गतिविधि लॉग, Optimize में की गई कार्रवाइयों का सही क्रम में व्यवस्थित बदलाव का इतिहास होता है. यह समस्या के हल और शिक्षा से जुड़े मकसद के लिए, इस्तेमाल किया जाता है. Show
यह कैसे काम करता हैगतिविधि लॉग, किसी खाते या कंटेनर में कौनसे बदलाव किए गए हैं, किसने किए, और कब किए जैसी जानकारी दिखाता है. इसका इस्तेमाल किसी समस्या को हल करने के लिए किया जाता है. साथ ही, इससे ऑडिट ट्रेल की सुविधा भी मिलती है जिससे किसी टीम के साथ मिलकर काम करने में मदद मिल सकती है. गतिविधि लॉग इवेंट की एक टेबल होती है, जो खाते और कंटेनर, दोनों लेवल पर उपलब्ध है. खाता लेवलखाता लेवल पर गतिविधि लॉग को ऐक्सेस करने के लिए:
गतिविधि लॉग में ये फ़ील्ड शामिल होते हैं:
ध्यान दें: जब किसी ऑटोमेटेड सिस्टम (कार्रवाइयों को अपने-आप पूरा करने वाला सिस्टम) प्रोसेस से कार्रवाई की जाती है, तब उपयोगकर्ता कॉलम में "जानकारी नहीं है" दिखता है. खाता लेवल पर ये कार्रवाइयां उपलब्ध हैं:
आइटम के ये टाइप, खाते के लेवल पर उपलब्ध हैं:
कंटेनर लेवलगतिविधि टैब, कंटेनर के हर पेज पर सबसे ऊपर अनुभव टैब के बगल में भी उपलब्ध है. Optimize के कंटेनर में की गई सभी कार्रवाइयों की कोई सही सूची देखने के लिए इस पर क्लिक करें. प्रयोग इवेंट के लिए किसी आइटम के नाम पर क्लिक करने से, प्रयोग की ज़्यादा जानकारी वाले पेज पर पहुंचा जा सकता है. दिलिप चुघ [Hindi PDF, 393 kB] अमतौर पर विद्यालयों में भाषा शिक्षण के कुछ खास और बरसों से चले आ रहे अभ्यास ही बच्चों से करवाए जाते हैं। माना यह जाता है कि इन अभ्यासों के ज़रिए बच्चे पढ़ने-लिखने का कौशल सीख जाएंगे।सरसरी तौर पर, पढ़ना-लिखना सीखने को अक्षरों, शब्दों की पहचान, वर्णमाला को क्रम से बोल पाना, विभिन्न घुमावदार मात्राओं के उच्चारण, अक्षरों से मिलाकर शब्द पढ़ना, और ऐसे ही कुछ वाक्य पढ़ना जैसी गतिविधियों से समझा जाता है। विद्यालयों के भाषा के कालांश में बच्चों को लगातार इन कवायदों में लगे हुए देखा जा सकता है और वे इसी तरह की प्रक्रिया में कक्षा 1 से 5 तक लगे ही रहते हैं। इस प्रकार से कुछ बच्चों में वर्णों को मिलाकर शब्द बनाना, फिर वाक्य बनाकर पढ़ने की आदत बन जाती है। इससे बच्चों को लिखे हुए का अर्थ समझने में कठिनाई होती है। एक तो पढ़ना-लिखना सीखने-सिखाने के ये तौर तरीके अपने-आप में समस्याग्रस्त हैं और दूसरी परिस्थिति यह कि सुदूर ग्रामीण परिवेश के बच्चों का हिन्दी भाषा के लिखित व मौखिक स्वरूप से आमना-सामना (एक्सपोज़र) नहीं के बराबर होता है। इन बच्चों को अपने विद्यालय के अतिरिक्त घर, परिवार व परिवेश में हिन्दी भाषा बोलने-सुनने, लिखने व लिखी हुई भाषा जैसे - विज्ञापन, अखबार, विभिन्न पत्रिकाएँ, टी.वी, साइन बोर्ड, आदि साधनों के ज़रिए समझने के मौके तुलनात्मक रुप से बहुत कम या नहीं मिलते हैं। इन समस्याओं के सन्दर्भ में कुछ बातें जो कि भाषा शिक्षण में मानी जाती रही हैं और एनसीएफ-2005 भी इस बात की पैरवी करता है कि बच्चा अपनी मातृभाषा पूरे सन्दर्भ में ही सीखता है। 4 से 5 साल का होने तक बच्चा अपने रोज़मर्रा के व्यवहार में उसका भरपूर उपयोग करने में सक्षम भी हो जाता है। अत: कक्षा में भी भाषा शिक्षण हेतु समृद्ध अर्थपूर्ण माहौल होना चाहिए। ऐसा माहौल जो बच्चों को लिखित व मौखिक भाषा की संरचना और उसके उपयोग के तरीकों को समझने के रोचक व अर्थपूर्ण मौके देता हो, जिसमें बच्चे की भाषा का उपयोग हो और बच्चे भी अपनी सक्रिय भागीदारी निभा सकें। दूसरी बात ये कि समझकर पढ़ पाने में अंदाज़ा लगाकर पढ़ पाने की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किसी भाषा के परिपक्व पाठक जब पठन सामग्री का अध्ययन करते हैं तो वे लिखे हुए का अंदाज़ा लगाते हुए आगे पढ़ते जाते हैं। हम स्वयं भी पढ़ते हुए कई दफा यह महसूस करते हैं कि अक्षरों व मात्राओं की बहुत छोटी गलतियाँ हमसे अक्सर छूट जाती हैं। जब हम अक्षरों व मात्राओं पर बहुत केन्द्रित होकर पढ़ना शुरू करते हैं तो हमें लिखे हुए में ये सब गलतियाँ पकड़ में आने लगती हैं। इसका मतलब यही हुआ कि धारा- प्रवाह पढ़ने में दृश्य-प्रतीकों के उच्चारण से ज़्यादा उस पूरे सन्दर्भ में बन रहे अर्थ की भूमिका होती है। अत: आवश्यक हो जाता है कि भाषा शिक्षण के कालांश में बच्चों के साथ किन्हीं खास शब्दों-अक्षरों के पठन-लेखन के साथ-साथ ऐसी गतिविधियाँ भी हों जिनसे बच्चों का भाषा के लिखित व मौखिक स्वरूप के विविध रूपों से आमना-सामना हो। उन्हें अन्दाज़ा लगाकर पढ़ पाने के ज़्यादा-से-ज़्यादा अर्थवान मौके मिलें। * क्रियात्मक चित्रों पर काम: समूह में शिक्षक बच्चों को क्रियात्मक चित्र दिखाते हैं और उन पर बातचीत करते हैं कि चित्र में क्या हो रहा है? या क्या दिख रहा है? बच्चों की बताई बातों में से कुछ रुचिकर बातों को आपसी सहमति बनाकर एक से दो वाक्यों में चित्र के नीचे स्केच पेन से लिखा जाता है। अब शिक्षक इस चित्र को समूह में ऐसी जगह चिपका देते हैं जहाँ बच्चे इसे आसानी से पढ़/देख सकें। * पहेलियाँ: मौलिक लेखन व सृजन “भाषा के कालांश में आज मैंने दो बच्चों के साथ सचित्र कहानी कार्ड पर कार्य किया। दोनों बच्चों ने कार्डों को कहानी के अनुसार जमा दिया। एक बच्चे गिर्राज ने कहानी के 8-9 वाक्य लिखे व कहानी भी ठीक बनाई।...........ये बच्चे किसी सन्दर्भ को पढ़कर भी अपने मन से लिखने में कतराते थे। लेकिन अब ये इसमें रुचि लेने लगे हैं।....” -- रामलाल, शोध शिक्षक (12.03.10) * पुस्तकालय: बच्चों के स्तर के अनुरूप पुस्तकें बच्चों के बीच रख दी जाती हैं। बच्चे अपनी पसन्द की पुस्तकें उठाते हैं और पढ़ने या देखने की कोशिश करते हैं। जो बच्चे पढ़ना लिखना सीखने की प्रक्रिया में हैं वे चित्र देखकर कहानी और लिखे हुए वाक्यों को अन्दाज़ा लगाकर पढ़ने की कोशिश करते हैं। शिक्षक द्वारा भी इन पुस्तकों में से कोई-कोई कहानी चित्र दिखाते हुए सुनाई जाती है। * इन गतिविधियों में किन्हीं खास अक्षरों या शब्दों को किसी खास क्रम में सिखाने का आग्रह नहीं है। यहाँ पर उद्देश्य यही रहता है कि बच्चों को अन्दाज़ा लगाकर पढ़ पाने के ज़्यादा से ज़्यादा अर्थवान व रुचिकर मौके मिलें। खासतौर पर जिनमें उनकी स्वयं की भाषा का भी इस्तेमाल हो और सीखने-सिखाने में बच्चों की सक्रिय भागीदारी हो पाए। इन प्रयासों के अनुभव बड़े ही सकारात्मक रहे हैं। * बच्चों की बताई आज की बात, क्रियात्मक वाक्य, निर्देश, पहेलियों, कविताओं, कहानियों आदि को कक्ष में प्रदर्शित करने से एक ओर तो लिखित भाषा के विविध रूपों से बच्चों का आमना-सामना हुआ है; वहीं बच्चों की भाषा को उनकी कक्षा में स्थान मिलने से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। कालांश के बाद भी “... आगे देखता हूँ कि तीन लडकियाँ दीवार पर लगे शब्द-चित्र कार्डों को देखकर शब्द लिख रही हैं। मैंने जब पूछा, “जे का लिख रौ है?” तो लड़कियों ने सभी 12 से 15 शब्दों को ठीक पढ़कर सुनाया।” -- सुभाष, शोध शिक्षक (4.12.2009) * कल्पना व मौलिक लेखन: बच्चों ने स्वयं कहानियाँ-कविताएँ बनाने व अपनी बातों को लिखने में रुचि प्रदर्शित की और पूरे उत्साह से काम किया है। बच्चे 8-10 वाक्यों में अपने सपने, कविताएँ, कहानियाँ, घटनाएँ लिखने लगे हैं, किसी विषय पर मन से लेखन कर लेते हैं। वे शिक्षकों से यही काम करवाए जाने की माँग करते हैं। बच्चों ने शिक्षकों के साथ मिलकर कहानी, कविताएँ व पहेलियाँ बनाई हैं। बच्चे अक्सर इन कहानियों कविताओं को दीवार पर लगाए जाने की मांग करते हैं तथा प्रदर्शित किए जाने पर बार-बार पढ़ते देखे गए हैं। बच्चे अपनी कहानी-कविताओं को घर पर ले जाकर दीवारों पर लगाकर पढ़ते हैं। बच्चों के लेखन में बला का आत्मविश्वास नज़र आता हैं। बच्चे अपनी सुनी हुई कहानियों, कविताओं को तत्परता से लिख लेते हैं। इस प्रकार सन्दर्भशाला परियोजना समूह द्वारा भषा शिक्षण के लिए किए इन प्रयासों से हमने जाना कि भाषा सीखने सिखाने में भाषा के लिखित व मौखिक स्वरूपों का बच्चों से लगातार साक्षात्कार एवं कक्षा में उन्हें मिलने वाली स्वतंत्रता कितनी मूल्यवान होती है। अन्दाज़ा लगाकर पढ़ना इसी तरह मेवा सहरिया जो कि किताब पढ़ना नहीं जानती उसके पास ‘चूहा-बिल्ली’ नाम की पुस्तक है। यह बालिका स्वयं की अंगुली वाक्य के शब्दों पर फेरते हुए मानो एक दम सही किताब पढ़ रही है। मैं उसके पीछे जाकर खड़ी हो गई। उसे मेरा पता नहीं था। वह ऐसे पढ़ रही थी, “एक ऊन्दरा था। उसके पीछे बिल्ली पड़ गई। वह चून के पीपा के पीछे घुस गया। बिल्ली उसके पीछे भागी। वह दौड़ कर पीपा में कूद गया” अंगुली फेरते हुए। एक ही ध्यान से लगातार “..........बिल्ली चारों तरफ उसे देखती रही। आँखे ऊपर नीचे करते हुए। अचानक चूहा पीपे से बाहर आया। सारा आटे से सकेड़-सकेड़, यह देखकर बिल्ली डर गई। उसने चूहे को नहीं खाया। वहाँ से भाग गई। हँसते हुए।” —इन्द्रा शोध शिक्षिका (23.11.09) * बच्चे अपनी मातृभाषा पूरे सन्दर्भ में ही सीखते हैं। 4 से 5 साल का होने तक वे अपने रोज़मर्रा के व्यवहार में उसका भरपूर उपयोग करने में सक्षम भी हो जाते हैं। विद्यालय में पहले दिन से ही बच्चे के लिए पढ़ने की सार्थक सामग्री का होना ज़रूरी है और यह सार्थकता उस बच्चे के सन्दर्भ में आँकी जानी चाहिए जो उक्त सामग्री का पाठक है। विद्यालय में कौन कौन सी गतिविधियां होती है?विभिन्न गतिविधियाँ. वन्दना - संगीतमय सस्वर ईश वन्दना विद्यालय की थाती में समाहित है । ... . शारीरिक गतिविधियाँ - विद्यालय में प्रातःकाल में सामूहिक शारीरिक अभ्यास बालकों को नियमित रूप से करवाया जाता है । ... . साँस्कृतिक गतिविधियाँ - विद्यालय में उत्सव एवं जयन्तियों का आयोजन आचार्यों के मार्गदर्शन में बालकों द्वारा ही किया जाता है।. गतिविधि कितने प्रकार के होते हैं?मनोरंजक गतिविधियों के आठ प्रकार हैं:. शारीरिक गतिविधियाँ (खेल, खेल, फिटनेस आदि). सामाजिक गतिविधियाँ (पार्टी, पिकनिक आदि). डेरा डाले हुए और बाहरी गतिविधियों (दिन के शिविर, निवासी शिविर, फ्लोट यात्राएं, आदि). कला और शिल्प गतिविधियाँ (चित्रकला, मिट्टी के पात्र, काष्ठकला इत्यादि). नाटकीय गतिविधियाँ (कठपुतली, स्किट आदि). गतिविधि क्या है उदाहरण देकर समझाइए?कक्षा में या किसी जलराशि के पास कई व्यावहारिक गतिविधियां करवायी जा सकती हैं। ये गतिविधियां बच्चे खुद करते हैं, और इनसे उनके दिमाग विज्ञान और भूगोल की अवधारणाओं को समझने के लिए खुल जाते हैं। अपनी कक्षा के बच्चों से ये गतिविधियां करवाएं और देखें कि कितनी आसानी से वे किसी भी पाठ को समझ लेते हैं।
बच्चे गतिविधियों से कैसे सीखते हैं?वे जो कुछ भी देखते हैं उसे छूना चाहते हैं। इसी प्रक्रिया के माध्यम से वे सीखते हैं। विभिन्न प्रकार की गतिविधियों और सामग्री के माध्यम से बच्चे वस्तुओं में जोड़-तोड़ मेनुपुलेशन करके, प्रश्न पूछकर, पूर्वानुमान लगाकर भौतिक, सामाजिक और प्राकृतिक वातावरण के बारे में जागरूक होते हैं।
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