कार्नेलिया का गीत के रचनाकार कौन है? - kaarneliya ka geet ke rachanaakaar kaun hai?

जयशंकर प्रसाद

देश भक्ति से परिपूर्ण कविता सुनें-

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” को चरितार्थ करते विश्व के सबसे सुन्दर राष्ट्र का सबसे अद्भुत चित्रण, जो महाकवि जयशंकर प्रसाद अपने नाटक- ‘चंद्रगुप्त’ में सम्राट चन्द्रगुप्त की पत्नी कार्नेलिया के माध्यम से कर रहे हैं। सुनें और इसकी सुंदरता में अपनी और से रंग भरें।

जयशंकर प्रसाद(1889-1937) का जन्म काशी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) के एक प्रतिष्टित वैश्य परिवार में हुआ था , इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी थे! जो कि तम्बाखू के एक प्रशिद्ध व्यापारी थे, इनके बाल्यावस्था में ही इनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई तथा पिता की मृत्यु हो जाने के कारण इनका अध्ययनशील जीवन काफी प्रभावित हुआ और इनकी ज्यादातर शिक्षा घर पर ही संपन्न हुयी, घर पर ही इन्होने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी भाषाओ का गहन अध्ययन किया! ये बड़े सरल एवं मिलनसार स्वभाव के व्यक्ति थे, अपने सरल स्वभाव उदार प्रकृति एवं दानशीलता के वजह से ये बहुत ऋणी हो गये, इन्होंने अपने पारिवारिक व्यवसाय की तरफ थोड़ा सा भी ध्यान नहीं दिया जिसके कारण इनका व्यवसाय भी बहुत प्रभावित हुआ!
कवि जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवियों में से एक हैं। बचपन से ही इनकी रूचि काव्य में थी, जो समय के साथ आगे बढ़ती गई, आरंभ में इन्होंने ब्रजभाषा में रचनाएँ लिखीं पर बाद में खड़ी बोली की ओर आकर्षित हुए। 1918 में ’चित्राधार’ नाम से इनका प्रथम काव्य-संग्रह प्रकाशित हुआ। प्रसाद की कविताओं में प्रेम-सौन्दर्य, प्रकृति-चित्रण और राष्ट्रीय चेतना की सफल अभिव्यक्ति हुई है।
प्रसाद ने आठ ऐतिहासिक, तीन पौराणिक और दो भावात्मक, कुल 13 नाटकों की सर्जना की। चंद्रगुप्त, अजातशत्रु, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जन्मेजय का नाग यज्ञ आदि प्रमुख हैं।
प्रसाद की प्रमुख काव्य रचनाएँ – आँसू, लहर, कामायनी, झरना आदि।
ये अपने मृदुल स्वभाव के वजह से पुरस्कार के रूप में मिलने वाली राशि नहीं लेते थे, जिससे इनका सम्पूर्ण जीवन दु:खो में बिता और सन 1937 ई० को अल्पावस्था में ही क्षयरोग के कारण इनकी मृत्यु हो गई !

कार्नेलिया का गीत के रचनाकार कौन है? - kaarneliya ka geet ke rachanaakaar kaun hai?

कार्नेलिया का गीत

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।
——
शब्दार्थ :
अरुण = लालिमा युक्त (उषा की लाली का प्रतीक है)
मधुमय = मिठस से भरा हुआ
क्षितिज = जहां धरती और आकाश एक साथ मिलते हुए दिखाई देते हैं
तामरस = तांबे जैसा लाल रंग, लाल कमल
विभा गर्भ = सांझ
तरु-शिखा = वृक्षों की चोटियां
कुंकुम = केसर
सुरधनु= देवताओं के धनुष, इंद्रधनुष
मलय समीर = दक्षिणी वायु, मलय पर्वत की ओर से आने वाली सुगंधित हवा
नीड़ = घोंसला
हेम कुंभ = सोने का घड़ा
मदिर = मस्ती पैदा करने वाला, नशे में, मतवाले
रजनी = रात्रि


पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर-
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को, मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर -नाच रही तरु-शिखा मनोहर,
छिटका जीवन-हरियाली पर – मंगल-कुंकुम सारा।
(i) प्रस्तुत गीत किस पुस्तक से लिया गया है और इसे किसने गाया है ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उ० – प्रस्तुत गीत जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्‌ध नाटक ” चंद्रगुप्त” से लिया गया है और इसे नाटक की नायिका कार्नेलिया ने गाया है जो सिकन्दर के प्रधान सेनापति सेल्यूकस की कन्या है। कार्नेलिया यूनानी सेना के साथ भारत भ्रमण करने आती है और वह भारत के अद्‌भुत प्राकृतिक सौन्दर्य तथा भारतीयों की सहृदयता देखकर मुग्ध हो जाती है। कार्नेलिया का विवाह मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य से हुआ था।प्रश्न
(ii) यहाँ किस देश के बारे में कहा जा रहा है ? कहने वाले का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उ० – प्रस्तुत पद्‌यांश में भारत देश के विषय में कहा जा रहा है। कहने वाली यूनानी शासक सेल्यूकस की पुत्री कार्नेलिया है जो मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त से प्रेम करती है और उसका विवाह चंद्रगुप्त से हो जाता है। भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य और सांस्कृतिक वैभव से प्रसन्न होकर कार्नेलिया भारत को अपना देश मानने लगती है। देश-प्रेम के इस गीत में प्रसाद ने एक विदेशिनी के माध्यम से भारत-भूमि की प्रशंसा की है।
(iii) अरुण शब्द की व्याख्या करते हुए बताइए कि कवि ने इसे मधुमय देश क्यों कहा है?
उ०- अरुण शब्द का शाब्दिक अर्थ है – लाल रंग या सूर्योदय-सूर्यास्त की लालिमा। कवि ने ग्रीस राजकुमारी कार्नेलिया के माध्यम से यह कहना चाहा है कि सूर्योदय के समय की लालिमा भारतवर्ष की समृद्‌धि, प्रेम, ज्ञान और सभ्यता का प्रतीक है क्योंकि भारतभूमि पर सर्वप्रथम ज्ञान और सभ्यता रूपी सूर्य का उदय हुआ है। कवि ने भारतभूमि को मधुमय की संज्ञा दी है क्योंकि भारतवासियों के हृदय में सभी के लिए अनुराग, प्रेम, अपनत्व और मिठास की भावना भरी हुई है।
(iv) ” जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा” – कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उ०- क्षितिज का शाब्दिक अर्थ है – वह काल्पनिक स्थान जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए से प्रतीत हों। कवि कहना चाहते हैं कि भारत एक विशाल देश है जहाँ दुनिया भर के अपरिचित और अनजान लोगों को भी आश्रय प्राप्त होता है। अर्थात भारतवासी अतिथियों, शरणार्थियों आदि सभी को आदर-सम्मान के साथ आश्रय देने में तत्पर रहते हैं। कार्नेलिया को भी इस देश में अपनत्व और स्नेह की प्राप्ति होती है और यह देश अनजान नहीं बल्कि अपना-सा प्रतीत होने लगता है।
(v) “छिटका जीवन-हरियाली पर – मंगल-कुंकुम सारा” – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उ०- कवि ने प्रात:कालीन सूर्य की लालिमा की तुलना लाल रस परिपूर्ण कमल फूल के भीतरी भाग (गर्भ) की चटकदार लाल रंग से की है। सूर्य की किरणों की लालिमा वृक्षों की शिखाओं (ऊँची शाखाओं) पर फैली हुई है और वृक्ष प्रात:कालीन वायु के मन्द झोकों में मदमस्त होकर झूमते हुए से प्रतीत होते हैं। यह प्राकृतिक सौन्दर्य देखकर कार्नेलिया मंगलमय प्रभात जा अनुभव कर उल्लास से भर उठती है।
(vi) पद्यांश में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उ० – प्रस्तुत पद्‌यांश में कवि ने भारत देश की संस्कृति तथा प्राकृतिक सौन्दर्य की प्रशंसा की है। कवि कहते हैं कि भारत-भूमि ही वह पावन भूमि है जहाँ सर्वप्रथम ज्ञान और सभ्यता का सूर्य उदित हुआ। यह देश मधुरता से भरा है, यहाँ के लोगों के दिलों में सबके लिए अपनापन तथा प्रेम का भाव भरा हुआ है। भारत में प्रात:कालीन दृश्य अत्यंत मनोहर होता है कि ऐसा लगता है मानों वृक्षों की चोटियों पर सरस कमल के गर्भ जैसी लालिमा नृत्य कर रही हो। सारी हरी-भरी भूमि पर लाल किरणें इस प्रकार दिखाई देती हैं मानों चारों ओर धरती पर मंगलकारी कुंकुम बिखेर दिया हो। जीवन की समृद्‌धि पर गुलाल छिटका दिया गया हो।
(vii) शब्दार्थ लिखिए – मधुमय, अरुण, मंगल, विभा।
उ० – मधुमय – मधुरता से भरा हुआ
अरुण – लाल रंग, यह लाल रंग उषा की लाली का रूप है
मंगल – शुभ
विभा – चमक, प्रकाश।

(2)
लघु सुरधनु से पंख पसारे – शीतल मलय – समीर सहारे
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये – समझ नीड़ निज प्यारा।
बरसाती आँखों के बादल – बनते जहाँ भरे करुणा जल,
लहरें टकरातीं अनंत की – पाकर जहाँ किनारा।
(i)‘शीतल मलय – समीर सहारे’ कौन और क्यों भारत आते हैं?
उ०- भारत के दक्षिण में मलय पर्वत है जहाँ चंदनवन है। कवि पक्षियों का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भारतभूमि उन्हें अपना घर (घोंसला) सा प्रतीत होता है जिसके फलस्वरूप वे सतरंगी रूप-रंग वाले पंखों को फैलाए मलय पर्वत के निकट स्थिति चंदनवनों में बहने वाली सुगंधित वायु के सहारे उड़ते हुए भारतभूमि की ओर चले आते हैं। उन्हें लगता है कि यह पावन-भूमि उनका अपना नीड़ है।
(ii) कवि ने बादलों के विषय में क्या बताया है तथा उसकी तुलना किससे की है? समझाकर लिखिए ।
उ०- कवि ने बादलों की तुलना भारतवासियों के सहृदय से की है जिनमें सम्पूर्ण दुनिया के मनुष्यों के लिए अपार प्रेम और करुणा का भाव भरा हुआ है। जिस प्रकार बादल में पानी भरा होता है और वह बारिश की बूँदों में तब्दील होकर सूखी धरती की प्यास बुझाता है ठीक उसी प्रकार भारतवासियों की आँखें दूसरों के लिए दया और करुणा से भरी होती हैं। इस करुणा रूपी जल से भरकर उनके हृदय रूपी बादल स्नेह और प्रेम-भाव से दूसरों के लिए उमड़ पड़ते हैं।
(iii) ’नीड’ और ’किनारा’ शब्दों का प्रयोग किस संदर्भ में हुआ है? यहाँ कवि किसके विषय में, क्या सिद्ध करना चाहता है ?
उ०- ’नीड़’ और ’किनारा’ शब्दों का प्रयोग प्रस्तुत गीत में पावन भारतभूमि के लिए किया गया है। कवि इन शब्दों के द्‌वारा यह सिद्‌ध करना चाहता है कि भारतवासियों की उदारता और स्नेह की भावना दूसरे देशों के मनुष्यों को ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों को भी अपनी ओर आकर्षित करती है और वे भारतभूमि को अपना घर (नीड़) मानते हैं। दुनिया-भर के दुखी, अशांत और पीड़ित मनुष्यों को भारतभूमि (किनारा) पर आकर ही ज्ञान, सभ्यता, योग, आध्यात्म आदि दर्शन की प्राप्ति होती है। उन्हें यहाँ पहुँचकर आनंद की प्राप्ति होती है।
(iv) प्रस्तुत गीत कहाँ से लिया गया है तथा इस गीत का मूलभाव क्या है?
उ०- प्रस्तुत गीत जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्‌ध नाटक ” चंद्रगुप्त” से लिया गया है और इसे नाटक की नायिका कार्नेलिया ने गाया है जो सिकन्दर के प्रधान सेनापति सेल्यूकस की कन्या है। प्रस्तुत गीत के द्‌वारा जयशंकर प्रसाद ने भारतभूमि के प्राकृतिक-सौन्दर्य, भारतवासियों की सहृदयता, स्नेह, प्रेम, करुणा और अपनत्व की भावना को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कवि का मानना है कि भारतभूमि में ही ज्ञान, योग, सभ्यता, आध्यात्म, दर्शन का जन्म हुआ है जिसने सम्पूर्ण विश्व को ज्ञान का आलोक प्रदान किया है।अत: यह गीत कवि के हृदय में विद्‌यमान राष्ट्रीयता की भावना का प्रस्फुटन है।

आज का कार्य-

  1. ‘हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे। मदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।’ का मूलभाव क्या है?
  2. सम्राट चन्द्रगुप्त कौन थे? उनकी कितनी पत्नियां थी? उन्होंने भारत के लिए क्या किया? और उनकी पत्नी कार्नेलिया की कहानी क्या था? वह भारत पर मुग्ध क्यों हुई? इन सब बातों की खोज करें।
  3. ‘तो क्या हुआ?’ विषय पर 150 शब्दों में रचनात्मक लेखन अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखेंगे। (रचनात्मक लेखन में लेखक को विषय की पूरी जानकारी होती है व उससे संबंधित तथ्यों को एकत्र करता है और उसको वह अपने शब्दों में लिखता है। वह उस विषय को कितनी रोचकता या नीरसता से लिखता है यह उसके लेखन पर निर्भर करेगा। कि पढ़ने वाले के सामने उन दृश्यों को जीवंत कर सकेगा या नहीं। रचनात्मक लेखन में एक ही विषय पर बहुत लोगों के विचार अलग-अलग होते है।)