"Knowledge is the life of the mind" Show नागार्जुन (Nagarjun)जीवन-परिचयश्री नागार्जुन का जन्म दरभंगा जिले के तरौनी ग्राम में 1911 ई० में हुआ था। आपका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र है। आपका आरम्भिक जीवन अभावों का जीवन था। जीवन के अभावों ने ही आगे चलकर आपके संघर्षंशील व्यक्तित्व का निर्माण किया। व्यक्तिगत दु:ख ने आपको मानवता के दु:ख को समझने की क्षमता प्रदान की है। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाता में हुई। 1936 ई० में आप श्रीलंका गये और वहाँ पर बीद्ध धर्म की दीक्षा ली । 1938 ई० में आप स्वदेश लौट आये। राजनीतिक कार्यकलापाँ के कारण आपकी कई बार जेल-यात्रा भी करनी पड़ी। आप बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा घुमक्कड़ एवं फक्कड़ किस्म के व्यक्ति हैं। आप निरन्तर भ्रमण करते रहे । 1998 ई० में आपका निधन हो गया। रचनाएँयुगधारा, प्यासी-पथराई आँखें, सतरंगे पंखोंवाली, तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कारस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य) आदि। उपन्यास- बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध, कुम्भीपाक, उग्रतारा आदि । सम्पादन- दीपक, विश्व-बन्धु पत्रिका । मैथिली के ‘पत्र-हीन नग्न-गाछ’ काव्य-संकलन पर आपको साहित्य अंकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है। काव्यगत विशेषताएँनागार्जुन के काव्य में जन भावनाओं की अभिव्यक्त, देश प्रेम, श्रमिकों के प्रात सहानुभूति, संवेदनशीलता तथा व्यंग्य की प्रधानता आदि प्रमुख विशेषताऍँ पायी जाती हैं। अपनी कविताओं में आप अत्याचार-पीड़ित, त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करके ही सन्तुष्ट नहीं होते हैं, बल्कि उनको अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा भी देते हैं। व्यंग्य करने में आपको संकोच नहीं होता। ती खी और सीधी चोट करनेवाले आप वर्तमान युग के प्रमुख व्यंग्यकार हैं । नागार्जुन जीवन के, धरती के, जनता के तथा श्रम के गीत गानेवाले कवि हैं, जिनकी रचनाएँ किसी वाद की सीमा में नहीं बँधी हैं । भाषा-शैलीनागार्जुन जी की भाषा-शैली सरल, स्पष्ट तथा मार्मिक प्रभाव डालनेवाली है। काव्य-विषय आपके प्रतीकों के माध्यम से स्पष्ट उभरकर सामने आते हैं। आषके गीतों में जन-जीवन का संगीत है। आपकी भाषी तेत्सम प्रधीने शुद्ध खड़ीबोली है, जिसमें अरबी व फारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। अलंकार एवं छन्दआपकी कविता में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। उपमा, रूपक, अनुप्रास आदि अलंकार ही देखने को मिलते हैं । प्रतीके विधान और बिम्ब-योजना भी श्रेष्ठ है। साहित्य में स्थाननिस्सन्देह नागार्जुन जी की काव्य भाव-पक्ष तथा कला-पक्ष की दृष्टि से हिन्दी साहित्य का अमूल्य कोष है। स्मरणीय तथ्यजन्म- 1911 ई०, तरौनी (जिला दरभंगा (बिहार)। मृत्यु- 1998 ई०। शिक्षा- स्थानीय संस्कृत पाठशाला में, श्रीलंका में बौद्ध धर्म की दीक्षा। वास्तविक नाम- वैद्यनाथ मिश्र। रचनाएँ- युगधारा, प्यासी-पथराई आँखें, सतरंगे पंखोंवाली, तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य), बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध, कुम्भीपाक, उग्रतारा (उपन्यास), दीपक, विश्वबन्धु (सम्पादन) । काव्यगत विशेषताएँ वर्ण्य-विषय- सम-सामयिक, राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं का चित्रण, दलित वर्ग के प्रति संवेदना, अत्याचार-पीड़ित एवं त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति। भाषा-शैली- तत्सम शब्दावली प्रधान शुद्ध खड़ीबोली। ग्रामीण और देशज शब्दों का प्रयोग । प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग। अलंकार व छन्द- उपमा, रूपक, अनुप्रास। मुक्तक छन्द । महत्वपूर्ण लिंक
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You may also likeAbout the authorनागार्जुन कौन से काल के कवि थे?Explanation: नागार्जुन आधुनिक काल के कवि थे। वह एक भारतीय महायान बौद्ध विचारक, विद्वान संत और दार्शनिक थे। उनका नाम वैद्यनाथ मिश्रा था, उन्हें उनके कलम के नाम से नागार्जुन के नाम से जाना जाता था।
नागार्जुन की काव्य रचना कौन सी है?रचनाएँ- युगधारा, प्यासी-पथराई आँखें, सतरंगे पंखोंवाली, तुमने कहा था, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहोंवाली, पुरानी जूतियों का कोरस, भस्मांकुर (खण्डकाव्य), बलचनमा, रतिनाथ की चाची, नयी पौध, कुम्भीपाक, उग्रतारा (उपन्यास), दीपक, विश्वबन्धु (सम्पादन) ।
नागार्जुन को जनकवि क्यों कहा जाता है?जनकवि नागार्जुन आम जनता की समस्याओं के अमर उद्गायक थे । वे एक कवि के साथ ही एक सामाजिक राजनीतिक संघर्षो के जुझारू कार्यकरता भी थे। जनसरोकार उनकी पहली प्रतिबद्धता थी ।
अकाल और उसके बाद किसकी रचना है?पुस्तक : नागार्जुन रचना संचयन (पृष्ठ 100) संपादक : राजेश जोशी रचनाकार : नागार्जुन
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