जितने तुम तारे उतने नहीं गगन में तारे हैं कौन सा अलंकार है - jitane tum taare utane nahin gagan mein taare hain kaun sa alankaar hai

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Alankar Kise Kahate Hain जो किसी वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार कहलाता है. हमारी website edumantra.net आपको देगी सभी विषयों पर जानकारी सरल भाषा में. Here we also provide Samvad Lekhan in Hindi for your high score.

अलंकार का अर्थ है – आभूषण या श्रंगार. काव्य के अनुसार आभूषण अर्थात सौंदर्य – वर्धक गुण अलंकार कहलाते हैं. अलंकार स्वयं सौंदर्य नहीं होते, वे काव्य के सौंदर्य को बढ़ाने वाले सहायक तत्व होते हैं. अलंकार के योग से काव्य मनोहारी बन जाता है.

Alankar Types with Examples in Hindi

काव्य में शब्द और अर्थ – दोनों के बराबर हो सत्ता रहती है. अतः कहीं शब्द – प्रयोग के कारण काव्य में सौंदर्य उत्पन्न होता है. तो कहीं अर्थ – चमत्कार के कारण. जहां शब्द के कारण चमत्कार उत्पन्न होता है वहां शब्दालंकार होते हैं. इसके विपरीत, जहाँ अर्थ के कारण का आकर्षण आता है, वहां अर्थालंकार होते हैं. उदाहरणतया –
1.तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए.
2.काली घटा का घमंड घटा.
इन दोनों उदाहरणों में विशेष व्यंजनों के प्रयोग से काव्य में सौन्दर्य उत्पन्न हुआ है. यदि पहले उदाहरण में ‘तरनि’ की बजाय उसका पर्यायवाची ‘सूर्य’; ‘तनुजा’ की बजाय उसका पर्यायवाची ‘पुत्री’; ‘तट’ की जगह उसका पर्यायवाची ‘किनारा’ रख दे तो काव्य का सारा चमत्कार जाता रहेगा. इसी भांति दूसरे उदाहरण में ‘घटा’ की पुनरावृत्ति से ही काव्य में सौंदर्य है. यदि इनकी जगह इसका कोई अन्य पर्यायवाची रख दिया जाए तो सौंदर्य समाप्त हो जाएगा. आशय यह है कि दोनों उदाहरणों में शब्दों के कारण सौंदर्य हैं. अतः इनमें शब्दालंकार है. अब अन्य उदाहरण देखिये –
1.तब तो बहता समय शिला – सा जम जाएगा.
2.सिंधु – सा विस्तृत और अथाह.
इन दोनों उदाहरणों में ‘शिला – सा’ तथा ‘सिंधु – सा’ के अर्थ के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है. यदि इनके स्थान पर क्रमशः ‘चट्टान’ तथा ‘सागर’ शब्द रख दिए जाएं तो भी अर्थ में अधिक अंतर नहीं आएगा. इसलिए यहां अर्थालंकारों का प्रयोग हुआ है.

Shabdalankar Ke Bhed

शब्दों में पाए जाने वाले अलंकार अनेक हैं. उनमे से कुछ प्रमुख अलंकार इस प्रकार हैं –

1.अनुप्रास

जहां व्यंजनों की आवृत्ति के कारण काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है, वहां अनुप्रास अलंकार होता है. उदाहरणतया –
1.तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए. (त की आवृत्ति)
2.चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल – थल में. ( च और ल की आवृत्ति )
3.लट लटकनि मनो मत्त मधुप गन मादक मधुहि पियें. (ल, म के आवृत्ति)
ध्यातव्य है कि व्यंजनों की आवृत्ति में भी कोई नियम होना चाहिए. या तो वे शब्द के आरंभ में आवृत्ति करें, या मध्य में, या अंत में. कुछ उदाहरण देखिए –
•कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै बनमाल विराजित है.
•कंकन किंकिन नूपुर धुनि सुनि.
कहत लखन सन राम ह्रदय गुनि.
•संसार की समर – स्थली में धीरता धारण करो.
•नभ पर चम – चम चपला चमकी.
•निपट निरंकुस निठुर निसंकू.
जेहि ससि कीन्ह सरुज सकलंकू.
•कुटिल, कुचाल, कुकर्म छोड़ दे.
•भुज भुजगेस की बै संगनी भुजंगनी – सी.
खेदि – खेदि खाती दीह दारुण दलन के.
•विमल वाणी ने वीणा ली.
•मुदित महीपति मंदिर आए.
सेवक सचिव सुमंत बुलाए.
•कायर क्रूर कपूत कुचाली यों ही मर जाते हैं.
•मधुर – मधुर मुस्कान मनोहर, मनुज देश का उजियाला.
•जग जाँचीअ कोउ न जाँचिए जौ, जिये जाँचिए जानकी जानही रे.
•भग्य – मग्न रत्नाकर में वह रहा.
•बरषत वारिद बूँद.
•गोपी पद – पंकज पावन की रज जामैं सिर भीजै.
•सुरभित सुंदर सुखद सुमद तुझ पर खिलते हैं.
•कूकै लगी कोइलें कन्दबन पे बैठि फेरि.
•मिटा मोदु मन भए मलीने.
•नाथ सकल सुख साथ तुम्हारे.

2.यमक

“वहै शब्द पुनि – पुनि परै अर्थ भिन्न – भिन्न.”
अर्थात जहां एक शब्द बार-बार आए किंतु उसका अर्थ बदल जाए, वहां यमक अलंकार होता है उदाहरणतया
(1)काली घटा का घमंड घटा.
यहां ‘घटा’ शब्द दोनों बार भिन्न-भिन्न अर्थ में प्रयुक्त हुआ है. पहली बार ‘बादलों के जमघट’ के लिए तथा दूसरी बार ‘कम हुआ’ के लिए. अतः यहा यमक अलंकार है.
(2)कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय.
वा खाय बौराय जग, या पाए बौराय.
यहां पहले ‘कनक’ का अर्थ सोना और दूसरे कनक का अर्थ ‘धतूरा’ है. कनक शब्द की आवृत्ति होने के कारण यहां यमक अलंकार है.
(3)माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर.
कर का मनका डारि के, मन का मनका फेर.
यहां ‘फेर’ तथा ‘मनका’ शब्दों का भिन्न – भिन्न अर्थों में प्रयोग द्रष्टव्य है. (मनका = माला का दाना, मन का = हृदय का; फेर = चक्कर, घुमा.)
(4)तौ पर वारौ उरवसी, सुन राधिके सुजान.
तू मोहन के उर वसी समान ह्वै उरवसी समान.
(उर वसी = ह्रदय में बसी, उरवसी = एक परंपरा)
(5)तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती हैं.
(तीन बेर = तीन बार, बेर के तीन दाने)
(6)जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं.
(तारे = उद्धार किया, सितारे)
(7)कहै कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लीनी.
(बेनी = कवि का नाम, चोटी)
(8)पच्छी परछीने ऐसे परे पर छीने वीर.
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के.

3.शैलेश

श्लेष का अर्थ है – ‘चिपकना’. अतः जहां एक शब्द से अधिक अर्थ निकले, वहां श्लेष अलंकार होता है. उदाहरणतया –
(1)जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय.
बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरों होय.
यहां ‘बारे’ के दो अर्थ हैं – ‘जलाने पर’ तथा ‘बचपन में’. ‘बढ़े’ के दो अर्थ हैं – ‘बड़ा होने पर’ तथा ‘बुझने पर’.
(2)मि. जगदीश ! आप चाहे कुछ भी कहें, मैं तो इसे जगदीश की ही कृपा मानता हूं.
(यहां जगदीश के दो अर्थ हैं – ‘जगदीश नामक व्यक्ति’ तथा ‘ईश्वर’)
(3)मेरी भव – बाधा हरौ राधा नगरी सोय.
जा तन की झाँई परै स्यामु हरित दुति होय.
(स्यामु = पाप, कालिमा, कृष्ण, हरित दुति = हर लिए जाते हैं, शोभा नष्ट हो जाती है, हरे – भरे, प्रसन्न, हरे रंग के)
(4)चिरजीवौ जोरी जुरे, क्यों न सनेह गंभीर.
को घटि या वृषभानुजा, वे हलदर के वीर.
वृषभानु * जा = राधा, वृषभ * अनुजा = बैल की बहिन – गाय. हलदर = एक शस्त्र (हथियार), बलराम.
(5)सुबरन को ढूंढत फिरत कवि, व्यभिचारी, चोर.
(सुबरन = अच्छे वर्णव्रत (छंद) या अक्षर, सुंदर – स्त्री, सोना)
(6)मधुबन की छाती को देखो.
सूखी कितनी इसकी कलियां.
(कलियां = फूल का अविकसित रूप, यौवन के पूर्व की अवस्था)

Arthalankar Ke Bhed

अर्थालंकारों की लंबी सूची में से कुछ प्रमुख अलंकारों का परिचय निम्नलिखित है –

1. उपमा

जब किसी वस्तु या व्यक्ति की विशेषता दर्शाने के लिए उसकी समानता उस गुण में बढ़ी हुई किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से की जाती है, वहां उपमा अलंकार होता है. जैसे –

  • सीता का मुख चंद्रमा के समान सुंदर है.
  • यहां सीता का मुख सुंदरता में चंद्रमा के समान दिखाया गया है अतः उपमा अलंकार है.

उपमा के अंग –

उपमा के निम्नलिखित चार अंग होते हैं.

उपमेय – जिस व्यक्ति या वस्तु की समानता की जाती है, उसे उपमेय कहते हैं. जैसे –
उपर्युक्त उदाहरण में ‘सीता’ उपमेय है.
उपमान – जिस प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से उपमेय की समानता की जाती है, उसे उपमान कहते हैं. जैसे – उपयुक्त उदाहरण में ‘चंद्रमा’ उपमान है.
समान धर्म – उपमेय और उपमान में जो गुण समान पाया जाता है, या जिस सामान्य गुण की समानता की जाती है, उसे समान धर्म कहते हैं. जैसे –
‘सुंदर’ समान धर्म है.
वाचक शब्द – जिस शब्द – विशेष से समानता या उपमा का बोध होता है, उसे वाचक शब्द कहते हैं. उदाहरणतया –
‘के समान’ वाचक शब्द है.

पूर्णोपमा – जिस उपमा में चारों अंग ऊपस्थित रहते हैं वहां पूर्णोपमा होती है. जैसे –

(1)पीपर पात सरिस मन डोला .
(2)वह दीपशिखा – सी शांत भाव में लीन.
(3)वह टूटे तरु की छुटी लता – सी दीन.
(4)उषा – सुनहले तीर बरसती
जय – लक्ष्मी – सी उदित हुई.
(5)मुख बाल – रवि – सम लाल होकर
ज्वाला – सा बोधित हुआ.
(6)हरिपद कोमल कमल से.
(7)नीलकमल से सुंदर नयन.
(8)रति सम रमणीय मूर्ति राधा की.
(9)हाय फूल – सी कोमल बच्ची.
हुई राख की थी ढेरी.
(10)सिंधु – सा विस्तृत और अथाह
एक निर्वासित का उत्साह.
(11)तब तो बहता समय शिला – सा जम जाएगा.
(12)प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे.
(13)असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह – सी.
(14)खुले कोरे पृष्ठ जैसा
वही उज्जवल, वही पावन रूप.
(15)चाटत रह्यों स्वान पातरि ज्यों, कबहूँ न पेट भरयो.
(16)मजबूत शिला – सी द्रण छाती.
(17)वरसा रहा है रवि अनल
भूतल तवा – सा जल रहा.
(18)चेहरा है मानो झील में हंसता हुआ कमल.

लुप्तोपमा – जिस उपमा अलंकार में चारों अंगों में से कोई एक अंग हो, वहां लुप्तोपमा अलंकार होता है. उदाहरणतया –
(1)यह देखिए, अरविंद – से शिशुवृंद कैसे सो रहे. (समान – धर्म लुप्त)
(2)पड़ी थी बिजली – सी विकराल. (उपमेय लुप्त)
(3)वह नव – नलिनी से नयन वाला कहां है. (उपमेय लुप्त)
(4)मखमल के झूल पड़े हाथी – सा टीला. (समान – धर्म लुप्त)
(5)निकल रही थी मर्म – वेदना करना, करुणा विकल कहानी – सी.
(समान – धर्म लुप्त)
(6)कमल – कोमल कर में सप्रीत. (वाचक शब्द लुप्त)

2.रूपक –
जहां गुण की अत्यंत समानता दर्शाने के लिए उपमेय और उपमान को ‘अभिन्न’ अर्थात ‘एक’ कर दिया जाए; दूसरे शब्दों में उपमान को उपमेय पर आरोपित कर दिया जाए, वहां रूपक अलंकार होता है. उदाहरणतया –
जलता है यह जीवन – पतंग.
यहां ‘जीवन’ उपमेय है और ‘पतंग’ उपमान. परंतु रूपक अलंकार के कारण जीवन (उपमेय) पर पतंग (उपमान) का आरोप कर दिया गया है.
अन्य उदाहरण –
(1)चरण – कमल बंदौ हरिराइ.
(2)बीती विभावरी जाग री !
अंबर पनघट में डुबो रही
तारा घट उषा नागरी.
(3)आए महंत वसंत (महंत वसंत)
(4)सत्य शील दृढ़ ध्वजा – पताका. (सत्य शील ध्वजा – पताका.)
(5)एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास.
(राम घनश्याम चातक तुलसीदास )
(6)मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों. (चंद्र खिलौना)
(7)मन का मनका फेर. (मन का मनका)
(8)संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो. (संसार समरस्थली)
(9)वन शारदी चन्द्रिका – चादर ओढ़े. (चन्द्रिका चादर)
(10)सब प्राणियों के मत्तमनोमयूर अहा नचा रहा. (मनोमयूर)
(11)पायो जी मैंने राम – रतन धन पायो. (राम – रतन)
(12)सुख चपला – सा दुख – घन में. (दुख – घन, मन – कुरंग)
उलझा है चंचल मन – कुरंग.
(13)खिले हजारों चांद तुम्हारे नयनो के अकाश में. (नयन – आकाश)
(14)जसुमति उदर अगाध उदधि है, उपजी ऐसी सबनि कहीं री.
(उदर – उदधि)
(15)उदित उदय – गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग.
(उदयगिरि – मंच, रघुवर बाल पतंग)
विकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भृंग. (संत – सरोज, लोचन – भृंग)

3.उत्प्रेक्षा
जहां उपमेय और उपमान की समानता के कारण उपमेय उपमान की संभावना या कल्पना की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है. इसके वाचक शब्द हैं – मनु , मानो, जनु, जनहु, जानो, मनहु आदि. एक उदाहरण देखिए –
कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए.
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए.
यहां उत्तरा के अश्रुपूर्ति नेत्र उपमेय हैं तथा हिम – कण से पूरित पंकज उपमान हैं. उपमेय में उपमान की संभावना ‘मानो’ वाचक द्वारा व्यक्त की गई है.
अन्य उदाहरण –
(1)उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा.
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा.
(2)सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात.
मनो नीलमणि सैल पर, आतप परयो प्रभात.
(3)पाहुन ज्यों आए हो गांव में शहर के.
मेघ आए बड़े बन – ठन के सँवर के.
(4)पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से.
मानों झूम रहे हों तरु भी मंद पवन के झोंकों से.
(5)चमचमात चंचल नयन विच घूंघट पट झीन.
मानव सुरसरिता विमल जल बिछुरत जुग मीन.
(6)बहुत काली सिल
जरा – से लाल केसर – से
कि जैसे धुल गई हो.
(7)मनु दृग फारि अनेक जमुन निरखत ब्रज सोभा.
(8)सिर फट गया उसका वहीं मानो अरुण रंग का घड़ा.
(9) ले चला साथ में तुझे कनक ज्यों भिक्षु लेकर स्वर्ण – झनक.
(10)मिटा मोदु मन भए मलीने
विधि निधि दीन्ह लेत जनु छीन्हे.

4.मानवीकरण
जहां मानवेतर प्राणियों या जड़ पदार्थों पर मानवीय भावनाओं का आरोप होता है, वहां मानवीकरण अलंकार होता है. जैसे –
उषा सुनहले तीर बरसती
जय लक्ष्मी – सी उदित हुई.
यहां उषा को सुनहरे तीर बरसाती हुई नायिका के रूप में दिखाया गया है. अतः मानवीकरण अलंकार है. अन्य उदाहरण –
•लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी.
•दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी – सी धीरे-धीरे.
•मेघ आए बड़े बन – ठन के सँवर के.
•आए महंत वसंत.

5.अतिशयोक्ति
जहां किसी गुण या स्थिति का बढ़ा – चढ़ा कर वर्णन किया जाए, वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है. जैसे –
देख लो साकेत नगरी है यही.
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही.
यहां साकेत नगरी के ऊंचे भवन को आकाश की ऊंचाई छूते हुए दिखाया गया है. अतः अतिशयोक्ति अलंकार है.
कुछ अन्य उदाहरण –
(1)हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग.
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग.
स्पष्टीकरण – पूछ में आग लगने से पहले लंका का जलना अतिशयोक्ति है.
(2) कढ़क साथ ही म्यान तें, अंसि रिपु तन ते प्रान.
स्पष्टीकरण – म्यान से निकलते ही शत्रुओं के प्राणों का निकलना अतिशयोक्ति है.
(3)आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार.
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार.
स्पष्टीकरण – सोचते ही घोड़े द्वारा नदी को पार करना अतिशयोक्ति है.
(4) जिस वीरता से शत्रुओं का सामना उसने किया.
असमर्थ हो उसके कथन में मौन वाणी ने लिया.
(5) तारा सो तरनि धूरि धारा मैं लगत जिमि
धारा पर पारा पारावार यों हलत है.

अतिरिक्त अध्ययन के लिए
अन्योक्ति
जहां किसी उक्ति के माध्यम से किसी अन्य को कोई बात कही जाए, वहां अन्योक्ति अलंकार होता है. कथन कहीं, निशाना कहीं.
उदाहरणतया –
फूलों के आसपास रहते हैं
फिर भी कांटे उदास रहते हैं
स्पष्टीकरण – इसमें ‘फूल’ सुख सुविधा या प्रेमिका का प्रतीक है, ‘कांटे’ दुखी प्राणियों के प्रतीक हैं. अतः यहां सुख से घिरे दुखी प्राणियों को संबोधित किया गया है.
अन्य उदाहरण –
(1)
नहि पराग नहि मधुर मधु नहिं विकास इहि काल.
अली कली ही सौं बैध्यौ, आगे कौन हवाल.
स्पष्टीकरण – इसमें कली और भंवरे के माध्यम से नव – विवाहित राजा जयसिंह को कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरणा दी गई है.
(2)जिन दिन देखे थे कुसुम, गई सु बीति बहार.
अब, अलि रही गुलाब में, अपत कंटीली डार.
स्पष्टीकरण – यहां गुलाब के सूखने के माध्यम से आश्रयदाता के उजड़ने की व्यथा कही गई है.
(3)को छुट्यो इही जाल परि, कत कुरंग अकुलात.
ज्यों-ज्यों सुरझि भज्यो चहत, त्यों त्यों उरझत जात.
स्पष्टीकरण – यहां हिरण के बहाने से सांसारिक आकर्षणों के जाल का वर्णन किया गया है.
(4)करि फुलेल को आचमन मीठौ कहत सिहाई.
ये गंधी मतिमंद तू इतर दिखावत काहि.
स्पष्टीकरण – यहां इत्र बेचने वाले के माध्यम से अयोग्य, अरसिक और कलाशून्य लोगों पर व्यंग किया गया है.
(5)स्वारथ सुकृत न श्रमु बृथा, देखि बिहंग विचारि.
बाज, पराए पानि परि, तू पच्चीनु न मारि.
स्पष्टीकरण – यहां बाज द्वारा, पक्षियों को मारने के बहाने से राजा जयसिंह को यह समझाया गया है कि वह व्यर्थ में हिंदुओं का नर – संहार न करें.
(6)माली आवत देख करि, कलियाँ करैं पुकार.
फूलि फूलि चुनि लई, काल हमारी बार.
स्पष्टीकरण – यहां कलियों के टूटने के बहाने से मनुष्य की नश्वरता का बोध कराया गया है.

अलंकारों में अंतर

यमक और श्लेष में अंतर

यमक अलंकार में एक शब्द दो बार आता है किंतु दोनों जगह भिन्न-भिन्न अर्थ देता है जबकि श्लेष में एक ही शब्द एक साथ दो अलग-अलग अर्थ देता है. उदाहरणतः
काली घटा का घमंड घटा.
यहां ‘घटा’ शब्द दो बार आया है पहली बार ‘बादलों के समूह’ के लिए. दूसरी बार ‘कम होने’ के लिए. यहां यमक है. दूसरा उदाहरण –
घटा से अंधेरा छा जाता है.
यहां घटा के दो अर्थ हैं – ‘बादलों का समूह’ तथा ‘कम होना’. एक ही शब्द से दो अर्थ ध्वनित होने के कारण यहां श्लेष है.
उपमा और उत्प्रेक्षा
उपमा में उपमेय और उपमान की समानता दिखाई जाती है. जैसे –
सीता मुख चंद्रमा के समान सुंदर है.
उत्प्रेक्षा में उपमेय में उपमान की संभावना दिखाई जाती है. जैसे –
सीता का मुख मानो चंद्रमा है.

Hindi Alankar Worksheet with Answers

Exercise-1

1.रती – रती सोभा सब रती के सरीर की.
2.आए महंत वसंत.
3.यह देखिए, अरविंद – से शिशुवृंद कैसे सो रहे.
4.यह जिंदगी क्या जिंदगी जो सिर्फ पानी – सी बही.
5.बढ़त – बढ़त संपत्ति सलिल, मन – सरोज बढ़ जाइ.
6.मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों.
7.सुरभित सुंदर सुखुद सुमन तुझ पर खिलते हैं.
8.रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून.
पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून.
9.मुख बाल रवि सम लाल होकर ज्वाल – सा बोधित हुआ.
10.उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा.
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा.
11.काली घटा का घमंड घटा.
12 ले चला साथ में तुझे कनक.
ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण – झनक.
13.वन – शारदी चन्द्रिका चादर ओढ़े.
14. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए.
15. चरण कमल बंदौ हरिराइ.
16.कालिंदी कूल कदंब की डारन.
17. कूकै लगी कोइलें कंदबन पै बैठि फेरि.
18.‘जरा – से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो.’
19.वह दीपशिखा – सी शांत भाव में लीन.
20.वह बांसुरी की धुनि कानि परै कुल कानि हियो तजि भाजति है.

उत्तर –
1.अनुप्रास
2.रूपक
3.उपमा
4.उपमा
5.रूपक, अनुप्रास
6.रूपक
7.अनुप्रास
8.श्लेष
9.उपमा
10.उत्प्रेक्षा
11.यमक
12.उत्प्रेक्षा
13.रूपक, अनुप्रास
14.अनुप्रास
15.रूपक
16.अनुप्रास
17.अनुप्रास
18.उत्प्रेक्षा
19.उपमा
20.अनुप्रास

Exercise-2

1.सिर फट गया उसका वहीं मानो अरुण रंग का घड़ा.
2.को घटी ये वृषभानुजा वे हलधर के वीर.
3.माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवै पडंत.
4.पीपर पात सरिस मन डोला
5.तू मोहन के उर बसी हवै उरबसी समान.
6.रावनु रथी विरथी रघुवीरा.
7.तुमने अनजाने वह पीड़ा
छवि के सर से दूर भगा दी.
8.प्रश्न – चिन्हों में उठी हैं भाग्य – सागर की हिलोरें.
9.नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो.
10.नव पर चमचम चपला चमकी.
11.सुभासित भीगी हवाएं सदा पावन मां सरीखी.
12.नभमंडल छाया मरुस्थल – सा, दल बांध के अंधड़ आवै चला.
13.आवत जात कुंज की गलियन रूप – सुधा नित पीजै.
14.वन शारदी चंद्रिका चादर ओढ़े लसै समलंकृत कैसे भले.
15. रामनाम मनिदीप धरु, जीह देहरी द्वार.
16.विज्ञान यान पर चढ़ी हुई सभ्यता डूबने जाती है.
17.मुदित महिपति मंदिर आए.
18.दृग – पग पोछन कौं करें भूषण पायंदाज.
19.जितने तुमने तारे उतने नहीं गगन में तारे हैं.
20.राम – रूप राकेश निहारी, बढ़त बीच पुलकावलि भारी.

उत्तर

1.उत्प्रेक्षा
2.श्लेष
3.रूपक
4.उपमा, अनुप्रास
5.यमक
6.अनुप्रास
7.रूपक
8.रूपक
9.उत्प्रेक्षा
10.अनुप्रास
11.उपमा
12.उपमा
13.रूपक
14.रुपक
15.रूपक
16.रूपक
17.अनुप्रास
18.रूपक
19.यमक
20.रूपक, अनुप्रास

Exercise-3

1.वही उठती उर्मियों – सी, शैलमालायें.
2.कहँ लगि कहौ बनाई विविध विधि.
3.सूर समर करनी करहिं.
4.सत्य सनेह सील सुख सागर.
5.पहेली – सा जीवन है व्यस्त.
6.प्रीति – नदी में पाऊं न बोरयो, द्रष्टि न रूप परागी.
7.बालकु बोली बंदौ नहिं तोही.
8.नयन तेरे मीन – से हैं.
9.पाट- पाट शोभा – श्री पट नहीं रही है.
10.मधुर मृदु मंजुल मुख मुस्कान.
11.भानुवंस राकेश कलंकु.
12.तारा – सी तरुनि तामें ठाड़ी झिलमिली होति.
13.घेर – घेर घोर गगन, धराधरा ओ.
14.भोली – सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण.
15.छाया मत छूना मन.
16.बालक बोलि बहुत मैं बाँचा.
17.सूरदास अबला हम भोरी, गुरु चांटी ज्यों पागी.
18.मंद हंसी मुखचंद जुन्हाई.
19.देखूं उसे मैं नित बार-बार.
20.मानो मिला मित्र मुझे पुराना.

उत्तर:-

1.उपमा
2.अनुप्रास
3.अनुप्रास
4.अनुप्रास
5.उपमा
6.रूपक
7.अनुप्रास
8.उपमा
9.अनुप्रास
10.अनुप्रास
11.रूपक
12.उपमा
13.अनुप्रास
14.उपमा
15.अनुप्रास
16.अनुप्रास
17.उपमा
18.रूपक
19.अनुप्रास
20.उत्प्रेक्षा

Exercise – 4

1.मन कांचे नाचे वृथा सांचे रांचे राम.
2.स्वार्थ – समीर चली ऐसी सब प्रेम – प्रदीप बुझाए.
3.लंबा होता ताड़ का वृक्ष मानो छूने चला अंबर तल को.
4.जग जीवन में जो चिर महान.
5.पानी गए न ऊबरै मोती मानुष चून.
6.तीन बेर खाती थी सो तीन बेर खाती थी.
7.ले चला साथ में तुझे कनक
ज्यों भिक्षु लेकर स्वर्ण – झनक.
8.काली घटा का घमंड घटा.
9.हरि मुख मानो मधुर मयंक.
10.आगे-आगे नाचती गाती बयार चली.
11.माया दीपक नर पतंग.
12.शशि – मुख पर घूंघट डाले आंचल में दीप छिपाए.
13)जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय.
बारे उजियारो करै, बड़े अंधेरो होय.
14.निर्मल तेरा नीर अमृत के समान उत्तम है.
15.लघु तरिणी हंसनी – सी सुंदर.
16.मखमल के झूल पड़े हाथी – सा टीला.
17.मेघ आए बड़े बन – ठन के सँवर के.
18)सहज सुभाग सुभग तन गोरे.
नाम लखन लघु देवर मोरे.
19.काम – सा रूप, प्रताप दिनेश – सा.
सोम – सा शील है राम महीप का.
20.हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग.
लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग.

उत्तर:-

1.अनुप्रास
2.रूपक
3.उत्प्रेक्षा
4.अनुप्रास
5.श्लेष
6.यमक
7.उत्प्रेक्षा
8.यमक
9.उत्प्रेक्षा अनुप्रास
10.मानवीकरण
11.रूपक
12.रूपक
13.उदाहरण
14.उपमा
15.उपमा
16.उपमा
17.मानवीकरण, अनुप्रास
18.अनुप्रास
19.उपमा
20.अतिशयोक्ति

Exercise – 5

1.विमल वाणी ने वीणा ली.
2.प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे.
3.नाथ सकल सुख साथ तुम्हारे.
4.दीपक – सा जलना होगा.
5.मेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के.
6.बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की.
7.दीनबंधु दुखियों का दुख कब दूर करोगे.
8.वह बाल रवि सम लाल होकर ज्वाला – सा बोधित हुआ.
9.राम नाम दीप धरु जीह देहरी द्वार.
10.चेहरा है मानो झील में हंसता हुआ कमल.
11. सुबरन को खोजते फिरै, कवि, व्यभिचारी, चोर.
12.ऋतुओं की रानी कहलाती.
पहन बसंती ताज है आती.
13.सोहत है मुखचंद्र.
14.रन्कंह राय रासि जनु लूटी.
15.तब तो बहता समय शिला – सा जम जाएगा.
16.पायो जी मैंने राम रतन धन पायो.
17.देख लो साकेत नगरी है यही
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही.
18.मनवा भव – सागर में गोते खाए.
19.वही उर्वर कल्पना – से फूटते जल – स्रोत.
20.रघुपति राघव राजा राम

उत्तर:-

1.मानवीकरण, अनुप्रास
2.उपमा
3.अनुप्रास
4.उपमा
5.यमक
6.मानवीकरण
7.अनुप्रास
8.उपमा
9.रूपक, अनुप्रास
10.उत्प्रेक्षा
11.श्लेष
12.मानवीकरण
13.रूपक
14.उत्प्रेक्षा
15.उपमा
16.रूपक
17.अतिशयोक्ति
18.रूपक
19.उपमा
20.अनुप्रास

Exercise – 6

1.क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी.
2.कंजकली कलिका लतान सिर सारी दे.
3.आवत जात कुंज की गलियन रूप सुधा नित पीजै.
4.प्यारी राधिका को प्रतिबिंब – सो लखत चंद.
5.ऊंचा होता ताड़ का वृक्ष मानो छूने अंबरतल को.
6.हस्ती चड़िए ज्ञान कौ सहज दुलीचा डारि.
7.कुंद इंदु सम देह.
8.और सरसों की न पूछो, हो गई सबसे सयानी.
हाथ पीले कर लिए हैं, व्याह मंडप में पधारी.
9.उषा सुनहले तीर बरसती जय लक्ष्मी – सी उदित हुई.
10. मेघमय आसमान से उतर रही
संध्या सुंदरी परी – सी धीरे – धीरे
11.हरिपद कोमल कमल से
12.या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौगी.
चुपचाप खड़ी थी वृक्ष – पाँत
13. सुनती जैसे कुछ निजी बात.
14.पद्मावती सब सखी बुलाई. मानो फुलवारी चली आई.
15.पानी परात को हाथ छुओं नहीं, नैनन के जल से पग धोए.
16.कूकि कूकि केकी कलित कुंजन करत कलोल.
17.चंबर सदृश्य डोल रहे, सरसों के सर अनंत.

उत्तर:-

1.अनुप्रास, रूपक
2.रूपक, अनुप्रास
3.रूपक, अनुप्रास
4.उपमा
5.उत्प्रेक्षा
6.रूपक
7.उपमा
8.मानवीकरण
9.उपमा
10.मानवीकरण, अनुप्रास, उपमा
11.उपमा, अनुप्रास
12.यमक
13.उत्प्रेक्षा, मानवीकरण
14.उपमा
15.अतिशयोक्ति
16.अनुप्रास
17.उपमा