जेल की दो महिला कर्मचारियों पर एक कैदी के साथ संबंध बनाने का आरोप लगा है. इस मामले में एक महिला कर्मचारी को दोषी करार दिया गया है. उसे जेल भी जाना पड़ सकता है, जबकि दूसरी के खिलाफ कोर्ट में केस चल रहा है.
वेल्स की रहने वाली 25 साल की एलिस हिब्स को दो जेलों में एक नर्स के रूप में काम करते हुए कैदी के साथ 'अनुचित संबंध' बनाने का दोषी पाया गया. वहीं, एक दूसरी जेल अधिकारी रूथ श्माइलो पर भी उसी कैदी के साथ संबंध रखने का आरोप लगा है.
द सन के मुताबिक, श्माइलो को हाल ही में कार्डिफ क्राउन कोर्ट में पेश किया गया जहां मामले की सुनवाई चल रही है. जबकि, हिब्स को दोषी करार दिया गया है.
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हिब्स को अगले महीने सजा या आगे के निर्देश की सुनवाई के लिए कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया गया है. उसे बताया गया कि जब मामले में सजा सुनाई जाएगी तो 'सभी विकल्प' खुले रहेंगे.
वेल्स के ब्रिजेंड में 1,652 क्षमता वाले जेल में एक ही कैदी के साथ दोनों महिला कर्मचारियों ने संबंध बनाए थे.
बताया गया कि श्माइलो का पिछले साल दिसंबर और अप्रैल के बीच कैदी के साथ पांच महीने तक संबंध था. वहीं, इससे पहले हिब्स उसके साथ मई और जुलाई के बीच रिलेशन में रही थी.
आरोपों में कहा गया है कि दोनों कर्मचारियों ने एक सरकारी मुलाजिम की गरिमा को तार-तार किया. उन्होंने जानबूझकर इस तरह का कृत्य किया जिसने विभाग को शर्मसार किया.
मुर्गे की बांग पर जगने-जगाने का दौर भले पीछे छूट गया लेकिन आज भी अधिकांश जेलों में बंदियों को वक्त और जिम्मेदारी का एहसास घंटे की गूंज पर ही होता है।
हर साठ मिनट बाद बजने वाले घंटे उन्हें समय बताते हैं तो ‘पचासा’ की एकमुश्त गूंज उन्हें उनकी जिम्मेदारी बताती है। सुबह से शाम तक चार बार पचासा गूंजती है, जिनका हर बार उद्देश्य अलग-अलग होता है।
कैदियों की दिनचर्या तय करने वाली पहली पचासा सुबह पांच बजे गूंजती है। इसका उद्देश्य कैदियों को जगाकर नित्य क्रिया से फारिग होकर सात बजे प्रार्थना सभा में एकत्रित करने की सूचना देना है। यहीं से बंदियों को काम पर भेजा जाता है।
जुर्म ने भले ही उन्हें कारागार में पहुंचा दिया, लेकिन अब सलाखों के पीछे रहकर भी अपना फर्ज निभाने की कोशिश कर रहे हैं। जेल में जीतोड़ मेहनत से होने वाली कमाई से कोई अपना घर चला रहा है तो कोई बूढ़े मां-बाप की दवा का जुगाड़ कर रहा हैं। कुछ ऐसे भी बंदी हैं, जिन्होंने जेल में हुई कमाई से ही बेटी के हाथ पीले कर दिए।
ये बानगी मुरादाबाद जेल और लखनऊ की आदर्श कारागार की ही नहीं बल्कि प्रदेश की अधिकतर जेलों के कैदियों की है। ये कैदी खुद अपने गुनाह की सजा काटते हुए भी परिवार को मुश्किलों से दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं। मुरादाबाद के वरिष्ठ जेल अधीक्षक ड़ॉ. वीरेश राज शर्मा बताते हैं कि प्रदेश की जेलों के बंदियों को तीन श्रेणियों में पारिश्रमिक दिया जाता है। कुशल श्रमिक को 40 रुपये प्रतिदिन, अर्धकुशल 30 रुपये और नए बंदियों को 25 रुपये। बंदियों के पारिश्रमिक का भुगतान रिहाई के समय चेक से दिया जाता है लेकिन अगर कोई बंदी बीच में अपने पारिश्रमिक का भुगतान परिवार को भिजवाना चाहे तो पारिश्रमिक घर वालों तक चेक के जरिए पहुंचाया जाता है। वे बताते हैं कि कैद में रहकर भी कई ऐसे कैदी हैं जो अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों को हर हाल में पूरा करना चाहते हैं।
प्रदेश भर में जेल में बंदी कर रहे कमाई
बरेली सेंट्रल जेल में 156 ऐसे कैदी हैं, जो हर साल 80 हजार से सवा लाख रुपए तक अपने परिवार को सालाना भेजते हैं। प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंद कैदी जेल में किए काम की आमदनी प्रति माह अपने घर भेज रहे हैं।
मेरठ के चौधरी चरण सिंह जिला कारागार से भी हर महीने करीब ढाई लाख रुपए कैदियों को पारिश्रमिक के रूप में दिए जाते हैं। गोरखपुर जेल से प्रत्येक महीने में 1 लाख 85 हजार 845 रुपये कैदियों को पारिश्रमिक के रूप में दिए जाते हैं। यहां भी शेषनाथ उर्फ दाढ़ी ने सर्वाधिक 6 लाख रुपये जेल में रहकर कमाया। वह 1987 से ही जेल में बंद था, हाल में रिहा हुआ है। जेल की अपनी कमाई से शेषनाथ ने बेटी की शादी के साथ बच्चों की पढ़ाई में भी कुछ पैसा खर्च किया। आगरा सेंट्रल जेल के चार बंदियों ने हथकरघा केंद्र से जुड़कर तीन साल में करीब दो लाख रुपये पारिश्रमिक से कमाए हैं। अलीगढ़ जेल में बंद दीपक ने अपने परिश्रम से 1.42 लाख रुपये की कमाई की है। इसके अलावा धर्मेंद्र ने 52 हजार, राहुल ने 50 हजार और राजेश ने 36 हजार कमाए। वाराणसी जेल में भी हर माह कैदियों को 50 से 60 हजार रुपये को कानपुर जेल में 317 बंदियों को हर माह करीब डेढ़ लाख रुपये का पारिश्रमिक दिया जा रहा है।
क्या है आदर्श कारागार
जेल प्रभारी अधीक्षक सीपी त्रिपाठी के मुताबिक 1949 में तत्कालीन सीएम डॉ. सम्पूर्णानंद ने आदर्श जेल स्थापित की। सेंट्रल जेलों में बन्द अच्छे आचरण वाले कैदी यहां आते हैं। 1956 से हर साल एक माह गृह अवकाश मिलता है। इसमें कैदी परिवार बसाने, बच्चों की शादी समेत दूसरे जरूरी
काम करते हैं।
ये काम करते हैं कैदी
● 89 कैदी 407 रुपये दिहाड़ी पर गन्ना अनुसंधान संस्थान में काम करते हैं।
● 50 कैदी बाहर जनरल स्टोर, साइकिल, सब्जी, ढाबा दुकानें चला रहे हैं।
● 80 कैदी मशरूम उत्पादन और बेकरी का काम करते हैं।
● 15 कैदी गौशाला और दूध वितरण से अजीविका कमा रहे।
● 10 कैदी सिलाई केंद्र, 20 कैदी प्रिंटिंग प्रेस में काम करते हैं।
● 30 कैदी उत्पादों की पैकिंग, बाकी दूसरे दैनिक काम करते हैं।
आदर्श कारागार के कैदियों
को बाहर काम करने, दुकान चलाने की छूट है। यहां कमाई कर वे परिवार की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इनकी आय बढ़ाने के लिए जेलों में उद्योगों के लिए बजट दिया गया है।
आनन्द कुमार, डीजी, कारागार विभाग