समझदारी और आत्मीयता से सहयोग किया। उसके लिए उनके प्रति अनेकशः धन्यवाद। उनका अहर्निश सानिध्य मुझे स्फूर्ति प्रदान करता रहा। डॉ. गीता शर्मा एवं डॉ. अशोक कुमार शर्मा, वेद प्रकाश सोनी तथा डा. विनय के प्रति भी उनके हार्दिक सहयोग के लिए आभारी हूं। [ ६ ] ________________ भाई राम आनंद साहित्य क्षेत्र में प्रवेश करते ही प्रेमचंद द्वारा स्थापित प्रकाशन संस्थान 'सरस्वती प्रेस' से जुड़ गए थे। लगभग बीस वर्षों तक उन्होंने स्व० श्रीपत राय (प्रेमचंद के ज्येष्ठ पुत्र) के मार्गदर्शन में अप्राप्य प्रेमचंद साहित्य पर शोध कार्य किया। वे स्व० श्रीपत राय के संपादन में प्रकाशित होने वाली विख्यात कथा-पत्रिका 'कहानी' के सहायक संपादक रहे। श्रीपत राय के देहांत के बाद उन्होंने 'कहानी' का स्वतंत्र रूप से संपादन किया और उसे नया रूप तथा गरिमा प्रदान की। उन्होंने जिस गहरी सुझ-बूझ, लगन, धैर्य और निष्ठा से इस रचनावली के संपादन कार्य को इतने सुरुचिपूर्ण और वैज्ञानिक ढंग से संपन्न किया, इसके लिए वे हम सबों के साधुवाद के पात्र हैं। श्री हरीशचन्द्र वाष्र्णेय, श्री प्रेमशंकर शर्मा, श्री उदयकान्त पाठक ने पूफ-संशोधन और सम्पूर्ण मुद्रण कार्य में विशेष जागरूकता और मनस्विता का परिचय दिया; इनके साथ विमलसिंह, आर० के० यादव, सुनील जैन, शिवानंदसिंह तथा संस्था के अन्य सभी सहकर्मियों के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूं क्योंकि इन सबके सहयोग और सद्भाव के बिना यह काम पूरा होना लगभग असंभव था। मेरी भ्रातृजा रीमा और भ्रातृज संदीप, संजीव, मनीष, विक्रांत, चेतन की लगन और सूझबूझ ने भी मुझे सदैव प्रेरित और उत्साहित किया वे भी धन्यवाद के पात्र हैं। रचनावली के मुद्रण का कार्य श्री कान्तीप्रसाद शर्मा की देखरेख में हुआ है। उनकी सूझबूझ और श्रमनिष्ठा के लिए वे हमारे हार्दिक धन्यवाद के पात्र हैं। सर्वश्री विजयदान देथा, यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र', रामकुमार कृषक, स्वामी प्रेम जहीर, डॉ. कुसुम वियोगी, रामकुमार शर्मा आदि सभी मित्रों के सुझावों के लिए भी आभारी हूँ। इस कार्य में पूज्य माताजी श्रीमती जसवन्ती देवी का आशीर्वाद और पिताश्री प्रेमनाथ शर्मा को दीर्घकालीन प्रकाशन-व्यवसाय का अनुभव और आशीर्वाद मेरे विशेष प्रेरणा स्रोत रहे। इनके साथ मातृतुल्या भाभी श्रीमती ललिता शर्मा, अग्रज राजकुमार शर्मा, चमनलाल शर्मा, धर्मपाल शर्मा एवं उनकी धर्मपत्नी इन्दु शर्मा के साथ भाई हरीशकुमार शर्मा एवं सुभाषचन्द्र शर्मा के साथ ही चाचा श्री दीनानाथ शर्मा का भी आभारी हूं जिन्होंने पग-पग पर मेरा मार्गदर्शन किया। और सबसे अंत में सहधर्मिणी श्रीमती गीता शर्मा ने जो सहयोग और संबल प्रदान किया उसके लिए आभार अथवा धन्यवाद जैसा शब्द बहुत कम होगा। सारा श्रेय उन्हीं का है। नेशनल लाइब्रेरी, कलकत्ता के सहयोग से दुर्लभ पुस्तक 'महात्मा शेखसीदी' लगभग सत्तर वर्ष बाद एक बार फिर इस रचनावली के मार्फत पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की जा रही है। मैं नेशनल लाइब्रेरी कलकत्ता के प्रति अपनी अभार प्रकट करता हूं। उन समस्त संस्थानों, पुस्तकालयों, विभागों, संस्थाओं, लेखकों, संपादकों, अधिकारियों और व्यक्तियों के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हैं, जिन्होंने इस रचनावली के आयोजन में सहयोग किया। अन्त में विद्वान पाठकों से हमारा निवेदन है कि वे इस रचनावली की त्रुटियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करें ताकि आगामी संस्करणों में उन्हें दूर किया जा सके। हम आशा करते हैं कि हिन्दी जगत् इस बहु-प्रतीक्षित रचनावली की हार्दिक स्वागत करेगा। अरुण कुमार (प्रबंध निदेशक) [ ७ ] [ ८ ] बंबई में फिल्म अनुबंध पर हस्ताक्षर करते हुए प्रेमचंद [ ९ ] गबन रचनाकाल : मार्च-अप्रैल, 1929 - जुलाई, 1930 प्रकाशनकाल : फरवरी, 1931 [ १० ] ग़बनलेखक भारत विख्यात उपन्यास सम्राट श्री प्रेमचंद जी ________ प्रकाशक सरस्वती-प्रेस, बनारस सिटी (प्रथम संस्करण १९३६ मूल्य- ५ रू. गबन उपन्यास का रचना काल कौन सा है?प्रेमचंद का स्वर्णिम युग
सन् 1931 की शुरुआत में 'गबन' प्रकाशित हुआ।
गबन की रचना कब हुई थी?लडकी का नाम जालपा था, माता का मानकी।
Iii गबन उपन्यास का रचनाकाल क्या लिखिए?उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का गबन उपन्यास एक यथार्थवादी रचना हैं. इसमें भारतीय समाज की प्रमुख समस्या नारी के आभूषण प्रेम एवं नवयुवकों की मौज मस्ती व विलासिता की प्रवृत्ति को चित्रित किया गया हैं.
गबन उपन्यास के लेखक कौन हैं?प्रेमचंदग़बन / लेखकnull
|