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इस पृष्ठ में व्यक्तित्व के निर्धारक तत्त्व एवं सिद्धान्त, Vyaktitva Nirdharan के तत्त्व एवं सिद्धान्त, विधियाँ के बारे में विस्तार से बताएँगे। आप आप इस लेख के माध्यम से अपना नोट्स या फिर परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं।
व्यक्तित्व के निर्धारक तत्त्व एवं सिद्धान्तTraits and Theories of Personalityव्यक्ति का बाह्य आचरण उसकी जन्मजात तथा अर्जित वृत्तियाँ, उसकी आदतें और स्थायी भाव, उसके आदर्श और जीवन के मूल्य ,ये सभी मिलकर एक ऐसे प्रमुख स्थायी भाव (Master sention) या ‘आदर्श-स्व‘ (Ideal-self) को जन्म देते हैं, जो मानव के व्यक्तित्व का प्रमुख आधार है। इस प्रकार ‘स्व‘ से जुड़े तत्त्व (Traits) या लक्षण इस प्रकार हैं-(1) शारीरिक
तत्त्व (Physical traits)। (2) वंशानुक्रम (Heredity)। (3) वातावरण (Environment)। (4) सांवेगिक तत्त्व (Emotional traits)। (5) लिंग (Sex)। (6) मानसिक तत्त्व (Mental traits)। (7) संस्कृति (Culture)। (8) 1. शारीरिक तत्त्व (Physical traits)इसके अन्तर्गत व्यक्ति का रंग-रूप, भार शारीरिक सौष्ठव तथा वाणी एवं स्वर आदि आते हैं। 2. वंशानुक्रम (Heredity)बालक वंशानुक्रम से ही- (1) सामान्य प्रवृत्तियाँ, (2) मूल प्रवृत्तियाँ, (3) संवेग, (4) बुद्धि, (5) कार्यक्षमता, (6) स्नायुमण्डल, (7) प्रतिक्षेप और चालक तथा (8) आन्तरिक स्वभाव आदि को प्राप्त करता है और दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करता है। 3. वातावरण (Environment)मनुष्य के व्यक्तित्व पर वातावरण का जो प्रभाव पड़ता है, उसके सम्बन्ध में ऑगबर्न (Ogburn) तथा निमकॉफ (Nimkoff) ने कहा है.- “व्यक्तित्व को प्रभावित करने में प्राकृतिक (भौतिक) वातावरण की उपेक्षा नहीं की जा सकती।“ वातावरण भी निम्न प्रकार का होता है- (1) पारिवारिक वातावरण, (2) पास-पड़ोस का वातावरण, (3) मैत्रिक मण्डली का वातावरण तथा (4) विद्यालय का वातावरण। 4. सांवेगिक तत्त्व (Emotional traits)संवेगों का भी मनुष्य के व्यक्तित्व पर बहुत प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति के बाह्य वातावरण तथा अन्तर्मुखी ग्रन्थियों का भी सांवेगिक तत्त्वों पर प्रभाव पड़ता है। एक मिलनसार, हँसमुख एवं साहसी व्यक्ति दूसरों पर शीघ्र ही प्रभाव जमा लेता है, परन्तु चिड़चिड़ा तथा उदास मन वाला व्यक्ति कम ही प्रभावित पर पाता है। 5. लिंग तत्त्व (Sex traits)पुरुष तथा स्त्री में बहुत अन्तर होता है। पुरुष साहसी, बाह्य जगत् मे रहने वाला एक निर्भय प्राणी होता है, जबकि स्त्री भीरू, लज्जाशील तथा बाह्य जगत् के सामने न आने वाली होती है। इसी कारण वह कठिनाइयों से नहीं जूझ पाती। 6. मानसिक तत्त्व (Mental traits)मानसिक तत्त्वों में “बुद्धि, कल्पना, तर्कशक्ति, प्रत्यक्षीकरण, निर्णयशक्ति तथा स्मृति” आदि महत्वपूर्ण निर्णयशक्ति तथा स्मृति आदि महत्त्वपूर्ण तत्त्व आते हैं। बुद्धि सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है और उसका प्रयोग प्रत्येक स्तर पर एवं प्रत्येक कार्य में होता है। 7. सांस्कृतिक तत्त्व (Cultural traits)संस्कृति संस्कारों का समूह है। ये पूर्वजों से प्राप्त होती है और पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। इसके अन्तर्गत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी गयी समस्त जातियाँ आ जाती हैं, जो एक पीढ़ी से लेकर अन्य समस्त पीढ़ियों में संस्कार डालती जाती हैं। व्यक्तित्व के निर्माण में संस्कारों का बड़ा हाथ होता है। मनोविश्लेषक युंग ने सामूहिक अज्ञात मन में जातीय गुणों या पूर्वजों से प्राप्त गुणों को माना है। इस प्रकार व्यक्ति के व्यक्तित्व में उसकी जातीय संस्कृति (Raciaculture) होती है। 8. समाजीकरण (Socialization)मनुष्य के व्यक्तित्व पर समाज का प्रभाव पड़ता है। मनुष्य को सामाजिक होना चाहिये। अत: समाजीकरण के कारण व्यक्तित्व प्रभावित होता है। व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्त्वों (कारकों) में मनोवैज्ञानिक कारक भी सम्मिलित किये गये हैं। इन कारकों में अभिप्रेरणा, चरित्र, बौद्धिक क्षमताएँ, रुचियाँ, अभिवृत्तियाँ आदि सम्मिलित हैं, जो कि व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहाँ शिक्षक का यह दायित्व हो जाता है कि वह व्यक्तित्व के इन उपर्युक्त कारकों को नियन्त्रित करे। व्यक्तित्व निर्धारण की विधियाँMethods of Personality Assessmentमानव विकास के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व का निर्धारण करना एक समस्या रही है। प्रत्येक देश की संस्कृति ने विभिन्न साधनों के द्वारा व्यक्तित्व मापन में रुचि दिखलायी है। आज कपाल विद्या (Phemology), मुख के लक्षण (Physiognimy), आकार के आधार पर (Graphology) और हस्तरेखा (Palmistry) आदि साधनों के द्वारा मानव व्यक्तित्व को मापा जा रहा है। वर्तमान समय में सम्पूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन आवश्यक नहीं माना जाता है, बल्कि किसी प्रयोजन हेतु व्यक्तित्व का मापन आवश्यक होता है; उदाहरण के तौर पर कर्मचारी वर्ग के मनोविज्ञानी (Personal psychologists) ऐसे व्यक्तित्व के गुण अच्छे विक्रेता बनने में सहायता करते हैं। फलत: व्यक्तित्व निर्धारण की विभिन्न विधियाँ अलग-अलग प्रयोजनों में प्रयोग की जाती हैं। व्यक्तित्व के निर्धारण को दो प्रकार की विधियों में बाँटा जा सकता है-
प्रक्षेपण विधियाँ (Projective methods)प्रक्षेपण विधि में परीक्षण विषयी के प्रत्यक्ष व्यवहार, विशिष्ट व्यवहार या अनुभवों के बारे में नहीं जानना चाहता। वह विषयी से कलात्मक ढंग से व्यवहार करने का अनुरोध करता है। उदाहरण के तौर पर, वह उसे किसी चित्र को दिखाकर उस पर कहानी लिखने को कहता है। इसमें विषयी अपनी दबी हुई इच्छाओं, प्रेरणाओं, संवेगों आदि का प्रकटीकरण आसानी से कर देता है। अत: ‘थार्पे तथा स्मूलर‘ ने लिखा है- “प्रक्षेपण विधि उद्दीपकों के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रियाओं के आधार पर उसके व्यक्तित्व के स्वरूप का वर्णन करने का साधन है।“
इन विधियों के माध्यम से विषयी अपने प्रतिचारों को आन्तरिक लक्षणों, भावदशाओं, अभिवृत्तियों एवं हवाई कल्पनाओं में पिरोकर कहानी के रूप में प्रकट करता है। इनके आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन आसानी से कर लिया जाता है। प्रक्षेपण विधि की विशेषताएँप्रक्षेपण विधियों की विशेषताओं को ‘एंडू‘ ने निम्न चार भागों में बाँटा है-
प्रक्षेपण परीक्षण के प्रकारवर्तमान समय में विभिन्न प्रकार के प्रक्षेपण परीक्षण मिलते हैं, किन्तु हम उनमें से कुछ परीक्षणों का ही वर्णन करेंगे, जो निम्न हैं- 1. रोशार्क परीक्षण (Rorschach Test) या स्याही-धब्बा परीक्षणइस परीक्षण का निर्माण मन: चिकित्सक हरमन रोशार्क ने किया था। ये स्विजरलैंड के रहने वाले थे। इस परीक्षण को ‘स्याही-धब्बा‘ परीक्षण के नाम से पुकारते हैं। इसमें दस स्याही के धब्बों का प्रयोग किया जाता है। ये सभी धब्बे कार्डों पर बने होते हैं। पाँच धब्बे काले रंग, तथा घूसर रंग के दो धब्बे, काले तथा लाल रंग के तीन धब्बे पूर्वरूपेण रंगदार होते हैं। ये सभी धब्बे ‘रचना रहित’ होते हैं। ‘रचना रहित‘ से तात्पर्य यह है कि उनसे स्पष्ट तथा समाज द्वारा निर्धारित सार्थक वस्तुओं का निरूपण नहीं परीक्षण विधि (Test procedure)इस परीक्षण को शान्त पर्यावरण में करना चाहिये। परीक्षार्थी के सामने एक-एक चित्र को प्रस्तुत किया जाता है। उससे पूछा जाता है, यह क्या हो सकता है?” अथवा “यह आपको किस-किस की स्मृति दिलाता है?” जब विषयी सम्पूर्ण कार्डों के प्रति अपने विचार प्रस्तुत कर देता है तो उससे पुन: देखकर अपने विचारों को विस्तार के साथ वर्णन करने को कहा जाता है। परीक्षण का कोई समय निश्चित नहीं होता। परीक्षार्थी की सभी अनुक्रियाओं को ज्यों का त्यों एकत्रित कर लिया जाता है। परीक्षण का मूल्यांकनपरीक्षण का मूल्यांकन निम्न तीन आधारों पर किया जाता है- 1. स्थान निर्धारण (Location)स्थान निर्धारण से तात्पर्य धब्बे में देखी हुई वस्तु के स्थान के निर्धारण से होता है। इसमें अनुक्रिया का निर्धारण निम्नलिखित आधार करतेहैं – सम्पूर्ण धब्बे पर अनुक्रिया आधारित = W; विस्तृत सामान्य सूचनाओं पर आधारित = D; सामान्य सूचनाओं के प्रति आधारित = Dd 2. निर्धारक (Determinats)इसमें उद्दीपक विशेषता के प्रकारों पर बल दिया जाता है। इसमें धब्बे का रूप (Form), छाया (Shading), गति (Speed) आदि का मूल्यांकन किया जाता है। इसमें स्पष्ट किया जाता है कि अनुक्रिया का आधार, रूप, छाया, गति आदि में से क्या है? 3. विषय-वस्त (Contents)इससे अभिप्राय यह है कि अनक्रिया मनुष्य, पौधे, पशु आदि में से किस पर निर्भर है? मानवीय – H, या मानव का कोई भाग – Hd या पशु इत्यादि। निष्कर्ष– मौर्गन के अनुसार उपर्युक्त प्रकार से अनुक्रिया करने पर परीक्षक व्यक्तित्व सम्बन्धी कुछ लक्षणों का पता निम्न संकेतों के द्वारा करता है-
उपर्युक्त विवरण के आधार पर परीक्षार्थी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। फिर भी परीक्षण के समय संवेगात्मक स्थिति एवं उसके कथन भी अपना प्रभाव डालते हैं। इसका प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यह एक प्रकार से विषयी का एक्स-रे प्रस्तुत करता है। इस प्रकार से व्यक्ति से व्यक्ति के अन्तर को स्पष्ट करना इसका मुख्य कार्य होता है। 2. विषय सम्प्रत्यक्ष परीक्षण (Thermatic Apperception Test: TAT)इस परीक्षण को संक्षेप में T.A.T. के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण सन् 1935 में ‘मरे तथा मॉर्गन‘ ने किया था। इस परीक्षण का प्रयोग उतना ही प्रसिद्ध है, जितना कि रोशार्क परीक्षण। इसमें विभिन्न चित्रों का प्रयोग किया जाता है। इसमें कुल 30 चित्र कार्डों का प्रयोग किया जाता है। ये चित्र एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। इनमें सिर्फ एक कार्ड ऐसा होता है, जिस पर कोई भी चित्र नहीं बना होता। इन कार्डों का प्रयोग परीक्षार्थी की आयु और लिंग के आधार पर किया जाता है। पूरे परीक्षण में सिर्फ 20 चित्रों का प्रयोग किया जाता है। पूरा परीक्षण दो भागों में बाँटकर प्रस्तुत किया जाता है। प्रत्येक कार्ड के पीछे संकेत लिखे होते हैं ताकि उनका प्रयोग सही रूप से किया जा सके; जैसे-BM= Boys and Men; GF = Girls and Females। परीक्षण की विधिपरीक्षण देते समय परीक्षार्थी से कह दिया जाता है कि यह चित्र काल्पनिक है। उसको एक-एक चित्र दिखाया जाता है। प्रत्येक चित्र पर एक कहानी लिखने को कहा जाता है। इस कहानी का आधार-घटना, पात्र, विचार, भाव-भंगिमाएँ और परिणाम आदि को रखकर रचना करनी होती है। कभी-कभी वह स्वयं बोलता जाता है और परीक्षक लिखता रहता है और कभी परीक्षार्थी स्वयं लिखता है। समय का कोई भी बन्धन नहीं होता। परीक्षण का मूल्यांकन (Evaluation of Test)जब परीक्षार्थी अपने सभी चित्रों पर कहानी लिख देता है तो उसका विश्लेषण किया जाता है। इसमें अभिप्रेरणात्मक संरचना की जानकारी आवश्यक होती है। कहानी में प्रयुक्त समस्त विषयों (Themes) का विश्लेषण किया जाता है। ये विषय परीक्षार्थी की आन्तरिक कल्पनाओं (Innermost fantasies) के प्रक्षेपण के रूप में प्रकट होते हैं। इनमें परीक्षार्थी को मृत्यु, माता का प्यार, स्नेह की आवश्यकता आदि विजय प्रतीत होते रहते हैं। अत: परीक्षक इस परीक्षण के द्वारा आन्तरिक भावों के प्रक्षेपण पर बल देता है ताकि वह असामान्य प्रभावों का पता लगा सके। निष्कर्ष– विषय सम्प्रत्यक्ष परीक्षण के द्वारा हम विषयी की अचेतन स्थिति का सही मूल्यांकन करने में समर्थ होते हैं। इस स्थिति को समझने के पश्चात् परीक्षक विषयी के व्यक्तित्व सामान्य बनाने में समर्थ होता है। इस परीक्षण में दोष भी हैं, लेकिन इसकी उपयोगिता इतनी सफल हो रही है कि हम दोषों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने में असफल रहते हैं। अत: व्यक्ति की चालनाएँ, आवश्यकताएँ, संघर्ष, ग्रन्थियों तथा कल्पना आदि के प्रभाव को विषय के सम्प्रत्यक्ष परीक्षण के माध्यम से ही जाना जा सकता है। अन्य किसी से नहीं। 3. शब्द साहचर्य परीक्षण (Word Association Test: WAT)यह विधि व्यक्तित्व निर्धारण की पुरानी विधि है और वर्तमान समय में इसको प्रक्षेपण प्रविधि माना जाता है। इसमें उद्दीपक एवं अनुक्रिया के सम्बन्ध का मूल्यांकन किया जाता है। फिर अनुक्रिया का विश्लेषण करके व्यक्तित्व को असामान्यताओं का पता लगाया जाता है। परीक्षण की विधि (Test procedure)विषयी को सामने बैठाकर एक-एक शब्द को बोला जाता है और विषयी शब्द को सुनकर फौरन एक शब्द बोलता है। उस उत्तर को नोट कर दिया जाता है। युंग ने 100 शब्दों की सूची का प्रयोग व्यक्तित्व के अन्दर ग्रन्थियों का पता लगाने के लिये किया। यह विधि ‘माल्टन‘ शब्द साहचर्य पर आधारित है। उद्दीपक शब्द एवं प्रतिक्रिया शब्द दोनों के समय को नोट किया गया। इसको प्रतिक्रिया काल के नाम से जाना जाता है। परीक्षण देने के पश्चात् उसका पुनरुत्पादन कराया जाता है, जिसमें विषयीको मौलिक अनुक्रियाओं को करने को कहा जाता है। युंग को पता चला कि विषयी कुछ उद्दीपकों की प्रतिक्रियाएँ शीघ्र प्रकट कर देता था और कुछ में समय अधिक लेता था और कुछ को नहीं करता था। युंग ने यह निष्कर्ष निकाला कि उपर्युक्त प्रतिचार न करने का कारण आन्तरिक संघर्ष मात्र है। युंग ने अनुक्रियाओं के रूपों को प्रकट किया है- उद्दीपक शब्द को पुनरावृत्ति, असंगत अनुक्रिया करना, उद्दीपक शब्द को गलत समझना, वाक्य बोलना, हँसना, हाँफना, अधीर होना और अर्थहीन शब्द बोलना आदि। निष्कर्ष– यह विधि अनेक प्रकार की अचेतनात्मक ग्रन्थियों की सार्थकता तथा स्वरूप पर प्रकाश डालने के लिये उपयोग में लायी जाती है। इसके द्वारा चिन्ताओं का स्रोत तथा महत्त्वपूर्ण अभिवृत्तियों का आसानी से पता लग जाता है। अप्रक्षेपित विधियाँ (Non-Projective methods)अप्रक्षेपित विधियों को दो भागों में बाँटकर अध्ययन किया जा सकता है- 1. आत्मनिष्ठ विधियाँइन विधियों के माध्यम से हम व्यक्ति सम्बन्धी सूचना उसी व्यक्ति से या उसके मित्रों अथवा सम्बन्धियों से प्राप्त कर लेते हैं। इन विधियों का आधार उसके लक्षण, अनुभव, उद्देश्य,आवश्यकता, रुचियाँ और अभिवृत्तियाँ आदि होती है। वह इनके माध्यम से सभी सूचनाएँ देता है। इसके अन्तर्गत निम्न विधियाँ सम्मिलित है- (i) आत्मकथा (Autobiography)इस विधि के द्वारा अध्ययन किये जाने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व के गुणों को कुछ प्रमुख शीषकों में बाँट दिया जाता है। जिनके द्वारा वह अपने अनुभवों उद्देश्यों, प्रयोजनों, रुचिों और अभिवृत्तियों का विवरण के आधार पर निश्चित मनोवैज्ञानिक निष्कर्ष निकालता है। आत्मकथा विधि में निम्न कठिनाइयाँ हैं-
(ii) व्यक्ति-वृत्ति व्यक्ति इतिहास (Case history)इस विधि के अन्तर्गत हम वंशानुक्रमीय एवं वातावरण सम्बन्धी तत्त्वों का अध्ययन करते हैं, जो व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं। यह विधि मुख्य तौर पर आत्मकथा पर निर्भर होती है। इसमें विषयी के द्वारा बताये गये वृतान्त के अतिरिक्त परिवार, इतिहास, आय, चिकित्सा पद्धति, पर्यावरण एवं सामाजिक स्थिति आदि से भी सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। यह विधि प्राय: असामान्य व्यक्तियों के अध्ययन में प्रयुक्त की जाती है। सामाजिक कार्यकर्ता तथा मन:चिकित्सक भी इस विधि का उपयोग करते हैं। (iii) साक्षात्कार विधि (Interview Method)व्यक्तित्व के अध्ययन के लिये साक्षात्कार एक महत्त्वपूर्ण क्रियाविधि है। इसमें साक्षात्कारकर्ता विषयी के आमने-सामने बैठकर बातचीत करते हैं। इसमें साक्षात्कार लेने वाले मनोविज्ञानी विषय के प्रेरकों, अभिवृत्तियों तथा लक्षणों का मूल्यांकन करते हैं। साक्षात्कारकर्त्ता में विषय को प्रभावित, सम्मोहित एवं गुमराह करके उसकी वास्तविकता का पता लगाने का गुण होना चाहिये। साक्षात्कार का प्रयोग विभिन्न प्रकार से होता है।
इसके अन्तर्गत मनोवैज्ञानिक अनेक बातों पर ध्यान देता है; जैसे-विचारों का प्रकटीकरण, अन्य लोगों के बारे (iv) सूची विधि या प्रश्नावली विधि (Inventory method or questionnaire method)यह विधि व्यक्तित्व निर्धारण में सबसे अधिक उपयोग की जाती है। इसमें विषयी के सामने एक प्रश्नावली प्रस्तुत की जाती है, जिसमें 100 प्रश्नों से लेकर 500 प्रश्नों तक होते हैं। इनके उत्तर ‘हाँ’ अथवा नहीं’ से सम्बन्धित रहते हैं। थर्स्टन ने अपनी न्यूराटिक प्रश्नावली में निम्नलिखित प्रश्न पूछे थे-
विषयी प्रश्नावली को पढ़ता जाता है और अपने उत्तरों को स्पष्ट करता जाता है। इनका प्रयोग व्यक्तिगत एवं सामूहिक दो ही रूपों से किया जा सकता है। 2. वस्तुनिष्ठ विधियाँ (Objective methods)वस्तुनिष्ठ विधियाँ इस बात पर निर्भर नहीं हैं कि विषयी अपने बारे में क्या बतलाता है बल्कि वे इस बात पर आश्रित हैं कि उसका प्रत्यक्ष व्यवहार अवलोकनकर्ता को कैसा लगता है? ये विधियाँ भी बुद्धि रुचि एवं अभिरुचि को आधार मानकर क्रियाशील होती हैं। वस्तुनिष्ठ विधियों के प्रतिपादकों का विचार है कि व्यक्तित्व को समझने के लिये यह आवश्यक है कि विषयी को जीवन के पर्यावरण में रखकर देखा जाय ताकि उसकी आदतें, लक्षण, माँग और अन्य चारित्रिक विशेषताएँ प्रकट हो सकें। वस्तुनिष्ठ विधियों के प्रयोग के विभिन्न तरीके हैं। जिनमें से हम यहाँ पर निम्न प्रविधियों को प्रस्तुत कर रहे हैं- प्रमुख वस्तुनिष्ठ विधियाँ(i) नियन्त्रित-निरीक्षण (Controlled observation)‘हार्टशोन‘ तथा ‘मे‘ ने चरित्र सम्बन्धी अध्ययन के लिये वस्तुनिष्ठ विधियों को विकसित किया और उनके निष्कर्ष सन 1928, 1929 तथा 1930 में प्रकाशित हुए। इनमें आपने
ईमानदारी, चोरी,असत्य बोलना, आत्म-नियन्त्रण नियन्त्रित निरीक्षण विधि का प्रयोग मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला में ही सम्भव है क्योंकि पर्यावरण एवं विषयी को नियन्त्रण में लेकर कार्य करना कठिन है। विषयी को कमरे में अकेला बिठा दिया जाता है। उसको कोई कार्य करने के लिये दे दिया जाता है। इसके पश्चात् उसकी क्रियाओं, हावभाव और प्रक्रिया आदि का अवलोकन इस रूप में किया जाता है कि विषयी, निरीक्षणकर्ता को न देख सके और निरीक्षणकर्ता उसको देखता रहे। इसके लिये शीशे का पर्दा या लकड़ी का छेदों वाला पर्दा आदि को प्रयोग में लाते हैं। वर्तमान समय में विषय के व्यवहार को चलचित्र के माध्यम से भी नोट किया जाता है। इस प्रकार धीती गति से चलचित्र का अवलोकन करके उसकी प्रत्येक गतिविधिका पता लग जाता है। इस प्रकार से सम्पूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। (ii) क्रम-निर्धारण मापनी (Ratting scale)प्रत्येक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के बारे में राय का निर्धारण करता है। हम मित्रों का चुनाव करते हैं, मालिक एक कर्मचारी का चुनाव करता है, न्यायाधीश एक अपराधी को दण्ड देने के लिये दोष का निर्धारण करता है। अत: क्रम निर्धारण मापनी में गुणात्मक व्यवहार का अवलोकन किया जाता है। डॉ.शर्मा ने लिखा है- “क्रम-निर्धारण मापनी एक विधि है, जिसके द्वारा क्रम-निर्धारण मापनी के आधार पर गुणों के अनुरूप किसी व्यक्ति के विषय में अपना निर्णय रिकॉर्ड किया जाता सकता है।” इस सन्दर्भ में ग्राफिक क्रम-निर्धारण मापनी (Graphic Ratting Scale) का प्रयोग सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसमें एक लम्बी रेखा के नीचे खण्डशः कुछ विवरणात्मक विशेषण या वाक्यांश लिखे रहते हैं। इसके एक सिरे पर वाक्यांश की चरम सीमा होती है और दूसरे पर विपरीत गुणों की चरम सीमा होती है। क्रम-निर्धारक मापनी पर लक्षणों को चिह्नित कर देते है, जिससे यह पता लग जाता है कि अमुक व्यक्ति में वह गुण किस सीमा तक मिलता है? जैसे– प्रश्न- आप तथा अन्य लोग उसके व्यवहार से किस प्रकार प्रभावित है?उपर्युक्त प्रश्न का उत्तर क्रम-निर्धारण मापनी में लिखे पाँच व्यावहारिक मतों में से किसी एक पर निशान लगाना होता है। इसी प्रकार से विभिन्न सम्बन्धित प्रश्नों के निशान लगाये जाते हैं। इस प्रकार से व्यक्तित्व का मापन क्षेत्र विशेष में कर लिया जाता है।
कौनसा व्यक्तित्व का निर्धारण नहीं है?आत्म और व्यक्तित्व, ये दोनों ही संप्रत्यय घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। वास्तव में आत्म व्यक्तित्व के मूल रूप में स्थित होता है। बाल्यावस्था से ही आपने इस बारे में कि आप कौन हैं और आप किस प्रकार दूसरों से भिन्न है, पर्याप्त मात्रा में विचार किया होगा।
व्यक्तित्व के निर्धारक कौन कौन से हैं?अनुक्रम. 2.1 जैविक निर्धारक 2.1.1 आनुवांशिकता 2.1.2 शारीरिक गठन और स्वास्थ्य 2.1.3 अंतःस्रावी ग्रंथियाँ 2.1.4 शारीरिक रसायन. 2.2 पर्यावरण सम्बन्धी निर्धारक 2.2.1 प्राकृतिक निर्धारक 2.2.2 सामाजिक निर्धारक 2.2.2.1 परिवार या घर का प्रभाव 2.2.2.2 विद्यालय का प्रभाव 2.2.2.3 समाज का प्रभाव 2.2.3 सांस्कृतिक निर्धारक. व्यक्तित्व के निर्धारक में कितने तत्व होते हैं?व्यक्तित्व विकास के निर्धारक — Vikaspedia.
व्यक्तित्व के जैविक निर्धारक क्या है?जैविक कारक: एक व्यक्ति की शारीरिक विशेषताओं, विरासत में मिली बीमारियों, स्वभाव स्तर, आनुवंशिकता के साथ-साथ मस्तिष्क की भूमिका जैविक कारक बनाती है।
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