These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 9 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 10 हरिवंशराय बच्चन (काव्य-खण्ड). विस्तृत उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. (पथ की पहचान) 1.
पुस्तकों में है नहीं ……………………………………………………………. पहचान कर ले। शब्दार्थ-बटोही = राहगीर। बाट = रास्ता । पंथी = पथिक। पंथ = मार्ग। सन्दर्भ-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन की कविता ‘पथ की पहचान’ से उद्धृत है। काव्यगत सौन्दर्य
2. यह बुरा है या कि ……………………………………………………………. पहचान कर ले। सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। प्रसंग – कवि बताता है कि विवेकपूर्वक किसी कार्य को चुन लेने पर उसके मार्ग में आनेवाली कठिनाइयों या अन्य कारणों से उसे अधूरा छोड़ देना ठीक नहीं है। व्याख्या – कवि कहता है कि विवेकपूर्ण कार्य का चुनाव करने के पश्चात् उसकी अच्छाई-बुराई पर सोचना व्यर्थ है-क्योंकि उस पथ को छोड़कर दूसरे पर चलना भी सम्भव नहीं हो सकेगा। कठिनाइयाँ तो हर मार्ग में होती हैं। इसलिए हे पंथी, अपने निश्चित कार्य को श्रेष्ठ समझकर उसे तुरन्त शुरू कर दे। यह कार्य करते समय तुझे आनन्द की अनुभूति होती रहेगी। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि कठिनाइयाँ तुझे ही उठानी पड़ रही हैं। (UPBoardSolutions.com) वास्तविकता यह है कि जीवन में जिसे भी सफलता मिली है, वह अपने कार्य को श्रेष्ठ समझता रहा है। इसलिए तुम भी अपने कार्य को श्रेष्ठ समझो। सोच-विचार करना है तो कार्य का चुनाव करने से पहले किया करो। काव्यगत सौन्दर्य
3. है
अनिश्चित किस ……………………………………………………………. पहचान कर ले। शब्दार्थ-सरिता = नदी गह्वर = गुफा। शर = बाण आन = प्रतिज्ञा। बाट = मार्ग। सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन’ द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। प्रसंग – इसमें कवि जीवन-पथ में आनेवाले सुख-दु:खों के प्रति सचेत करता हुआ मनुष्य को निरन्तर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे रहा है। व्याख्या – कवि कहता है कि हे जीवन-पथ के मुसाफिर ! यह नहीं बताया जा सकता है कि तेरे मार्ग में किस स्थान पर नदी, पर्वत और गुफाएँ मिलेंगी । तेरे मार्ग में कब कठिनाइयाँ और बाधाएँ आयेंगी, यह नहीं कहा जा सकता। यह भी नहीं कहा जा सकता कि तेरे जीवन के मार्ग में किस स्थान पर सुन्दर वन और उपवन मिलेंगे। तेरे जीवन में कब सुख-सुविधाएँ प्राप्त होंगी। यह भी निश्चित नहीं कहा जा सकता कि कब तेरी जीवन-यात्रा समाप्त होगी और कब तेरी मृत्यु होगी। कवि आगे कहता है कि यह बात भी अनिश्चित है कि मार्ग में कब तुझे फूल मिलेंगे और कब काँटे तुझे घायल करेंगे। तेरे जीवन में कब सुख प्राप्त होगा और कब दु:ख-यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि तेरे जीवन-मार्ग में कौन परिचित व्यक्ति (UPBoardSolutions.com) मिलेंगे और कौन प्रियजन अचानक तुझे छोड़ जायेंगे। हे पथिक! तू अपने मन में प्रण कर ले कि जीवन की कठिनाइयों की परवाह न करके तुझे आगे बढ़ते जाना है। काव्यगत सौन्दर्य
4. कौन कहता है ……………………………………………………………. कर ले। शब्दार्थ-यत्न = प्रयत्न, कोशिश। ध्येय = लक्ष्य निलय = घर, नीड़, घोंसला । मुग्ध होना = रीझना। सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। प्रसंग – यथास्थिति और मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा में क्या तालमेल होना चाहिए-इन पंक्तियों में इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया गया है। व्याख्या – हे पथिक! तुमसे ऐसा किसी ने नहीं कहा है कि तुम अपने मन में स्वप्नों अर्थात् मधुर कल्पनाओं को न लगाओ। सब लोगों की अपनी-अपनी स्वप्निल कल्पनाएँ होती हैं। अपनी-अपनी उम्र और अपने-अपने समय में सभी ने इन्हें देखा है और अपने मन में उन्हें जगह दी है। हे पथिक! तू प्रयत्न करने पर भी इसमें सफल नहीं हो सकता कि तेरी कल्पनाएँ। मन में न उठे। ये स्वप्न, ये कल्पनाएँ व्यर्थ नहीं होतीं, इनका भी अपना लक्ष्य या ध्येय होता है। ये स्वप्न जबे आँखों के नीड़ में उपजते हैं, तब उनका अपना ध्येय होता है, ये व्यर्थ नहीं जाते, (UPBoardSolutions.com) किन्तु स्वप्नों से यथार्थ को झुठलाया नहीं जा सकता। कारण यह है कि स्वप्न या कल्पनाएँ जीवन में बहुत कम हैं, उनके सामने यथार्थ सत्य अनगिनत हैं। सत्य का मुकाबला कल्पनाओं से मत करो। संसार के रास्ते में यदि स्वप्न दो हैं, तो सत्य दो-सौ अर्थात् कल्पनाएँ बहुत कम हैं, यथार्थ बहुत अधिक हैं। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि तुम कल्पनाओं पर ही मत रीझते रहो वरन् सत्य क्या है-इसका भी निर्धारण कर लो। हे पथिक! चलने से पहले अपने रास्ते की पहचान कर लो। काव्यगत सौन्दर्य ।
5. स्वप्न आता स्वर्ग का ……………………………………………………………. पहचान कर ले। शब्दार्थ-ललकती = लालायित होती है उन्मुक्त = स्वच्छन्द। दृग कोरकों = आँख के कोने । सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्यांश डॉ० हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘पथ की पहचान’ नामक शीर्षक कविता से लिया गया है जो उनकी ‘सतरंगिणी’ नामक काव्य पुस्तक से उद्धृत है। प्रसंग – इस पद में कवि पथिक को सम्बोधित करते हुए किसी भी मार्ग पर अग्रसर होने से पूर्व उसमें आनेवाली कठिनाइयों के प्रति आगाह कर देना चाहता है। कोरी भावुकता के प्रवाह में आकर किसी मार्ग पर चल पड़नी उचित नहीं है। कवि कहता है| व्याख्या – हे पथिक ! भावुकता के आवेश में आकर किसी मार्ग पर अग्रसर होने से पूर्व हम स्वर्ग का सपना देखने लगते हैं। प्रसन्नता के कारण हमारी आँखें चमक उठती हैं। उस समय कल्पना लोक की उड़ान भरने के लिए हमारे पैरों में पंख लग जाते हैं। छाती उन्मुक्त हो उत्साह से भर जाती है। किन्तु ठीक उसी प्रकार राह का एक मामूली-सा काँटा पाँवों में चुभ जाता है और खुन की दो बूंदों के बहने से ही सारी कल्पना की दुनिया ही उसमें डूब जाती है अर्थात् मार्ग में मामूली अवरोध उत्पन्न हो जाने मात्र से ही सारी मजा किरकिरा हो (UPBoardSolutions.com) जाता है। अत: पाँवों के काँटे चुंभकर ये शिक्षा देते हैं कि भले ही तुम्हारी आँखों में स्वर्ण के सजीले सपने क्यों न हों किन्तु तुम्हें अपने पैरों को पृथ्वी पर सुरक्षित टिकाना चाहिए अर्थात् मस्तिष्क में भले ही कल्पना की ऊँची उड़ाने क्यों न हों, किन्तु व्यावहारिक जगत् की उपयोगिता कदापि भूलनी नहीं चाहिए। हमें पथ के चुभे काँटों की इस शिक्षा का सदैव सम्मान करना चाहिए। किसी मार्ग पर अग्रसर होने से पूर्व उस मार्ग की पूरी जानकारी अवश्य कर लेनी चाहिए। काव्यगत सौन्दर्य
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. हरिवंशराय बच्चन जन्म – सन् 1907 ई०, प्रयाग। साहित्य और कविता के प्रति आपकी रुचि बचपन से ही थी। सन् 1923 ई० में आपकी रचना ‘मधुशाला’ के प्रकाशन ने आपको कीर्ति के शिखर पर पहुँचा दिया। आपकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सन् 1976 ई० में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। आपका शरीरान्त सन् 2003 ई० में हो गया। रचनाएँ – बच्चन जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, प्रणय-पत्रिका, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, सतरंगिणी, दो चट्टानें आदि। ‘दो चट्टानें’ काव्य-ग्रन्थ के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया है। काव्यगत विशेषताएँ बच्चन जी उत्तर छायावादी काल के आस्थावादी कवि हैं। आपकी कविताओं में भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। आपकी कविता में प्रेम के संयोग-वियोग जन्य भावपूर्ण चित्र अंकित हैं। प्रेम के अतिरिक्त जीवन के अन्य सन्दर्भो में निराशा की भाषा देखने को मिलती है। विद्रोह का स्वर भी कहीं-कहीं आपकी कविताओं में मिलता है। आपकी पूर्ववर्ती रचनाओं में वैयक्तिकता है तो परवर्ती रचनाओं में (UPBoardSolutions.com) जन-जीवन का व्यापक चित्रण है। वैचारिक क्रान्ति, मानवीय संवेदना और व्यंग्य-दंश से पूर्ण आपके काव्य ने हिन्दी कविता को नयी दिशा प्रदान की है। बच्चन जी की भाषा साहित्यिक होते हुए भी बोलचाल की भाषा के अधिक निकट है। आपकी भाषा सरल व सरस है। आपने लोकगीतों और मुक्तक छन्दों की रचना की है। अपनी गेयता, सरलता, सरसता और खुलेपन के कारण आपके गीत बहुत ही पसन्द किये जाते हैं। साहित्य में स्थान – नि:सन्देह लोकगीतों की धुन में गीतों की रचना करके बच्चन जी ने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की है। हिन्दी साहित्य में हालावाद के स्थापक के रूप में आपका मान्य स्थान है। लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. कवि कहते हैं कि जीवन के मार्ग का निर्धारण करके उस पर दृढ़ निश्चय के साथ चल पड़ना ही श्रेयस्कर है। अनिश्चय की स्थिति में बार-बार मार्ग बदलने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाती । कवि कहते हैं कि किसी भी मनुष्य का यह सोचना कि पथ के निर्धारण में उसे ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, गलत है। पूर्व के सभी मनुष्यों को भी अपने पथ का निर्धारण करना पड़ा था और बाधाएँ उनके सामने भी आयी थीं। अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
(ब) काव्य-सौन्दर्य-
2. निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए We hope the UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 10 हरिवंशराय बच्चन (काव्य-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Hindi Chapter 10 हरिवंशराय बच्चन (काव्य-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest. |