विश्व का 70.87 प्रतिशत भाग जलीय है जबकि 29.13 प्रतिशत भाग ही भू-भाग है। कुल जल का केवल मात्र 2.1 प्रतिशत भाग ही उपयोग योग्य है जबकि 37.39 प्रतिशत भाग लवणीय है। जनसंख्या में लगातार हो रही वृद्धि के कारण जल की मांग में भी लगातार वृद्धि हो रही है। एक तरफ जहाँ जनसंख्याँ में वृद्धि होने के कारण उद्योगों एवं कृषि क्षेत्र में वृद्धि की आवश्यकता के कारण जल की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है तो दूसरी तरफ
बढ़ते जल प्रदूषण एवं विदोहन के कारण जलापूर्ति में लगातार कमी आ रही है जो विश्व के लिए चुनौती बनती जा रही है। भारत में कृषि क्षेत्र में जलाभाव के कारण लगातार गिरावट आ रही है। देश में कई उद्योग जल की कमी के कारण बन्द हो रहे हैं। Show
जल संसाधन की उपलब्धताभौगोलिक दृष्टिकोण से जल संसाधन का वितरण :-प्रकृति में जल विभिन्न अवस्थाओं में भिन्न – भिन्न स्त्रोतों में वितरित है, जहाँ से उसका परिसंचरण होता रहता है। जल किसी भी स्त्रोत में स्थायी रूप से नहीं रहता है। जल मण्डल में लगभग 13,84,120000 घन किलोमीटर जल विभिन्न दशाओं में पाया जाता है, –
जल मण्डल में पाया जाने वाला जल पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में वितरित है। जल का ज्यादातर भाग 97.39 प्रतिशत लवणीय है, जबकि स्वच्छ जल बहुत कम अर्थात 2.61 प्रतिशत ही है। जलीय वितरण में धरातलीय, भूमिगत तथा महासागरीय जल को सम्मिलित करते है। जल का वितरण प्राचीन काल से समान रूप में नहीं रहा है, पृथ्वी का 70.87 प्रतिशत भाग जलीय है। जल संसाधनों की उपयोगिताजल एक प्राकृतिक संसाधन है, जिसको एक बार उपयोग के बाद पुन: शोधन कर उपयोग योग्य बनाया जा सकता है। जल ही ऐसा संसाधन है जिसकी हमें नियमित आपूर्ति आवश्यक है जो हम नदियों, झीलों, तालाबों, भू-जल, महासागर तथा अन्य पारस्परिक जल संग्रह क्षेत्रों से प्राप्त करते है। जल का सर्वाधिक उपयोग सिंचाई में 70 प्रतिशत, उद्योगों में 23 प्रतिशत, घरेलु तथा अन्य में केवल 7 प्रतिशत ही उपयोग में लिया जाता है।
जल संसाधन का महत्वजल संसाधन का सर्वाधिक उपयोग 70 प्रतिशत सिंचाई में, 23 प्रतिशत उद्योगों में एवं 7 प्रतिशत घरेलु तथा अन्य उपयोगों में किया जाता है। लोगों द्वारा पृथ्वी पर विद्यमान कुल शुद्व जल का 10 प्रतिशत से भी कम उपयोग किया जा रहा है। जल संसाधन का निम्नलिखित क्षेत्रों में उपयोग किया जा रहा है :- सिंचाई में उपयोग –जल का सर्वाधिक उपयोग 70 प्रतिशत भाग सिंचाई कार्यो में किया जाता है। सिंचाई कार्यो में सतही एवं भूजल का उपयोग किया जा रहा है। सतही जल का उपयोग नहरों एवं तालाबों द्वारा किया जाता है, जबकि भूजल का उपयोग कुओं एवं नलकूपों द्वारा किया जाता है। विश्व का 1/4 भूभाग ऐसी शुष्क दशाओं वाला है, जो पूर्णतया सिंचाई पर निर्भर करता है। सिंचाई से चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास, फल, सब्जी आदि का वृहद स्तर पर उत्पादन किया जाता है। अधिक जनसंख्या भार वाले क्षेत्रों में चावल की दो-तीन फसले ली जाती है जिसके लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार ग्रीष्मकालीन फसलें लेने के लिए भी सिंचाई में अधिक जल की आवश्यकता होती है। वर्तमान में जिन देशों ने सिंचाई में सतही जल की अपेक्षा भूजल का अधिक दोहन किया है, वहाँ जल संकट उत्पन्न हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका में सिंचाई में 25 प्रतिशत भूजल तथा 75 प्रतिशत सतही जल का उपयोग किया जाता है, जबकि भारत जैसे देशों में सिंचाई में भूजल का अन्धाधून्ध उपयोग किया जा रहा है। सतही जल का अधिकांश भाग बिना उपयोग किये महासागरों में मिल जाता है और जल संकट गहराता जा रहा है। उद्योगों में उपयोग –कुल शुद्व जल का 23 प्रतिशत उद्योगों में उपयोग किया जाता है यही कारण है कि अधिकांश उद्योग जलाशयों के निकट स्थापित हुऐ है। उद्योगों में जल का उपयोग भाप बनाने, भाप के संघनन, रसायनों के विलयन, वस्त्रों की धुलाई, रंगाई, छपाई, तापमान नियंत्रण के लिए, लोहा-इस्पात उद्योग में लोहा ठण्डा करने, कोयला धुलाई करने, कपड़ा शोधन तथा कागज की लुगदी बनाने आदि के लिये किया जाता है। घरेलु कार्यो के उपयोग में –प्रकृति में जल समान रूप से वितरित नहीं है, लेकिन इसकी उपलब्ध मात्रा के अनुसार ही जल उपयोग की विधियां विकसित कर मानव ने प्रकृति के साथ समायोजन किया है। शुष्क क्षेत्रों में जल का कम मात्रा तथा बहुउद्देषीय उपयोग किया जाता है। घरेलु कार्यो में पीने, खाना बनाने, स्नान करने, कपड़े धोने, बर्तन धोने आदि में जल की आवश्यकता होती है। नदियों के किनारे बसे शहरों के लिये जल के उपलब्ध रहने पर भी समस्या उत्पन्न हो गई है, क्योंकि नगरों द्वारा इन जल स्त्रोतों को प्रदूषित कर दिया है। भारत में गंगा नदी पर बसे कानपुर, वाराणसी, हुगली पर बसे कोलकाता, यमुना पर बसे दिल्ली आदि नगरों में जलापूर्ति की समस्या उत्पन्न हो गई है। जल विद्युत –अफ्रीका में संसार की 23 प्रतिशत सम्भावित जल विद्युत ऊर्जा विद्यमान है, लेकिन वहाँ विकसित जल शक्ति संसार की केवल 1 प्रतिशत ही है। इसी प्रकार दक्षिण अमेरिका में जल शक्ति सम्भाव्यता 17 प्रतिशत है तथा विकसित जल शक्ति 4 प्रतिशत ही है। महासागरों का मुख्य उपयोग परिवहन में किया जाता है। इसके अतिरिक्त महासागर भविष्य के ऊर्जा भण्डार भी है। नहरें –भूसतह की विषमता होने पर नदियों के सहारें नहरों का निमार्ण किया जाता है। नहरों का निमार्ण जल के बहुउद्देशीय उपयोग के लिए किया जाता है, जिनमें सिंचाई, परिवहन, जल विद्युत, बाढ़ नियंत्रण आदि प्रमुख है। नौ परिवहन –नदियों, नहरों तथा झीलों में स्थित सतही जल संसाधन का उपयोग नौ परिवहन में किया जाता है। नौ परिवहन में नदी या नहर के पानी की प्रवाह दिशा, जल राषि की मात्रा, मौसमी प्रभाव, नदियों तथा नहरों की लम्बाई की मुख्य भूमिका होती है। जल संकट एवं पर्यावरणीय आपदायेंजलवायु परिवर्तन के दौर का सर्वाधिक प्रभाव जल संसाधन पर
पड़ा। प्रकृति में उपलब्ध कुल जल संसाधन का लगभग 2 प्रतिशत भाग हिम के रूप में जमा है तथा केवल एक प्रतिशत से भी कम जल मानवीय उपयोग के लिए उपलब्ध हो पाता है। यह जल भी पर्यावरण आपदाओं एवं मानवीय क्रियाकलापों द्वारा गुणात्मक एवं मात्रात्मक हृास की ओर है जबकि अम्ल वर्षा द्वारा शुद्ध जल प्रदूषित हो रहा है। इस प्रकार वर्तमान में प्रकृति में उपलब्ध जल संसाधन को मात्रात्मक एवं गुणात्मक दृष्टि से जलवायु परिवर्तन, विश्व तापन, अम्ल वर्षा, हिम का पिघलना आदि क्रियाएँ प्रभावित करती है, जिनके फलस्वरूप जल की
उपलब्धता निरन्तर घट कर जल संकट को जन्म दे रही है। प्रकृति के साथ मनमानी छेड़छाड़ से सदियों से संतुलित जलवायु के कदम लड़खड़ा गये है। तीव्र औद्योगीकरण एवं वाहनों के कारण धरती दिन-प्रतिदिन गरमाती जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवों की बर्फ पिघल रही है। सन् 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम तथा विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने वैज्ञानिकों का एक अन्तर्राष्ट्रीय दल-इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेन्ज का गठन किया था, जिसके शोध में पाया गया है कि पिछली सदी के दौरान औसत तापमान 0.3 से 0.6
डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने मात्र से ही जलवायु डगमगा गई है और खतरनाक नतीजे सामने आने लगे है। इस दौरान महासागरों का जल स्तर 10.25 सेंटीमीटर ऊँचा हो गया है, जिसमें 2.7 सेंटीमीटर की बढ़ोतरी बढ़े हुए तापमान के कारण पानी के फैलाव से हुई है। भारत में जल संसाधनों का प्रबंधनजल संसाधनों के प्रबन्ध से तात्पर्य है- ‘‘ऐसा कार्यक्रम बनाना जिससे किसी जल स्त्रोत या जलाषय को क्षति पहुँचाये बिना विभिन्न उपयोगों के लिए अच्छे किस्म के जल की पर्याप्त पूर्ति हो सके।’’ जल संरक्षण के लिए इन बातों को ध्यान में रखने का प्रयास करना चाहिए –
जल संसाधन क्या है इसकी उपयोगिता?जल एक प्राकृतिक संसाधन है, जिसको एक बार उपयोग के बाद पुन: शोधन कर उपयोग योग्य बनाया जा सकता है। जल ही ऐसा संसाधन है जिसकी हमें नियमित आपूर्ति आवश्यक है जो हम नदियों, झीलों, तालाबों, भू-जल, महासागर तथा अन्य पारस्परिक जल संग्रह क्षेत्रों से प्राप्त करते है।
जल संसाधन से आप क्या समझते हैं वर्णन?जल संसाधन जल के वे स्रोत हैं जो मनुष्यों के लिए उपयोगी होते हैं। अधिकांशतः लोगों को ताजे जल की आवश्यकता होती है। जल की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। जल एक अक्षय प्राकृतिक संसाधन है।
जल क्या है जल के उपयोग बताइए?जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है।
जल संसाधन कितने प्रकार के होते हैं?जल संसाधन के प्रकार. सतही जल संसाधन (नदियाँ, तालाब, नाले). भूमिगत जल संसाधन. |