एवरेस्ट पर्वत (नेपाली: सगरमाथा, संस्कृत: देवगिरि) दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है, जिसकी ऊँचाई 8,848.86 मीटर है।[5] यह हिमालय का हिस्सा है। पहले इसे XV के नाम से जाना जाता था। माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई उस समय 29,002 फीट या 8,840 मीटर मापी गई थी। वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में कहा जाता है कि इसकी ऊंचाई प्रतिवर्ष 2 से॰मी॰ के हिसाब से बढ़ रही है। नेपाल में इसे स्थानीय लोग सगरमाथा (अर्थात स्वर्ग का शीर्ष) नाम से जानते हैं, जो नाम नेपाल के इतिहासविद बाबुराम आचार्य ने सन् 1930 के दशक में रखा था - आकाश का भाल। तिब्बत में इसे सदियों से चोमोलंगमा अर्थात पर्वतों की रानी के नाम से जाना जाता है।[6] सर्वे ऑफ नेपाल द्वारा प्रकाशित, (1:50,000 के स्केल पर 57 मैप सेट में से 50वां मैप) “फर्स्ट जॉईन्ट इन्सपेक्सन सर्वे सन् 1979-80, नेपाल-चीन सीमा के मुख्य पाठ्य के साथ अटैच” पृष्ठ पर ऊपर की ओर बीच में, लिखा है, सीमा रेखा, की पहचान की गई है जो चीन और नेपाल को अलग करते हैं, जो ठीक शिखर से होकर गुजरता है। यह यहाँ सीमा का काम करता है और चीन-नेपाल सीमा पर मुख्य हिमालयी जलसंभर विभाजित होकर दोनो तरफ बहता है। सर्वोच्च शिखर की पहचान[संपादित करें]विश्व के सर्वोच्च पर्वतों को निर्धारित करने के लिए सन् 1808 में ब्रिटिशों ने भारत का महान त्रिकोणमितीय सर्वे को शुरु किया। दक्षिणी भारत से शुरु कर, सर्वे टीम उत्तर की ओर बढ़ा, जो विशाल 500 कि॰ग्रा॰ (1,100 lb) का विकोणमान (थियोडोलाइट)(एक को उठाकर ले जाने के लिए 12 आदमी लगते थें) का इस्तेमाल करते थे जिससे सम्भवत: सही माप लिया जा सके। सन् 1830 में वे हिमालय के नजदीक पहाड़ो के पास पहुँचे, पर नेपाल अंग्रेजों को देश में घुसने देने के प्रति अनिच्छुक था क्योंकि नेपाल को राजनैतिक और सम्भावित आक्रमण का डर था। सर्वेयर द्वारा कई अनुरोध किये गये पर नेपाल ने सारे अनुरोध ठुकरा दिये। ब्रिटिशों को तराई से अवलोकन जारी रखने के लिए मजबूर किया गया, नेपाल के दक्षिण में एक क्षेत्र है जो हिमालय के समानान्तर में है। तेज वर्षा और मलेरिया के कारण तराई में स्थिति बहुत कठिन थी: तीन सर्वे अधिकारी मलेरिया के कारण मारे गये जबकि खराब स्वास्थ्य के कारण दो को अवकाश मिल गया। फिर भी, सन् 1847 में, ब्रिटिश मजबूर हुए और अवलोकन स्टेशन से लेकर 240 किलोमीटर (150 mi) दूर तक से हिमालय कि शिखरों कि विस्तार से अवलोकन करने लगे। मौसम ने साल के अन्त में काम को तीन महिने तक रोके रखा। सन् 1847 के नवम्बर में, भारत के ब्रिटिश सर्वेयर जेनरल एन्ड्रयु वॉग ने सवाईपुर स्टेशन जो हिमालय के पुर्वी छोर पर स्थित है से कई सारे अवलोकन तैयार किये। उस समय कंचनजंघा विश्व कि सबसे ऊँची चोटी मानी गई और उसने रुचीपुर्वक नोट किया कि, इस के पीछे भी लगभग 230 किमी (140 mi) दूर एक चोटी है। जौन आर्मस्ट्रांग, जो वॉग के सह अधिकारी थें ने भी एक जगह से दूर पश्चिम में इस चोटी को देखा जिसे उन्होने नाम दिया चोटी ‘बी’(peak b)। वॉग ने बाद में लिखा कि अवलोकन दर्शाता है कि चोटी ‘बी’ कंचनजंघा से ऊँचा था, लेकिन अवलोकन बहुत दूर से हुआ था, सत्यापन के लिए नजदीक से अवलोकन करना जरुरी है। आने वाले साल में वॉग ने एक सर्वे अधिकारी को तराई में चोटी ‘बी’ को नजदिक से अवलोकन करने के लिए भेजा पर बादलों ने सारे प्रयास को रोक दिया। सन् 1849 में वॉग ने वह क्षेत्र जेम्स निकोलसन को सौंप दिया। निकोलसन ने 190 (120 mi) कि॰मी॰ दूर जिरोल से दो अवलोकन तैयार किये। निकोलसन तब अपने साथ बड़ा विकोणमान लाया और पूरब की ओर घुमा दिया, पाँच अलग स्थानों से निकोलसन ने चोटी के सबसे नजदीक 174 कि॰मी॰ (108 mi) दूर से 30 से भी अधिक अवलोकन प्राप्त किये। अपने अवलोकनों पर आधारित कुछ हिसाब-किताब करने के लिए निकोलसन वापस पटना, गंगा नदी के पास गया। पटना में उसके कच्चे हिसाब ने चोटी ‘बी’ कि औसत ऊँचाई 9,200 मी॰ (30,200 ft) दिया, लेकिन यह प्रकाश अपवर्तन नहीं समझा जाता है, जो ऊँचाई को गलत बयान करता है। संख्या साफ दर्शाया गया, यद्यपि वह चोटी ‘बी’ कंचनजंघा से ऊँचा था। यद्यपि, निकोलसन को मलेरिया हो गया और उसे घर लौट जाने के लिए विवश किया गया, हिसाब-किताब खत्म नहीं हो पाया। माईकल हेनेसी, वॉग का एक सहायक रोमन संख्या के आधार पर चोटीयों को निर्दिष्ट करना शुरु कर दिया, उसने कंचनजंघा को IX नाम दिया और चोटि ‘बी’ को XV नाम दिया। सन् 1852 मई सर्वे का केन्द्र देहरादून में लाया गया, एक भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिकदर और बंगाल के सर्वेक्षक ने निकोलसन के नाप पर आधारित त्रिकोणमितीय हिसाब-किताब का प्रयोग कर पहली बार विश्व के सबसे ऊँची चोटी का नाम एक पूर्व प्रमुख के नाम पर एवरेस्ट दिया, सत्यापन करने के लिए बार-बार हिसाब-किताब होता रहा और इसका कार्यालयी उदघोष, कि XV सबसे ऊँचा है, कई सालों तक लेट हो गया। वॉग ने निकोलस के डाटा पर सन् 1854 में काम शुरु कर दिया और हिसाब-किताब, प्रकाश अपवर्तन के लेन-देन, वायु-दाब, अवलोकन के विशाल दूरी के तापमान पर अपने कर्मचारियों के साथ लगभग दो साल काम किया। सन् 1856 के मार्च में उसने पत्र के माध्यम से कलकत्ता में अपने प्रतिनिधी को अपनी खोज का पूरी तरह से उदघोष कर दिया। कंचनजंघा की ऊँचाई साफ तौर पर 28,156 फीट (8,582 मी॰) बताया गया, जबकि XV कि ऊँचाई (8,850 मी॰) बताई गई। वॉग ने XV के बारे में निष्कर्ष निकाला कि “अधिक सम्भव है कि यह विश्व में सबसे ऊँचा है”। चोटी XV (फिट में) का हिसाब-किताब लगाया गया कि यह पुरी तरह से 29,000 फिट (8,839.2 मी॰) ऊँचा है, पर इसे सार्वजनिक रूप में 29,002 फीट (8,839.8 मी॰) बताया गया। 29,000 को अनुमान लगाकर 'राउंड' किया गया है इस अवधारणा से बचने के लिए 2 फीट अधिक जोड़ा दिया गया था। एवरेस्ट बेस कैंप ट्रेक[संपादित करें]अधिकतम ऊंचाई: 18,513 फीट कठिनाई स्तर: मुश्किल हवाई अड्डा: काठमांडू, नेपाल आरंभ और अंत बिंदु: ट्रेक काठमांडू से शुरू और समाप्त होता है। एटीएम: आपके ट्रेक शुरू होने से पहले नामचे बाजार में आखिरी एटीएम बिंदु है। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
कौन सा पर्वत था जिस पर पहली बार किस व्यक्ति ने 8000 मीटर से ऊपर की छोटी की चढ़ाई की थी?माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई उस समय 29,002 फीट या 8,840 मीटर मापी गई थी।
विश्व की सबसे ऊंची पर्वत कौन सी है?नेपाली में सगरमाथा कही जाने वाली यह चोटी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है. 1955 में भारत ने इसका सर्वे किया और ऊंचाई 8,848 मीटर बताई. ब्रिटिश सर्वेयर सर जॉर्ज एवरेस्ट के सम्मान में इस चोटी को माउंट एवरेस्ट नाम दिया गया.
वह कौन सा पर्वत था जिस पर पहली बार किसी व्यक्ति ने?पेशेवर पर्वतारोही यूईचिरो म्यूरा ने 8,850 मीटर ऊंची इस चोटी पर पहुँचने में सफलता प्राप्त की। लेकिन खास बात यह है कि म्यूरा भी उसी रास्ते से इस चोटी पर पहुँचे, जिस रास्ते से लगभग 50 साल पहले 'सर' एडमंड हिलेरी ने पहली बार इस चोटी पर फतह हासिल की थी।
विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पर्वत कौन है?सही उत्तर K2 है। K2 दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची चोटी (28,251 फीट या 8,611 मीटर) माउंट एवरेस्ट के बाद दूसरी है। इसे माउंट गॉडविन ऑस्टेन के नाम से भी जाना जाता है।
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