जाति व्यवस्था की विशेषताएं क्या है? - jaati vyavastha kee visheshataen kya hai?

jati vyavastha ka arth paribhasha visheshtayen;ग्रामीण समाज की सामाजिक संरचना का मुख्य आधार जाति रही है। परम्परागत ग्रामीण समाज की संरचना में जाति प्रस्थिति निर्धारण का आधार रही है। किसी भी व्यक्ति की जाति उसके जन्म से निर्धारित होती है।

न्याय सूत्र के अनुसार "समान प्रसावात्मिका जाति" अर्थात् जाति का अभिप्राय समान जन्म वाले लोगों के समूह से है। जाति जन्म पर आधारित ऐसा सामाजिक समूह है जो अंतर्विवाह के नियम एवं सामाजिक सहवास के कुछ निषेधों का पालन करते हुए वंशानुगत आधार पर समाज मे व्यक्ति की प्रस्थिति का निर्धारण करती है। 
जाति व्यवस्था की संक्षिप्त जानकारी के बाद अब हम जाति व्यवस्था का अर्थ, जाति व्यवस्था की परिभाषाएं और जाति व्यवस्था की विशेषताएं विस्तार से जानेंगे।

जाति व्यवस्था का अर्थ (jati vyavastha kya hai)

अंग्रेजी में जाति के लिए Caste शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। Caste शब्द पुर्तगाली भाषा के Casta से बना है। जिसका अभिप्राय प्रजाति, नस्ल से अर्थात् जन्मगत आधार से है।

जाति शब्द  से जन्म या उत्पत्ति का बोध होता है जो वंश एवं रक्त की शुद्धता पर आधारित है। दूसरे शब्दों मे, शाब्दिक दृष्टि से जाति एक अन्तर्विवाही वंश समूह है।

जाति ऐसे परिवारों का समूह है जो किसी एक नाम और सामान्यतः एक ही विशेष काम से संबंधित हो तथा जिनके पुरखे एक ही हों, और जो अपनी सन्तनों को किसी एक व्यवसाय विशेष को करने की आज्ञा देते हों और जिन्हें इस वर्ग के परिवारों को श्रृद्धा और विश्वास प्राप्त हो। 

जाति प्राचीनतम् संस्थाओं मे से एक है। जन्म ही मनुष्य के सामाजिक और पारिवारिक संबंधो को निर्धारित करता है। जन्म के साथ ही मानव का उस जाति से संबंध हो जाता है। जिसमें उसने जन्म लिया है तथा उसी के रहन-सहन, खान-पान, तथा वेशभूषा को अपनाता है तथा उसी जाति मे शादी-विवाह करता है।

जाति व्यवस्था के अर्थ को सही तरीके से समझने के लिए जाति व्यवस्था की परिभाषाओं को जानना भी बहुत ही जरूरी हैं--

जाति व्यवस्था की परिभाषा (jati vyavastha ki paribhasha)

एम.एन. श्रीनिवास " जाति एक वंशानुगत अंतर्विवाही समूह है जो कि प्रायः स्थानीय होते है, इसका एक विशिष्ट व्यवसाय से परम्परागत संबंध होता है तथा जाति के स्थानीय पदक्रम मे इसकी विशिष्ट प्रस्थिति होती है। जातियों के मध्य संबंध अन्य बातों के अलावा छुआछूत की अवधारणाओं और प्रायः खान-पान संबंधी निषेधों से नियंत्रित होते है अर्थात् जाति के अंदर ही साथ बैठकर भोजन किया जा सकता है।"

मजूमदार के अनुसार, "जाति एक बंद वर्ग है।"
कूले के अनुसार, "जब एक वर्ग पूर्णतया वंशानुक्रम पर आधारित होता है, तब उसे हम जाति कह सकते है।"  इस परिभाषा मे जाति को वंशानुक्रम की विशेषता माना गया है।"
मर्टिण्डेल और मोनैक्सी के अनुसार, " जाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है, जिनके कर्तव्यों तथा विशेषधिकारों का जादू अथवा धर्म दोनों से समर्पित तथा स्वीकृत भाग जन्म से निश्चित होता है।"

हाबल के अनुसार " अन्तर्विवाह और जन्मगत प्रदत्त स्थिति के माध्यम से सामाजिक वर्गों का जम जाना ही जाति है।"
केतकर के अनुसार, " जाति एक ऐसा सामाजिक समूह है, जिसकी सदस्यता केवल उन व्यक्तियों तक सीमित है जो सदस्यों से जन्म लेते हैं और इस प्रकार से पैदा हुए व्यक्ति ही इसमें सम्मिलित होते हैं। ये सदस्य एक कठोर सामाजिक नियम द्वारा समूह के बाहर विवाह करने से रोक दिये जाते हैं।"

जाति व्यवस्था की विशेषताएं क्या है? - jaati vyavastha kee visheshataen kya hai?

उक्त परिभाषाओं के आधार पर जाति व्यवस्था की कुछ विशेषताएं स्पष्ट होती है। तो चलिए जानते है----

जाति व्यवस्था की विशेषताएं (jati vyavastha ki visheshta)

जाति व्यवस्था की निम्न विशेषताएं हैं--

1. जाति जन्म पर आधारित होती है
जाति व्यवस्था की सबसे प्रमुख विशेषता यह है की जाति जन्म से आधारित होती है। जो व्यक्ति जिस जाति मे जन्म लेता है वह उसी जाति का सदस्य बन जाता है।
2. जाति का अपना परम्परागत व्यवसाय
प्रत्येक जाति का एक परम्परागत व्यवस्था होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण जजमानी व्यवस्था रही है। जजमानी व्यवस्था मे जातिगत पेशे के आधार पर परस्पर निर्भरता की स्थिति सामाजिक संगठन का आधार थी। लेकिन आज आधुनिकता के चलते नागरीकरण, औधोगीकरण आदि के चलते अब जाति का अपना परम्परागत व्यवसाय बहुत कम रह गया है।
3. जाति स्थायी होती है
जाति व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति की जाति हमेशा के लिए स्थायी होती है उसे कोई छुड़ा नही सकघता या बदल नही सकता। कोई भी व्यक्ति अगर आर्थिक रूप से, राजनैतिक रूप से या किसी अन्य साधन से कितनी भी उन्नति कर ले लेकिन उसकी जाति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नही हो सकता।
4. ऊंच- नीच की भावना
हांलाकि अब वर्तमान भारतीय ग्रामीण समाज में जाति के परम्परागत संस्तरण के आधारों मे परिवर्तन आया है। लेकिन फिर भी जाति ने समाज को विभिन्न उच्च एवं निम्न स्तरों में विभाजित किया गया है प्रत्येक जाति का व्यक्ति अपनी जाति की सामाजिक स्थिति के प्रति जागरूक रहता है।
5. मानसिक सुरक्षा प्रदान करना
जाति व्यवस्था में हांलाकि दोष बहुत है लेकिन जाति व्यवस्था की अच्छी बात यह है कि यह अपने सदस्यों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करती है। जिसमें सभी सदस्यों को पता होता है कि उनकी स्थिति क्या है? उन्हें क्या करना चाहिए।
6. विवाह सम्बन्धी प्रतिबन्ध
जाति व्यवस्था के अर्न्तगत जाति के सदस्य अपनी ही जाति मे विवाह करते है। अपनी जाति से बाहर विवाह करना अच्छा नही माना जाता है। उदाहरण के लिए ब्राह्माण के लड़के का विवाह ब्राह्राण की लड़की से ही होगा। किसी अन्य जाति से नही।
7. समाज का खण्डात्मक विभाजन
जाति व्यवस्था ने संपूर्ण समाज का खण्ड-खण्ड मे विभाजन कर रखा है। समाज का विभाजन होना देश की एकता के लिए सही नही है।
जी . एस. घुरिए ने जाति व्यवस्था की छ: विशेषताओं का उल्लेख किया है। जो इस प्रकार है--
1. समाज का खण्डात्मक विभाजन
2. सामाजिक संस्तरण
3. भोजन तथा सामाजिक सहवास पर प्रतिबंध 
4. विभिन्न जातियों की सामाजिक एवं धार्मिक निर्योग्यताएं तथा विशेषाधिकार 
5. पेशे के अप्रतिबंधित चुनाव का अभाव
6. विवाह संबंधी प्रतिबंध

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जाति व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं क्या है?

। व्यवसाय को अपनाने पर बल देते हैं और एक सजातीय समुदाय के रूप में उनके द्वारा मान्य QUARET Sux संक्रमण ऐसा हो जो इसके समूह (जाति) के बाहर विवाह-सम्बन्ध स्थापित करने से रोक दिये जाते हैं। और कार्य पर दृढ़ रहते हैं और यदि कोई इसको तोड़ता है तो उस पर जुर्माना होता है और कभी-कभी उसे जाति निकाल दिया जाता है।

जातीयता की विशेषताएं क्या हैं?

जातीय समूह मनुष्यों का एक ऐसा समूह होता है जिसके सदस्य किसी वास्तविक या काल्पनिक सांझी वंश-परंपरा के माध्यम से अपने आप को एक नस्ल के वंशज मानते हैं। यह सांझी विरासत वंशक्रम, इतिहास, रक्त-संबंध, धर्म, भाषा, सांझे क्षेत्र, राष्ट्रीयता या भौतिक रूप-रंग (यानि लोगों की शक्ल-सूरत) पर आधारित हो सकती है।

जाति क्या है और इसकी विशेषताओं का वर्णन करें?

हट्टन के अनुसार- “जाति एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत एक समाज अनेक आत्मकेन्द्रित एवं एक-दूसरे से पूर्णत: पृथक् इकाइयों (जातियों) में विभाजित रहता है, इन इकाइयों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध ऊँच-नीच के आधार पर सांस्कारिक रूप से निर्धारित होते हैं।”

जाति व्यवस्था से आप क्या समझते हैं इसकी विशेषताओं की चर्चा करते हुए इस में हुए बदलाव की विवेचना कीजिए?

प्रत्येक जाति का समाज में एक विशिष्ट स्थान होने के साथ-साथ एक क्रम श्रेणी भी होती है। एक सीढ़ीनुमा व्यवस्था जो ऊपर से नीचे जाती है, में प्रत्येक जाति का एक विशिष्ट स्थान होता है। धार्मिक या कर्मकांडीय दृष्टि से जाति की अधिक्रमित व्यवस्था 'शुद्धता' (शुचिता) और 'अशुद्धता' (अशुचिता) के बीच के अंतर पर आधारित होती है।