हम अपने शहर को प्रदूषण से कैसे बचा सकते हैं? - ham apane shahar ko pradooshan se kaise bacha sakate hain?

आज के इस पर्यावरण प्रदूषण रोकने के उपाय निबंध में हम सबसे पहले प्रदूषण क्या है ? प्रदूषण क्यों है ? इस कारणों को समझकर प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय के विषय में एक लेख लिखेंगे।

पर्यावरण प्रदूषण आज के दौर की सबसे बड़ी समस्या है। जिसकी वजह से आज मानव जीवन ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जीवधारी परेशान है। पर्यावरण प्रदूषण ही है जिसके कारण जीवो की कुछ प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं एवं कुछ विलुप्त होने की कगार पर हैं। मानव की जीवन प्रत्याशा दिनों दिन घटती जा रही है इस पर भी प्रदूषण  का प्रत्यक्ष रूप से असर है। वास्तव में मनुष्य ही पर्यावरण प्रदूषण के लिए मुख्यतः जिम्मेदार एवं भुक्तभोगी भी है।


पर्यावरण प्रदूषण क्या है ?

प्रकृति में सभी प्रकार के जैविक एवं अजैविक पदार्थो का एक निश्चित अनुपात होता है इस प्रकार के प्राकृतिक वातावरण को हम 'संतुलित वातावरण' कहते है। परन्तु जब इस निश्चित अनुपात में उतार चढाव आता है या सरल शब्दों में जब भी पर्यावरण में कुछ अवांछित पदार्थ मिल जाते हैं तो यही पदार्थ पर्यावण को प्रदूषित कर देते हैं।

दूसरे शब्दों में 'पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटको में होने वाला किसी भी प्रकार का अवांछित परिवर्तन पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है'।

पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कुछ प्रमुख पदार्थ

कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, क्लोरीन, अमोनिया, फ्लोरीन आदि गैसें,  धुएं, धुल, ग्रिट आदि जमे हुए पदार्थ,  डिटरजेंट्स, हाइड्रोजन, फ्लोराइड्स, फ़ास्जीन आदि रासायनिक पदार्थ, ध्वनि, ऊष्मा एवं रेडियोएक्टिव पदार्थ आदि पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रमुख पदार्थ हैं। जो अवांछित मात्रा में पर्यावरण में मिलकर पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं।

पर्यावरण प्रदूषण रोकने के उपाय

पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण करना अब बहुत की अधिक आवश्यक हो गया है  जिसके लिए अब वैश्विक स्तर पर भी कदम उठाये जा रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सर्वप्रथम जनसँख्या वृद्धि पर नियंत्रण करना आवश्यक है क्योंकि जितनी अधिक जनसँख्या होगी मानव आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए उतनी ही अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दुरूपयोग होगा। साथ ही वनों के कटाई पर रोक लगाते हुए वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए। आम जनमानस को भी अपने तुच्छ से लाभ के लिए प्राकृति के महत्त्व को नजरअंदाज करते हुए कोई कार्य नहीं करना चाहिए। पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित बिन्दु महत्पूर्ण हैं :

➤ वनों की कटाई रोकना चाहिए एवं वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए साथ ही वृक्षों की संख्या अधिक होने से होने वाले लाभ के विषय में लोगों को जागरूक करना चाहिए। 

 खाद्य उत्पादन में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम करके जैवक उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए।

 बढ़ती मानव जनसँख्या के नियंत्रण के लिए प्रयास करना चाहिए।  

 कारखानों के चिमनियों में फ़िल्टर लगाना चाहिए एवं चिमनियों को अधिक ऊंचाई पर रखना चाहिए। 

 कारखानों द्वारा निकलने वाले जल को कृत्रिम तालाबों में रासायनिक विधि द्वारा उपचारित करने के उपरांत नदियों में छोड़ना चाहिए। 

 कम शोर वाले मशीन उपकरणों के निर्माण एवं उपयोग पर जोर देना चाहिए एवं उद्योगों को शहरों या आबादी वाले स्थान से दूर स्थापित करना चाहिए। 

 परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। 

 हमें सिंगल यूज़ प्लास्टिक एवं अन्य प्लास्टिक के उपयोग को रोकना चाहिए एवं पर्यावरण के अनुकूल वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। 

 घरेलू एवं औद्योगिक अपशिष्ट का समुचित निस्तारण करना चाहिए। 

 नवीकरणीय ऊर्जा के श्रोत के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए। 

 वर्षा के जल को संचित करके उसका पुनः उपयोग कर भूमिगत जल को संरक्षित करने का प्रयास करना चाहिए। 


भौतिकता के इस दौर में मनुष्य निज स्वार्थ के लिए पर्यावरण की अनदेखी करके सम्पूर्ण जीवधारियों के जीवन को खतरे में झोकता जा रहा है। औद्योगीकरण, शहरीकरण, कल-कारखानों, परमाणु परीक्षणों आदि के कारण आज पूरा पर्यावरण प्रदूषण से ग्रषित है। पर्यावरण की सुरक्षा हम सबकी सबसे बड़ी चुनौती है। इसलिए हमें निःस्वार्थ होकर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को ख़त्म करने के लिए आगे आना होगा। हमें प्रत्येक कार्य करने से पहले पर्यावरण के अनुकूलता का ध्यान रखना होगा। जब पर्यावरण स्वच्छ रहेगा तभी मनुष्य स्वस्थ्य रहेगा। 

pradushan ko rokne ke upay essay in hindi

प्रदूषण से निपटने के सरकारी प्रयासों में है कितना दम

  • हृदयेश जोशी
  • वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए

5 नवंबर 2019

हम अपने शहर को प्रदूषण से कैसे बचा सकते हैं? - ham apane shahar ko pradooshan se kaise bacha sakate hain?

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दीपावली के बाद राजधानी और आसपास के इलाकों में प्रदूषण के स्तर में आये उछाल के साथ ही व्हाट्स-एप पर एक मज़ाकिया मैसेज वायरल होने लगा.

"कब तक ज़िंदगी काटोगे, सिगरेट-बीड़ी और सिगार में;

कुछ दिन तो काटो दिल्ली-एनसीआर में…"

…और यही आज का क्रूर सच भी है. दिल्ली की हवा में सांस लेना हर रोज़ करीब 40 से 50 सिगरेट पीने के बराबर है और यह सिर्फ़ फैशनेबल आंकड़ेबाज़ी नहीं हैं. देश और दुनिया की तमाम विशेषज्ञ रिपोर्ट बताती आयी हैं कि विश्व के 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 20 से अधिक भारत के हैं.

अपने पड़ोसी गुड़गांव, फरीदाबाद और गाज़ियाबाद के साथ देश की राजधानी दिल्ली इस सूची में सबसे ऊपर रहती है.

रविवार को राजधानी के शाहदरा इलाके में एयर क्वॉलिटी सूचकांक 999 रहा जबकि सुरक्षित स्तर 50 के नीचे माना जाता है. दिल्ली के अधिकांश हिस्सों में यह सूचकांक पिछले कई दिनों से 900 के ऊपर है.

डाउन-टु-अर्थ मैग्ज़ीन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में सालाना 10-30 हज़ार लोग वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से मर रहे हैं. आईआईटी मुंबई के जानकारों ने दुनिया के प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ मिलकर जो शोध किया उसके मुताबिक दिल्ली में सालाना मौत का यह आंकड़ा 14,800 है.

वायु प्रदूषण पर नज़र रखने वाले एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (एक्याएलआई) और शिकागो विश्वविद्यालय स्थित एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के ताज़ा अध्ययन में कहा गया है कि उत्तर भारत में ख़राब हवा के कारण सामान्य इंसान की ज़िंदगी करीब 7.5 साल कम हो रही है.

महत्वपूर्ण है कि 1998 में यह आंकड़ा 3.7 साल था यानी प्रदूषण के चलते औसतन लगभग साढ़े तीन साल पहले मौत हो रही थी. यह शोध कहता है कि 1998 और 2006 के बीच उत्तर भारत में प्रदूषण 72% बढ़ा है.

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बच्चों पर सबसे बड़ी मार

इस प्रदूषण की सबसे बड़ी चोट बच्चों पर पड़ रही है. भारत में हर 3 मिनट में एक बच्चा वायु प्रदूषण से हो रही बीमारियों से मर रहा है. ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीस रिपोर्ट बताती है कि 2017 में करीब 2 लाख बच्चों की मौत ज़हरीली हवा से हुई यानी लगभग साढ़े पांच सौ बच्चों की हर रोज़ मौत.

दिल्ली में बीते शुक्रवार भयानक प्रदूषण के कारण सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी ने हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा की. इसके तहत निर्माण कार्यों को रोकने, स्कूलों को बन्द करने के अलावा दिल्ली सरकार ने सोमवार से 2 हफ्ते के लिये ऑड-ईवन कार राशनिंग स्कीम की घोषणा भी कर दी है लेकिन हालात बता रहे हैं कि सिर्फ मुश्किल के वक्त जागना समस्या का समाधान नहीं है.

पिछले सालों में कम से कम 3 प्रतिष्ठित रिपोर्ट्स ने कहा कि भारत में 10 से 12 लाख लोग प्रदूषित हवा से मर रहे हैं. पहले लांसेट रिपोर्ट जिसने 2015 में 10 लाख भारतीयों के वायु प्रदूषण से मरने की बात कही.

उसके बाद पिछले साल स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (SoGA) ने बताया कि 2017 में करीब 12 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण से हुई. केंद्र सरकार और उसके मंत्रियों ने इन पड़तालों को लगातार खारिज़ किया. कभी "विदेशी रिपोर्ट" कह कर और कभी "अलार्मिस्ट" बताकर.

लेकिन, सरकार के ही इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने बताया कि खराब हवा से होने वाली मृत्यु के आंकड़े इससे कहीं अधिक बदतर हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में हर 8 में से एक मौत के पीछे वायु प्रदूषण का हाथ है.

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मरीज़ों की संख्या में बढ़ोतरी

राजधानी में प्रदूषण का हाल पर फेफड़ों की बीमारियों के जानकार और दिल्ली स्थित पीएसआरआई संस्थान के चेयरमैन डॉ. जी सी खिलनानी कहते हैं कि प्रदूषण से प्रभावित मरीज़ों की संख्या बढ़ गई है और हाल यह है कि इन दिनों ज्यादातर मरीज़ सीधे आईसीयू में भर्ती हो रहे हैं.

डॉ. जी सी खिलनानी कहते हैं, "हमारे पास इन दिनों दो तरह के मरीज़ आ रहे हैं. एक वो जिन्हें पहले से फेफड़ों और हृदय की बीमारी है. उनको बहुत तकलीफ हो रही है. उन्हें ज़्यादातर को आईसीयू में भर्ती करना पड़ रहा है. ये ऐसे मरीज़ हैं जो पहले ही एंटीबायोटिक ले रहे होते हैं और ये दवाइयां उन पर बेअसर हो जाती हैं. इन्हें बचाने के लिये हमें इन्हें स्टेरॉइड्स देने पड़ रहे हैं और आईसीयू में खयाल रखना पड़ता है."

"दूसरे वह मरीज़ हैं जिन्हें पहले से कोई बीमारी नहीं है लेकिन फिर भी खांसी और नाक बहने की शिकायत के साथ वह अस्पताल पहुंच रहे हैं. ऐसे लोगों पर भी कई बार एंटीबायोटिक नाकाम हो रहे हैं."

प्रदूषण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हार्ट अटैक और निमोनिया जैसी बीमारियों के लिये ज़िम्मेदार है लेकिन वातावरण में मौजूद हानिकारक कण मरीज़ के फेफड़ों तक सीमित नहीं रहते.

डॉ खिलनानी समझाते हैं कि अल्ट्रा फाइन पार्टिकुलेट (कण) जिन्हें PM 1 या PM 0.1 कहा जाता है वह फेफड़ों को पार करके खून में शामिल हो जाते हैं और फिर यह हानिकारक तत्व शरीर के किसी भी हिस्से को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

वह कहते हैं, "यह आपके दिमाग, गुर्दे या फिर आंत तक कहीं भी पहुंच कर आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं. ये कण आपके ख़ून में कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा को भी बढ़ाते हैं. वाहनों से होने वाले प्रदूषण से सबसे अधिक हृदय रोग होते हैं."

कमज़ोर क्लीन एयर प्रोग्राम

लंबे इंतज़ार के बाद सरकार ने इस साल की शुरुआत में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) की घोषणा की. अभी देश के 122 शहरों को इसमें शामिल किया गया है. एनसीएपी के तहत इन शहरों को साल 2024 तक अपने वायु प्रदूषण को मौजूदा स्तर से 20-30% कम करना है.

हालांकि, इस प्रोग्राम की वजह से अब वायु प्रदूषण आधिकारिक रूप से एक राष्ट्रीय समस्या घोषित हो गई है और हवा को साफ करने की मुहिम दिल्ली के अलावा देश के कई दूसरे शहरों पर भी लागू होगी.

जिन शहरों में यह प्लान लागू होना है उनके लिये कुछ आर्थिक मदद का भी प्रावधान है लेकिन इन शहरों में यह जितनी बड़ी समस्या है उस हिसाब से वायु प्रदूषण में कटौती के लक्ष्य काफी कम रखे गये हैं.

पर्यावरण के जानकार चंद्र भूषण कहते हैं, "एक्शन प्लान का खाका इतना ब्रॉड (मोटा) रखा गया है कि उसे लागू करो या न करो कोई फर्क ही नहीं पड़ेगा. इस प्लान के तहत शहरों को कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं मिल रही है जिससे उन्हें पता चले कि करना क्या है."

"एक्शऩ प्लान में साफ पॉइंट्स होने चाहिये कि क्या किया जाना है. दूसरा यह कि एनसीएपी को लागू करने का तरीका काफी कमज़ोर है. यह बिल्कुल स्वैच्छिक है. कोई कानूनी सज़ा का प्रावधान नहीं है. इसमें किसी की जवाबदेही तय करने का कोई तरीका भी नहीं है यानी किसी को कभी ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता."

उधर ग्रीनपीस में ऊर्जा और वायु प्रदूषण विशेषज्ञ सुनील दहिया दूसरे अहम पक्ष की ओर इशारा करते हैं. हवा को साफ करने के लिये क्षेत्रवार लक्ष्य तय करने की ज़रूरत है.

सुनील दहिया कहते हैं, "यह जानना होगा कि किस शहर में कौन सा क्षेत्र (ट्रांसपोर्ट, पावर, निर्माण, बायोमास बर्निंग इत्यादि) कितना प्रदूषण फैला रहा है. जब तक इन बारीकियों को ध्यान में रखकर लक्ष्य तय नहीं होंगे तब तक हवा को सांस लेने लायक नहीं बनाया जा सकता."

प्रदूषण में मौसम के हिसाब से बदलाव होता है. मिसाल के तौर पर गर्मियों में वाहनों से होने वाला प्रदूषण 9% रहता है तो जाड़ों में प्रदूषण में इसका योगदान 25% तक बढ़ जाता है. इसी तरह मिट्टी और सड़क पर उड़ने वाली धूल गर्मियों में 28% प्रदूषण करती है लेकिन यह जाड़ों में 4% तक गिर सकती है.

आज दिल्ली में 40 से अधिक मॉनिटरिंग स्टेशन लग चुके हैं जो रियल टाइम डाटा बताते हैं और सरकार के पास पूर्वानुमान के लिये संसाधन उपलब्ध हैं. ऐसे में हालात नियंत्रण से बाहर होने से पहले एहतियाती कदम उठाये जा सकते हैं.

अब तक क्या किया सरकार ने

वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली और इसके आसपास के शहरों के अलावा देश के तमाम महानगरों की हालत पतली है. मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे तटीय महानगरों में भी वायु प्रदूषण चिंताजनक स्तर पर है. जबकि वहां अच्छी वायु गति के कारण कम प्रदूषण की उम्मीद की जाती है.

अभी देश के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में 6 उत्तरप्रदेश के हैं. इसके अलावा उत्तर भारत में फतेहाबाद, हिसार, ज़ींद, कोरिया, कोरबा, सिंगरौली, पटना, जमशेदपुर, कानपुर और लखनऊ उन शहरों में हैं जो बहुत ख़राब हवा के लिये बदनाम हैं.

दिल्ली में ख़राब हवा को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच सियासी तकरार तेज़ है लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता कि पिछले कुछ सालों में दिल्ली में बदलाव के लिये कुछ किया ही नहीं गया.

मिसाल के तौर पर अब दिल्ली में कोई भी बड़ा उद्योग नहीं है. सारा पब्लिक ट्रांसपोर्ट और छोटे व्यवसायिक वाहन नेचुरल गैस पर चल रहे हैं. दिल्ली के सभी कोयला बिजलीघर बन्द कर दिये गये हैं.

कोयला, पेट कोक और प्रदूषण फैलाने वाले फर्नेस ऑइल पर पाबंदी है और पेट्रोल पंपों में बीएस -6 ईंधन मिल रहा है. ट्रकों के शहर में प्रवेश पर पाबंदी है और जो शहर में प्रवेश करते हैं उन्हें पर्यावरण सेस देना पड़ता है.

इसके बावजूद दिल्ली को साफ़ हवा के लिये अभी लंबा रास्ता तय करना है.

सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट यानी सीएसई में एक्सक्यूटिव डायरेक्टर और वायु प्रदूषण की जानकार अनुमिता रॉय चौधरी कहती हैं, "इतने कदम उठाने के बाद भी हम केवल उच्चतम स्तर के प्रदूषण को ही मिटा पाये हैं और हमें दिल्ली के प्रदूषण में 65% अतिरिक्त कटौती करनी होगी. इसके लिये बड़े स्तर पर कदम उठाने के साथ उन्हें उसी गंभीरता से लागू करने और सख्त सज़ा और जुर्माने का प्रावधान करना होगा."

अनुमिता कहती हैं कि राजधानी की हवा को साफ़ करने के लिये सभी सख़्त कदम दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में बराबर कड़ाई से लागू करने होंगे क्योंकि हवा की गुणवत्ता सरहदों को नहीं पहचानती.

हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में किसानों के पराली जलाये जाने को लेकर काफ़ी विवाद होता है लेकिन यह भी सच है कि पराली प्रदूषण का बहुत छोटा हिस्सा है. दिल्ली के आसपास के राज्यों में साल भर में बड़ी मात्रा में कूड़ा जलाया जाना कहीं बड़ी समस्या है.

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने अदालत में एक रिपोर्ट जमा की है जिसमें दिल्ली के पड़ोसी राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी है जहां बार-बार और बड़ी मात्रा में कचरा और औद्योगिक कूड़ा खुले में जमा किया जाता है और जलाया जाता है.

प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह इन राज्यों के प्रदूषण बोर्डों को सख्त निगरानी करने और कचरा जलाने पर रोक के निर्देश दे.

नियमों की नहीं है परवाह

आज भारत की 90% से अधिक आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानदंडों के मुताबिक असुरक्षित है. हवा को ज़हरीला बनाने में सल्फर और नाइट्रोजन की बड़ी भूमिका है.

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हवा में पीएम 2.5 की अधिकतम सीमा सालाना 10 माइक्रोग्राम ही हो सकती है.

महत्वपूर्ण है कि आईआईटी कानपुर ने 2015 में अपनी रिपोर्ट में कहा कि अगर राजधानी के 300 किलोमीटर के दायरे में मौजूद 13 बिजलीघरों से SO2 उत्सर्जन को 90% कम कर दिया जाये तो इससे हानिकारक पीएम 2.5 की मात्रा प्रतिघन मीटर 35 माइक्रोग्राम कम हो जायेगी.

दिसंबर 2015 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने कोयला बिजलीघरों के लिये SO2 की सीमा तय की. सरकार ने इन बिजलीघरों को 2 साल के भीतर यानी दिसंबर 2017 तक SO2 पर रोक वाले उपकरण लगाने को कहा.

लेकिन, पावर मिनिस्ट्री के अनुरोध पर एनसीआर के बिजलीघरों के लिये यह समय सीमा दिसंबर 2019 तक बढ़ा दी गई. इसके अलावा देश में बाकी हिस्सों में पावर प्लांट्स को इन उपकरणों को लगाने के लिये 2022 तक का वक़्त दे दिया गया.

सूचना का अधिकार कानून (RTI) से मिली जानकारी बताती है कि दिल्ली के आसपास जिन 33 पावर स्टेशनों को इस साल दिसंबर तक SO2 उत्सर्जन रोकने के यह उपकरण लगाने थे उनमें से तकरीबन सभी ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है.

वायु प्रदूषण विशेषज्ञ सुनील दहिया कहते हैं, "पावर स्टेशन बार-बार तय समय सीमा का उल्लंघन कर रहे हैं. अब तक केवल एक पावर स्टेशन की 2 यूनिट्स में SO2 उत्सर्जन रोकने की टेक्नोलॉजी लगाई है. बिजलीघरों के रवैये को देखते हुये नहीं लगता कि आने वाले दिनों में जल्दी इस दिशा में कोई कदम उठायेंगे. सरकार की ढिलाई से साफ लगता है कि उसे प्रदूषण से फैल रही बीमारियों और लोगों के मरने की कोई परवाह नहीं है."

अपने शहर को प्रदूषण से बचने के लिए क्या क्या करना चाहिए?

1. निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें क्योंकि सड़क पर जितनी कम गाड़ियाँ रहेंगी उतना कम प्रदूषण भी होगा। अपने बच्चों को निजी वाहन से स्कूल छोड़ने की जगह उन्हें स्कूल की बस में जाने के लिए प्रोत्साहित करें। जहाँ तक मुमकिन हो, खुद भी ऑफ़िस जाने के लिए सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें।

शहरी वातावरण में प्रदूषण को कैसे दूर किया जा सकता है?

अध्ययन में कहा गया है कि घर बनाने वाले डेवलपर्स, शहरों की योजनाएं बनाने वाले प्लानर्स और राजनेताओं को इस बात की जानकारी होने चाहिए कि शहरों को इस तरह से बसाया जाए, जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो।

प्रदूषण से कैसे बच सकते हैं?

National Pollution Control Day 2021: प्रदूषित हवा को कम करने में ये 6 तरीके कर सकते हैं मदद साफ हवा में सांस लेने शुद्ध पानी पीने और सार्वजनिक भूमि का उपयोग करने का अधिकार सभी का है इसलिए आजकल प्रदूषण की रोकथाम दुनिया भर में एक बड़ी समस्या बन गई है।