जलजल के उपयोग: हम कई कामों के लिये जल का उपयोग करते हैं; जैसे नहाना, कपड़े धोना, पीना, खाना पकाना, सिंचाई, आदि। कारखानों में उत्पाद बनाने के लिए जल की अत्यधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। किसानों को फसल की सिंचाई के लिए पानी की जरूरत पड़ती है। जल के बिना हम कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकते हैं। Show जल के स्रोत: हमें पीने का पानी कई स्रोतों से मिलता है; जैसे नदी, तालाब, झील और भौम जल। पृथ्वी पर जलपृथ्वी की सतह का लगभग दो तिहाई हिस्सा जल से ढ़का हुआ है। लेकिन इसमें से अधिकांश पानी खारे पानी के रूप में समुद्र और सागर में मौजूद है। खारा पानी हमारे किसी काम का नहीं है। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का एक बहुत ही छोटा भाग मीठे पानी के रूप में उपलब्ध है। भोजन के स्रोत भोजन के घटक तंतु से वस्त्र वस्तुओं के समूह पदार्थों का पृथक्करण परिवर्तन पौधे को जानिए शरीर में गति सजीव विशेषता गति एवं मापन प्रकाश विद्युत परिपथ चुम्बक जल वायु कचरा संग्रहण जल चक्र:धरती पर जल अपनी तीनों अवस्थाओं (ठोस, द्रव और गैस) में बदलता रहता है। जल के विभिन्न रूपों में चक्रीकरण को जल चक्र कहते हैं। जल चक्र के विभिन्न चरण:वाष्पीकरण: जल के वाष्प (भाप) में बदलने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं। वाष्पीकरण के बाद जलवाष्प वायुमंडल में चला जाता है। वाष्पीकरण किसी भी तापमान पर होता रहता है, लेकिन अधिक तापमान पर वाष्पीकरण की प्रक्रिया तेज हो जाती है। वाष्पोत्सर्जन: पादपों द्वारा जलवाष्प निकलने की प्रक्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। पादपों की पत्तियों और तनों में असंख्य छिद्र होते हैं। इन्हीं छिद्रों से होकर वाष्पोत्सर्जन होता है। बादलों का बनना: जब जलवाष्प वायुमंडल में अधिक उंचाई पर पहुँचता है तो यह कम तापमान के कारण संघनित हो जाता है। इससे बादलों का निर्माण होता है। जब बादल में अत्यधिक जलवाष्प जमा हो जाता है तो बादल उस मात्रा को संभाल नहीं पाता है। इसके फलस्वरूप वर्षा के रूप में पानी धरती पर गिर जाता है। इस तरह से धरती पर का पानी फिर से धरती पर वापस आ जाता है। वर्षा का जल जमीन पर गिरने के बाद नदियों, तालाबों और आखिर में सागर में बह जाता है। वर्षा के जल का कुछ हिस्सा जमीन के नीचे रिस जाता है जिससे भौम जल का पुनर्भरण होता है। अतिवृष्टि: अत्यधिक वर्षा को अतिवृष्टि कहते हैं। अतिवृष्टि से बाढ़ आती है। बाढ़ के कारण नदियों का पानी उफान पर आ जाता है जिससे आस पास के इलाके डूब जाते हैं। बाढ़ से मकानों, मवेशियों और फसलों को भारी नुकसान पहुँचता है। बाढ़ से जंगली जानवरों को भी नुकसान पहुँचता है। अल्पवृष्टि: जब बहुत कम वर्षा होती है तो इसे अल्पवृष्टि कहते हैं। ऐसी स्थिति में सूखा पड़ता है। सूखे के कारण फसल तबाह हो जाती है और पीने के पानी की कमी हो जाती है। लोगों और मवेशियों पर सूखे का बुरा असर पड़ता है। सूखे से बचने के लिए लोगों को कहीं और पलायन करने को बाध्य होना पड़ता है। लेकिन मवेशी अक्सर सूखे की चपेट में मारे जाते हैं। वर्षा जल संग्रहण: वर्षा का अधिकतर पानी ऐसे ही बह कर बरबाद हो जाता है। इस पानी को सही रास्ता दिखाकर भौमजल का पुनर्भरण किया जा सकता है। इस पानी को टैंक में जमा किया जा सकता है ताकि बाद में इस्तेमाल किया जा सके। भविष्य के लिये या भौम जल पुनर्भरण के लिए वर्षा जल को जमा करने की प्रक्रिया को वर्षा जल संग्रहण कहते हैं। इसके लिए छतों की नालियाँ इस तरह लगाई जाती हैं ताकि बहने वाला पानी किसी टंकी में जमा हो या फिर जमीन के भीतर रिस सके। टंकी में जमा हुए पानी को छाना जाता है और फिर उसका सुचारु उपचार किया जाता है ताकि इसे पीने लायक बनाया जा सके।
अध्याय. 14 जल अध्याय-समीक्षा:
ATP Education ATP Education CBSE Notes ⇒ Class 6th ⇒ Science ⇒ Chapter 14. जल:जल चक्र क्या होता है समझाइए?जल चक्र पृथ्वी पर उपलब्ध जल के एक रूप से दूसरे में परिवर्तित होने और एक भण्डार से दूसरे भण्डार या एक स्थान से दूसरे स्थान को गति करने की चक्रीय प्रक्रिया है जिसमें कुल जल की मात्रा का क्षय नहीं होता बस रूप परिवर्तन और स्थान परिवर्तन होता है। अतः यह प्रकृति में जल संरक्षण के सिद्धांत की व्याख्या है।
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जल चक्र कितने प्रकार के होते हैं?यह संपूर्ण प्रक्रिया बहुत ही सरल है जिसे 6 भागों में विभाजित किया गया है। जब वातावरण में जल वाष्प् द्रवित होकर बादलों का निर्माण करते है, इस प्रक्रिया को द्रवण कहते हैं । जब वायु काफी ठण्डी होती है तब जल वाष्प् वायु के कणों पर द्रवित होकर बादलों का निर्माण करता है ।
जल चक्र के कुल कितने घटक है?मानव के कुल भार का भी लगभग 65 प्रतिशत भाग पानी होता है। जल पृथ्वी के जीवन चक्र व पारिस्थिकी तन्त्र को संचालित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जल की तीन मुख्य अवस्थाएँ होती है- ठोस (बर्फ), गैस (भाप) व तरल (पानी) जिसमें से केवल पानी ही मनुष्य की समस्त क्रियाओं हेतु महत्त्वपूर्ण संसाधन है।
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