हमीं जब न होंगे तो क्या रंग-ए-महफ़िल किसे देख कर आप शरमाइएगा - hameen jab na honge to kya rang-e-mahafil kise dekh kar aap sharamaiega

                
                                                                                 
                            

-जिगर मुरादाबादी-

जो अब भी न तकलीफ़ फ़रमाइएगा
तो बस हाथ मलते ही रह जाइएगा

निगाहों से छुप कर कहां जाइएगा
जहां जाइएगा हमें पाइएगा

मेरा जब बुरा हाल सुन पाइएगा 
ख़िरामां-ख़िरामां[1] चले आईएगा

मिटा कर हमें आप पछ्ताइएगा 
कमी कोई महसूस फ़रमाइएगा 

नहीं खेल नासेह[2] जुनूं की हक़ीक़त 
समझ लीजिएगा तो समझाइएगा

हमें भी ये अब देखना है कि हम पर 
कहां तक तवज्जोह न फ़रमाइएगा

सितम इश्क़ में आप आसां न समझें 
तड़प जाइएगा जो तड़पाइएगा

ये दिल है इसे दिल ही बस रहने दीजे 
करम कीजिएगा तो पछ्ताइएगा

कहीं चुप रही है ज़बान-ए-मोहब्बत 
न फ़रमाइएगा तो फ़रमाइएगा

भुलाना हमारा मुबारक-मुबारक 
मगर शर्त ये है न याद आईएगा

हमें भी न अब चैन आएगा जब तक 
इन आंखों में आंसू न भर लाइएगा

तेरा जज़्बा-ए-शौक़ है बे-हक़ीक़त 
ज़रा फिर तो इरशाद फ़रमाइएगा

हमीं जब न होंगे तो क्या रंग-ए-महफ़िल 
किसे देख कर आप शरमाइएगा

मोहब्बत-मोहब्बत ही रहती है लेकिन 
कहां तक तबीअत को बहलाइएगा

न होगा हमारा ही आग़ोश ख़ाली 
कुछ अपना भी पहलू तही[3] पाइएगा

जुनूं की 'जिगर' कोई हद भी है आख़िर 
कहां तक किसी पर सितम ढाइएगा

1.धीरे-धीरे 2. प्रेम-त्याग का उपदेश देने वाला, नसीहत करने वाला 3.ख़ाली

5 years ago