जोड़ने वाले शब्दों को क्या कहते हैं? - jodane vaale shabdon ko kya kahate hain?

(iv) विरोधदर्शक- दो वाक्यों में परस्पर विरोध प्रकट करके उन्हें जोड़ने वाले अथवा प्रथम वाक्य में कही गयी बात का निषेध दूसरे वाक्य में करने वाले अव्यय को विरोधदर्शक कहते हैं।

जैसे- किन्तु, परन्तु, पर, लेकिन, मगर, वरन, बल्कि।
उदाहरण- मोहन की बुद्धि तीव्र है किन्तु वह आलसी है।
मेरा मित्र इस गाड़ी से आने वाला था, परन्तु वह नहीं आया।

(v) परिणामदर्शक- प्रथम वाक्य का परिणाम या फल दूसरे वाक्य में बताने वाले अव्यय को परिणामदर्शक कहते हैं।

जैसे- इसलिए, अतः, सो, अतएव।
उदाहरण- वह बीमार था इसलिए पाठशाला नहीं गया।
वर्षा हो रही थी अतः मैं घर से नहीं निकला।
इन वाक्यों में 'इसलिए' और 'अतः' अव्यय प्रथम वाक्य का परिणाम दूसरे वाक्य में बताते हैं, अतः ये परिणामदर्शक समुच्ययबोधक हैं।

(2) व्यधिकरण समुच्चयबोधक- जिन पदों या अव्ययों के मेल से एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें 'व्यधिकरण समुच्चयबोधक' कहते हैं।
सरल शब्दों में- एक या एक से अधिक उपवाक्यों को मुख्य उपवाक्य से जोड़ने वाले अव्यय को व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।

इसके चार उपभेद है।-
(i) कारणवाचक (ii) उद्देश्यवाचक (iii) संकेतवाचक (iv) स्वरूपवाचक

(i) कारणवाचक-जिस अव्यय से पहले वाक्य के कार्य का कारण दूसरे वाक्य में लक्षित हो, उसे कारणवाचक कहते हैं।

जैसे- क्योंकि, जोकि, इसलिए कि।
उदाहरण- मैं वहाँ नहीं आ सका क्योंकि वर्षा हो रही थी।

(ii) उद्देश्यवाचक-जिस अव्यय से एक वाक्य का उद्देश्य या फल दूसरे वाक्य द्वारा प्रकट हो, उसे उद्देश्यवाचक कहते हैं।

जैसे- ताकि, कि, जो, इसलिए कि।
उदाहरण- मैं वहाँ इसलिए गया था ताकि पुस्तक ले आऊँ।
राम इसलिए नहीं आया कि कहीं उसका अपमान न हो।

(iii) संकेतवाचक-जो अव्यय संकेत या शर्त एक वाक्य में बताकर दूसरे वाक्य में उसका फल संकेतित करें, उन्हें संकेतवाचक कहते हैं।

जैसे- यदि.....तो, यद्यपि.....तथापि, जो.....तो, चाहे.....परन्तु, कि।
उदाहरण- यदि समय मिला तो मैं अवश्य जाऊँगा।
यद्यपि मैंने उनसे निवेदन किया तथापि वे नहीं माने।

(iv) स्वरूपवाचक- जो अव्यय दो उपवाक्यों को इस प्रकार जोड़े कि पहले वाक्य का स्वरूप दूसरे वाक्य से ही स्पष्ट हो, उसे स्वरूपवाचक कहते हैं।

जैसे- कि, जो, अर्थात, मानो।
उदाहरण- कृष्ण ने कहा कि मैं आज खाना नहीं खाऊँगा।
उसने ठीक किया जो यहाँ चला आया।

(4)विस्मयादिबोधक अव्यय :- जो शब्द आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा, आशीर्वाद, क्रोध, उल्लास, भय आदि भावों को प्रकट करें, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिन अव्ययों से हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित हों, पर उनका सम्बन्ध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से न हो, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।

इन अविकारी शब्दों का प्रयोग वाक्य के प्रारम्भ में होता है तथा इनका वाक्य की रचना से सीधा संबंध नहीं होता। इन शब्दों के बाद विशेष चिह्न (!) लगता है।

जैसे- हाय! अब मैं क्या करूँ ?
हैं! तुम क्या कर रहे हो ? यहाँ 'हाय!' और 'है !'
अरे! पीछे हो जाओ, गिर जाओगे।
इस वाक्य में अरे! शब्द से भय प्रकट हो रहा है।

विस्मयादिबोधक अव्यय है, जिनका अपने वाक्य या किसी पद से कोई सम्बन्ध नहीं।
व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है। 'अब मैं क्या करूँ ? इस वाक्य के पहले 'हाय!' जोड़ा जा सकता है।

विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं-
(i) हर्षबोधक- अहा!, वाह-वाह!,धन्य-धन्य, शाबाश!, जय, खूब आदि।
(ii) शोकबोधक- अहा!, उफ, हा-हा!, आह, हाय, त्राहि-त्राहि आदि।
(iii) आश्चर्यबोधक- वाह!, हैं!, ऐ!, क्या!, ओहो, अरे, आदि
(iv) क्रोधबोधक- हट, दूर हो, चुप आदि।
(v) स्वीकारबोधक- हाँ!, जी हाँ, जी, अच्छा, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा! आदि।
(vi) सम्बोधनबोधक- अरे!, अजी!, लो, रे, हे आदि।
(vii) भयबोधक- अरे, बचाओ-बचाओ आदि।

निपात और उसके कार्य

यास्क के अनुसार 'निपात' शब्द के अनेक अर्थ है, इसलिए ये निपात कहे जाते हैं- उच्चावच्चेषु अर्थेषु निपतन्तीति निपाताः। यह पाद का पूरण करनेवाला होता है- 'निपाताः पादपूरणाः । कभी-कभी अर्थ के अनुसार प्रयुक्त होने से अनर्थक निपातों से अन्य सार्थक निपात भी होते हैं। निपात का कोई लिंग, वचन नहीं होता। मूलतः इसका प्रयोग अव्ययों के लिए होता है। जैसे अव्ययों में आकारगत अपरिवर्त्तनीयता होती है, वैसे ही निपातों में भी।
निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समूह या पूरे वाक्य को अन्य (अतिरिक्त) भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नही होते। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ प्रभावित होता है।

निपात के भेद

यास्क ने निपात के तीन भेद माने है-
(1) उपमार्थक निपात : यथा- इव, न, चित्, नुः
(2) कर्मोपसंग्रहार्थक निपात : यथा- न, आ, वा, ह;
(3) पदपूरणार्थक निपात : यथा- नूनम्, खलु, हि, अथ।

यद्यपि निपातों में सार्थकता नहीं होती, तथापि उन्हें सर्वथा निरर्थक भी नहीं कहा जा सकता। निपात शुद्ध अव्यय नहीं है; क्योंकि संज्ञाओं, विशेषणों, सर्वनामों आदि में जब अव्ययों का प्रयोग होता है, तब उनका अपना अर्थ होता है, पर निपातों में ऐसा नहीं होता। निपातों का प्रयोग निश्र्चित शब्द, शब्द-समुदाय या पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। इसके अतिरिक्त, निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं हैं। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का सम्रग अर्थ व्यक्त होता है। साधारणतः निपात अव्यय ही है। हिन्दी में अधिकतर निपात शब्दसमूह के बाद आते हैं, जिनको वे बल प्रदान करते हैं।

जोड़ने वाले शब्द को क्या कहते हैं?

प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है 'साथ में, पर बाद में" और अय का अर्थ होता है "चलने वाला", अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला।

दो वाक्यों को जोड़ने वाले शब्द को क्या कहते हैं?

संयोजक - दो शब्दों या वाक्यों को जोड़ने वाले अव्यय संयोजक कहलाते है। जैसे - कि,और,एवं,तथा,व,इसलिए।

दो शब्दों या दो वाक्यों को आपस में जोड़ने वाले शब्द क्या कहलाते हैं?

दो शब्दों या वाक्यों को जोड़ने वाले संयोजक शब्द को समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं। सयोंजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक: ऐसे शब्द जो दो या दो से अधिक वाक्यों को आपस में परस्पर जोड़ने का काम करते हैं, वे शब्द सयोंजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक शब्द कहलाते हैं। जैसे: भी, व,और, तथा, एवं आदि। उदाहरण: राम और मोहन भाई है।

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