जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है

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    कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं

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    संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.

    http://web.archive.org/web/20140419214323/http://hindini.com/fursatiya/archives/272

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    जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध…

    By फ़ुरसतिया on April 30, 2007

    जिस समय हम चुंबन चर्चामें जुटे हुये थे उसी समय किसी ने मुझसे पूछा- बरखुरदार तुम किस तरफ़ हो? होठ की तरफ़ या गाल की पार्टी में। हम किसी भी तरफ़ होने की बात सोचकर ही शर्मा से गये। कुछ बच्चे हमारे गाल का रंग देखकर कविता याद करने लगे- सूरज निकला चिड़ियां बोली। हमने बमुश्किल जवाब दिया- हट हम किसी भी तरफ़ नहीं हैं। हम तटस्थ हैं।

    खुदा झूठ न बुलाये ये बात हम सच्ची-सच्ची कह रहे हैं कि ये ऊपर की लाइने हमने तीन दिन पहले लिखीं थीं। आगे लिखने का मन नहीं हुआ काहे से कि उधर चुम्बनवीर रिचर्ड गेरे कहा भाई हमसे जो हुआ अन्जाने में हुआ। हम भारतीय संस्कृति के बारे में कुछ जानते नहीं थे। ज्यादा बुरा लगा होय तो कहो माफ़ी माग लें-किया धरा सब माफ़ करो।

    लेकिन आज जब हमने नितिन बागला का चोरी वाला पर्चा देखा तो हम सनाका खा गये। हमें ऐसा महसूस सा होने लगा कि हमारे खिलाफ़ कोई साजिश रची जा रही हो। हमें चूंकि चुंबन प्रकरण में तटस्थ रहे इसलिये समय को हुसका दिया गया ये भाई समय इनका अपराध भी लिख लो।

    आपको विश्वास न हो रहा हो तो आप आंख खोलकर सवाल नंबर तीन देखिये:-“जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध” – वर्ष २००७ और चिट्ठाकारिता के संदर्भ में इस कथन की समीक्षा कीजिये। ’जो’ कौन था, वो तटस्थ क्यों था? क्या वो वाकई तटस्थ था? समय ने क्या क्या अपराध लिखे , ये भी बताइये।

    देखिये क्या दिन आ गये समय के भी। जो समय कभी इतना बलशाली माना जाता था कि लोग कहते थे-

    पुरुष बली नहिं होत है, समय होत बलवान,
    भीलन लूटी गोपिका, बहि अर्जुन वहि बान!

    जिस समय के प्रभाव के चलते अर्जुन जैसे बलशाली योद्धा की ये हालत हो गये कि भीलों ने गोपिकाओं को लूट लिया और वे अपना धनुष-बाण लिये देखते रहे उसी समय की अब यह हालत हो गयी है कि बेचारा समय मुंशी बना तटस्थ लोगों के अपराध लिख रहा है। समय की इससे बड़ी दुर्गति क्या होगी कि वह बेचारा
    बैठे-बैठे तटस्थ लोगों के अपराध का रोजनामचा बनाये। यह सारा किया-धरा दिनकर जी है जो कहते हैं:-

    -समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
    जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।

    दिनकरजी राष्ट्रकवि थे। साथ ही विभागाध्यक्ष, कुलपति आदि भी थे। माने करेला ऊपर से नीम चढ़ा! उनको अपने इलाके में समय दिखा होगा। दिनकरजी किसी कवि सम्मेलन में कवितायें पढ़ रहे होंगे। कुछ लोग तालियां बजा रहे होंगे कुछ लोग चुप भी होंगे। बाद में उनके चमचे-चेलों ने बताया होगा -पता है गुरुवर कुछ लोग आपकी कविताओं से उबलने के बजाय तटस्थ बैठे थे। तालियां पीटने की जगह सर पीट रहे थे। इनके बारे में क्या आज्ञा है? इस पर दिनकरजी ने कहा होगा- चिंता न करो समय को लगा दिया है- इस काम में। जो तटस्थ हैं उनके भी अपराध लिख लेगा। फिर बाद में उनका हिसाब किया जायेगा।

    हम तो यह जानकर ही परेशान हो गये कि हाय अब हमारी तटस्थता भी अपराध हो गयी। हमें अब या तो उधौ से कुछ लेना पड़ेगा या माधौ को कुछ देना पड़ेगा। लेन-देन नहीं करेंगे तो हम अपराधी कहलायेंगे। ये बाजार की साजिश है कि कुछ लेते-देते रहें। जहां लेने-देने में चूक हुयी वहीं समय ने अपराधियों की कतार में खड़ा कर दिया। न उधौ से लेना न माधौ को देना की गैल भी अंतत: बाजार में ही मिलती है। उधौ-माधौ दोनों शापिंग माल में दिखते हैं।

    हम इतना परेशान हुये कि इस बारे में सोचने लगे। सोचते-सोचते हमारी दशा शोचनीय हो गयी। फिर हमें अंधेरे में उजाले की किरण दिखी और हमें इन कविता पंक्तियों में गलतियां नजर आने लगीं। हमने अपने क्षुद्र वैचारिक चिंतन की गदा प्रहार से कविता पंक्तियों का अर्थ भंजन किया और उनको उलट-पुलट कर उसी भांति देखने लगे जिस भांति हनुमानजी माला को तोड़-फोड़ कर देख रहे थे कि इनमें सीताराम लिखा है कि नहीं।(हनुमान भक्त माफ़ करें। केवल आज के लिये उनके नाम का उपयोग किया है कल वे अपने-अपने मंदिर में विराजने चले जायेंगे)।

    सबसे पहले हमें अहसास हुआ कि अर्जुन, भील. गोपी मामले में समय को जबरियन हीरो बनाया गया। जैसे पुलिस वाले दो बदमासों की आपसी गोलीबारी में मारे गये बदमाश की लाश के पास बंदूक पकड़कर फोटो खिंचाकर त्वरित प्रोन्नति, जबरदस्त इनाम झटक लेते हैं वैसे भीलों के द्वारा अर्जुन हो हराने का श्रेय समय को दिया जाये। भीलों ने गोपियां लूट लीं तो भील बलवान हुये। इसमें समय कहां से टपक पड़ा।

    यही बात दूसरी कविता पंक्ति में हुयी। इसमें तो और ज्यादा समझ का घपला हुआ। कवि कहते हैं-जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध। 
    इससे ऐसा लगा है कि जैसे जो तटस्थ होगा समय उसको अपराधी मान कर उसके खिलाफ़ अपराध दर्ज कर लेगा। लेकिन यही तो समझ का फ़ेर है। यहां कवि बड़े साफ़ शब्दों में कहता है कि भाई जो तटस्थ हैं अब समय उनके भी अपराध नोट करेगा। इससे लगता है कि पहले तटस्थ लोगों के अपराध नहीं लिखे जाते होंगे लेकिन अब व्यवस्था हो गयी कि समय तटस्थ लोगों के अपराध भी लिखेगा। इससे लगता है कि अपराध लिखने वाले समय की नजर ‘लीस्ट काउन्ट’ बढ़ गया है और अब उसको तटस्थ लोगों के अपराध भी दिखने लगे होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि जो तटस्थ हैं वे अपराधी हैं। केवल तटस्थ लोगों के अपराध लिखे नहीं जाते थे अब लिखे जायेंगे।

    वैसे यह भी कुछ ऐसा ही है जैसा कि तमाम बड़े लोग बयान देते हैं कि अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट तुरन्त लिखी जायेगी लेकिन वह लिखी न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ही जाये।

    या फिर अगर आपको भारतीय कर व्यवस्था का अंदाजा हो तो इसे इस तरह से ग्रहण करें कि पहले आयकर के दायरे में बड़ी-बड़ी आय वाले लोग हों और एक दिन अचानक देश के लिये धन जुटाने की मंशा से कोई वित्त मंत्री आये और कहे कि अब रेहड़ी-खोमचे वाले, पान वाले लैया चना वाले सब आयकर के दायरे में आयेंगे। अभी तक ये इनकी आय को नजर अंदाज किया जाता रहा लेकिन अब इन्हें बक्शा नहीं जायेगा। इन्हें भी सरल फार्म भरना पड़ेगा।

    आपको लैया चना वालों पर आयकर की मार अगर नागवार गुजर रही हो और आप हमारे ऊपर ‘दुर्बल को न सताइये…’ की मिसाइल छोड़ने वाले हैं तो आप इस घटना को सेवाकर के चश्में से देख लीजिये। तमाम सेवाकरों के कुकुरमुत्तों की तरह उगे जंगल के बीच पता लगा आप किसी दिन सोकर उठे और आपकी ब्लागिंग भी सेवाकर के दायरे में आ गयी। आपको बताया जायेगा अब ब्लागिंग पर भी सेवाकार की गाज गिरेगी। समीरलाल की पोस्ट पढ़कर किसी के मुस्कान आई नहीं कि उसके चेहरे पर मनोरंजन कर की रसीद चिपक गयी। पता लगा आपने रत्नाजी की रसोई के स्वाद चखकर जहां डकार ली उधर से आपका आठ प्रतिशत पर पच्चीस प्रतिशत का डिस्क्लेमर लगाकर बिल चला आ रहा है। खरामा-खरामा। आप भी कहोगे कहां फंस गये।

    बहरहाल समय पर कुछ और तवज्जो दे ली जाये। लेकिन उसके पहले तट्स्थता पर कुछ ‘गुफ़्तगुआ’ लिया जाये। तट्स्थ माने होता है तट पर स्थित होना। कवि अगर कहता है कि तट पर रहने वालों के अपराध लिखे जायेंगे तो उसे सोचना चाहिये कि लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं। लोग किनारे पर इसलिये नहीं बैठे हैं कि वे डूबने से डरते हैं। डूबने का डर है ही कहां जब नदियों का पानी कम हो रहा है। बात नदियों में गंदगी की है। नदियां इतनी गंदी हैं कि उनमें उतरने का मन ही नहीं करता। न जाने कौन सा चर्म रोग हो जाये। लिखने दो समय को अपराध। बाद में कुछ ले-देकर बात दबवाई जायेगी।

    अब बात समय की। समय के बारे में बहुत भ्रम हैं। कुछ ऐसे जैसे भारत के पिछड़ेपन के कारणों के बारे में। कुछ लोग कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है लेकिन ऐसा लगता नहीं है।

    समय बलवान कैसे हो सकता है जब टुइयां से टुइयां आदमी तक अपने साथ अनेक तरह के समय लेकर चलता है। हर व्यक्ति के कम से कम दो समय तो होते ही हैं। एक अच्छा समय दूसरा बुरा समय। इसके अलावा तमाम और तरह समय बटोरता सहेजता चलता है। मतलब अगर दुनिया में पांच अरब लोग हैं तो कम से कम दस अरब तरह के समय तो होंगे ही। जब इतने आइटम हैं तो कोई समय अकेले कैसे इतना ताकतवर हो जायेगा कि वह इतना जुलुम कर सके। अब चूंकि अच्छा समय और बुरा समय तो साथ-साथ रह नहीं सकते, जैसे आमतौर पर छ्दम ज्ञान और विनम्रता में छ्त्तीस का आंकड़ा होता है, लिहाजा करीब पांच अरब समय ही एक साथ मिल सकते हैं। अब चूंकि ये मनुष्यों के समय होते हैं लिहाजा वे मानवीय हरकतें भी जाहिर है करेंगे हीं। संगठित नहीं हो सकते। अकेले-अकेले उछलते रहेंगे। ऐसे में इनके पास बल कहां से आयेगा।

    तो हे नितिन बागला जी ‘जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध’ में जो कोई भी हो सकता है जो कि किसी तट के किनारे स्थित है। आप भी और आपके दोस्त भी। वो वाकई तट्स्थ था कि नहीं इसके लिये तटस्थता परीक्षण कराना पड़ेगा। इसके लिये पहले तट्स्थ होने की तैयारी करनी पड़ती है। इसके लिये नियम से नारद पर प्रकाशित चिट्ठों की सामग्री के प्रति तट्स्थ रहते हुये बहुत खूब, वाह, मजा आ गया टाइप टिप्पणियां करें। जितनी ज्यादा करेंगे उतनी अच्छी तैयारी होगी आपकी तट्स्थता परीक्षण के लिये। समय ने अपनी तरफ से कोई अपराध नहीं लिया हां लेकिन उसने यह अपराध जरूर किया कि जिस समय उसके बारे में तमाम भ्रमपूर्ण बयान जारी किये जा रहे थे तब वह तटस्त रहा। सही गलत के बारे में जनता जनार्दन में अफरा-तफरी मचते देखता रहा लेकिन मुंह में दही जमाये रहा। भारतीय दंड विधान के अनुसार यह संज्ञेय अपराध है। इसके लिये समय को दंडित किया जा सकता है। लेकिन अब बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे!

    लिहाजा हम तटस्थ हैं। देखें समय हमारे कौन से अपराध नोट करता है! जब समय लिखते-लिखते थक जायेगा तो हम उसकी सहायता करने के बहाने अपने सारे अपराध रिसाइकिल बिन में डाल देंगे और उसके बाद सब कुछ मिटा देंगे। इसके बाद चुपके से रत्नाजी के यहां पार्टी में चले जायेंगे-ठग्गू के लड्डू लेकर जिनकी दुकान और डिब्बों पर लिखा रहता है – ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं!

    मेरी पसंद

    शब्दों के भी
    होते हैं सींग
    तभी तो कुछ शब्द
    बहुत मारते हैं डींग
    जी हां
    शब्दों के भी होते हैं सींग
    पैने-पैने नुकीले सींग
    कलेजे में घुस जाते हैं तो
    कलेजा फाड़ देते हैं
    लहू-लुहान हो जाती हैं सम्वेदनायें
    दम तोड़ देते हैं संस्कार
    और वे सींग
    प्रेम को घृणा की ज़मीन में कहीं गहरे गाड़ देते हैं।

    फिर भी,
    आपने उगा रखे हैं ये सींग
    अरे!
    जु़बान पर भी लगा रखे हैं सींग
    माना कि
    इन सींगों से आप
    बड़े-बड़े काम करते हैं
    क्योंकि
    इनसे इज्जतदार
    बहुत डरते हैं
    पर सोचो,
    कभी जुबान पर लगे ये सींग
    गले के रास्ते
    अपने ही भीतर उतर गये तो
    अपने आपसे डर गये तो!

    सच जानिये
    ऐसे में आप
    खुद से भी मिल नहीं पायेंगे
    खून की तरह बिखर जायेगा वजूद
    जिसे आप समेट नहीं पायेंगे
    इसलिये,
    रच सकते हो तो
    जुबान पर
    मिश्री की अल्पना रचो,
    और शब्दों को सींग बनाने से बचो।

    डा.कमल मुसद्दी
    प्रवक्ता राजकीय आयुध निर्माणी इंटर कालेज,अर्मापुर
    सद्य प्रकाशित और दिनांक २९.०४.०७ को लोकार्पित
    कविता संग्रह कटे हाथों के हस्ताक्षर से साभार!

    Posted in बस यूं ही | 26 Responses

    26 responses to “जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध…”

    1. ghughutibasuti April 30, 2007 at 4:59 am | Permalink | Reply

      वाह,क्या शब्दों का खिलवाड़ है । समय बलवान हो या न हो, आपके शब्द तो अवश्य बलवान
      हैं । लिखते रहिये, कर देना पड़ा तो दे देंगे ।
      घुघूती बासूती

    2. धुरविरोधी April 30, 2007 at 5:40 am | Permalink | Reply

      “लोग किनारे पर इसलिये नहीं बैठे हैं कि वे डूबने से डरते हैं। बात नदियों में गंदगी की है। नदियां इतनी गंदी हैं कि उनमें उतरने का मन ही नहीं करता।”
      हमेशा की तरह अद्वितीय

    3. समीर लाल April 30, 2007 at 6:03 am | Permalink | Reply

      लिहाजा हम तटस्थ हैं। देखें समय हमारे कौन से अपराध नोट करता है! जब समय लिखते-लिखते थक जायेगा तो हम उसकी सहायता करने के बहाने अपने सारे अपराध रिसाइकिल बिन में डाल देंगे और उसके बाद सब कुछ मिटा देंगे। इसके बाद चुपके से रत्नाजी के यहां पार्टी में चले जायेंगे—

      हा हा, हम भी साथ ही हैं और चल रहे हैं रत्ना जी के यहाँ दावत पर!!

      -बहुत गजब रहा विश्लेषण हमेशा की तरह. बधाई!! 

      जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

    4. abhay tiwari April 30, 2007 at 8:23 am | Permalink | Reply

      हमारी टिप्पणी भी तटस्थ है..

    5. समीर लाल April 30, 2007 at 9:00 am | Permalink | Reply

      डा.कमल मुसद्दी को हमारी बधाई प्रेषित की जाये इतनी सुंदर रचना के लिये. 

      जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

      और आपका धन्यवाद इसे पेश करने को!! 
      जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

    6. ravishkumar April 30, 2007 at 9:14 am | Permalink | Reply

      बहुत फुरसत से और अच्छा लिखा है । क्या समय थानेदार है ? आयकर विभाग है ? समय कुछ नहीं है । उसके आने जाने से कुछ नहीं होता है । यह जो हम करते हैं उसके सापेक्ष में वो चला जाता है । हम देवों का साक्षी मानकर बहुत काम करते हैं । लिहाज़ा साक्षी मानने की परंपरा में समय आ गया होगा । जो भी हो…मज़ा आया ।

    7. ई-स्वामी April 30, 2007 at 9:30 am | Permalink | Reply

      कविता भी खतरू है!

    8. kakesh April 30, 2007 at 10:03 am | Permalink | Reply

      पूरा लेख तो अच्छा था ही हमें तो आप ” ठग्गू के लड्डू ” की याद दिला दिये कि मन मचल उठा …लड्डू और बदनाम कुल्फी की यादें ताजा हो गयी. जब भी ‘सोमदत्त प्लाजा’ जाते तो लड्डू और कुल्फी जरूर खाते … खैर आप तो शुरु से ही तटस्थ हैं क्योंकि पूरा कान्हेपुर ही तटस्थ रहा है यानि तट पर स्थित है.

    9. neelima April 30, 2007 at 10:03 am | Permalink | Reply

      उसने यह अपराध जरूर किया कि जिस समय उसके बारे में तमाम भ्रमपूर्ण बयान जारी किये जा रहे थे तब वह तटस्त रहा। सही गलत के बारे में जनता जनार्दन में अफरा-तफरी मचते देखता रहा लेकिन मुंह में दही जमाये रहा। भारतीय दंड विधान के अनुसार यह संज्ञेय अपराध है। इसके लिये समय को दंडित किया जा सकता है।

      वाह वाह वाह 

      जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

      आप ‘भी’ संविधान विशेषज्ञ हैं, ये तो पता ही न था। नितिन बागला के अंतिम प्रश्‍न में अब गड़बड़ हो गई। हमने तो किसी और पर निशान लगा दिया। 

      जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

    10. अफ़लातून April 30, 2007 at 10:30 am | Permalink | Reply

      डॉ. कमल मुसद्दी को साधुवाद पहुँचायें ।

    11. ratna April 30, 2007 at 11:17 am | Permalink | Reply

      इसलिये,
      रच सकते हो तो
      जुबान पर
      मिश्री की अल्पना रचो,
      और शब्दों को सींग बनाने से बचो।
      तटस्थ रहकर इतनी अच्छी सीख देने के लिए बधाई स्वीकारें। पोस्ट लाजवाब है वैसे हम लिखना चाहते थे कि इसे पढ़ कर, हम निशब्द हो गए पर बुरा हो अमिताभ और रामू का जिन्होंने सीधे सादे शब्द के अर्थ ही बदल दिए है।

    12. पंकज बेंगाणी April 30, 2007 at 2:23 pm | Permalink | Reply

      नदी वाला उदाहरण बेहतरीन दिया चाचु आपने तो! वाह!! 

      जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

      मुझे लग रहा है कि मैं आपसे प्रेरित हो रहा हुँ.. जाने क्या बात है. 

      जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

    13. अतुल शर्मा April 30, 2007 at 4:28 pm | Permalink | Reply

      यह टिप्पणी तटस्थ नहीं है यह आपके पक्ष में है।

    14. धुरविरोधी April 30, 2007 at 8:07 pm | Permalink | Reply

      अब तीसरी बार पढ़ रहा हूं. एकदम झक्कास लिखा है.

    15. राकेश खंडेलवाल April 30, 2007 at 8:36 pm | Permalink | Reply

      क्या विदित तुमको अँधेरा ही नहीं दोषी तिमिर का
      दीप की लौ भी ,उसे जो रोशनी दे न सकी है
      हर लहर जिसने डुबोयी नाव, है सहभागिनी उस
      एक ही पतवार की ,धारा नहीं जो खे सकी है
      कूचियों के साथ शामिल व्यूह में हैं रंग सारे
      जो क्षितिज के कैनवस को चित्र कोई दे न पाये
      पुष्प की अक्षम्यता का ज़िक्र करना है जरूरी
      प्रिय अधर के पाटलों पर जो न आकर मुस्कुराये

      आपकी लेखनी के तेवर को सादर नमन

    16. जीतू May 1, 2007 at 12:43 am | Permalink | Reply

      लोग किनारे पर इसलिये नहीं बैठे हैं कि वे डूबने से डरते हैं। डूबने का डर है ही कहां जब नदियों का पानी कम हो रहा है। बात नदियों में गंदगी की है। नदियां इतनी गंदी हैं कि उनमें उतरने का मन ही नहीं करता। न जाने कौन सा चर्म रोग हो जाये। लिखने दो समय को अपराध। बाद में कुछ ले-देकर बात दबवाई जायेगी।

      हमेशा की तरह बेहतरीन लेख। लो अब हो गयी ना तारीफ़, अब फैलना नही, पता चला कि तारीफ़ कर दी लोगों ने, तो दो हफ़्ते के अवकाश पर टहल लिए, लगातार लिखना। नही तो बाकी तुम्हरे अपराध का लेखा जोखा लिखे ना लिखे, हम जरुर टीप देंगे।

      रुप परफ़्यूम बनाया ही इसलिए जाता है कि किसी भी प्रकार की बदबू को दूर भगाया जाए। वैसा ही करो। निगेटिव को पाजिटिव से काटा जाए। पुराने चिट्ठाकार लगातर लिखें। एंवे ही लोगो को एजेन्डे ना सैट करने दें। नदियों का सफ़ाई अभियान भी वक्त वक्त पर चलाया जाए। और हाँ तटस्थों के अपराध लिखने वाले भी कापी पेन सम्भाल कर बैठे, अभी तो बहुत कुछ है लिखने को।

    17. नितिन बागला May 1, 2007 at 1:02 am | Permalink | Reply

      नदी वाली लाइनें वाकई धांसू हैं…
      और हाँ, जवाब देते समय मुझे संबोधित किया गया! मैं तो पर्चा आउट करवा के लाया था…मुझे परीक्षक समझ लिया….हे भगवान… 

      जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

    18. sujata May 1, 2007 at 10:09 am | Permalink | Reply

      ho ho ho हमें बहुत देर हुई देखने मे । माफ करें समय देव ! हम तटस्थ नही ,आलसी हैं !
      उम्दा ! बहुत उम्दा!

    19. जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

      शब्दों की पड़ताल में,हम रह गये नि:शब्द .. « हम भी हैं लाइन में May 2, 2007 at 7:33 am |Permalink

      [...] वैसे शब्द केवल कोरे शब्द नही है . शब्द अपने निहित अर्थों में महत्वपूर्ण हैं . शब्दों का चतुर प्रयोग और चतुर अर्थ विश्लेषण शब्दों को नये अर्थों में परिभाषित करता है . अब किसने सोचा था कि ‘तटस्थ’ (तट पर स्थित) रहने वाले ‘समय’ के पीछे हाथ धोकर पड़ जायेंगे . अब आप पूछेंगे कि उन्हें हाथ धोने की आवश्यकता क्यों पड़ी . शायद आपने ध्यान दिया हो उन्होने लिखा था कि “सोचते सोचते हमारी दशा शोचनीय हो गयी” अब शौच के बाद हाथ तो धोएंगे ही ना. [...]

    20. masijeevi May 4, 2007 at 9:01 pm | Permalink | Reply

      देख तो चुके थे पहले ही, पर पचा रहे थे। वैसे लिखा भी था
      http://shabdashilp.blogspot.com/2007/04/my-pick-from-todays-basket-of-hindi.html
      :
      :
      हमेशा की तरह अच्‍छा लिखा, बधाई

    21. हिंदी ब्लॉगर May 4, 2007 at 10:49 pm | Permalink | Reply

      क्या समय निर्विकार रहने वालों या फिर नितांत आलसी लोगों के अपराध भी लिखेगा?

      धन्यवाद, ‘शब्दों के भी होते हैं सींग’ जैसी उम्दा कविता प्रस्तुत करने के लिए!

    22. rachana May 5, 2007 at 11:28 pm | Permalink | Reply

      आपकी ‘समय’ के बारे मे कही बात कितनी समझ आई है ये सही समय पर बता देंगे.:) अभी तो कविता बहुत पसन्द आई है…

    23. Akhand May 6, 2007 at 8:33 pm | Permalink | Reply

      two things which brought me here: allahabad-dinkar, thaggu ke ladoo..
      grt blog, played with words, out of box analysis.. i enjoyed!

    24. गौतम राजरिशी January 4, 2010 at 10:00 pm | Permalink | Reply

      हलकान विद्रोही के दिनकर प्रेम से ठेलियाये इधर चले आये…कितना अच्छा आप उवाच रहे थे कि हमारा मोबाइल का सिग्नले चला गया है।

      अब यहां से ठेलियाये चुंबन-प्रकरण पर जा रहे हैं। आप बहुते नचाते हैं अपने पोस्ट पर लिंक दे-दे कर।

    25. जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा कविता - jo tatasth hain, samay likhega kavita

      अनूप शुक्ल, दम्भ और अभिमान और मौज की लक्ष्मण रेखा May 13, 2010 at 8:40 am |Permalink

      [...] होय उसके पहले अपनी बात कह दें नहीं तो ससुरा समय हमारे ऊपर तटस्थ रहने का आरोप लगा देगा। हम कहीं मुंह दिखाने लायक न [...]