जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएं Show
जनसंख्या वृद्धि किसे कहते हैं?तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं| जनसंख्या के वृद्धि से उत्पन्न समस्याएं इस प्रकार से हैं-1. कृषि भूमि पर अत्यधिक दबाव 2. प्राकृतिक संसाधनों का शोषण 3. प्रति व्यक्ति कम आय 4. बेरोजगारी में वृद्धि 5. जीवन स्तर में गिरावट 6. पर्यावरण प्रदूषण 7. ध्वनि प्रदूषण 8. मृदा प्रदूषण 9. जल प्रदूषण 10. वायु प्रदूषण 1. कृषि भूमि पर अत्यधिक दबाव :- बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण कृषि भूमि निरंतर टुकड़ों में बढ़ती जा रही है, साथ ही भूमि की उत्पादन क्षमता कम होती जा रही है। 2. प्राकृतिक संसाधनों का शोषण :- बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का शोषण तेजी से होने लगा है इससे साधनों की कमी हो जाती है जैसे - मकान, भोजन, वस्त्र आदि की समस्याएं पैदा हो जाती है। 3. प्रति व्यक्ति कम आय :- जनसंख्या की तीव्र वृद्धि से प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है। 4. बेरोजगारी में वृद्धि :- जनसंख्या में वृद्धि से प्रत्येक हाथ को काम देना एक बहुत बड़ी समस्या है अतः देश में अशांति एवं अराजकता फैलती है। 5. जीवन स्तर में गिरावट :- जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ वस्तुओं एवं सेवाओं की कमी आ जाती है, परिणाम स्वरूप जीवन स्तर में गिरावट आता है। 6. पर्यावरण प्रदूषण :- पर्यावरण प्रदूषण किसे कहते हैं यह जानना बहुत जरूरी है, पर्यावरण में कुछ ऐसे विषैले तत्वों का समावेश हो जाता है जिससे पर्यावरण प्राणियों के जीवन के लिए घातक बन जाता है। पर्यावरण में होने वाले इस घातक परिवर्तन को ही पर्यावरण प्रदूषण कहते हैं। इसके परिणाम स्वरूप जिस देश में जितनी अधिक जनसंख्या होगी उतना ही अधिक संसाधनों का उपयोग होगा और अगर संसाधनों का उपयोग होगा तो पर्यावरण प्रदूषित तो होगा ही। 7. ध्वनि प्रदूषण :- वाह अवांछित आवाज जिससे कानों में दर्द व कष्ट हो ध्वनि प्रदूषण कहलाते हैं। ध्वनि प्रदूषण में रेलगाड़ियां, हवाई जहाज, मोटरसाइकिल इत्यादि प्रमुख कारण है, इसके विपरीत अगर जनसंख्या अधिक होगी तो इन सभी साधनों की संख्या भी अधिक होगी तथा इससे निकलने वाले ध्वनि भी अत्यधिक होगी। 8. मृदा प्रदूषण :- मृदा अर्थात (मिट्टी) मृदा के भौतिक रासायनिक जैविक गुणों में ऐसा वांछनीय परिवर्तन जिसका प्रभाव मनुष्य एवं अन्य जीवो पर पड़ता है मृदा की उपयोगिता में कमी हो जाती है जिसके कारण उसके उपयोगी गुणों में परिवर्तन हो जाता है तो यह मृदा प्रदूषण कहलाता है। यह आम बात है अगर जनसंख्या अधिक होगी तो मांग भी अधिक होगी, और मांगों की पूर्ति के लिए लोग एक ही जगह पर कई फसल लेने का प्रयास करेंगे, और फसल ना होने पर उस पर कई प्रकार के रासायनिक खादों का उपयोग करेंगे। रासायनिक खाद का उपयोग करने से मृदा प्रदूषण होता है। 9. जल प्रदूषण :- जल में कुछ ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो जीव जंतु तथा मनुष्य के लिए हानिकारक होते हैं वह जल प्रदूषण कहलाते हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण घरेलू एवं सार्वजनिक शौचालयों से निकलते हुए मल मूत्र को नदियों एवं जलाशयों में विसर्जित किया जाता है इससे जल प्रदूषित होता है। इसके विपरीत जितनी अधिक जनसंख्या होगी उतनी ही अधिक जल प्रदूषित होगा। 10. वायु प्रदूषण :- वायु में भौतिक रासायनिक एवं जैविक गुणों में ऐसा अवांछित परिवर्तन हो जाता है जिसके द्वारा मनुष्य एवं अन्य जीवो की जीवन दशाओं पर दुष्प्रभाव पड़ता है उसे वायु प्रदूषण कहते हैं। इसका कारण भी जनसंख्या में वृद्धि होना है अगर जनसंख्या अधिक होगी तो उनके मांग भी अधिक होगी और मांग अधिक होगी तो कल कारखानों की संख्याएं भी अधिक होगी। फलस्वरुप कारखानों से निकलने वाली जहरीली गैसें वायु को दूषित करती हैं। इन्हें भी पढ़ें:-
जनसंख्या वृद्धि से होने वाली समस्याएं विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा भारत में जनसंख्या वृद्धि तेजी से हो रही है। जिससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही है। इन समस्याओं के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण भी है। जनसंख्या वृद्धि का सबसे बुरा प्रभाव पर्यावरण पर पड रहा है जिससे जीवन संबंधी अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो रही है। जनसंख्या वृद्धि से होने वाली समस्याएंजनसंख्या वृद्धि एक विश्वव्यापी समस्या है। भारत की जनसंख्या वृद्धि आर्थिक प्रगति में बाधक सिद्ध हो रही है, क्योंकि इसके द्वारा बहुत-सी समस्याएँ पैदा कर दी गयी हैं जो हैं -
1. पर्यावरण प्रदूषणजनसंख्या वृद्धि के साथ साथ मनुष्य की आवश्यक्ताएं भी बढती गई जिससे मनुष्य ने प्रकृति का दोहन करना आरंभ कर दिया। जिससे पर्यावरण के घटक जैसे जल, वायु, मृदा आदि में प्रदूषण बढा। वाहनो के आवागमन ने तथा कल कारखानो से निकलने वाले धुँओ के कारण जल प्रदूषण होने लगा। पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न स्वरूप तथा कारण है- 1. वायु प्रदूषण - कल कारखानो तथा मोटर गाडियों से निकलने वाला धुँआ वातावरण में घुलकर वायु को प्रदूषित करता है। धुँओ में कार्बन डाई ऑक्साइड , कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, सीसा-हाइड्रोजन सल्फाइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसे होती है, जो न मनुष्य के स्वास्थ्य को बल्कि पृथ्वी के अन्य जीव जन्तुओं तथा पेड पौधो को भी प्रभावित करती है। इस प्रदूषण के कारण कई बीमारियाँ जैसे अस्थमा, मानसिक विक्षिप्तता तथा सांस की कई बीमारियाँ बढ रही है। वहीं पेड पौधो तथा वनस्पतियाँ की कई दुर्लभ प्रजातियाँ भी लुप्त होती जा रही है। फसलो पर भी बुरा प्रभाव पड रहा है। 2. जल प्रदूषण - कल कारखानों से निकलने वाले कूडे कचरे तथा घरो से निकलने वाले कूडे कचरो को नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है। जिससे जल प्रदूषित हो जाता है। जल प्रदूषण से कई तरह की बीमारियाँ जिसमें पेट संबंधी बीमारी प्रमुख है लोग ग्रसित हो जाते है। लोगो को पीने के लिए भी स्वच्छ पानी नही मिल पाता । 3. मृदा प्रदूषण - जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगो द्वारा उपयोग में लाई गई वस्तुओ के अवशेष, कूडे कचरे मानव मल आदि को गली मुहल्ले या बस्ती के किसी कोने में डाल दिया जाता है जो सडकर बदबू फेलाते है इससे मृदा प्रदूषण होता है। इसके अलावा फसलेा बढाने के लिए विभिन्न खादो का उपयोग किया जाता है जिससे जमीन की उर्वरता शक्ति नष्ट होने लगती है। जिससे फसलो को भी नुकसान पहुँचता है। 4. ध्वनि प्रदूषण - बडी बडी औद्योगिक इकाईयों तथा सघन बसी बस्तियों में चलने वाली मशीनो की आवाज से जो प्रदूषण होता है ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। बडे बडे शहरो में वाहनों की तेज आवाज भी ध्वनि प्रदूषण को बढाता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण बहरापन, चिडचिडापन तथा दिल संबंधी बीमारियाँ पैदा होती है। 2. ओजोनपरत को हानिओजोन स्वत: उत्पन्न होने वाली गसै है जो पृथ्वी के चारो ओर सुरक्षा कवच के समान है जो सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणेा को धरती तक आने से रोकता है। माना गया है । कि ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन ही संभव नही है। उससे जीव जंतुओ तथा वनस्पतियों पर बुरा प्रभाव नहीं पडता । क्लोरोफलोरो कार्बन जैसी रासायनिक गैंसे ओजोन से क्रिया करके उसे नष्ट करने लगी है। जिससे ओजोन परत में छेद हो रहा है और सूर्य की पराबैंगनी किरणे सीधे पृथ्वी पर पहुँचकर जनजीवन को प्रभावित करने लगी है। 3. पारितंत्रीय समस्यापारितंत्र समूचे वातावरण को कहते है जिसमें सभी जीवधारी आपसी सहयोग से रहते है। पारितंत्र के अंतर्गत पेड पौधे नदी तालाब पर्वत घाटी खेत तथा जीव जंतु आते है। जनसंख्या वृद्धि के कारण पारितंत्र संबंधी समसयाएं उत्पन्न हो गई है। पेड पौधो की कटाई से वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ गई है। पेड़ पौधो की कटाई से हरियाली कम होने के कारण वातावरण गरम रहता है। जिससे वर्षा कम होती है। वनस्पतियाँ नष्ट हो रही है। कहीं कहीं वर्षा अधिक होती है जिससे बाढ की स्थिति निर्मित हो जाती है इस प्रकार पारितंत्रीय समस्या आज की सबसे बडी समस्या बनती जा रही है। 4. ब्रम्हांडीय तापमान का बढनाकार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मिथेन, क्लोरो फलोरो कार्बन तथा ओजोन इन पाँचो गैसो को ग्रीन हाउस गैसे कहते है। ये गैसे पृथ्वी की सतह के तापमान को संतुलित करती है। जिससे कृषि उत्पादन तथा पेड पौधो के विकास में सहायता मिलती है। वाहनो के अधिक उपयोग, कल कारखानेा से निकलने वाले रासायनिक धुएँ इन गैसो की मात्रा में वृद्धि करते है। जिससे ब्रम्हांडीय तापमान में वृद्धि हो रही है। 5. प्राकृतिक संसाधनो का दोहनजनसंख्या वृद्धि के साथ ही लोगो की आवश्यक्ताओ की पूर्ति के लिए मनुष्यो ने प्राकृतिक संसाधनेा का दोहन करना आरंभ कर दिया। जिसमें जंगलो का कटना, उर्जा के लिए कोयले लकडी की खपत, पानी की कमी , कृषि योग्य भूमि की कमी होने लगी। जिससे अनेक समस्याएं पैदा होने लगी। 6. स्वास्थ्य संबंधीं समस्याएंजनसंख्या वृद्धि के कारण लोगो के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर होने लगा। पर्यावरण प्रदूषण के कारण अनेक गंभीर बीमारियों से लोग ग्रसित होने लगें। पोषण की कमी के कारण बच्चे कुपोषण, अपंग, तथा कमजोर हड्डियों वाले तथा विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते है। रासायनिक व घरेलू कूडे कचरो से उत्पन्न मच्छरो के काटने से डेंगू, मलेरिया जैसे बीमारियाँ फैलती है। जो जानलेवा साबित होती है। 7. गरीबी तथा बेकारीहमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में आर्थिक विकास नही हो पा रहा है। कृषि योग्य भूमि की कमी के कारण देश में खाद्यान्न की कमी हो रही है। जनसंख्या के अनुपात में रोजगार के अवसर कम है। जिससे बेकारी और गरीबी की समस्या बढ रही है। हमारे देश में आज भी 52.2 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे है। 8. नैतिक मूल्यो का पतन तथा अपराध में वृद्धिजनसंख्या वृद्धि से घनी आबादी होने के कारण लोगो में वैमनस्यता तथा द्वैष की भावना बढ रही है। लोगो का नैतिक पतन हो रहा है। गरीबी तथा रोजगार के अवसर कम होने के कारण लोगो में अपराध की प्रवृत्ति बढ रही है। चोरी डकैती की घटनाएं आए दिन होती रहती है। जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर प्रभावजनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यदि जनसंख्या कम तेजी से बढ़ती है तो यह आर्थिक विकास में सहयोग देती है यदि जनसंख्या में तेजी एवं असन्तुलित होती है तो यह आर्थिक विकास इस प्रकार से प्रभावित करती है:
आर्थिक विकास का जनसंख्या वृद्धि पर प्रभावआर्थिक विकास भी जनसंख्या को भी महत्वपूर्ण ढ़ंग से प्रभावित करता है जो निम्नलिखित हैं:
जनसंख्या वृद्धि से कौन कौन सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं?यह इजाफा भारत जैसे विकासशील देश के समक्ष कई समस्याओं और चुनौतियों को भी जन्म देता है। जनसंख्या वृद्धि ने हमारे देश के समक्ष बेरोजगारी, खाद्य समस्या, कुपोषण, प्रति व्यक्ति आय, गरीबी, मकानों की कमी, महंगाई, कृषि विकास में बाधा, बचत एवं पूंजी में कमी, शहरी क्षेत्रों में घनत्व जैसी ढेर सारी समस्याओं को उत्पन्न कर चुका है।
जनसंख्या वृद्धि के क्या कारण है जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न विभिन्न समस्याओं का वर्णन कीजिए?जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर प्रभाव
जनसंख्या में अधिक वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में कमी आती है। जनसंख्या वृद्धि के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसी सुविधाओं में कमी आती है। जनसंख्या बढ़ने से श्रम-शक्ति में वृद्धि होती है परन्तु रोजगार के अवसर उस अनुपात में न बढ़ पाने से बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है।
बढ़ती हुई जनसंख्या के क्या कारण हैं इससे कौन कौन सी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं इसका क्या समाधान है?इसके अतिरिक्त निर्धनता, अशिक्षा, रूढ़िवादिता तथा संकीर्ण विचार आदि भी जनसंख्या वृदधि के अन्य कारण हैं । देश में बाल-विवाह की परंपरा प्राचीन काल से थी जो आज भी गाँवों में विद्यमान है जिसके फलस्वरूप भी अधिक बच्चे पैदा हो जाते हैं । शिक्षा का अभाव भी जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख कारण है ।
जनसंख्या की समस्या क्या है?60% संभावना है कि दुनिया की जनसंख्या वर्ष 2100 से पहले १० अरब लोगों से अधिक नहीं होगी और करीब 15% संभावना है कि सदी के अंत में विश्व की जनसंख्या आज की तिथि में विश्व की कुल जनसंख्या से कम हो जाएगी.
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